#हिंदी_से_प्रेम

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#राष्ट्रभाषा_पहले #जय_हिंद_जय_हिंदी


आज सुबह में मुझे दूध का एक पैकेट फटा मिला, तो मैंने कंपनी को इस बात की शिकायत हिंदी में ई-मेल  द्वारा की। कंपनी ने इसका उत्तर अंग्रेज़ी में दिया। यह बेंगलेरू में स्थित कंपनी है। फिर मैंने लिखा। आप सभी को जानकर प्रसन्नता होगी कि कम्पनी ने दुबारा उत्तर हिंदी में दिया। निहितार्थ यही है आपको अपनी उपयोगिता स्थापित करनी होगी। फोटो संलग्न है।


जैसा कि आप सभी जानते है कि हिंदी मेरी वृत्ति भी है और प्रवृति भी। परंतु हिंदी पहले मेरी प्रवृति बनी बाद में वृत्ति। यहीं कारण है कि मैं इससे दिल से जुड़ा हूँ।  वास्तव में भारत की यह विडम्बनापूर्ण स्थिति है कि हमारे लिए अपनी भाषाएँ गौण है। हमारे लिए अपनी भाषाएँ महत्व की दृष्टि से सबसे अंतिम पायदान पर खड़ी रहती हैं। जबकि भाषाएँ समाज, राष्ट्र की जीवंतता के लिए परमावश्यक है। पर हम तो भारत के संविधान द्वारा प्रतिष्ठित भारत की राष्ट्रभाषा, राजभाषा हिंदी एवं अपनी प्रादेशिक भाषाओं के प्रयोग में हीनता बोध का अनुभव करते हैं। अन्यथा क्या कारण है कि सब कुछ होते हुए भी उदारीकरण के युग में कथित ज्ञान प्राप्ति की ख़ातिर हमारी अपनी राष्ट्रभाषा एवं प्रादेशिक भाषाएँ बोली के रूप में सिमटती जा रही है। क्योंकि हम इनका प्रयोग नहीं करते। सिर्फ़ सरकारों को कोसते हैं। 


भाषा के प्रसार के लिए यह जरुरी है कि हम इनका प्रयोग करें।  उपयोगिता स्थापित करें। भाषा प्रयोग की दिशा में निरंतर प्रयास करें।  हम सभी अपने  मोबाइल  बिल, हवाई यात्रा टिकट या अन्य बिल विवरण ल, डीमैट खाता, म्यूच्यूयल फंड आदि अंग्रेजी के  बदले  हिंदी में भी मांगे। साथ ही, अन्य क्षेत्रों में भी हिंदी एवं भारतीय  भाषाओं की मांग करें तभी निजी  क्षेत्र भी हिंदी  का महत्व  समझेंगे क्योंकि सरकार द्वारा  हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दिय़ा जाता है  परंतु निजी  क्षेत्र  हमारे ऊपर जबरदस्ती अंग्रेजी  थोपती है जबकि वे भी हमसे  शुल्क  लेते हैं। 


भाषाएं भाव, विचार की अनुगामिनी होती है । सफल कारोबार के लिए ये सभी जरूरी है। बाज़ार मांग के महत्व को समझता है।  पूर्व में भी मेरे द्वारा इंडिगो, एयरटेल, होमशाॅप- 18,   सोनी टीवी  तथा एक  अमेरिकन वेबसाइट को लिखने का असर दिखा  था।  निष्ठा के साथ किए गए प्रयास जरूर रंग लाते है। 

सादर 

डा. साकेत सहाय


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