वीर सावरकर - इतिहास का एक अछूत सितारा

कालापानी जैसी कठोर सजा को अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लगातार 10 वर्ष तक भोगने वाले वीर सावरकर जी को शत-शत नमन!

स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के शब्दों में – 

सावरकर माने तेज़, 

सावरकर माने त्याग, 

सावरकर माने तप.

भले ही राजनीतिक निहितार्थ वीर सावरकर जी की छवि को नकारात्मक रूप से चित्रित करने का प्रयास किया गया। पर यह अटल सत्य है कि उन्होंने देश की ख़ातिर अपने जीवन का प्रत्येक क्षण समर्पित किया। महान क्रांतिकारी वीर सावरकर जी अडिग राष्ट्रवाद के प्रतीक थे। उनकी सबसे बड़ी पूँजी यह थी कि वे समाज की नकारात्मकताओं का सामना करने, सवाल करने और लड़ने की हिम्मत रखते थे। देश को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे पहले सामाजिक राजनीतिक व्यक्ति रहे जिन्होंने 1857 की लड़ाई को भारतीय इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम दिया। यह उनका अमिट योगदान है। भारतरत्न सावरकर जी का जीवन भारतीयों के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बना रहेगा।

इस ब्लॉग के माध्यम से आप सभी से मैं वीर सावरकर जी की हिंदी उर्दू रचनाएँ उनके हस्ताक्षर में साझा कर रहा हूँ। जिसे स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय संग्रहालय,दादर,मुंबई द्वारा वीर सावरकर जी की स्मृतियां को संजो कर  रखा गया है। इसी संग्रहालय में उनकी उर्दू हिंदी में  लिखी हुई कुछ साहित्य रचनाएँ उपलब्ध है।








अंडमान सेलुलर जेल में अपनी सजा काटते हुए, स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने अपने साथी कैदियों से अरबी, फारसी और उर्दू सीखी थी। वीर सावरकर ने ग़ज़लें भी लिखी हैं।  बाद में उन्होंने यह सब अंडमान में एक किताब में लिख दिया था। यह पुस्तक स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक द्वारा भी संरक्षित है।  संलग्न  तस्वीरों में सावरकर के लेखन से ग़ज़ल अवश्य पढ़ें।  उर्दू और हिंदी लिखावट वीर सावरकर जी की है।

उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व को शत शत नमन! 

🌸🙏🏻

फ़ोटो साभार- गूगल

डा. साकेत सहाय

#साकेत_विचार

#वीर_सावरकर

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