अपनी देवनागरी लिपि - केदारनाथ सिंह

 अपनी देवनागरी लिपि


ज्ञानपीठ, साहित्य अकादेमी व अन्य कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित कवि केदारनाथ सिंह जी के स्मृति दिवस पर नमन ! 

 

और भाषा जो मैं बोलना चाहता हूँ 

मेरी जिह्वा पर नहीं 

बल्कि दांतों के बीच की जगहों में 

सटी है।  

                                                     (फर्क नहीं पड़ता)    



~केदारनाथ सिंह

•••

यह जो सीधी-सी, सरल-सी

अपनी लिपि है देवनागरी

इतनी सरल है

कि भूल गई है अपना सारा अतीत

पर मेरा ख़याल है

'क' किसी कुल्हाड़ी से पहले

नहीं आया था दुनिया में

'च' पैदा हुआ होगा

किसी शिशु के गाल पर

माँ के चुम्बन से!

'ट' या 'ठ' तो इतने दमदार हैं

कि फूट पड़े होंगे

किसी पत्थर को फोड़कर

'न' एक स्थायी प्रतिरोध है

हर अन्याय का

'म' एक पशु के रँभाने की आवाज़

जो किसी कंठ से छनकर 

बन गयी होगी 'माँ"!

स' के संगीत में

संभव है एक हल्की-सी सिसकी

सुनाई पड़े तुम्हें।

हो सकता है एक खड़ीपाई के नीचे

किसी लिखते हुए हाथ की 

तकलीफ़ दबी हो

कभी देखना ध्यान से 

किसी अक्षर में झाँककर

वहाँ रोशनाई के तल में

एक ज़रा-सी रोशनी

तुम्हें हमेशा दिखाई पड़ेगी।

यह मेरे लोगों का उल्लास है

जो ढल गया है मात्राओं में ।

अनुस्वार में उतर आया है

कोई कंठावरोध!


पर कौन कह सकता है

इसके अंतिम वर्ण 'ह' में 

कितनी हँसी है

कितना हाहाकार !

••• •••

~केदारनाथ सिंह

जन्म7 जुलाई, 1934
जन्म भूमिचकिया गाँव, बलिया (उत्तर प्रदेश)
मृत्यु19 मार्च, 2018
मृत्यु स्थाननई दिल्ली

प्रमुख आधुनिक हिंदी कवियों एवं लेखकों में से हैं। केदारनाथ सिंह चर्चित कविता संकलन ‘तीसरा सप्तक’ के सहयोगी कवियों में से एक हैं। इनकी कविताओं के अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, स्पेनिश, रूसी, जर्मन और हंगेरियन आदि विदेशी भाषाओं में भी हुए हैं। कविता पाठ के लिए दुनिया के अनेक देशों की यात्राएँ की हैं।

आपको ज्ञानपीठ पुरस्कारमैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कारव्यास सम्मान (1997) प्राप्त है। 




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