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Showing posts from 2025

महादेवी वर्मा

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आज हिंदी साहित्य की महान साहित्यकार महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०६ - ११ सितम्बर १९८७) की जयंती है ।  आप महान कवियित्री, निबंधकार, रेखाचित्रकार और हिन्दी साहित्य की प्रख्यात हस्ती थीं। आपको हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है। महादेवी का जन्म 26 मार्च 1907 को प्रातः 8 बजे फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था। अतः बाबा बाबू बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी — महादेवी मानते हुए पुत्री का नाम महादेवी रखा। कायस्थ पुत्री महादेवी वर्मा ने अपने बचपन में सबसे पहली पुस्तक पंचतंत्र पढ़ी। महादेवी वर्मा के परिवार में बाबा फ़ारसी और उर्दू जानते थे। पिता ने अंग्रेज़ी पढ़ी थी। परिवार में हिंदी का कोई वातावरण नही था। प्रसिद्ध कवियित्री महादेवी वर्मा को अपने निजी जीवन में कई तरह के दुखों का सामना करना पड़ा था।  विरह, वेदना, और करुणा उनकी कविता का अहम हिस्सा है।  महादेवी वर्मा रहस्यवाद और छायावाद की कवयित्री थीं, अतः उनके काव्य में आत्मा-परमात्म...

बिहार दिवस

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बिहार से जुड़ाव भारत के विशिष्ट इतिहास से जुड़ने का सुखद संयोग है । जय बिहार! जय भारत!  कभी डा. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था- ‘यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि सदियों तक भारत का इतिहास वस्तुत: बिहार का इतिहास था।‘‘  बिहार के बारे में कहा जा सकता है देश बना है जिस मिट्टी से उसकी हिस्सेदारी हूँ..! बुद्ध, महावीर, चंद्रगुप्त के गौरव का अधिकारी हूँ..!! हाँ, मैं बिहारी हूँ..!!! पर उससे अधिक भारतीय हूँ।  सभी भारतवासियों को बिहार दिवस की हार्दिक बधाई! #साकेत_विचार #बिहार #बिहार_दिवस

लाल बहादुर शास्त्री-सादगी की प्रतिमूर्ति

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 प्रेरक प्रसंग  स्टेशन की आखिरी ट्रेन प्लेटफार्म से रवाना हो चुकी थी । एक वृद्ध महिला ट्रेन के इंतजार में बैठी हुई हैं। अगली ट्रेन कल सुबह आएगी... एक कुली ने यह देखा और मां से पूछा - माताजी, आप कहां जा रही हैं? मैं दिल्ली अपने बेटे के पास जाऊंगी । आज कोई ट्रेन नहीं है माताजी । महिला असहाय दिख रही थी। कुली ने दयालुता दिखाते हुए महिला को प्रतीक्षालय में आश्रय देने की पेशकश की। वह सहमत हो गई। कुली ने उनसे उसके बेटे के बारे में पूछा.. मां ने जवाब दिया कि उसका बेटा रेलवे में काम करता है। नाम बताओ। देखें संपर्क हो सकता है या नहीं... वृद्ध महिला ने कुली से कहा - वह मेरा लाल है, सब उसे लाल बहादुर शास्त्री कहते हैं! (वृद्ध महिला ने कहा) भारत माँ का  महान सपूत तब भारत का रेल मंत्री था। एक पल में, पूरे स्टेशन में हलचल मच गई। जल्द ही, सैलून कार आ गई। वृद्ध महिला हैरान थी। लाल बहादुर शास्त्री को कुछ भी पता नहीं था ।  ऐसे भी लोग होते थे , समाज में अब भी ऐसे लोग हैं बस उन्हें प्रोत्साहन और हौसले की जरूरत है । 🙏 #शास्त्री #लाल_बहादुर  #साकेत_विचार

अज्ञेय

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  “स्नेह अनेकों चोटें सहता है, कुचला जाकर भी पुन: उठ खड़ा होता है; किंतु प्रेम में अभिमान बहुत अधिक होता है, वह एक बार तिरस्कृत होकर सदा के लिए विमुख हो जाता है। ‘’- अज्ञेय आज हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की जयंती है। आप हिंदी साहित्य में नई कविता, प्रयोगवाद से जुड़े रहें।  आप एक प्रतिभासंपन्न कवि, शैलीकार, कथा-सहित्य को एक महत्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबंधकार, संपादक और सफल अध्यापक के रूप में जाना जाता है।  वर्ष 1921 में अज्ञेय का परिवार ऊटी पहुंचा, ऊटी में अज्ञेय के पिता ने अज्ञेय का यज्ञोपवीत कराया और अज्ञेय का वात्स्यायन कुलनाम दिया।  आपकी शिक्षा-दीक्षा मद्रास और लाहौर में हुई।  आप भगत सिंह के साथी बने और वर्ष 1930 में गिरफ्तार हुए। आपने छह वर्ष कारावास और नजरबंदी भोगा।  आपने विशाल भारत, प्रतीक का संपादन किया।  प्रतीक ने साहित्यिक पत्रकारिता का नया इतिहास रचा। आप साप्ताहिक दिनमान और नवभारत टाइम्स के संपादन से भी जुड़े। आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए। आपकी प्रसिद्ध ...
 4 अक्‍टूबर 1977 को पहली बार यूनाइटेड नेशंस में हिंदी गूंजी थी जब उस समय बतौर विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेई यूएन में मौजूद थे। वाजपेई से पहले और उनके बाद किसी ने भी हिंदी में इतने बड़े अंतराष्‍ट्रीय मंच पर भाषण नहीं दिया था। इसके बाद जब अटल बिहारी वाजपेई वर्ष 2000 में बतौर प्रधानमंत्री यूनाइटेड नेशंस के सहस्‍त्राब्‍दी वर्ष समारोह में शामिल होने के लिए गए तो फिर उन्‍होंने हिंदी में भाषण दिया। वाजपेयी के संबोधन के बाद पूरे देश में एक उम्मीद बंधी कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा मिलने की मंजिल अब दूर नहीं है। हालांकि वर्ष 1977 की उस अहम घटना के बाद एक लंबा वक्त बीत गया और वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वह सपना अधूरा ही है। हां, अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिन्दी को जिस तरह से विदेशों में भी सम्मान दिलवा रहे हैं,उससे एक उम्मीद जरूर बंधी है। वे विदेशी राष्ट्राध्यक्षों से भी हिन्दी में ही वार्तालाप कर रहे हैं। तो क्या माना जाए कि उनके संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में संबोधन के बाद वहां हिन्दी को आधिकारिक भाषा का दर्जा मिलने का रास्ता साफ होगा ? अगर बात अटल ...

उद्योगपति जमशेदजी नौशेरवान टाटा

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  भारतीय औद्योगिक क्षेत्र को असाधारण योगदान देने वाले महान उद्योगपति जमशेदजी  नुसीरवानजी टाटा  की जयंती है।  आप भारत के विश्व प्रसिद्ध औद्योगिक घराने ‘टाटा समूह’ के संस्थापक थे।  आपने वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा के लिए बेहतरीन सुविधाएँ उपलब्ध करायीं और देश को महाशक्ति बनने के मार्ग पर अग्रसर किया। इस अवसर पर उनके अद्भुत देश प्रेम की दो घटनाएँ -  १.  सम्पूर्ण भारत में ख्यातिप्राप्त ‘ताजमहल होटल' के निर्माण के पीछे एक रोचक कहानी छुपी हुई है। सिनेमा के जनक लूमियर भाईयों ने अपनी खोज के छ: महीनों बाद अपनी पहली फ़िल्म का शो मुम्बई में प्रदर्शित किया था। वैसे तो वे ऑस्ट्रेलिया जा रहे थे, लेकिन बीच रास्ते में उन्होंने मुम्बई में भी शो रखने की बात सोची। 7 जुलाई, 1896 को उन्होंने मुम्बई के तत्कालीन आलीशान वाटसन होटल में अपनी छ: अलग-अलग फ़िल्मों के शो आयोजित किए। इन शो को देखने के लिए मात्र ब्रिटिश लोगों को ही आमंत्रित किया गया था, क्योंकि होटल के बाहर एक तख्ती लगी रहती थी, जिस पर लिखा होता था कि "भारतीय और कुत्ते होटल में नहीं आ सकते हैं"। 'टाटा समूह' के जमशेदजी...

ओरियंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स(ओबीसी) स्थापना दिवस

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  ओरियंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स(ओबीसी) स्थापना दिवस  सुनहरी यादें ❤️ ओरियन्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स  स्थापना दिवस के अवसर पर सुनहरी यादों की हार्दिक बधाई! संगठन भले समय के साथ समाहित हो जाए परंतु उसके द्वारा निर्मित संस्कार एवं संस्कृति सदैव आपके भीतर जीवंत बने रहेंगे। 🙏🌺 एक बार फिर से वहीं पोस्ट जिसे वर्ष २०२० में मैंने लिखा था, आशा है यह पोस्ट आप सभी को पुन: यादों के संजाल में ले जाएगा।  ‘ओरियन्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स’ (१९४३-२०२०) आज बैंक का एक और स्थापना दिवस है।भले ही यह संगठन अब इतिहास हो गया । पर इसके द्वारा निर्मित संस्कार अभी भी जिंदा है । कुछ चीजें हमारे-आपके वश में कभी नहीं रहती। नियति ही सब कुछ तय करती है। पर एक मानवीय स्वभाव है -लगाव होना।  यहीं लगाव हमें प्रकृति से, अपनों से जोड़ती है। प्रकृति से जुड़ाव ही  संसार को सशक्त बनाता है, जिससे व्यक्ति, समाज व संगठन का निर्माण होता है।  संगठन भी तो परिवार की ही भांति होते हैं, जिससे बिछुड़ने की टीस हम सभी में ताउम्र बनी रहती है। यहीं कारण है कि हम सब चाहकर भी ओबीसी के हरे बोर्ड और इसकी  प्यारी धुन ‘where e...

कवि नरेश मेहता

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  सुविचार “सच तो यह है कि समय अपने बीतने के लिए किसी की भी स्वीकृति की प्रतीक्षा नहीं करता।‘’ – श्रीनरेश मेहता आज ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित नरेश मेहता की जयंती है।  आप हिंदी के यशस्वी कवि एवं उन शीर्षस्थ लेखकों में से हैं जो भारतीयता की अपनी गहरी दृष्टि के लिए जाने जाते हैं।  नरेश मेहता ने आधुनिक कविता को नयी व्यंजना के साथ नया आयाम दिया। उनकी एक कविता ‘वृक्ष-बोध’ वृक्ष -बोध -श्रीनरेश मेहता आज का दिन एक वृक्ष की भाँति जिया   और प्रथम बार वैष्णवी संपूर्णता लगी। अपने में से फूल को जन्म देना   कितना उदात्त होता है यह केवल वृक्ष जानता है,   और फल— वह तो जन्म-जन्मांतरों के पुण्यों का फल है।   स्तवक के लिए जब एक शिशु ने फूल नोंचे   मुझे उन शिशु-हाथों में देवत्व का स्पर्श लगा।   कितना अपार सुख मिला जब किसी ने   मेरे पुण्यों को फल समझ ढेले से तोड़ लिया।   किसी के हाथों में पुण्य सौंप देना ही तो फल-प्राप्ति है,   सिंधु को नदी अपने को सौंपती ही तो है। सच आज का दिन एक वृक्ष की भाँति जियया  और प्रथम बार वानस्पतिक समर्पणता जगी। स्र...

स्वामी दयानंद सरस्वती

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  आज 12 फरवरी है। स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने सनातन सभ्यता के महान ग्रंथ ‘वेदों की ओर लौटो’ का आह्वान किया। आधुनिक भारत के महान् चिंतक, धर्मवेत्ता, समाज सुधारक, “आर्य समाज" के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 को काठियावाड़ (गुजरात)  के टंकारा गांव में हुआ था। उनके बचपन का नाम मूलशंकर था। वे संन्यासी थे और संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे । आप 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में सनातन पंथ के पुनरुद्धार आंदोलन के सबसे बड़े प्रणेता माने जाते हैं। ब्रिटिश सरकार द्वारा 1813 में चार्टर एक्ट लाए जाने के बाद ईसाई पादरियों ने पर्याप्त संख्या में भारत आना आरंभ कर दिया था। इन ईसाई धर्म प्रचारकों ने षडयंत्रपूर्वक सामाजिक कुरीतियों को हिंदू धर्म में सम्मिलित कर कठोर आघात पहुँचाएं ।  19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत में कई सामाजिक व धार्मिक आंदोलन हुए। स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने गुरु मथुरा के स्वामी विरजानंद से वेदों का ज्ञान प्राप्त करके हिंदू धर्म सभ्यता और भाषा के प्रचार का कार्य आरंभ किया। आपने सत्यार्थ प्रकाश की रचना हिंदी में करके र...

स्वाधीनता आंदोलन के भूले-बिसरे नायक -बत्तख़ मियाँ

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 स्वाधीनता आंदोलन के भूले-बिसरे नायक -बत्तख़ मियाँ   गाँधी जी के पुण्यतिथि पर विशेष- हम सभी ने चंपारण सत्याग्रह के बारे में ज़रूर सुना होगा ।  चंपारण सत्याग्रह के दौरान कर्तव्यनिष्ठ रसोइए बत्तख़ मियां के भूमिका की चर्चा बहुत कम लोगों ने सुनी होगी, जिन्होंने चंपारण सत्याग्रह के दौरान न केवल महात्मा गांधी की जान बचाई, बल्कि इसके लिए उन्होंने भारी कीमत भी चुकाई। उनका नाम भले ही इतिहास की किताबों में उस हद तक दर्ज न हो, लेकिन उनका अदम्य साहस अपने-आप में एक विशिष्ट अध्याय का हकदार है। वर्ष 1917 में, गांधीजी ब्रिटिश बागान मालिकों द्वारा उत्पीड़ित नील किसानों की दुर्दशा व उत्पीड़न को देखने एवं राजकुमार शुक्ल के निमंत्रण पर गांधीजी सत्याग्रह के लिए बिहार पधारें थे। गांधीजी के आगमन को एक अंग्रेज बागान मैनेजर इरविन ने खतरे के रूप में देखा और उसने एक भयावह साजिश रची। उसने गांधीजी के रसोइए बत्तख़ मियाँ  को उनके दूध में जहर मिलाने का निर्देश दिया। बत्तख़ मियाँ   ने इस जघन्य आदेश को अस्वीकार कर दिया और बत्तख़ मियाँ  ने सत्ता के प्रति आज्ञाकारिता के बदले देश व समाज के प्र...

प्रयागराज कुंभ हादसा-एक अनहोनी थी, जो घट गई।

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 प्रयागराज कुंभ हादसा-एक अनहोनी थी, जो घट गई। प्रयागराज में जो हुआ दुखद है, अत्यंत दुखद। प्रयागराज कुंभ में भगदड़ मचने की वजह से असमय ही कुछ लोग काल-कवलित हो गए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।  लेकिन महाकुंभ जैसे अपार जनभागीदारी वाले आयोजन को जिस सुव्यवस्थित तरीके से अब तक आयोजित किया गया, उसे किसी अनहोनी से कमतर नहीं करार दिया जा सकता। अगलगी और फिर भगदड़ के मामले को जिस तीव्रता से नियंत्रित कर स्थिति को सामान्य बनाया गया, यह भी तो गौरतलब है।  मैं जहाँ पदस्थापित हूँ उस सुदूर दक्षिण से कई मेरे परिचित सपरिवार महाकुंभ गए, ट्रेन से गए, वहां ठहरे और स्नान संपन्न कर लौट आए। वे सभी उत्साह से परिपूर्ण थे। उन्होंने कहा,  करोड़ों लोगों की आवाजाही के बावजूद कुम्भ नगरी की सफाई व व्यवस्था चकित करती थी। उनके लिए सबसे उल्लेखनीय प्रशासन व पुलिस का सहयोग था, जो किसी भी छोटे-बड़े सहयोग के लिए तत्पर दिखते थे। इतने बड़े आयोजन में, दुनिया भर में अनेकों ऐसे उदाहरण है जहाँ अनियंत्रित या अज्ञात भय से अव्यवस्था मची, यहाँ भी भगदड़ मचने की वजह से कुछ लोगों की मौत हुई, जिसे प्रशासनिक चूक या अनहोनी दोनों...