हिंदी के अनन्य सेवक व लेखक, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, तेजस्वी वक्ता, समाज सुधारक और महान स्वतंत्रता सेनानी 'भारतरत्न' पुरुषोत्तम दास टंडन जी की जयंती पर उन्हें सादर नमन ! राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, स्वाधीनता आंदोलन के अग्रणी नेता, समाज सुधारक, कर्मठ पत्रकार तथा तेजस्वी वक्ता थे। उनका जन्म 1 अगस्त, 1882 को इलाहबाद में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एंग्लो वर्नाक्यूलर विद्यालय से पूर्ण कर विधि स्नातक की योग्यता हासिल की और 1906 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे, उसी वर्ष इलाहबाद के लिए कांग्रेस के भी प्रतिनिधि चुने गए। 1919 से हुए जालियाँवाला बाग हत्याकांड के लिए बनी कांग्रेस समिति से वे सम्बद्ध रहे, और फिर 1920-21 के असहयोग आंदोलन तथा गांधी जी के आह्वान पर उन्होंने उच्च न्यायालय की प्रैक्टिस छोड़ दी तथा एक योद्धा की भूमिका का निर्वाह किया। 1937 में चुनाव हुए तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को बहुमत मिला, इसका पूरा श्रेय टंडन जी को गया, 1937 से 1950 तक वे उत्तर प्रदेश विधान सभा में प्रवक्ता रहे और वहाँ के पहले मंत्रिमंडल में विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) चुने गए। वे 1946 में भारत की संविधान सभा में भी चुने गए, 1952 में लोकसभा के तथा 1957 में राज्य सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 1949 में उनके प्रयास से ही हिंदी भारत की राजभाषा बनी। वे एक उच्च कोटि के रचनाकार भी थे और उनके बहुआयामी और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की वजह से देवराहा बाबा ने उन्हें राजर्षि की उपाधि से अलंकृत किया। 26 अप्रैल, 1961 को भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न' की उपाधि से विभूषित किया। 1 जुलाई, 1962 को भारत माता के ये सपूत प्रयागराज में पंचतत्व में विलीन हो गए।
हिंदी विश्व में भारतीय अस्मिता की पहचान है। हिंदी भारत की राजभाषा,राष्ट्रभाषा से आगे विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है।
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