प्रयागराज हो या इलाहाबाद- एक विमर्श

कुछ लोगों की विरासत इलाहाबाद है प्रयागराज नहीं। होना यह चाहिए था कि दोनो विरासतों का सम्मान हो। पर हुआ उल्टा कि एक पक्ष ने कथित प्रगतिवादी बनने के चक्कर में पुराने सब कुछ को गलत माना और दिखावे की आड़ में सब गलत को सहते रहें। इन बुद्धिजीवियों? की आड़ में एक पक्ष ने अपनी दुकानदारी जमकर चलाई । अब दूसरा पक्ष यही कर रहा है । ऐसे लोग स्वार्थी हैं। अफसोस कहाँ जाए? बस आप अपने आप को सत्य के मार्ग पर रख सकते है। बाकी इनकी नजर में जो इन्होंने किया केवल वही सत्य है। दुनिया जानती है कि तमाम विवादित चीजे जो अंध एकपक्षवाद के समर्थन में थी इन्होंने उनका समर्थन किया।  

भारतीय संस्कृति इनकी नजर में 15वीं शताब्दी के बाद प्रारंभ होती है। संस्कृति तो समाहार का दूसरा नाम है और भारतीय संस्कृति तो समवेत स्वर में सभी का सम उद्घोष करती है। फिर आपने दूसरों को कैसे छोड़ दिया। अगर आप बुद्धिजीवी है तो सभी गलत को गलत बोले। सत्य को सत्य । सत्य को दक्षिणपंथ, वामपंथ एवं इंदिरा कांग्रेस या कांग्रेस अथवा अन्य पक्ष से प्रभावित न होने दें। हम पहले नागरिक बनें। न कि नागरिक से ज्यादा किसी पक्ष या पार्टी कैडर की तरह आचरण करते नजर आए। जरा सोचिए। आज भी दोनो क़ायम है, सदा रहेंगे। समावेशी होना ही भारतीयता है।

 @डॉ साकेत सहाय 

#साकेत_विचार

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