मातृभाषा हिंदी
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हिंदी भाषा भारतवर्ष रूपी सामाजिक संस्था की प्रतीक है।
हिंदी और संस्कृत इस देश के सब निवासियों की भाषा है। कभी दिनकर जी ने कहा था, इस देश का कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि हिंदी और संस्कृत मेरी मातृभाषा है। वास्तव में इस देश में नीति-निर्मताओं ने मातृभाषा की परिभाषा ही ग़लत निर्मित कर दी है। बच्चा उस माटी की भाषा सीखता है जिस माटी में वह पलता-बढ़ता है। भारतीय माटी से देश के निवासियों को सबको जोड़नेवाली प्रमुख भाषा हिंदी है और ज्ञान, परंपरा, संस्कार और संस्कृति की भाषा संस्कृत है। अब कोई बंगाली, तमिल परिवार बिहार या देश के अन्य प्रांतों में दो सौ साल से निवास कर रहा है तो उसकी माटी की भाषा तो समय के साथ बदल ही जाएगी, कम से कम प्रशासनिक कारणों से ही सही। प्रसिद्ध भाषाविद डॉ रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव जी के इस पक्ष पर स्पष्ट विचार है। यह भी सच है कि हिंदुस्तान में मातृभाषा के प्रश्न को राजनीतिक कुचक्र के तहत जान-बूझकर बांधा गया। इस विशाल देश में भाषा, मातृभाषा के रूप में सामाजिक अस्मिता की भी भाषा है। जिससे व्यक्ति, भाव , विचार, संस्कार और अपने जातीय इतिहास और परंपरा से जुड़ता है। समाजीकरण की प्रक्रिया से गुजरकर ही व्यक्ति मातृभाषा के इस दूसरे संदर्भ को आत्मसात करता है। हिंदी भाषा भारतवर्ष रूपी सामाजिक संस्था की प्रतीक है।
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