आज के समय में विनोबा भावे की प्रासंगिकता
भूदान आंदोलन के जनक, नागरी लिपि परिषद के संस्थापक आचार्य विनोबा भावे की 127 वीं जयंती पर भावपूर्ण नमन! आज जब देश में रीयल एस्टेट की आड़ में कृषि जोत ख़रीदने की होड़ लगी है। हर कोई ज़मीर से अधिक ज़मीन ख़रीदने की होड़ में शामिल है। अब किसान भी मुँह माँगी क़ीमत पर अपनी ज़मीन बेच रहे है। भारतीय ग्रामीण परंपरा की नींव दरकती जा रही है। अब हर पैसे वाला ज़मींदार है। इस होड़ के कारण भूदान आंदोलन के जनक आचार्य विनोबा भावे ज़्यादा याद आ रहे हैं।
आज के हिंदुस्तान में ज्ञानेश उपाध्याय की विशेष प्रस्तुति को पढ़ा। सच में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की विरासतें कमज़ोर पड़ रही है।
आलेख का एक छोटा-सा अंश
हमारा शरीर स्वयं ही प्रेम और लगाव की अद्भुत मिसाल है। अंगों में परस्पर अनुपम प्रेम होता है। सब अंग एक दूजे की सेवा में लगे होते हैं ताकि शरीर सुखी रहे । सोते हुए में भी एक अंग को दूसरे की फ़िक्र होती है । शरीर पर कहीं भी मच्छर बैठ जाए तब तत्काल हाथ उठ जाता है काश! समाज भी शरीर-सा हो जाए, जिसमें सभी को सभी की फिक्र हो लेकिन ऐसा होता नहीं है इसलिए दुख दर्द की अवस्था कही न कही बची-बनी रहती है। जब प्रेम का अभाव होता है, तब दुःख अक्सर घृणा में बदल जाता है और घृणा ही हिंसा पर उतारू हो जाती है।
आज देश की युवा पीढ़ी अपनी भाषा और लिपि को हीनता बोध से देखती है। रोमन लिपि की अपसंस्कृति हावी है। ऐसे में उनके विचारों को आज अपनाने की ज़्यादा ज़रूरत है।
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