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Showing posts from 2024

भारतीय मानक ब्यूरो (बी आई एस) में व्याख्यान

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आज़ भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस), हैदराबाद में भाषा मंथन परिचर्चा के तहत विशिष्ट अतिथि के रूप में मुझे जाने का सुअवसर मिला। इस अवसर पर मैंने अपने संबोधन में कहा कि भाषाएँ केवल रोज़गार की वाहक नहीं होती बल्कि संस्कार एवं संस्कृति की प्रधानत: वाहक होती  है । साथ ही, व्यवहार, संपर्क और राष्ट्रीयता की भी । हिंदी भारत की संपर्क, जुड़ाव और लगाव की भी आग्रही भाषा है। हाल के दशक में विशेष रूप से उदारीकरण के बाद भाषाओं को समाज, आडंबर और राजनीति ने गहरे तौर पर प्रभावित किया है ।  साथ ही हमारी भाषा और संस्कृति पर भी इसने गहरा असर डाला है। हम ग्लोबल बनने के चक्कर  में अपने गाँव, घर, समाज से दूर होते जा रहे हैं।हम चरम नकलची लोग अपने अक़्ल को किसी और के सिरहाने छोड़ आए हैं । इससे हर कोने में अपसंसकृति व्याप्त है । हमारी भाषा और संस्कृति को इस प्रभाव ने मैली और प्रदूषित किया है। जब हमारी भाषाएँ प्रदूषित होंगी तो संस्कृति भी प्रदूषित होंगी ही । अत: हमें अपनी भाषाओं के प्रयोग और व्यवहार को बढ़ाना ही होगा और यह वृहत्तर भारतीय समाज की भी महती जिम्मेदारी है ।  सादर, डा. साकेत सहाय  ...

रघुवीर सहाय साहित्यकार

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 आज आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवि, लेखक, पत्रकार, संपादक, अनुवादक रघुवीर सहाय (1929-1990) की जयंती है।  आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त है।  आप पत्रकारिता और कहानियों के लिए प्रसिद्ध रहे। चर्चित पत्रिका ‘दिनमान’ के संपादक रहे।  इस अवसर पर ‘दूरदर्शन’ शीर्षक से उनकी एक प्रसिद्ध कविता - दूरदर्शन  -रघुवीर सहाय मैं संपन्न आदमी हूँ  है मेरे घर में टेलीविजन दिल्ली और बंबई दोनों के बतलाता है फ़ैशन कभी-कभी वह  लोकनर्तकों की तस्वीर दिखाता है पर यह नहीं बताता है उनसे मेरा क्या नाता है हर इतवार दिखाता है  वह बंबइया पैसे का खेल गुंडागर्दी औ' नामर्दी का  जिसमें होता है मेल कभी-कभी वह दिखला देता है  भूखा नंगा इंसान उसके ऊपर बजा दिया करता है  सारंगी की तान कल जब घर को लौट रहा था  देखा उलट गई है बस सोचा मेरा बच्चा  इसमें आता रहा न हो वापस टेलीविजन ने ख़बर सुनाई  पैंतीस घायल एक मरा ख़ाली बस दिखला दी ख़ाली  दिखा नहीं कोई चेहरा वह चेहरा जो जिया या मरा  व्याकुल जिसके लिए हिया उसके लिए समाचारों के बाद समय ही नहीं दिया।...

केंद्रीय हिंदी संस्थान में मुख्य अतिथि

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दिनांक ३०.०९.२०२४ को केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र द्वारा आयोजित 475वें नवीकरण पाठ्यक्रम के समापन समारोह एवं 476वें नवीकरण पाठ्यक्रम के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में मुझे सहभागी होने का अवसर प्राप्त हुआ।  कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। समारोह की अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद के क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में पंजाब नेशनल बैंक के मुख्य प्रबंधक (राजभाषा) डॉ. साकेत सहाय एवं सम्मानित अतिथि के रूप में डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र उपस्थित थे। साथ ही पाठ्यक्रम प्रभारी डॉ. फत्ताराम नायक व कार्यालय अधीक्षक डॉ. एस. राधा भी मंच पर उपस्थित थे। इस पाठ्यक्रम में कुल 20 (महिला-11, पुरुष-09) प्रतिभागी अध्यापकों ने निमित्त उपस्थित रहकर पाठ्यक्रम पूर्ण किया। मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में मैंने कहा कि आप सभी कि हिंदीतर प्रदेशों के अध्यापक हैं अत: आपकी भूमिका एक शिक्षक के साथ-साथ राष्ट्रीय संवाद के वाहक के रूप में भी है। आप सभी अपने विद्यालयों में विद्यार्थियों के लिए ज्ञान के प्रवाहक क...

लाल बहादुर शास्त्री - पंजाब नैशनल बैंक के कर्त्तव्यनिष्ठ ग्राहक

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आज महान देशभक्त, भारतरत्न, भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की १२१वीं जयंती है।  भारत-पाक युद्ध में जय जवान! जय किसान! का उद्घोष करने वाले शास्त्रीजी की जयंती पर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व को शत शत नमन! आज बहुत कम लोगों को यह ज्ञात होगा कि वे पंजाब नैशनल बैंक के निष्ठावान ग्राहक भी रहे। इस पुण्य अवसर पर शास्त्री जी से जुड़ा यह संस्मरण हम सभी के लिए प्रेरक कथा की भांति है।  तथ्य यह है कि अपनी सादगी भरी जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री जी ने लाल बहादुर शास्त्री जी के ताशकंद में हुए असामयिक निधन के बाद पीएनबी से लिए गए कार लोन की बची हुई ₹5,000 की राशि को सरकार से ऋण माफ़ी की मिली पेशकश को मना कर अपनी बची हुई पेंशन राशि से चुकाई थी। यह उनके कर्तव्यनिष्ठा का शानदार उदाहरण है। शास्त्री जी के कार ख़रीदने से जुड़े वाक़ये को सुनकर हम सभी बहुत कुछ सीख सकते हैं।  यह घटना वर्ष 1964 की है। चूँकि प्रधानमंत्री बनने के बाद भी शास्त्री जी के पास अपना घर तो क्या एक कार तक नहीं थी।  लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को वाराणसी के पास ...

भाषा और बोली

 #भाषा या बोली में बड़ा तकनीकी अंतर है।लिपिबद्ध हो गई तो भाषा। अन्यथा बोली। हम भारतीय तो सदैव अपनी संस्कृति को मौखिक बोलियों के द्वारा ही संरक्षित करते आए हैं। बोलियाँ ही भाषा को  समृद्ध करती है। आज मजबूरी वश हम अंग्रेजी को समृद्ध कर रहे हैं।  उदाहरण के लिए हम रिश्ते-नाते से जुड़े शब्दों को लें।  क्या जो भाव सम्मान, अपनापन चाचा-चाची  बोलने में है क्या वो भाव अंकल-आंटी बोलने में है।  भाषाएं केवल हमें नहीं बदलती वो हमारी जीवन शैली को बदल देती है।   अंग्रेजी अपनाए मगर संतुलन के साथ।   साथ ही इस पर हम विचार करें कि यह भाषा हमारी संस्कृति से हमें कितना दूर ले जा रही है।  जरूरत है इस दिशा में सोचा जाए। मैं सभी बोलियों का समर्थक हूँ क्योंकि  हमारी देशी भाषाएँ एंव बोलियाँ हमारी सांस्कृतिक -सामाजिक पहचान है। #साकेत_विचार

हिन्दी की बात

 #आजकल एक चलन बन गया है कि भारत के राजनीति भक्त हिंदी के थके विरोध के नाम पर हिंदी की बोलियों को आठवीं अनुसूची में लाने की मांग  कर रहे है।  करें अच्छी बात है। परंतु हिंदी का विरोध न करें। साथ ही यह भी शोध करें  कि आठवीं अनुसूची में आने के नाम पर भाषाओं का कितना फायदा हुआ, भाषायी दुकानदारों का कितना हुआ।  उदाहरण के लिए उर्दू को हमने धर्म विशेष से बांध कर उर्दू का कितना अहित किया।  तो भाषाओं को धर्मं, राजनीति या क्षेत्र के नाम पर न  बांटे। पिछले 1500 सालों से हिंदी भारत की सभी बोलियों, भाषाओं का समन्वय है।  पहले प्राकृत, पाली, अपभ्रंश से चलकर हिंदी कई रूपों में इस देश की राष्ट्रभाषा बनी। हिंदी राजभाषा तभी बनी क्योंकि वो राष्ट्रभाषा उस समय भी थी।   आज तो विश्व भाषा है। माॅरीशस या अन्य गिरमिटिया देशों की जनता ने भी विपरीत परिस्थितियों में भोजपुरी, मराठी, तेलुगु आदि  के साथ हिंदी को स्थापित किया।  इसी से इन छोटे देशों की विशिष्ट पहचान बनी।  यहां के लोगों ने अपने संघर्षों के द्वारा अपनी पहचान स्थापित की। इसमें हिंदी महत्वपूर्ण थीं। ...

मातृभाषा हिंदी

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o हिंदी भाषा भारतवर्ष रूपी सामाजिक संस्था की प्रतीक  है।  हिंदी और संस्कृत इस देश के सब निवासियों की भाषा है। कभी दिनकर जी ने कहा था, इस देश का कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि हिंदी और संस्कृत मेरी मातृभाषा है। वास्तव में इस देश में नीति-निर्मताओं ने मातृभाषा की परिभाषा ही ग़लत निर्मित कर दी है। बच्चा उस माटी की भाषा सीखता है जिस माटी में वह पलता-बढ़ता है। भारतीय माटी से देश के निवासियों को सबको जोड़नेवाली प्रमुख भाषा हिंदी है और ज्ञान, परंपरा, संस्कार और संस्कृति की भाषा संस्कृत है। अब कोई  बंगाली, तमिल  परिवार बिहार  या देश के अन्य प्रांतों में दो सौ साल से निवास कर रहा है तो उसकी माटी की भाषा तो समय के साथ बदल ही जाएगी, कम से कम प्रशासनिक कारणों से ही सही। प्रसिद्ध भाषाविद डॉ रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव जी के इस पक्ष पर स्पष्ट विचार है। यह भी सच है कि हिंदुस्तान में मातृभाषा के प्रश्न को राजनीतिक कुचक्र के तहत जान-बूझकर बांधा गया। इस  विशाल देश में भाषा, मातृभाषा के रूप में सामाजिक अस्मिता की भी भाषा है। जिससे व्यक्ति, भाव , विचार, संस्कार और अपने जाती...

शेख़ अबू अल फ़ैज़

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आज प्रसिद्ध फारसी विद्वान शेख अबु अल फैज की जयंती है।  आप प्रमुख फारसी विद्वान और कवि के रूप में प्रख्यात रहे।  आप संस्कृत भाषा के भी विद्वान थे।   अकब्रर के नवरत्नों में शामिल रहे फैजी का मुगल साम्राज्य में बहुत मान-सम्मान था।  आपने भास्कराचार्य  की गणित की पुस्तक का लीलावती का फारसी में अनुवाद किया थ। आपने नल दमयंती कथा का भी फारसी में अनुवाद किया था। आपके कुछ प्रमुख अशआर (रचना) जुल्म करता हूँ जुल्म सहता हूँ मैं कभी चैन से रहा ही नहीं। मैं सुबह ख्वाब से जागा तो ये ख्याल आया जो रात मेरे बराबर था क्या हुआ उस का  जाने मैं कौन था लोगों से भरी दुनिया में मेरी तन्हाई ने शीशे में उतारा है मुझे !  #साकेत_विचार #फ़ैज़

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

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  आज पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की जयंती है।  आप आधुनिक भारत के प्रखर आध्यात्मिक गुरु के रुप में जाने जाते हैं।  आपके द्वारा रचित साहित्य और आपका जीवन विचारों को प्रज्ज्वलित करने और स्वंय को बदलने की प्रेरणा देता है। उनके द्वारा रचित साहित्य और सूत्र वाक्यों को पढ़ना हमें चेतना से भरता है।   आपकी स्मृति को नमन ! आपके  अनमोल वचन  कभी निराश न होने वाला ,  सच्चा साहसी होता है।  दूसरों को पीड़ा नहीं देना ही मानव धर्म है।  सारी दुनिया का ज्ञान प्राप्त करके भी खुद को ना पहचान पाए तो सारा ज्ञान निरर्थक है।  जिस भी व्यक्ति ने अपने जीवन में स्नेह और सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया है ,  वह सचमुच ही सबसे बड़ा कलाकार है।    

कुँवर नारायण कवि, लेखक

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  सत्य, जिसे हम सब इतनी आसानी से अपनी-अपनी तरफ मान लेते हैं, सदैव विद्रोही सा रहा है।  -कुँवर नारायण     आज प्रसिद्ध कवि, लेखक पद्यभूषण स्वर्गीय कुंवर नारायण जी की जयंती है। आपकी प्रमुख रचनाएँ हैं-चक्रव्यूह, तीसरा सप्तक, परिवेश, हम-तुम, आत्मजयी, आकारों के आसपास, वाजश्रवा के बहाने, इन दिनों आदि । आप ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य आकदमी पुरस्कार, व्यास सम्मान आदि से सम्मानित रहे हैं। कुंवर नारायण अपने लेखन मे जिजीविषा की तलाश करते हैं।  वे कहते हैं ‘मनुष्य की जो जिजीविषा है, जो जीवन है, वह बहुत बड़ा यथार्थ है।’ उनकी स्मृति को नमन करते हुए उनकी एक कविता  ‘घर पहुँचना’ हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर अपने अपने घर पहुँचना चाहते हम सब ट्रेनें बदलने की झंझटों से बचना चाहते हम सब चाहते एक चरम यात्रा और एक परम धाम हम सोच लेते कि यात्राएँ दुखद हैं और घर उनसे मुक्ति सचाई यूँ भी हो सकती है कि यात्रा एक अवसर हो और घर एक संभावना ट्रेनें बदलना विचार बदलने की तरह हो और हम सब जब जहाँ जिनके बीच हों वही हो घर पहुँचना आपकी स्मृति को नमन🙏

अमृत काल में हिन्दी

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 मित्रो आज के दैनिक अमृत विचार के संपादकीय अग्रलेख के रूप में  ' अमृत काल में हिन्दी  ' शीर्षक से मेरा आलेख प्रकाशित हुआ है जो आप सभी के अवलोकनार्थ प्रस्तुत है।  जय हिंद!  जय हिंदी!! #साकेत_विचार #हिन्दी #हिन्दी_दिवस

विश्व पत्र लेखन दिवस

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आप सभी को विश्व पत्र लेखन दिवस की हार्दिक शुभकामना! समय के साथ हर विधा में परिवर्तन होता आया है और होता भी रहेगा। समय के साथ हम अपनी आदतों में बदलाव भी तो लाते हैं। पत्र लेखन जुड़ाव, संपर्क का बेहतरीन ज़रिया था, अब संचार की गति ने इसके तरीकों को बदल कर रख दिया है। अब तो ईमेल, मैसेंज़र भी कम हो रहे है। समय की माँग है और इन सब का प्रयोग भी हम अपनी ज़रूरतों के अनुरूप ही तो करते हैं। एक समय वह भी था जब हम अपनों को पत्र लिखते और उससे जवाब आने की उम्मीद का हर एक क्षण हमें एक युग की भांति लगता था। मैंने स्वयं भारतीय वायु सेना में सेवा के दौरान इसे अनुभूत किया है। एक समय वह भी था जब कोई समाचार प्रेषक से प्राप्तकर्ता तक पहुंचाने के लिए पत्र ही एकमात्र माध्यम था जिसमें कई दिन लग जाते थे। कबूतरों से चला यह सफर तार से मोबाइल तक जा पहुंचा है।   कभी शीघ्र संदेश पहुंचाने के लिए तार ही एक माध्यम था जिसका हर एक शब्द बहुत कीमती होता था और अब तो मोबाइल फोन के जरिये पलक झपकते ही समाचार हम सभी तक पहुंच जाते हैं।  फिर भी पत्र लिखने और पाने का मजा ही कुछ और होता था और यह सदैव यादों में हम सभी के बसा...

भारतीय अंतरिक्ष दिवस और चंद्रयान-३

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आज ‘भारत अंतरिक्ष दिवस’ है।  आज ही के दिन 23 अगस्त, 23 देश ने अपना चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारा था; इस प्रकार भारत पहला राष्ट्र बना था।  चंद्रयान 3 का चंद्रमा की  सतह पर सफलतापूर्वक अवतरण से हम सभी भारतीय गौरवान्वित हुए थे।  देश की इस सफलता हेतु इसरो को पुन: बधाई! इस उपलक्ष्य में सरकार ने ‘भारत अंतरिक्ष दिवस’ घोषित किया है। चंद्रयान-३ के अवतरण पर कुछ पंक्तियाँ लिखी थी, आज फिर से साझा कर रहा हूँ-  भारत का चन्द्रयान संस्कृति की पालना  भारतमाता से आज मिल ही गई राखी, चन्दामामा को  भेजी थी भारत माँ ने जो बड़े प्रेम से, अपने उज्ज्वल सुपुत्र विक्रम के हाथों विक्रम! जब उतरा  ज्ञान, धैर्य व आत्मविश्वास  के साथ वर्षों से प्रतीक्षित  अपने मामा के आंगन  तब था उसके पास १४० करोड़ भारतीयों के रक्षा सूत्र अपने गुणी वैज्ञानिकों का ज्ञान  सच में विक्रम  अपने मामा से यही कह रहा होगा, भारत का हर बच्चा चांद को  मामा के रूप में अब तक जानता था,  दूर गगन  से उसकी शीतलता को  अनुभूत भी करता था पर वह स...

गिनती भारत की देन

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यह भी भ्रांति है कि गिनती अंग्रेज़ी की है, अंग्रेज़ी की गिनती तो रोमन है। कितनी बड़ी मूढ़ता है आप अपनी गिनती जिसे संविधान में भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप (1,2,3….) कहा गया है उसे अंग्रेजियत या अज्ञानतावश पता नहीं अंग्रेज़ी का गिनती कहते है इस भूल को परिमार्जित करने की आवश्यकता है। इससे बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति और क्या होगी। मैं प्रत्येक मंच से यह बात कहता हूँ कि यह भारतीय गिनती है, पूरी दुनिया को गिनती हमने सिखाई। ‘उपकार’ फ़िल्म का गीत आप सब याद करें ‘ जब जीरो मेरे भारत ने दुनिया को तब गिनती आई।’  यह तो वही बात हुई पिता ने ऋण लेकर घर बनाया और बेटा बोले ससुराल वालों ने बनाया। हिन्दी भाषा का प्रश्न केवल भावनाओं का नहीं राष्ट्रीय संस्कार और संस्कृति का है। हम सब सत्य का अन्वेषण करें, अपनी भाषा और ज्ञान पर गर्व करें, सीखें हर किसी से पर स्वयं को गिराकर नहीं, भारतीय भाषाएँ सहोदरा हैं। सब मिलकर रहें। कबिगुरु ने कहा था, ‘हिंदी भारत की महानदी है।’ हमारा उपक्रम सबको साथ लेकर चलना है न कि अंग्रेज़ी को बढ़ाने की आड़ में हिंदी और उसकी लिपि देवनागरी को कमजोर करना।  सादर, ...

भाषा और विकृत राजनीति

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भाषा और विकृत राजनीति।  पहले उर्दू को हिन्दी से अलग कर दिया। यह कौन-सी नीति है जो तमिलनाडु, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, बंगाल और बिहार के मुसलमान भी उर्दू को अपनी मातृभाषा बता रहे है। अब आंध्र प्रदेश का स्थानीय जो भले धर्मांतरित हो या मूल परंतु उसकी मातृभाषा उर्दू कैसे होगी ? संस्कृत को भी पंडितों से जोड़ दिया गया। भाषा को पंथ से जोड़ने का कुचक्र । पंडित और ब्राह्मण जैसे शब्दों के अर्थ सीमित कर दिये गए और केवल जाति से जोड़ दिया। राजनीतिक और कथित अकादमिक विद्वानों ने तो जाति के अर्थ को ही विकृत कर दिया। याद रखिये भाषा और पंथ की सत्तानीति देश, समाज का कभी भला नहीं करती बल्कि देश का बेड़ा गर्क करती है।  पाकिस्तान का उदाहरण सामने है पहले पंथ के नाम बाँटा, ज़हर बोया और शैतानी ताक़तों ने देश को बाँट दिया। भाषा के ज़हर ने राज्यवार विभाजन तय किए। पाकिस्तान में जबरदस्ती उर्दू थोप दी गई। नतीजा सामने है।  आज राष्ट्रीय एकता और संपर्क की भाषा हिंदी की अकादमिक स्थिति को हिन्दीतर के विमर्श ने काफ़ी नुक़सान पहुँचाया है।  जिन राज्यों में राजभाषा, राष्ट्रभाषा, संपर्क भाषा...

सत्य का साथ

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  बंगाल या देश के अन्य प्रदेशों में महिलाओं व अन्य निरीह के साथ घटित जघन्य एवं नृशंस हत्याकांड के बाद हमारे धर्मग्रंथों में विद्यमान इस कथा से सीख लेने की आवश्यकता है। सत्य का साथ देना ही मूल धर्म है। अनैतिकता और अधर्म का नाश होगा ही।  कथा-  रावण के प्रहार से अपनी अंतिम सांसें गिन रहे गिद्धराज जटायु ने कहा- मुझे पता था कि मैं दशानन से नहीं जीत सकता पर तब भी मैं लड़ा, यदि मैं नही लड़ता तो आने वाली पीढियां मुझे कायर कहती।  जब राक्षसराज रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले, तो काल देवता यमराज आये।  गिद्धराज जटायु ने मौत को ललकारते कहा - 'खबरदार ! ऐ मृत्यु !! आगे बढ़ने की कोशिश मत कर! मैं मृत्यु को स्वीकार तो करूँगा, लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकता जब तक कि इस आपदा की सुधि मैं अपने प्रभु श्रीराम को नहीं दे देता'।  मौत गिद्धराज जटायु को छू भी नहीं पा रही है। वह तब तक प्रतीक्षा करती रहीं, जब तक जटायु महाराज अपने कर्तव्य पालन से बंधे थे। काल  देवता भी इस कर्तव्यपराणता के समक्ष नतमस्तक थे, जटायु राज को इच्छा मृत्यु का वरदान जो मिला था। स्मरण रहें भीष्म पितामह ...

७८वां स्वाधीनता दिवस

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शहीदों के बलिदान, त्याग, समर्पण व प्रतिबद्धता को समर्पित भारत के ७८ वें स्वाधीनता दिवस की आपको सपरिवार बहुत बहुत बधाई! भारत के लिए स्वतंत्रता नाम है एक राष्ट्र भाव का राष्ट्र राग का राष्ट्र भाषा का  एक राष्ट्र अनुराग का एक भावना का  एक विचार का राष्ट्र धर्म का राष्ट्रीय कर्तव्यों के पोषण का अपनी संस्कृति पर अभिमान का  राष्ट्रीय संस्कार का  भारतीय  सभ्यता के जागरण का अपनी सशक्त परंपराओं पर अभिमान का  अपनी गौरवमयी पहचान का अपनी उर्वरा माटी का माटी के लिए  सर्वस्व न्योछावर! जय हिंद !  जय भारत !! जय हिंदी!! जुग-जुग जिए भारत और भारतीयता!  भारत भाव बना रहें  हम सब के भीतर!  ✍©डॉ. साकेत सहाय #साकेत_विचार

विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस

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#विभाजन_विभीषिका_स्मृति_दिवस आज ही के दिन भारत के दो टुकड़े कर दिए गए । इस काले  दिवस को हमें इस बात हेतु भी याद करना चाहिए कि हमारी अंग्रेजों के प्रति  अंधभक्ति और सत्ता का लालच किस प्रकार से एक देश के सपनों को विभाजित कर सकती हैं ।  क्या शहीदों ने इसी विभाजन के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया था?  स्वतंत्रता के बाद इस देश को विभाजन की विभीषिका पर गहराई से मंथन करना जरूरी था।  स्वाधीनता प्राप्ति के पूर्व यह दिवस आधी खुशी के साथ देशवासियों को जीवन भर का टीस दे गया । जब एक ही माटी की साझी परंपरा और विरासत को किसी और एजेण्डे के  तहत बांट दिए गए ।  इसका दोहराव न हो इस हेतु हम सभी को सचेत रहना होगा, क्योंकि पाकिस्तान एक दिन में नहीं बना था ।  सदियों से साथ रहे लोगों को नियोजित विषवमन के साथ बांटने का दुष्परिणाम अविभाजित भारत अपने विभाजन के बाद से ही भुगत रहा है। ब्रिटिशों और यहाँ के गद्दारों ने मिलकर देश बांटा, जिसका खामियाजा किस हद तक यह देश, समाज  भुगत रहा है, इसके तटस्थ मूल्यांकन की भी आवश्यकता है।  पाकिस्तान धर्म से अधिक अंधी पहचान, सत्ता...

हिरोशिमा दिवस

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आज हिरोशिमा दिवस है। आज से 79 वर्ष पहले इसी दिन अमरीका द्वारा जापान पर ‘लिटिल बॉय’ यूरेनियम निर्मित अणु बम गिराया गया था।  इस अमेरिकी हत्याकांड से हिरोशिमा की 3.5 लाख की आबादी में से 1 लाख चालीस हजार जापानी लोग एक ही झटके में मारे गए थे।  इसके बाद अनेक वर्षों तक अनगिनत लोग विकिरण के प्रभाव से मरते रहे।  उस समय हिरोशिमा जापान का एक प्रमुख औद्योगिक नगर था ।  इस दिवस को हम सब इस तथ्य के साथ भी स्मरण कर सकते हैं कि वर्तमान विकृत दर्शन वामपंथ या पूंजीवाद दोनों ही विनाशकारी आधार पर खड़े हैं।  दोनों ही मानव कल्याण व सुख का स्वप्न बेचते व दिखाते हैं लेकिन अंत में मिलता है नरसंहार व विनाश ।  आप वर्तमान में चल रहे इसरायल-फिलीस्तीन, ईरान एवं यूक्रेन के उदाहरणों से इसे बखूबी समझ सकते हैं। #हिरोशिमा #साकेत_विचार