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Showing posts from 2025

दिनकर जी और राष्ट्रभाषा

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  राष्ट्रभाषा हिंदी के सशक्त हस्ताक्षर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन!  उन्हीं की कुछ पंक्तियाँ - भारत कोई नया देश नहीं है। जिस भाषा में उसकी संस्कृति का विकास हुआ, वह संसार की सबसे प्राचीन भाषा है।  जो ग्रंथ भारतीय सभ्यता का आदि-ग्रंथ समझा जाता है, वही समग्र मानवता का भी प्राचीनतम ग्रंथ है। विदेशियों के द्वारा बार-बार पद-दलित होने पर भी भारत अपनी संस्कृति से मुँह मोड़ने को तैयार नहीं हुआ । अब जो वैज्ञानिक और औद्योगिक सभ्यता आ रही है, वह भी भारत से उसके अतीत का प्रेम नहीं छीन सकेगी। सत्य केवल वही नही है, जो पिछले दो सौ वर्षों में विकसित हुआ है। उस ज्ञान का भी बहुत-सा अंश सत्य है, जिसका विकास पिछले छह हजार वर्षों में हुआ है। भारत को वह नवीन सत्य भी चाहिए, जो शारीरिक समृद्धि को संभव बनाता है, और प्राचीन काल का वह सत्य भी जो शारीरिक समृद्धि को संभव बनाता है, और  प्राचीन काल का वह सत्य भी जो शारीरिक समृद्धि के लिए आत्मा के हनन को पाप समझता है।   - रामधारी सिंह दिनकर  आइए दिनकर जी की जयंती पर इन पंक्तियों को स्मरण करें । ‘तुम कौन थ...

शिक्षक दिवस का अर्थ

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भारत जैसे देश में जहां गुरु का स्थान सर्वोपरि है।  यह दिन हम विद्यार्थियों के लिए भी बेहद खास है। भारत में यह दिवस डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के व्यक्तित्व के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित करने के लिए मनाया जाता है। डॉ राधाकृष्णन ने कहा था-शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि  वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें ।   भले ही आज शिक्षक की परिभाषा में व्यापक बदलाव आया है। पर हमारे सामाजिक बोध में आज भी शिक्षक, गुरु की भूमिका में ही बसे हुए हैं ।  हालांकि शिक्षक की भूमिका में आए बदलाव हेतु दोषी आधुनिक शिक्षा पद्धति भी हैं । जहां शिक्षा का पर्याय ज्ञान से अधिक रोजगार हो चला हैं।  शिक्षा का बोध मात्र डिग्री तक सीमित हो चुका है। यह उस भारतीय ज्ञान  परंपरा के लिए बेहद घातक है जहां गुरु की महिमा का पता सहज ही इस श्लोक से लगाया जा सकता है-   गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।  गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ आज व्यक्ति अपनी  इच्छाओं एवं आकांक्षाओं के बोझ ...

योगेश्वर कृष्ण ने तटस्थता का संदेश दिया

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अमृत विचार  दिनांक 31.08.2021

जापान में भगवान गणेश का रूप: कांगितेन

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 जापान में भगवान गणेश का रूप: कांगितेन  भारतीय संस्कृति में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, बुद्धि और समृद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता है। लेकिन यह कम लोग जानते हैं कि जापान में भी गणेशजी की एक विशेष उपासना परंपरा है, जहाँ उन्हें "कांगितेन" (Kangiten) के नाम से जाना जाता है। यह स्वरूप सीधे तौर पर जापानी बौद्ध धर्म, विशेषकर शिंगोन संप्रदाय और एज़ोटेरिक (गूढ़) बौद्ध परंपरा से जुड़ा हुआ है।   ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 📜 - गणेश पूजा का जापान में प्रवेश मुख्यतः चीन के माध्यम से बौद्ध धर्म के प्रसार के दौरान हुआ।   - संस्कृत में "विनायक" और "गणपति" के रूप में पूजे जाने वाले देवता का परिचय बौद्ध साधकों ने जापानियों को कराया।   - जापान में यह रूप कांगितेन के रूप में विकसित हुआ, जिसमें स्थानीय संस्कृति और बौद्ध तांत्रिक साधनाओं का प्रभाव दिखाई देता है।   कांगितेन का स्वरूप 🕉 - कांगितेन के कई रूप हैं, लेकिन सबसे लोकप्रिय रूप "शोतािकांगितेन" है, जिसमें दो शरीर (पुरुष और स्त्री) गले मिलते हुए दर्शाए जाते हैं।   - यह आलिंगन संपूर्णता, संतुलन, करुणा और आनंद का प्रती...

भारतीय खेलों के युगपुरुष-मेजर ध्यानचंद

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  मेजर ध्यानचंद जी को नमन! अमृत विचार में 29.08.2022 अमृत विचार  दिनांक 30.08.2021 आज खेल दिवस पर हॉकी को जादूगर मेजर ध्यानचन्द को शत-शत नमन !!! कोई समय था, जब भारतीय हॉकी का पूरे विश्व में दबदबा था। उसका श्रेय जिन्हें जाता है, उन मेजर ध्यानचन्द का जन्म प्रयाग, उत्तर प्रदेश में 29 अगस्त, 1905 को हुआ था। उनके पिता सेना में सूबेदार थे। उन्होंने 16 साल की अवस्था में ध्यानचन्द को भी सेना में भर्ती करा दिया। वहाँ वे कुश्ती में बहुत रुचि लेते थे; पर सूबेदार मेजर बाले तिवारी ने उन्हें हॉकी के लिए प्रेरित किया। इसके बाद तो वे और हॉकी एक दूसरे के पर्याय बन गये। वे कुछ दिन बाद ही अपनी रेजिमेण्ट की टीम में चुन लिये गये। उनका मूल नाम ध्यानसिंह था; पर वे प्रायः चाँदनी रात में अकेले घण्टों तक हॉकी का अभ्यास करते रहते थे। इससे उनके साथी तथा सेना के अधिकारी उन्हें ‘चाँद’ कहने लगे। फिर तो यह उनके नाम के साथ ऐसा जुड़ा कि वे ध्यानसिंह से ध्यानचन्द हो गये। आगे चलकर वे ‘दद्दा’ ध्यानचन्द कहलाने लगे। चार साल तक ध्यानचन्द अपनी रेजिमेण्ट की टीम में रहे। 1926 में वे सेना एकादश और फिर राष्ट्रीय टीम में ...

जिला स्कूल, छपरा को विरासत स्मारक का दर्जा दिए जाने के संबंध में

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माननीय भारत गणराज्य के राष्ट्रपति  माननीय प्रधानमंत्री, भारत  माननीय मुख्यमंत्री, बिहार  माननीय मुख्य सचिव, बिहार  माननीय सांसद , सारण संसदीय क्षेत्र  विषय - भारत की शान देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी  के विद्यालय बिहार के छपरा जिला स्कूल को विरासत स्मारक का दर्जा दिये जाने के संबंध में।  उक्त विषय के संबंध में सूचित करना है कि जैसा कि आप अवगत ही है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी ने बिहार के छपरा जिला स्कूल से भी शिक्षा ग्रहण की थी।  भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी के विद्यालय छपरा जिला स्कूल को विरासत स्मारक का दर्जा दिया जाना न केवल सारण संसदीय क्षेत्र बल्कि भारत के राष्ट्रीय गौरव से भी संबंधित है । अत : यह विषय भारत के राष्ट्रीय पहचान से भी जुड़ा हूआ है। इसी विद्यालय में डॉ राजेंद्र प्रसाद की शैक्षणिक नींव मजबूत हुई । यही  पर उनके बारे में लिखा गया “ examinee is better than examiner”  अत : आप सभी निवेदन है कि  इस दिशा में उचित कार्रवाई करें ।  निवेदक,  डॉ साकेत सहाय...

हिंदी और आत्मबल

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  #हिंदी #आत्मबल  आज सुबह ट्विटर पर जब एक ट्वीट पढा कि 'अंग्रेजी मोह से ग्रसित चैनल के पत्रकार महोदय जब अपना सवाल ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता से अंग्रेजी में पूछते है तो इस पर नीरज चोपड़ा कहते हैं, सर! हिंदी में प्रश्न पूछिए। यह खबर बहुत बड़ी है।  क्योंकि यह देश के निवासियों के भाषाई आत्म बल को जगाता है। उनके भाषाई प्रेम को दर्शाता है।  आज नीरज चोपड़ा को कौन नहीं जानता है?   वे खेल क्षेत्र के लिए आशा की नयी किरण हैं ।  उनकी यह पहल बहुत बड़ा संदेश हैं ।  हालांकि आप सभी को यह बात अतिश्योक्ति से भरी लगेगी, पर मेरे  जैसे हिंदी प्रेमी के लिए इस घटना ने इसी बहाने जाने-अनजाने महात्मा गाँधी की याद दिला दी।  'जब आजादी के बाद बीबीसी पत्रकार उनसे अंग्रेजी में प्रश्न पूछता हैं तो वे कहते हैं  जाओ जाकर दुनिया को कह दो गाँधी को अंग्रेजी नहीं आती ।  गांधीजी जैसा जिगरा सबका नहीं । फिर भी नीरज ने दुनिया को बहुत बड़ा संदेश दिया है । भाषा केवल संवाद या रोजगार का जरिया मात्र नहीं बल्कि देश के आत्म बल का प्रतीक भी होता  है।  आज यदि देखें तो हर स्...

विशिष्ट वक्ता-०९.०८.२०२५

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आज केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र द्वारा तेलंगाना राज्य के गुरुकुलम विद्यालय के स्नातकोत्तर (पीजीटी) हिंदी अध्यापकों के लिए आयोजित ऑफलाइन नवीकरण पाठ्यक्रम प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत हिंदी शिक्षण में प्रौद्योगिकी का प्रयोग (कृत्रिम मेधा के विशेष संदर्भ  में ) एवं हिंदी में रोजगार  विषय पर ‘विशिष्ट वक्ता’ के रूप में व्याख्यान देने का अवसर प्राप्त हुआ।  संस्थान एवं शिक्षकों का  विशेष धन्यवाद।  #हिंदी #शिक्षण #teaching #साकेत_विचार

प्रेमचंद जी का जयशंकर प्रसाद जी के नाम

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प्रेमचंद की जयंती पर उनका एक पत्र पढ़िए जो जयशंकर प्रसाद के नाम है। उन दिनों प्रेमचंद मुंबई में थे और फ़िल्मों के लिए लेखन कर रहे थे- ====================== अजंता सिनेटोन लि. बम्बई-12 1-10-1934   प्रिय भाई साहब, वन्दे! मैं कुशल से हूँ और आशा करता हूँ आप भी स्वस्थ हैं और बाल-बच्चे मज़े में हैं। जुलाई के अंत में बनारस गया था, दो दिन घर से चला कि आपसे मिलूँ, पर दोनों ही दिन ऐसा पानी बरसा कि रुकना पड़ा। जिस दिन बम्बई आया हूँ, सारे रास्ते भर भीगता आया और उसका फल यह हुआ कि कई दिन खाँसी आती रही। मैं जब से यहाँ आया हूँ, मेरी केवल एक तस्वीर फ़िल्म हुई है। वह अब तैयार हो गई है और शायद 15 अक्टूबर तक दिखायी जाय। तब दूसरी तस्वीर शुरू होगी। यहाँ की फ़िल्म-दुनिया देखकर चित्त प्रसन्न नहीं हुआ। सब रुपए कमाने की धुन में हैं, चाहे तस्वीर कितनी ही गंदी और भ्रष्ट हो। सब इस काम को सोलहो आना व्यवसाय की दृष्टि से देखते हैं, और जन-रुचि के पीछे दौड़ते हैं। किसी का कोई आदर्श, कोई सिद्धांत नहीं है। मैं तो किसी तरह यह साल पूरा करके भाग आऊँगा। शिक्षित रुचि की कोई परवाह नहीं करता। वही औरतों का उठा ले जाना, बलात्...

हिंदी का अर्थ

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  अक्सर सुनते है हिंदी फ़ारसी भाषा का शब्द है। हिन्द शब्द फारसी भाषा का ही है। फारसवालेआज के दक्षिणी पंजाब से दिल्ली तक के प्रदेश को हिन्द और सरहिन्द कहते थे,वहाँ की एक नदी को  भी हिन्द (आज का हिन्दन) कहते थे।और वहाँ की भाषा को हिन्दुई,हिन्दवी और हिन्दी कहा करते थे। फारसी में शेष पंजाब को मद्र न कहकर पंजाब कहते थे। बाद में भारतीयों ने भी,सतरहवीं ई० शताब्दी से ,मद्र नाम का त्याग कर मद्र को पंजाब लिखना पढ़ना आरम्भ कर दिया। पर हिंदी भाषा आर्यभाषा, अपभ्रंश, लौकिक संस्कृत के रूप में उत्तर वैदिक काल से ही अस्तित्व में रही। ईरानी और फारसी में " ह “ का उच्चारण नहीं होता है । इसके स्थान पर " स “ का उच्चारण होता है । सिन्धु नदी के पार के क्षेत्र को “ हिन्दूकुश “ कहा जाता है । मुग़ल बादशाहों के आने के बाद यहाँ बोली जाने वाली भाषा को हिन्दी, हिन्दवी कहा गया । उनके आने के पूर्व यहाँ बोली जाने वाली भाषा को " भाखा “ कहा जाता था । संस्कृत हैं कूप जल  भाखा बहता नीर -कबीर दास अत: हिंदी शब्दमात्र फारसी है, भाषा हमारी संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रन्श से यहाँ तक पहुँची है इस बात को सभी को जा...

तर्क और प्रज्ञा का संबंध

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आज एक समूह में तर्क पर बहस हो रहा था । मेरे मन में तर्क से आगे ‘प्रज्ञा’ के संबंध में कुछ भाव उपजें, जिसे आप सभी से साझा कर रहा हूँ। तर्क और प्रज्ञा का संबंध - तर्क जिसे हम अंग्रेजी में लॉजिक या रीजनिंग के नाम से जानते हैं । पश्चिमी परंपरा तर्क में विश्वास करती है । इसीलिए आज की शिक्षा पद्धति तर्कवादी बनाने में अधिक विश्वास करती है । यहीं कारण है कि हम सब हर चीज में अंतहीन तर्क ढूंढते हैं और निष्कर्ष भी अपने संज्ञान में विद्यमान तथ्यों और नियमों के आधार पर  निकालते हैं । विद्वान तर्क को बौद्धिक प्रक्रिया मानते हैं जिसमें भावनाओं, नैतिकता या अनुभव का स्थान कम होता है।इसीलिए आज चार किताबें पढ़कर लोग विद्वान हो जाते हैं। भारतीय ज्ञान पद्धति शिक्षित व्यक्ति को ही ज्ञानी नहीं मानती। कबीरदास जी ने कहा भी है “पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। “ तर्क में केवल तथ्यों पर आधारित हम निष्कर्ष निकालते हैं। तर्क से आगे की प्रक्रिया है -प्रज्ञा जिसे हम अंग्रेजी में विजडम कहते हैं ।  प्रज्ञा या विजडम में व्यक्ति अनुभव, ज्ञान, तर्क, नैतिकता और करुणा को...

चंद्रशेखर आजाद

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  आज महान स्वाधीनता सेनानी, क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती है।  उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भावरा या भाबरा गाँव में हुआ था। चन्द्रशेखर तिवारी उनका असली नाम था। उन्होंने काशी विद्यापीठ, बनारस में  शिक्षा प्राप्त की। वे क्रांतिकारी स्वतंत्रता आंदोलन के हिस्सा रहें और विरोध के लिए हिंसक तरीकों का सहारा लेने के लिए जाने जाते थे।  उनका प्रसिद्ध नारा था -  “मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा” ।  उनका एक और प्रसिद्ध संदेश था- मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वाधीनता है और मेरा घर जेलखाना है। - मैं जीवन की अंतिम सांस तक देश के लिए लड़ता रहूंगा। - मेरा यह छोटा- सा संघर्ष ही कल के लिए महान बन जाएगा। - सच्चा धर्म वही है जो स्वतंत्रता को परम मूल्य की तरह स्थापित करे।‘’

राष्ट्रीय प्रसारण दिवस-२३ जुलाई

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  आज राष्ट्रीय प्रसारण दिवस है। भारत की प्रसारण यात्रा जून 1923 में बॉम्बे रेडियो क्लब के पहले प्रसारण के साथ शुरू हुई। 23 जुलाई, 1927 को इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी (IBC) की स्थापना हुई, जिसने देश में संगठित रेडियो प्रसारण की शुरुआत की। इस दिन को अब राष्ट्रीय प्रसारण दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऑल इंडिया रेडियो (AIR) की शुरुआत 1936 में भारतीय राज्य प्रसारण सेवा से हुई थी। आज़ादी के बाद, आकाशवाणी का तेज़ी से विस्तार हुआ और 1956 में इसे "आकाशवाणी " नाम दिया गया। आज, यह 591 स्टेशनों का संचालन करता है, जो भारत की 98% आबादी तक पहुँचता है और 23 भाषाओं और 146 बोलियों में प्रसारण करता है। भारत के विकास में प्रसारण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, रेडियो सूचना के प्रसार और एकता को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम था। स्वतंत्रता के बाद, यह साक्षरता, स्वास्थ्य जागरूकता और कृषि ज्ञान को बढ़ावा देने में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। #आकाशवाणी #साकेत_विचार विशेष संदर्भ के लिए देखें  https://notnul.com/Pages/Book-Details.aspx?S...

लोकमान्य तिलक

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 ‘’ आपके विचार सही, लक्ष्य ईमानदार और प्रयास संवैधानिक हों तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपकी सफलता निश्चित है ।” - लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक आज स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा देने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (23 जुलाई 1856 - 1 अगस्त 1920) की जयंती है।    लोकमान्य तिलक, जिन्हें गांधीजी ने "आधुनिक भारत का निर्माता" और नेहरू जी ने "भारतीय क्रांति का जनक" कहा। लेकिन देश की जनता ने उन्हें दिल से अपनाया और "लोकमान्य" कहा।‘’ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखने में मुख्य भूमिका निभाने वाले उनके सबसे लोकप्रिय नारे के बिना अकल्पनीय है: 'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।' ने दिया था।  तिलक की विरासत स्वशासन के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता से चिह्नित है, जिसने महात्मा गांधी जैसे भविष्य के नेताओं को प्रेरित किया। 1 अगस्त, 1920 को उनका निधन हो गया, उसी दिन गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, जो भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में उनके स्थायी प्रभाव का प्रमाण है। लोकमान्य तिलक ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने के लिए देश भर में चार स...

एक कविता-सच

 जो अपनी  सोच से, ताक़त से  पद से, पैसा से, झूठ से,  जुगाड़ से  संसार 🌍 चलाना चाहते थे  वे सब हो गये खाक  क्योंकि दुनियां में नाम उन्ही का अमर है  जो हैं मर्यादा, अनुशासन नैतिकता, निष्ठा, ज्ञान, सहजता-सरलता की प्रतिमूर्ति  प्रभु श्रीराम 🙏

बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस -19 जुलाई

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‘बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस’ पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामना ! बैंकर राष्ट्र के आर्थिक समुन्नति की महती जिम्मेवारी निभाता है। 19 जुलाई 1969 ही वह दिन था, जो भारतीय वित्त, बैंकिंग व वाणिज्यिक इतिहास में एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ।  जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने वंचितों के आर्थिक हितों की सुरक्षा एवं आर्थिक सशक्तिकरण के लिए एक ही झटके में 14 निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण का कदम उठाया। उस समय यह कदम पूँजीपतियों की शक्तियों के संकेंद्रण को रोकने, विभिन्न क्षेत्रों में बैंक निधियों के उपयोग में विविधता लाने और उत्पादक उद्देश्यों के लिए राष्ट्रीय बचत को जुटाने के उद्देश्य से किया गया था।  बाद में 1980 में छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, जिससे यह 20 राष्ट्रीयकृत बैंकों में बदल गया। जिसका व्यापक असर राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक प्रगति के रूप में दिखा। बाद में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने सशक्त अर्थव्यवस्था हेतु कई वित्तीय सुधार किए, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण रहा वंचितों के लिए जन-धन योजना, मुद्रा योजना और पेंशन और बीमा योजना। इन योजन...

आजकल

 आजकल शब्दों में  जो बड़ी-बड़ी बातें लिखते हैं  अंदर से बड़े खोखले होते हैं । #साकेत_विचार

राष्ट्रभाषा हिंदी

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जो हिंद से संबंधित हो वहीं हिंदी है। यथा, मध्य एशिया के विद्वान गणित को हिन्दसा कहते थे। हिंदी वास्तव में  कोई एक भाषा नहीं  हैं।   यह भाषायी एकाकार की मिसाल है।   जैसे,  भारतवर्ष में  सभी  पंथ, जाति मिलकर, एक होकर भारतीयता की पहचान  बनाती है। वैसे ही  हिंदी सबकी है।  इसे बनाने में  सभी  भाषाओं, बोलियों  का योगदान है। कृपया इसे केवल उत्तर  भारत का न बनाए।  ऐसे प्रकाशनों  से राजनीति एवं अज्ञानता की बू आती है।    अगर आप इन आँकड़ों के आधार पर देखें तो हिंदी को प्राथमिक , द्वितीयक या तृतीयक पसंद के अनुसार देश की 95 फीसदी आबादी किसी न किसी रूप में इसे समझती है। इसी संपर्क गुण के कारण हिंदी सभी भारतीयों के प्रेम, स्नेह की अधिकारिणी बनी। पर जब हम इसे केवल उत्तर भारत से जोड़कर देखते है तो राजनीति  शुरू होती है।  एक बात और हिंदी को बर्बाद करने की पुरज़ोर कोशिश अंगेजीवादियों ने प्रारंभ से ही की है। बाक़ी हिंदी जो थोड़ी-बहुत दिख रही है वह निम्न से मध्यम वर्ग में आए लोगों के कारण दिख रही है। थोड़े-बह...

हिंदी और हिंदीतर का विभाजन

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  यह सर्वविदित है कि भारत की एकता उसकी भाषिक समरसता में है। इस समरसता का बेहतर प्रतिनिधित्व हिंदी से ही संभव है । हिंदी ने इसे सिद्ध भी किया है । हिंदी व्यवहार, कारोबार और संवाद में निर्विवाद रूप से इस देश की अग्रणी भाषा है । हिंदी किसी एक क्षेत्र की भाषा नहीं है यह तो पूरे देश को जोड़ने वाली भाषा है । फिर इस देश में हिंदी और हिंदीतर का विभाजन क्यों है ? इस मलाईदार विभाजन को बंद किया जाए। भाषा प्रलोभनों से कभी आगे नहीं बढ़ती । इस प्रकार के विभाजनों से हिंदी कमजोर ही हुई है और कुछ हिंदीतर हिंदी के नाम पर अपना भला करते रहे । हिंदी सबकी है अत : इस कृत्रिम विभाजन को बंद किया जाए । जय हिंद! जय हिंदी!! साकेत सहाय #साकेत_विचार  #हिंदीराष्ट्रभाषा #हिंदी  #hindiसंपर्क #हिंदी #हिंदीतर

पी वी सिंधु

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 आज प्रसिद्ध भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी पी.वी. सिंधु - पुसर्ला वेंकट सिंधु (तेलुगु :పూసర్ల వెంకట సింధు) का जन्मदिन है। आपका जन्म 5 जुलाई 1995 को हैदराबाद में हुआ। आप विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय शटलर हैं। आप विश्व वरीयता प्राप्त भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी हैं तथा भारत की ओर से ओलम्पिक खेलों में महिला एकल बैडमिंटन का रजत पदक व कांस्य पदक जीतने वाली आप पहली खिलाड़ी हैं। ओलंपिक में रजत पदक और बीडब्ल्यूएफ विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनने के बाद, पीवी सिंधु ने अपना दूसरा ओलंपिक पदक जीता। उन्होंने टोक्यो 2020 में कांस्य पदक हासिल किया और इसी के साथ वह दो ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गईं।  आपने बहुत कम उम्र में बैडमिंटन में गहरी रुचि दिखाई और भारत की महान बैडमिंटन खिलाड़ी के रूप में विख्यात हुईं, बैडमिंटन के प्रति आपका समर्पण लाखों लोगों को इस खेल के प्रति प्रेरित करता है। पुलेला गोपीचंद आपके मुख्य कोच हैं, जिन्होंने आपको बैडमिंटन में प्रशिक्षित किया है। आपको अर्जुन पुरस्कार और खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। #PVS...

हिंदी का प्रहसन और अंग्रेजी

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 #हिंदीराष्ट्रभाषा  हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए राष्ट्रीय संवाद आवश्यक है। अन्य भारतीय भाषाओं का भी समान आदर और संरक्षण जरूरी है । शिक्षा, तकनीक और न्याय में हिंदी की समान भागीदारी बढ़ाई जाए। कृत्रिम मेधा (एआई ) तथा डिजिटल टूल्स में हिंदी को प्राथमिकता देनी होगी ।  और सबसे जरूरी चरणवार तरीके से अंग्रेजी और अंग्रेजियत को विस्थापित करना होगा ।  अंग्रेजी मात्र एक भाषा है उसे आप कभी भी सीख सकते हैं । यदि नहीं कर सकते तो फिर सारे ड्रामा ख़त्म करें और अंग्रेजी को ही राष्ट्रभाषा घोषित कर दें । इस देश की अघोषित राष्ट्रभाषा अंग्रेजी ही है । जिसके विरोध में कोई नही है । हमारी व्यवस्था बस हिंदी को काग़ज़ी तंत्र और वोट तंत्र में उलझाना चाहती है । अत: अंग्रेजी को ही राष्ट्रभाषा घोषित कर देनी चाहिए। वैसे भी इस देश के हर महत्वाकांक्षी व्यक्ति में अंग्रेजी का मोह व्याप्त है और दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह भी है कि आज वही सफल है जो अपनी आकांक्षाओं को येन-केन प्रकारेण लागू करवा लेता है । #हिंदी #hindi #साकेत_विचार  हिंदी का प्रहसन और राष्ट्रभाषा

स्वामी विवेकानंद

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 उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता। -स्वामी विवेकानंद   आज महान भारतीय संत, दार्शनिक और राष्ट्रवादी स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि है।  स्वामीजी ने भारत के युवाओं में राष्ट्रीय चेतना जगाई और भारतीय संस्कृति को विश्व पटल पर पहुंचाया।  स्वामी विवेकानन्द महज 39 साल जिए, पर इस दौरान हजारों वर्षों का काम कर गए। उन्होंने भारत को आध्यात्मिक रूप से जागृत किया।  स्वामीजी का जीवन समस्याओं एवं संघर्षों के पहाड़ के बीच बीता।  स्वामी विवेकानंद पश्चिमी दर्शन सहित विभिन्न विषयों के ज्ञाता होने के साथ-साथ एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह भारत के पहले हिंदू सन्यासी थे, जिन्होंने हिंदू धर्म और सनातन धर्म का संदेश विश्व भर में फैलाया। उन्होंने विश्व में सनातन मूल्यों, हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति की सर्वोच्चता स्थापित की। स्वामी विवेकानंद को आधुनिक भारत के आध्यात्मिक पुनर्जागरण का प्रणेता माना जाता है। स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाएँ ज्ञान का खजाना हैं। वे आत्मविश्वास, ज्ञान की खोज, आत्म-सुधार, दूसरों की सेवा और सार्वभौमिक भ...

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया: भाषिक संस्कार एवं संस्कृति अब ई-बुक के रूप में उपलब्ध

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 सभी सम्मानित जनों को नमस्कार, वर्ष २०१८ में मेरी पहली पुस्तक ‘इलेक्ट्रॉनिक मीडिया : भाषिक संस्कार एवं संस्कृति’ का विमोचन विश्व हिंदी सम्मेलन, मॉरीशस में किया गया था । तब से हिंदी साहित्य के कथेतर श्रेणी में जितना सम्मान इस पुस्तक को मिला, मैंने कभी उसकी कल्पना भी नही की थी। समीक्षकों के अनुसार, इस विषय पर यह विशेष पठनीय पुस्तक है । मीडिया अध्ययन की शीर्ष पुस्तकों में इसे स्थान मिला । पुस्तक दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी, संस्कृति मंत्रालय,  भारत  सरकार  से  वर्ष  २०२१ में साहित्य श्री कृति सम्मान से सम्मानित हुई । पुस्तक की समीक्षा देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं यथा, इंडिया टुडे, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स आदि में  प्रकाशित हुई । पुस्तक मुंबई विश्वविद्यालय, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय समेत देश के पाँच प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी शामिल है। पुस्तक 'इलेक्ट्रॉनिक मीडियाः भाषिक संस्कार एवं संस्कृति' भाषा, कला, बाजार,आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक परिदृश्य, सोशल मीडिया तथा समाज से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जो न...

हिंदी का प्रहसन

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वोट के लिए बापू , बाबा साहेब का सहारा लेने वालों के देश में अंग्रेजी, अंग्रेजियत से प्रेम और हिंदी से द्रोह । एक विदेशी भाषा के प्रति यह अंतहीन प्रेम एवं हीनता-बोध की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है कि तमाम दुश्वारियों के बीच यदि अधिकारी से लेकर क्लर्क और चपरासी तक, अपना और अपने परिवार का पेट काट कर भी, अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूलों में भेजना चाहते हैं और भेज भी रहे है तो इसका कुछ तो मतलब है? क्योंकि प्रदेश और देश की व्यवस्था भी विदेशी भाषा की गुलाम है । उन्हें न तो अपनी परंपरा से मतलब है और न अपनी संस्कृति से । हिंदी के प्रहसन पर मुझे विद्यानिवास जी की पंक्तियाँ याद आ रही हैं- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने कहा था, ‘मेरी झांसी मुझे वापस चाहिए।‘ मैं भी हिन्दी के लेखक की हैसियत से यही मांगता हूँ कि मेरा तो कोई प्रदेश नहीं, कोई वर्ग नहीं,मजहब नहीं, सिर्फ एक देश है, उसे वापस लाओ। बंद करो यह ढोंग कि हिन्दी संपर्क भाषा है। सारा राज-काज अँग्रेजी में, फारसी में या लैटिन में चलाओ! हिन्दी के विकास के मालिकों, हिन्दी को जीनो दो, छूछे सम्मान का जहर न दो,हिन्दी को, देश को वापस बुलाने का...

असाहित्यिक घटना और साहित्य का अर्थ

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  पटना की असाहित्यिक घटना और साहित्य का अर्थ  किसी भी अमर्यादित घटना से समाज में रोष होना स्वाभाविक है । पर इस प्रकार की अनैतिक घटनाएँ क्यों हो रही है ? क्या इसके लिए केवल एक व्यक्ति दोषी है ? आप अपने चारों ओर नजर दौड़ाये और देखें किस प्रकार से हम सब आंकठ लोभ, लालच, काम-लिप्सा में डूबे जा रहे हैं । एक पूरी व्यवस्था इसे पोषित कर रही है । बाजार  और मीडिया हमारी सोच और भोग पर हावी है । स्त्री-पुरुष संबंध कॉमोडिटी में परिवर्तित हो रहे है । साहित्य, कविताएँ सब कुछ  नकारात्मक ।  हम जो कहते या सोचते हैं वह हमें परिभाषित नहीं करता, बल्कि हम जो करते हैं वह हमें परिभाषित करता है। ‘’   - जेन ऑस्टेन   जेन ऑस्टिन के इस उद्धरण को देखिये आपको पता चल जाएगा कि हमारा समाज क्या कर रहा   है । पटना की कथित अनैतिकता पर मचा बावेला उचित है । पर यही बावेला मचाने वाले बंगाल की जघन्यता पर मौन हो जाते है । स्त्री हिंसा कही भी हो वह अन्यायपूर्ण ही है । दुराचार   इस पृथ्वी पर सबसे बड़ा कलंक है । अत : सबसे बड़ा संकल्प हो लेखक, साहित्यकार की लेखनी देश, समाज के हित में समर्प...

अहमदाबाद विमान हादसे में जीवित बचा व्यक्ति-चमत्कार

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  हम सभी अक्सर जिंदगी और मौत को लेकर इन उद्धरणों को सुनते हैं।  ‘आनंद’ फ़िल्म का वह संवाद जिसे राजेश खन्ना ने अपने अभिनय से अमर कर दिया ।  “जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है जहांपनाह, जिसे ना आप बदल सकते हैं, ना मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ बंधी है। कब, कौन, कैसे उठेगा, ये कोई नहीं जानता..!” आज गुजरात के अहमदाबाद में हुए विमान हादसा में  एयर इंडिया का जहाज अहमदाबाद हवाई अड्डे से लंदन के लिए उड़ान भरने के तुरंत बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसमें कुल 242 लोग सवार थे। इसमें सवार गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का भी निधन हो गया। पर ईश्वर की लीला देखिये कि इसी अहमदाबाद विमान हादसे में एक व्यक्ति अपनी जान बचाने में सफल रहा । जीवित बचा यह व्यक्ति ब्रिटिश नागरिक है जिनका नाम रमेश विश्वास है। जो विमान दुर्घटना के बाद खुद अपने पैरों पर चलते हुए गए। रमेश कुमार ने बताया कि "टेक ऑफ होने के 30 सेकेंड के बाद प्लेन क्रैश हो गया था"।  इसी घटना पर किसी अखबार में बहुत साल पहले पढ़ी एक घटना याद आ गई ।  घटना यह थी कि एक बस में सांप...

सटीक डिजिटल पता प्रणाली है डिजिपिन

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भारतीय डाक पत्तो प्रमुख आकर्षण रहे पिन कोड का युग अब नये रूप में आकार लेने को है ।  जी, हाँ अब आपके छ: अंकों के पिन कोड या डाक सूचकांक संख्या को भारतीय डाक विभाग ने डिजिटल युग के साथ कदम ताल करते हुए  इसके विकल्प के तौर पर 'डिजीपिन' नाम से डिजिटल पता पेश किया है। अब से देश में डिजीपिन नई पता प्रणाली होगी। पारंपरिक पिन कोड जहां बड़े क्षेत्र को कवर करते हैं, वहीं 10 अंकों वाला डिजीपिन सिस्टम आपके घर या व्यवसाय के सटीक स्थान को दर्शाता है। आइए जानते हैं कि पिन कोड और डिजीपिन में क्या अंतर है। किसी क्षेत्र या स्थान की पहचान के लिए भारतीय डाक विभाग द्वारा अब तक छह अंकों वाला पिन कोड  प्रयोग में लाया जा रहा था। पता प्रणाली में सटीकता लाने के लिए अब 10 अक्षरों का डिजिपिन जारी किया गया है। इसे आईआईटी हैदराबाद और इसरो ने विकसित किया है। डिजिपिन के माध्यम से देश के किसी भी स्थान  की सटीक डिजिटल पहचान और यूनिक आईडी सुनिश्चित की गई है। इसके आधार पर सुदूर गांव की छोटी-छोटी गलियों तक सटीकता से पहुंचा जा सकेगा। यानी इस डिजीपिन के जरिए आपके घर या व्यवसाय का सटीक स्थान पता किया जा सक...

हिंदी और भारतीय भाषाओं का अंतर संबंध-सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर

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  आज प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त जी की जयंती है। उनके कृतित्व को शत-शत नमन!  कभी अमिताभ बच्चन के पिता, हिंदी के प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन ने सुमित्रानंदन पंत के सुझाव पर ही अपने पुत्र का नाम  'अमिताभ' रखा, जिसका अर्थ है कभी न मिटने वाली आभा। आज हम सभी इस आभा से परिचित हैं।  हिंदी एवं भारतीय भाषा प्रेमियों को भी अपने भाषा चिंतकों, साहित्यकारों के आभा एवं कार्य को सम्मान देना होगा। उसका प्रसार करना होगा। यह आभा है - भारतीय भाषाओं की शाब्दिक एकरूपता की। वास्तव में सभी भारतीय भाषाएं आपस में घुली-मिली हुई है। क्योंकि संस्कृत भाषा सभी की मूल स्रोत है।  साथ ही इससे भी महत्वपूर्ण  है - देश की भाषाई एवं सांस्कृतिक अभिन्नता की।  जिसके कारण शब्द और भाव लगभग एक समान होते है। यही कारण है कि ब्रिटिश पराधीनता के समय इस महत्वपूर्ण एवं आवश्यक तत्व को देश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक एकता के लिए महात्मा गांधी से लेकर सभी राष्ट्रनायकों ने हिंदी के प्रयोग व इसे अपनाने पर जोर दिया था। इस शाब्दिक एकरूपता रूपी आभा के प्रसार के लिए देवनागरी लिपि के प्रसार की मह...

गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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  साहित्य के माध्यम से भारतीयता को विश्व भूमि पर जीवंत करने वाले गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की जयंती पर शत शत नमन!  भारतीय साहित्य जगत के लिए 7 मई का दिन सुनहरे शब्दों में लिखा गया है। 1861 में आज ही के दिन गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर का जन्म हुआ, जिन्हें एक कवि, लघु कथा लेखक, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंध लेखक और चित्रकार के तौर पर इतिहास में एक युग पुरुष का दर्जा हासिल है। कविगुरु बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा माने जाते हैं। आप अपनी कृति ‘गीतांजलि’ के लिए एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति हैं। भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' गुरुदेव की ही रचना हैं।  रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदत्त ‘सर’ की उपाधि जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में वापस कर दी थी।  गुरुदेव ने 13 अप्रैल 1919 को हुए इस हत्याकांड की निंदा करते हुए 31 मई 1919 को यह उपाधि लौटा दी थी। आप गीतांजलि की "गहन संवेदनशील, ताजा और सुंदर" कविता के लेखक थे। वर्ष 1913 में, रवींद्रनाथ ठाकुर किसी भी श्रेणी में नोबेल पुरस्कार जीत...

भारतीय रेल दिवस

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  आज का दिन भारतीय परिवहन के लिए विशेष है।  आज ही के दिन भारतीय रेल की शुरुआत हुई थी।  16 अप्रैल, 1853 को पड़ी बुलंद नींव की यह देन है कि आज भारतीय रेल  के यात्री वंदे भारत, राजधानी एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस और संपर्क क्रांति एक्सप्रेस जैसी तेज और सुविधाजनक रेलगाड़ियों से यात्रा करते हैं। इस विशिष्ट यात्रा को तय करने में रेलवे को 172 साल लग गए हैं। रेलवे ने अखण्ड भारत को देखा है और विभाजित भारत को भी देखा है। रेलवे ने बँटवारे की त्रासदी को भी भोगा है।  भारत में रेलवे की शुरुआत लॉर्ड डलहौज़ी द्वारा की गई थी।  16 अप्रैल 1853 के दिन ही भारत में पहली बार रेल ने रफ्तार पकड़ी थी। देश में मुंबई के बोरीबंदर से ठाणे के बीच पहली यात्री (पैसेंजर) गाड़ी चलाई गई थी।  इस ट्रेन को साहिब, सुल्तान, और सिंध नाम के तीन इंजनों ने खींचा था। इस ट्रेन में 13 डिब्बे थे और इसमें 400 यात्री सफ़र करने आए थे।  रेल के निर्माण का श्रेय सर आर्थर कॉटन को दिया गया था।  भारतीय रेल के इस छोटे से सफर ने देश में परिवहन की संपूर्ण तस्वीर ही बदल दी थी। आप सभी को राष्ट्र की जीवन...

पी एन बी-एक ऐतिहासिक धरोहर

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 पंजाब नैशनल बैंक के १३१ वें स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर आप सभी से एक ऐतिहासिक चित्र साझा कर रहा हूँ, जो बैंक की ऐतिहासिक यात्रा का जीवंत दस्तावेज है । एक ऐसा दस्तावेज जो आपको इस संगठन के सुनहरे सफ़र से जोड़ता है । यह तस्वीर एक शिलापट्ट रूपी दस्तावेज है जो आज भी अविभाजित भारत के महत्वपूर्ण शहर लाहौर वर्तमान के पाकिस्तान के सर गंगा राम अस्पताल में सुरक्षित है । तब इस अस्पताल में बैंक ने एक हॉल का निर्माण तब के ₹६५०० की लागत से पंजाब नेशनल बैंक लिमिटिड लाहौर की ओर से उपहार स्वरूप कराया था। तब ऐतिहासिक तारीख़ थी-2-9-43. और लिखा गया-6500/-रुपये की लागत से निर्मित यह हॉल पंजाब नेशनल बैंक लिमिटेड, लाहौर का उपहार है। जिंदाबाद पीएनबी! यह सफ़र जारी रहें ।  आप सभी को स्थापना दिवस की बहुत बहुत बधाई! यह पोस्ट देशवासियों को भाषा, पंथ और समाज की कुत्सित नीति को समझने का संकेत भी है । जब आज हिंदी को उर्दू, पंजाबी और अन्य भाषाओं से लड़ाने का खेल जारी है परंतु उस समय हिंदी और हिंदीतर का कोई भेद नही था । तभी तो  यह पट्ट हिंदी में है । सादर, डॉ साकेत सहाय

महादेवी वर्मा

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आज हिंदी साहित्य की महान साहित्यकार महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०६ - ११ सितम्बर १९८७) की जयंती है ।  आप महान कवियित्री, निबंधकार, रेखाचित्रकार और हिन्दी साहित्य की प्रख्यात हस्ती थीं। आपको हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है। महादेवी का जन्म 26 मार्च 1907 को प्रातः 8 बजे फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था। अतः बाबा बाबू बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी — महादेवी मानते हुए पुत्री का नाम महादेवी रखा। कायस्थ पुत्री महादेवी वर्मा ने अपने बचपन में सबसे पहली पुस्तक पंचतंत्र पढ़ी। महादेवी वर्मा के परिवार में बाबा फ़ारसी और उर्दू जानते थे। पिता ने अंग्रेज़ी पढ़ी थी। परिवार में हिंदी का कोई वातावरण नही था। प्रसिद्ध कवियित्री महादेवी वर्मा को अपने निजी जीवन में कई तरह के दुखों का सामना करना पड़ा था।  विरह, वेदना, और करुणा उनकी कविता का अहम हिस्सा है।  महादेवी वर्मा रहस्यवाद और छायावाद की कवयित्री थीं, अतः उनके काव्य में आत्मा-परमात्म...

बिहार दिवस

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बिहार से जुड़ाव भारत के विशिष्ट इतिहास से जुड़ने का सुखद संयोग है । जय बिहार! जय भारत!  कभी डा. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था- ‘यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि सदियों तक भारत का इतिहास वस्तुत: बिहार का इतिहास था।‘‘  बिहार के बारे में कहा जा सकता है देश बना है जिस मिट्टी से उसकी हिस्सेदारी हूँ..! बुद्ध, महावीर, चंद्रगुप्त के गौरव का अधिकारी हूँ..!! हाँ, मैं बिहारी हूँ..!!! पर उससे अधिक भारतीय हूँ।  सभी भारतवासियों को बिहार दिवस की हार्दिक बधाई! #साकेत_विचार #बिहार #बिहार_दिवस