विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस
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आज ही के दिन भारत के दो टुकड़े कर दिए गए । इस काले दिवस को हमें इस बात हेतु भी याद करना चाहिए कि हमारी अंग्रेजों के प्रति अंधभक्ति और सत्ता का लालच किस प्रकार से एक देश के सपनों को विभाजित कर सकती हैं । क्या शहीदों ने इसी विभाजन के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया था? स्वतंत्रता के बाद इस देश को विभाजन की विभीषिका पर गहराई से मंथन करना जरूरी था। स्वाधीनता प्राप्ति के पूर्व यह दिवस आधी खुशी के साथ देशवासियों को जीवन भर का टीस दे गया । जब एक ही माटी की साझी परंपरा और विरासत को किसी और एजेण्डे के तहत बांट दिए गए । इसका दोहराव न हो इस हेतु हम सभी को सचेत रहना होगा, क्योंकि पाकिस्तान एक दिन में नहीं बना था । सदियों से साथ रहे लोगों को नियोजित विषवमन के साथ बांटने का दुष्परिणाम अविभाजित भारत अपने विभाजन के बाद से ही भुगत रहा है। ब्रिटिशों और यहाँ के गद्दारों ने मिलकर देश बांटा, जिसका खामियाजा किस हद तक यह देश, समाज भुगत रहा है, इसके तटस्थ मूल्यांकन की भी आवश्यकता है। पाकिस्तान धर्म से अधिक अंधी पहचान, सत्ता की भूख का परिणाम था। इसी भूख का दुष्परिणाम है कि पाकिस्तान से भारतीय संस्कृति के सभी प्रतीकों को मिटा दिया गया । आज बांग्लादेश में जो हो रहा है यह भी विश्षवमन का ही कुफल है। भला यह कौन-सी सोच है जो अपने जन्म के समय से ही अपनी मूल संस्कृति और सभ्यता पर कुप्रहार कर रही है। आइए कुत्सित भावनाओं के जन्म को रोकें। हम सब मिलकर रहें और किसी और पाकिस्तान’ का जन्म न हों इसे युगों-युगों तक सुनिश्चित करें। इस दिवस पर पिछले वर्ष प्रतिष्ठित पत्रिका ‘युगवार्ता' के अगस्त, २३ अंक में प्रकाशित अपना आलेख ‘ विभाजन की विभीषिका’ आप सभी से साझा कर रहा हूँ। विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर उन लाखों लोगों को विनम्र श्रद्धांजलि, जिन्होंने इतिहास के सबसे क्रूर अध्याय के दौरान अमानवीय पीड़ाओं का सामना किया, अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, जीवन अपनी माटी से बेघर हो गए। हम सब अपने इतिहास को स्मृति में बसा कर, उससे सबक लेकर ही सशक्त भारत का निर्माण कर सकते है और इसे विश्व पटल पर एक मर्यादित एवं शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरने में अपना योगदान दे सकते हैं।
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©डाॅ. साकेत सहाय
जय हिंद! जय हिंदी!!
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