बिहार निर्माता डा. सच्चिदानंद सिन्हा -भारत के अग्रणी संविधान निर्माता

आधुनिक बिहार के निर्माता डाॅ सच्चिदानंद सिन्हा की जयंती पर शत शत नमन! 

उनसे जुड़ा एक संस्मरण है 'विधि शास्त्र की उच्च शिक्षा प्राप्त करके जब डाॅ सिन्हा बिहार लौटेें तो उनसे एक पंजाबी अधिवक्ता ने पूछा आप किस प्रदेश से हो तो उन्होंने उत्तर दिया बिहार से। वे आश्चर्य में पड़ गए क्योंकि उस समय बिहार का एक प्रदेश के रूप में गठन नहीं हुआ था। बिहार ब्रिटिश शासन में बने बंगाल का भाग था। अधिवक्ता महोदय ने पूछा कि बिहार नाम का कोई प्रांत तो हिंदुस्तान में है ही नही तब डाॅ सिन्हा ने जवाब दिया कि है नहीं पर जल्दी ही हो जाएगा। यह बात फरवरी 1893 की है। उसके बाद मात्र 9 वर्षों के भीतर बिहार राज्य की सशक्त नींव रखी गयी। कहा जाता है जो स्थान बंगाल के नव निर्माण में राजा राम मोहन राय का है वहीं स्थान बिहार के नव निर्माण में डाॅ सच्चिदानन्द सिन्हा का है। साथ ही देश के युवाओं को यह भी नोट करनी चाहिए कि आधुनिक भारत के संविधान के निर्माण में कायस्थ कुल रत्न स्व. डा. सच्चिदानंद सिन्हा की अहम् भूमिका रही। वे बिहार की भोजपुरी माटी के महत्वपूर्ण स्थल बक्सर जिले के मूल निवासी थे। उनका जन्म वर्तमानु डुमरांव अनुमंडल के चौंगाई प्रखंड के मुरार गांव में 10 नवंबर 1871 ई. को हुआ था। पर दुर्भाग्य है इस देश का जहां आज का समाज वोट से निर्धारित होता है। तभी तो देश या बिहार के लोग वोट खेंचक को तो जमकर याद करते है पर इन्हें कोई नही याद नहीं करता क्योंकि इनके पीछे कोई बड़ा वोट बैंक नहीं था। विधिवेत्ता सच्चिदानन्द सिन्हा को वरिष्ठता और श्रेष्ठता के कारण संविधान सभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया गया। पं. जवाहरलाल नेहरू ने अधिकृत नियम बन जाने तक कार्य संचालन के लिए यह प्रस्ताव रखा कि जब तक संविधान सभा अपने संचालन की नियमावली स्वयं नहीं बना लेती तब तक केंद्रीय धारा सभी के नियमानुसार यथासंभव कार्य किया जाय। तदनुसार कार्य प्रणाली को बनाने के लिए श्री जे.बी. कृपलानी ने केन्द्रीय धारा सभा के नियमों के अनुसार एक लम्बा प्रस्ताव भेजा जिसके अनुसार संविधान सभा को वह नियम निर्माण समिति (प्रोसोडवोर कमेटी) गठित करना था जो संविधान सभा की कार्य प्रणाली के नियम और उसके अधिकारों का नियमन करने के प्रारूप बनाकर संविधान सभा में उसको स्वीकृति के लिए प्रस्तुत करती। कृपलानी जी का यह प्रस्ताव समस्त संविधान सभा सदस्यों के पास भेजा गया कि अगली बैठक की तिथि के पूर्व तक यदि कोई संशोधन हो तो सचिव संविधान सभा तक पहुँचा सकते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं हो सकता। इस पर माननीय रघुनाथ विनायक धुलेकर ने इस प्रस्ताव पर यह संशोधन भेजा कि यह कार्य नियमावली गठन समिति अपने नियम हिंदुस्तानी में बनाये। वे नियम अंग्रेज़ी में अनुवाद किये जा सकते हैं। जब कोई सदस्य किसी नियम पर तर्क करे तो वह मूल हिन्दुस्तानी का उपयोग करे और उस पर जो निर्णय किया जाये वह भी हिंदुस्तानी में । जिसका समर्थन सच्चिदानंद सिन्हा ने किया। डा. सिन्हा के पिता बख्शी शिव प्रसाद सिन्हा डुमरांव महाराज के मुख्य तहसीलदार थे। डा.सिन्हा की प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा गांव के ही विद्यालय में हुई। महज अठारह वर्ष की उम्र में 26 दिसंबर, 1889 को उन्होंने उच्च शिक्षा के लिये इंग्लैंड प्रस्थान किया। वहां से तीन साल तक पढ़ाई कर सन् 1893 ई. में स्वदेश लौटे। इसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दस वर्ष तक बैरिस्टरी की प्रैक्टिस की। उन्होंने इंडियन पीपुल्स एवं हिंदुस्तान रिव्यू नामक समाचार पत्रों का कई वर्षों तक संपादन किया। बाद में बंगाल से पृथक बिहार के निर्माण में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। डॉ सच्चिदानंद जैसे सपूत का होना देश के लिए गर्व की बात है। वे सन् 1921 ई. में बिहार के अर्थ सचिव व कानून मंत्री का पद सुशोभित किये। तत्पश्चात पटना विश्वविद्यालय में उप कुलपति के पद पर रहते हुए उन्होंने राज्य में शिक्षा को नया आयाम दिया। 6 मार्च, 1950 को भारत के इस महान सपूत का निधन हो गया। डा.सिन्हा की स्मृति में आज पटना में सिन्हा लाइब्रेरी स्थापित है। जिसकी स्थिति बहुमूल्य पांडुलिपियों के बीच बदहाल है।


 स्रोत -भारत कोश वेबसाइट से।

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