छठ पर्व की महत्ता













हमारे घर-समाज में छठी मइया की व्रत-पूजा की समृद्ध परम्परा रही है। परंपरागत रूप से घर के वरिष्ठ सदस्य माता, अपवाद स्वरूप पुरूष भी छठ व्रत करते थे। हालांकि समय के साथ इस स्वरूप में बदलाव आए है। 
छठ पर्व यह सीख देता है कि  प्रकृति अथवा सृष्टि में सब कुछ क्षणभंगुर है,  समय के साथ बस रूपांतरण होता रहता है, अतः अहंकार का त्याग कर हर छोटी से छोटी वस्तु का सम्मान करना चाहिए।   जो उदय हुआ उसका अस्त होना तय है। इसकी अनुभूति छठ के अवसर पर अस्त होते सूर्यदेव तथा उगते सूर्य को आराधना के दौरान होती है। 
छठ पर्व की परम्परा को आगे बढ़ाने में पीढ़ीगत क्रम में परिवार के सदस्यों द्वारा इसे अपनाने की परंपरा का बहुत बड़ा योगदान है। बचपन से इस व्रत को देखने वाले, इसे करने वाले इसके सहज स्वरूप के कारण इसे अपनाते चले गए । दादी, छोटकी दादी, बड़की चाची, माँ, बड़की भाभी, पत्नी या घर के पुरूष द्वारा इसे करने से छठ की समृद्ध परंपरा स्थापित होती गयी। घर के बच्चों में भी इससे समृद्ध संस्कार का निर्माण हुआ । बच्चों को यह व्रत परम्परा बहुत लुभाती हैं । इसके लोक गीत, गांवों, परंपराओं की ओर खींचते हैं । परिवार के सभी बच्चे इस अवसर पर इकट्ठा होकर परिवार में समृद्ध पारिवारिक संस्कृति की नींव रखते थे। छठ का प्रकृति से करीब होना बच्चों को माटी से जोड़ता था। सारे बच्चे घर पर जुटते थे। बच्चों का आपस में खेलना कूदना एक अलग रस देता था। खरना का प्रसाद, ठेकुआ, गन्ना का प्रसाद, शरीफा खाना, अन्नानाश खाना, गुड़ से बनी खीर, सभी को भाती। गांव-नगर के पोखर सामुदायिक पर्व का स्वरुप बनाते थे । पहले छठ-होली का पर्व जाति, धर्म से ऊपर गांव-घर का सबसे बड़ा त्यौहार होते थे। सभी को स्वीकार्य, कोई विरोध नहीं। आनंद, त्याग और समर्पण का बोध। परिवार में भी जुटान, उत्सव की भांति, कोई कहीं भी रहे, इस अवसर पर सभी जुटते थे। इसमें सभी शामिल होने आते थे। कमरे भले छोटे होते थे, पर लोग बड़े से ज्यादा प्रेम और दिल से जुटते थे। एक ही कमरे में परिवार के सभी लोग जमा होते थे। सामान्य स्वरूप में छठ मइया का व्रत शाम और भोर में भगवान भास्कर को साक्षी मानकर छठी मइया को अर्घ्य देने की परंपरा और पूजा हैं । बच्चों, प्रियजनों के स्वस्थ रहने और लम्बी उम्र की कामना के साथ छठी मइया के लिए यह कठिन तप किया जाता है।छठ व्रत की अनूठी विशेषता इसकी सादगी, सफाई और शुद्धता के साथ करने की परंपरा है। सादगी, स्वच्छता और शुद्धता का सीधा सम्बन्ध प्रकृति और पर्यावरण से है और पर्यावरण का सीधा सम्बन्ध हमारे शरीर और मन से है। स्वास्थ्य और स्वच्छता के महत्व को कोरोना जैसी महामारी ने पुनः बोध कराया है। जिससे पूरी दुनिया जूझ रही है। ऐसे में छठ व्रत करने की परंपरा और इसकी वैज्ञानिकता आकर्षित करती है। छठ एक वैज्ञानिक पर्व है। यह पर्व हमें प्रकृति-पर्यावरण से जुड़ने की प्रेरणा देता है। हमें हमारी लोक भाषा और संस्कृति से भी जोड़ता है। हम संस्कृति, भाषा और पर्यावरण से जब तक अपने को जोड़े रखेंगे। अपनी माँ की तरह उससे प्रेम करेंगे, उसका प्रसार करेंगे और सम्मान करेंगे, हम स्वस्थ और समृद्ध रहेंगे । जिसका उदय होता है उसका अस्त होना तय है । पर समय के साथ उसकी समृद्ध विरासतें ही सुदृढ़ संस्कृति का निर्माण प्रशस्त करती हैं । छठ का यही संदेश हैं । छठ पर्व में समय के साथ आडंबर भी जुड़े हैं, पर इसकी मूल प्रवृति स्थायी है। छठ का यही संदेश हैं । 

साकेत सहाय

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