हिंदी विश्व

हिंदी राजनेताओं, पत्रकारों की चिंताओं से अलग कश्मीर से अमेरिका तक आम पथ पर सरपट भाग रही है। अतः हिंदी के बारे में एक वर्ग द्वारा दी जा रही


जहरीली खुराक से दूर रहें। बहरहाल हिंदी राष्ट्रभाषा, संपर्क भाषा के रूप में सर्वस्वीकृत है और तमाम दबावों एवं हीनता बोध के बावजूद यह विश्व स्तर पर मजबूती के साथ स्थापित हो रही है। लोग इसे सम्मान भी दे रहे है। समस्या या कमी हिंदी को अपनी मातृभाषा मानने वालों या हिंदी भाषी राज्यों में ज्यादा है यहां के लोग हिंदी को वह सम्मान नहीं देते जिसकी वह हकदार है। ऐसे में आज हिंदी तकनीक एवं ज्ञान विज्ञान की भाषा के रूप में गरिमा के साथ स्थापित नही है। यदि इसमें लेखन हो भी रहा है तो हिंदी के मठाधीश उसे जगह नहीं देते। एक समय में ओडीशा या बंगाल जैसे प्रदेशों की ग्रामीण महिलाएं घरों में हिंदी की पत्र-पत्रिकायें पढ़ती थीं । आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व केरल में भी लिखित स्तर पर इसकी पहुँच बहुत अधिक थी। तमिलनाडु में भी पर्याप्त सम्मान था। पर अब? समस्या हिंदी के मठाधीशों से ज्यादा है। दूसरी हम हिंदी की मूल ताकत से भी अंजान है। केवल रोने से या सरकारों को कोसने क्या होगा? हिंदी क्षेत्र का हर परिवार अपने घरों, परिवारजनों, समाज में इसे भाषा के रूप में मजबूत करें। हिंदी की किताबें खरीद कर पढ़े यही सच्ची सेवा होगी। 

 सादर #जय हिंद जय #हिंदी #साकेत_विचार

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