गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर

 


साहित्य के माध्यम से भारतीयता को विश्व भूमि पर जीवंत करने वाले गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की जयंती पर शत शत नमन! 

भारतीय साहित्य जगत के लिए 7 मई का दिन सुनहरे शब्दों में लिखा गया है। 1861 में आज ही के दिन गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर का जन्म हुआ, जिन्हें एक कवि, लघु कथा लेखक, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंध लेखक और चित्रकार के तौर पर इतिहास में एक युग पुरुष का दर्जा हासिल है। कविगुरु बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा माने जाते हैं। आप अपनी कृति ‘गीतांजलि’ के लिए एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति हैं। भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' गुरुदेव की ही रचना हैं।  रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदत्त ‘सर’ की उपाधि जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में वापस कर दी थी।  गुरुदेव ने 13 अप्रैल 1919 को हुए इस हत्याकांड की निंदा करते हुए 31 मई 1919 को यह उपाधि लौटा दी थी। आप गीतांजलि की "गहन संवेदनशील, ताजा और सुंदर" कविता के लेखक थे। वर्ष 1913 में, रवींद्रनाथ ठाकुर किसी भी श्रेणी में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर - यूरोपीय बने और साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गीतकार भी थे।


रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने भारतवर्ष को 'महामानवसमुद्र' कहा है, जिसका अर्थ है कि यह देश विभिन्न मानव जातियों का संगम है। यहाँ अनेक जातियाँ आईं और उन्होंने इस देश के निर्माण में योगदान दिया। यह एक अद्भुत मिश्रण है, जिसमें हिन्दू रीति-नीति का विकास हुआ।


कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ईश्वर से दुःख कम करने की प्रार्थना नहीं करते, बल्कि वे दुःखों से सफलतापूर्वक संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करने की कामना करते हैं। वे विपत्तियों से जूझने की क्षमता प्रदान करने और उन परिस्थितियों में निर्भीक बनाने की प्रार्थना करते हैं। वास्तव में, कवि अपने दुःखों का भार स्वयं सहन करना चाहता है।


गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर हिंदी भाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहते हैं – ‘’भारतीय भाषाएं नदियाँ हैं और हिंदी एक महानदी है, जो भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति को एक सूत्र में पिरोती है। उन्होंने हिंदी को भारतीयता का प्रतीक और संस्कृति का संवाहक माना।


उनकी स्मृति को शत शत नमन !

-डॉ साकेत सहाय 

भाषा -संचार विशेषज्ञ 

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