हिंदी -भारत की भाव भाषा

 


हिंदी पर चल रहे ‘नाहक’ विवाद और इसकी सर्वप्रियता पर कुछ भाव उपजे, जिसे आप सभी से साझा कर रहा हूँ….


मुझे हिंदी से प्रेम है

बचपन से है यह मुझसे

घुली-मिली

पेशावर से पोखरण तक 

कोच्चि से चटगाँव तक


किसी के लिए है यह राष्ट्रीय भाषा 

किसी के लिए है यह राष्ट्रभाषा

किसी के लिए है यह संपर्क भाषा

किसी के लिए है यह जनभाषा 

पर भाव एक ही है 

सबके लिए है यह 

प्रेम, लगाव और जुड़ाव की भाषा

तभी बनी देश की राजभाषा

है यह संस्कृत की पुत्री

पर सींचित हुई सभी से

कभी दक्षिण से 

कभी उत्तर से

कभी पूर्व से 

कभी पश्चिम से


है बड़ी सहज, 

बड़ी सरल,

हर कोई करें 

इसका सम्मान।

संस्कृत इसकी जननी है,

है यह प्रेम और लगाव की भारत सूत्र।


भारत माँ है 

भाषाओं की थाल,

पर हिंदी है हम सबकी चहेती

हिंदी को जब मन से पढ़ा

जाग्रत हुआ भारत-विवेक।


हिंदी से स्वाधीनता, 

एकता, संपर्क के भाव हो पूरे। 

लिखते-बोलते कवि, लेखक, नेता, अभिनेता हिंदी में

बड़े-बड़े संदेश भी अक्सर

बोले-सुने जाते हिंदी में।


गांधीगीरी से आज़ाद-भगत ,

कबीर से रवीन्द्र

तुलसी से प्रेमचंद 

नानक से शिवाजी तक

लता से रफी 

आशा से किशोर

राजेंद्र से कलाम तक

फुले से बाबा साहब तक

संत नामदेव से कविवर सुब्रमण्यम तक

सब हिंदी को ज़ुबाँ से दिल तक लाए


है हिंदी माँ भारती की आवाज़

हिंदी देती सबको मान

सरल-सहज शब्दों में 

सब इसका करें बखान।

अरब से लेकर अमरीका तक। 


हिंदी मिले, जब दिल से

निकले दिल से प्रेम की ज्योति

है यह सब भाषाओं की संपर्क सूत्र

इसीलिए सबको लगे विशेष।


जब बोले हम हिंदी में

हो जाए हम एक

आइए हम सब मिल करें 

एक पहल

करें सम्मान हिंदी का, 

समझे इसका मान

हिंदी है भारत की अमर वाणी !!


जय हिंद!! जय हिंदी!!

सर्वाधिकार सुरक्षित •साकेत सहाय

#साकेत_विचार


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