रघुवीर सहाय साहित्यकार
आज आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवि, लेखक, पत्रकार, संपादक, अनुवादक रघुवीर सहाय (1929-1990) की जयंती है। आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त है। आप पत्रकारिता और कहानियों के लिए प्रसिद्ध रहे। चर्चित पत्रिका ‘दिनमान’ के संपादक रहे।
इस अवसर पर ‘दूरदर्शन’ शीर्षक से उनकी एक प्रसिद्ध कविता -
दूरदर्शन
-रघुवीर सहाय
मैं संपन्न आदमी हूँ
है मेरे घर में टेलीविजन
दिल्ली और बंबई दोनों के बतलाता है फ़ैशन
कभी-कभी वह
लोकनर्तकों की तस्वीर दिखाता है
पर यह नहीं बताता है उनसे मेरा क्या नाता है
हर इतवार दिखाता है
वह बंबइया पैसे का खेल
गुंडागर्दी औ' नामर्दी का
जिसमें होता है मेल
कभी-कभी वह दिखला देता है
भूखा नंगा इंसान
उसके ऊपर बजा दिया करता है
सारंगी की तान
कल जब घर को लौट रहा था
देखा उलट गई है बस
सोचा मेरा बच्चा
इसमें आता रहा न हो वापस
टेलीविजन ने ख़बर सुनाई
पैंतीस घायल एक मरा
ख़ाली बस दिखला दी ख़ाली
दिखा नहीं कोई चेहरा
वह चेहरा जो जिया या मरा
व्याकुल जिसके लिए हिया
उसके लिए समाचारों के बाद
समय ही नहीं दिया।
तब से मैंने समझ लिया है
आकाशवाणी में बनठन
बैठे हैं जो ख़बरोंवाले
वे सब हैं जन के दुश्मन
उनको शक था दिखला देते
अगर कहीं छत्तिस इंसान
साधारण जन अपने-अपने
लड़के को लेता पहचान
ऐसी दुर्भावना लिए है
जन के प्रति जो टेलीविजन
नाम दूरदर्शन है
उसका काम
किंतु है दुर्दशन
स्रोत :पुस्तक : रघुवीर सहाय संचयिता (पृष्ठ 182) संपादक : कृष्ण कुमार रचनाकार : रघुवीर सहाय प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन संस्करण : 2003
विनम्र श्रद्धार्पण !
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