सत्य का साथ
बंगाल या देश के अन्य प्रदेशों में महिलाओं व अन्य निरीह के साथ घटित जघन्य एवं नृशंस हत्याकांड के बाद हमारे धर्मग्रंथों में विद्यमान इस कथा से सीख लेने की आवश्यकता है। सत्य का साथ देना ही मूल धर्म है। अनैतिकता और अधर्म का नाश होगा ही।
कथा-
रावण के प्रहार से अपनी अंतिम सांसें गिन रहे गिद्धराज जटायु ने कहा- मुझे पता था कि मैं दशानन से नहीं जीत सकता पर तब भी मैं लड़ा, यदि मैं नही लड़ता तो आने वाली पीढियां मुझे कायर कहती।
जब राक्षसराज रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले, तो काल देवता यमराज आये। गिद्धराज जटायु ने मौत को ललकारते कहा -
'खबरदार ! ऐ मृत्यु !! आगे बढ़ने की कोशिश मत कर! मैं मृत्यु को स्वीकार तो करूँगा, लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकता जब तक कि इस आपदा की सुधि मैं अपने प्रभु श्रीराम को नहीं दे देता'।
मौत गिद्धराज जटायु को छू भी नहीं पा रही है। वह तब तक प्रतीक्षा करती रहीं, जब तक जटायु महाराज अपने कर्तव्य पालन से बंधे थे। काल देवता भी इस कर्तव्यपराणता के समक्ष नतमस्तक थे, जटायु राज को इच्छा मृत्यु का वरदान जो मिला था।
स्मरण रहें भीष्म पितामह को भी इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। पर छह महीने तक वे बाणों की शय्या पर लेटे हुए मृत्यु की प्रतीक्षा करते रहे। उनकी आँखों में आँसू हैं, पश्चाताप के आंसू हैं। पर ईश्वर तो सब जानते है।
विचित्र दृश्य । एक तरफ रामायण में जटायु भगवान की गोद रूपी शय्या में लेटे हुए हैं। प्रभु "श्रीराम" विलाप कर रहे हैं और भक्त जटायु मुदित हैं। वहीं महाभारत में भीष्म पितामह विलाप कर रहे हैं और प्रभु "श्रीकृष्ण" मुदित हैं।
दोनों में कितनी भिन्नता?
अंत समय में जटायु को प्रभु "श्रीराम" की गोद की शय्या मिली.. लेकिन भीष्म पितामह को मरते समय बाणों की शय्या मिली।
जटायु अपने कर्मों के बल पर अंतिम समय में भगवान की गोद रूपी शय्या में प्राण त्याग रहे है,
प्रभु "श्रीराम" की शरण में।
वहीं भीष्म पितामह अंतिम समय में बाणों पर लेटे रो रहे हैं। यह अंतर क्यों?
अंतर इसलिए कि कौरव दरबार में भीष्म पितामह द्रौपदी के चीरहरण का विरोध नहीं कर पाये थे,
द्रौपदी चींखती रही, चिल्लाती रही। लेकिन भीष्म पितामह ने कोई प्रतिवाद नहीं किया। वे एक नारी की रक्षा तक नहीं कर पाये।
परिणाम यह निकला कि इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त होने पर भी उन्हें बाणों की शय्या मिली।
पर
जटायु ने नारी का सम्मान किया। नारी रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति दी। तो मरते समय भगवान "श्रीराम" की गोद मे शरण मिली।
जो दूसरों के साथ गलत होते देखकर भी आंखें मूंद लेते हैं ... उनकी गति भीष्म जैसी होती है...
जो अपना परिणाम जानते हुए भी.. औरों के लिए संघर्ष करते है, उसका माहात्म्य जटायु जैसा कीर्तिवान होता है।
अतः असत्य का साथ कभी न दें ।
#साकेत_विचार
डा. साकेत सहाय
भाषा-संचार विशेषज्ञ
#बंगाल
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