पट्टाभि सीतारमैया -हिंदी सेवी, गाँधी जी के सहयोगी




पट्टाभि सीतारामैया, महात्मा गाँधी के विश्वस्त सहयोगी आधुनिक भारत में स्वदेशी आर्थिक क्रांति के अगुआ माने जाते है। आपने बीमा कंपनियों की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आप आंध्रा बैंक के जनक थे,जिसका समामेलन यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में इंडिया में किया गया । 

 नमक सत्याग्रह (1930), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1932) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में भाग लेने हेतु पट्टाभि सीतारमैय्या को ब्रिटिश सरकार द्वारा कई बार कैद किया गया था। आप भारत की संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुने गए थे । भोगराजू पट्टाभि सीतारमैय्या भी नियम समिति, संघ शक्तियों समिति और प्रांतीय संविधान समिति के सदस्य थे। भोगराजू पट्टाभि सीतारमैय्या ने `राष्ट्रीय शिक्षा` (1912),` भारतीय राष्ट्रवाद` (1913), `भाषाई आधार पर भारतीय प्रांतों के पुनर्वितरण` (1916), `असहयोग` (1921),` भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इतिहास` सहित कई पुस्तकें लिखीं। आप मध्य प्रदेश के पहले राज्यपाल के रूप में 1 नवंबर, 1956 से 13 जून, 1957 तक पद पर रहे। 

आपका जन्म 24 नवंबर, 1880 को आंध्र प्रदेश के गुंडुगोलनू गाँव में हुआ था। जब बालक सीतारामैया मात्र चार-पाँच साल के थे, तभी इनके पिता की मृत्यु हो गयी। गरीबी से जूझते परिवार के लिए यह कठिन समय था पर अनेक कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और बी.ए. की डिग्री ‘मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज’ से प्राप्त की। इसी दौरान उनका विवाह काकीनाड़ा के एक संभ्रांत परिवार में हो गया। तत्पश्चात उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की और आंध्र प्रदेश के एक तटीय शहर मछलीपट्टनम में चिकित्सा शुरू की। लेकिन बाद में उन्होंने डॉक्टरी को छोड़ दिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। 1910 में भोगराजू पट्टाभि सीतारमैया ने आंध्र जटायसा कलसाला की स्थापना की। 17 दिसंबर, 1959 को उनका निधन हो गया। 

महात्मा गांधी का आप पर अत्यधिक विश्वास एवं स्नेह था। यही कारण है कि वर्ष 1939 में जब आप कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव में श्री सुभाषचंद्र बसु के विरुद्ध खड़े हुए तो महात्मा गांधी ने कहा था कि' पट्टाभि की हार मेरी हार होगी।' उस समय सुभाष बाबु जीत गए । जो ऐतिहासिक घटनाक्रम बना। 

स्वाधीनता के बाद आप वर्ष 1948 ई. में जयपुर कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए। इसी अधिवेशन में भारतीय कांग्रेस का वह ऐतिहासिक प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था जिसके अनुसार कांग्रेस को विश्व शांति तथा मैत्री और राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक समानता के आधार पर भारतीय राष्ट्र एवं जनता को प्रगति पथ पर अग्रसर करने का लक्ष्य सुनिश्चित किया गया था। 

अंग्रेजी पर आपका असाधारण अधिकार था पर आप राष्ट्रभाषा हिंदी के भी भक्त थे। मार्च, 1957 में जब आपकी पुस्तक "गांधी तथा गांधीवाद" का प्रकाशन हुआ तो आपने उसकी भूमिका में लिखा - "हिंदी आज राजभाषा बन चुकी है और वस्तुत: भारत की राष्ट्रभाषा के गौरवमय पद पर प्रतिष्ठित हो चुकी है।' 



डाॅ साकेत सहाय

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