हिंदी के अप्रतिम यौद्धा-चन्द्रबलि पाण्डेय


आज फ़ारसी, अरबी तथा प्राकृत भाषाओं के ज्ञाता हिंदी के अनथक यौद्धा चन्द्रबली पाण्डेय की  जयंती है।  उनके सम्बन्ध में प्रसिद्ध भाषा शास्त्री डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी कहते हैं -“पाण्डेय जी के एक-एक पैंफलेट भी डॉक्टरेट के लिए पर्याप्त हैं।" 

आजीवन अविवाहित रहे चन्द्रबली जी हिन्दी के अप्रतिम साहित्यकार माने जाते हैं।  आपके लिए हिंदी सेवा सर्वोपरि रही। अपनी व्यक्तिगत सुख-सुविधा के लिए आपने कभी चेष्टा नहीं की।  आपके द्वारा रचित छोटे-बड़े कुल ग्रन्थों की संख्या लगभग 34 कही जाती है। विश्वविद्यालय सेवा से दूर रहकर भी हिन्दी में शोध कार्य करने वालों में आपका प्रमुख स्थान है।

आपने हिंदी-विरोधियों से उस समय लोहा लिया, जब हिंदी का संघर्ष उर्दू और हिंदुस्तानी से था। आपके लिए हिंदी भाषा का प्रश्न राष्ट्रभाषा का प्रश्न था। भाषा विवाद ने इस प्रश्न को जटिल बनाकर उलझा दिया था। आपके शब्दों में उर्दू के बोलबाले का स्वरूप यों था- 'उर्दू का इतिहास मुँह खोलकर कहता है, हिंदी को उर्दू आती ही नहीं और उर्दू के लोग, उनकी कुछ न पूछिये। उर्दू के विषय में उन्होंने ऐसा जाल फैला रखा है कि बेचारी उर्दू को भी उसका पता नहीं। घर की बोली से लेकर राष्ट्र बोली तक जहाँ देखिये वहाँ उर्दू का नाम लिया जाता है।... उर्दू का कुछ भेद खुला तो हिंदुस्तानी सामने आयी।'

जब भाषा विवाद के चलते हिंदी पर बराबर प्रहार हो रहे थे। हिंदी के विकास में फ़ारसीनुमा उर्दू के हिमायतियों द्वारा तरह-तरह के अवरोध खड़े किये जा रहे थे, तब हिंदी की राह में पड़ने वाले अवरोधों को काटकर आपने हिंदी की उन्नति और हिंदी के विकास का मार्ग प्रशस्त किया । आपके प्रखर विचारों ने भाषा संबंधी उलझनों को दूर कर हिंदी क्षेत्र को नई स्फूर्ति दी। आपके गम्भीर चिंतन, प्रखर आलोचकीय दृष्टि और आचार्यत्व ने हिंदी और हिंदी साहित्य को अपने ही ढंग से समृद्ध किया।

पाण्डेजी ने अपने समय के हिन्दू-उर्दू विवाद पर तर्कसम्मत ढंग से अपने लेखों में निरन्तर लिखा। आपके प्रमुख लेख हैं: "उर्दू का रहस्य", "उर्दू की जुबान", "उर्दू की हकीकत क्या है", "एकता", "कचहरी की भाषा और लिपि", "कालिदास", "कुरआन में हिन्दी", "केशवदास", "तसव्वुफ अथवा सूफी मत", "तुलसी की जीवनभूमि", "नागरी का अभिशाप", "नागरी ही क्यों", "प्रच्छालन या प्रवंचना", "बिहार में हिन्दुस्तानी", "भाषा का प्रश्न", "मुगल बादशाहों की हिन्दी", "मौलाना अबुल कलाम की हिन्दुस्तानी", "राष्ट्रभाषा पर विचार-विमर्श", "शासन में नागरी", "शूद्रक साहित्य संदीपनी", "हिन्दी के हितैषी क्या करें", "हिन्दी की हिमायत क्यों", "हिन्दी-गद्य का निर्माण", "हिन्दुस्तानी से सावधान" आदि। 

आपका जन्म 25 अप्रैल, 1904 को उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ के 'साठियाँव' गाँव में हुआ था और निधन 24 जनवरी, 1958 को हुआ। आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नातकोत्तर उपाधि ग्रहण करने के बाद सूफी साहित्य और दर्शन का गहन अध्ययन किया। 

पाण्डेय जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व हिंदी के प्रति समर्पित रहा। आपके लेखों से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि आपको राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति कितना प्रेम था । वे किसी भी स्थिति में हिन्दी को अप्रतिष्ठित नहीं देख सकते थे । पाण्डेयजी के अमूल्य प्रदेय से बहुत कम लोग परिचित हैं, परन्तु उन्होंने जो भी कुछ किया, वह हिन्दी के लिए ही किया ।

-आलेख-साकेत सहाय


सामग्री स्रोत- विकिपीडिया

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