हिंदी और भारतीय भाषाओं का अंतर संबंध-सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर
आज प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त जी की जयंती है। उनके कृतित्व को शत-शत नमन! कभी अमिताभ बच्चन के पिता, हिंदी के प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन ने सुमित्रानंदन पंत के सुझाव पर ही अपने पुत्र का नाम 'अमिताभ' रखा, जिसका अर्थ है कभी न मिटने वाली आभा। आज हम सभी इस आभा से परिचित हैं।
हिंदी एवं भारतीय भाषा प्रेमियों को भी अपने भाषा चिंतकों, साहित्यकारों के आभा एवं कार्य को सम्मान देना होगा। उसका प्रसार करना होगा। यह आभा है - भारतीय भाषाओं की शाब्दिक एकरूपता की। वास्तव में सभी भारतीय भाषाएं आपस में घुली-मिली हुई है। क्योंकि संस्कृत भाषा सभी की मूल स्रोत है। साथ ही इससे भी महत्वपूर्ण है - देश की भाषाई एवं सांस्कृतिक अभिन्नता की। जिसके कारण शब्द और भाव लगभग एक समान होते है। यही कारण है कि ब्रिटिश पराधीनता के समय इस महत्वपूर्ण एवं आवश्यक तत्व को देश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक एकता के लिए महात्मा गांधी से लेकर सभी राष्ट्रनायकों ने हिंदी के प्रयोग व इसे अपनाने पर जोर दिया था। इस शाब्दिक एकरूपता रूपी आभा के प्रसार के लिए देवनागरी लिपि के प्रसार की महती आवश्यकता है। कभी आचार्य विनोबा भावे ने कहा था ''यदि सभी भाषाएं देवनागरी लिपि को अपना लें तो कोई भाषाई अंतर रहेगा ही नहीं। बतौर उदाहरण आइए समझते है इस शाब्दिक एकरूपता को-
एक शब्द है नागफनी। आइए जानते है दूसरे भारतीय भाषाओं में इसे क्या कहते है और समझते है कैसे इतनी भाषायी निकटता है-
पंजाबी- चित्तार थोहर
हिमाचल-नागफन
बिहार- चपड़ा, नागफनी
उत्तर प्रदेश-चपड़ा/नागफनी
महाराष्ट्र -चापल
कर्नाटक -पापसकल्ली
केरल - नागामुल्लु
पं.बंगाल- नागफना।
उड़ीसा - नागोफेनिया
आंध्र प्रदेश - नागाजेड़्डु
तमिलनाडु- नागाथली
दूसरा शब्द लेते हैं-रसोई
रसोई
रसोई वह स्थान जहाँ रसपूरित व्यञ्जन बनाए जाते हैं, इसका अर्थ स्वादिष्ट भोजन भी है। यह संस्कृत भाषा के शब्द रसवती का तद्भव रूप है जो शौरसेनी प्राकृत के 𑀭𑀲𑀯𑀤𑀻 (रसवदी) के रूप से हो कर रसवै बनता हुआ हिन्दी भाषा में रसोई हो गया।
आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में इसके स्वरूप हैं:
कुमाऊँनी: रस्या
नेपाली: रसोई
बंगाली: रसुइ, रोसाइ
बिहारी, अवधी, हिन्दी: रसोई
मारवाड़ी: रसोई (भोजन), रसौड़ा (भोजन बनाने का स्थान)
गुजराती: रसवई (भोजन), रसोई (स्थान)
पहाड़ी (पश्चिमी) रेसोइ
गढवाली: रुसइ
पंजाबी: ਰਸੋਈ (रसोई)
मराठी : स्वयंपाक घर, भोजनगृह, भोजन पकाने वाला
सिन्धी: रसोयो (भोजन पकाने वाला)
उडिया: रसोया, रसुया
हिन्दी; रसोया, रसोइया
गुजराती: रसोइयो
तीसरा शब्द लेते हैं - पुण्य
पुण्य
संस्कृत - पुण्यम्
पंजाबी- पुन्न
उर्दू- कारे सवाब(कारे-ख़ैर) (सवाब)
कश्मीरी-पोन्य
सिंधी- पुण्यु
मराठी- पुण्य
कोंकणी- पुण्य
गुजराती- पुण्य
नेपाली- पुण्य
बांग्ला- पुण्यम्
असमिया- पुण्य
मणिपुरी- पुण्य
ओड़िया-पुण्य
तेलुगू- पुण्यमु
तमिल- पुन्नियम
मलयालम- पुण्यम्
कन्नड़-पुण्य
डोगरी- पुन्न
संताली- पुण्य
मैथिली - पुण्य
भोजपुरी- पुण्य
बोडो- फुन्य
ऐसे अनेक शब्द है जो भारतीय भाषाओं की शाब्दिक एकरूपता को स्वतः प्रमाणित करते है। इन उदाहरणों द्वारा इसे आसानी से समझा जा सकता है। हालाँकि आलोचक गाँधी जी के हिंदी के प्रयोग के आग्रह के प्रति और विनोबा भावे के देवनागरी के आग्रह को लेकर सांस्कृतिक विलगन अर्थात कल्चरल लैग की बात करते है। जो बताता है कि सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में सम्यता पक्ष सांस्कृतिक पक्ष की तुलना में अपेक्षाकृत तेजी से आगे बढ़ता है जिसकी वजह से सम्यता सूचक घटकों और सांस्कृतिक प्रतीकों के बीच एक प्रकार की दूरी आ जाती है। आज वही दूरी तकनीकी प्रगति एवं अपनी भाषाओं से दूरी अपनाने के कारण मोबाइल, टैबलेट, एंड्रॉएड के विकास क्रम में देवनागरी के इस्तेमाल में दिख रही है जहाँ लोग हिंदी क्या हिंदीतर भाषाओं को भी रोमन लिपि में सहजता से व्यक्त कर रहे हैं। हालांकि देवनागरी का प्रयोग बढ़ा है। पर रोमन लिपि कहीं न कहीं भारतीय भाषाओं की लिपियों का अतिक्रमण कर रही है जो युवा पीढ़ी के बीच से हिंदी एवं भारत की प्रमुख लिपि देवनागरी को विस्थापित कर रही है। इस विस्थापन को समय रहते समझना होगा। तभी हिंदी की आभा का प्रसार होगा और अपने साहित्यकारों को सच्ची श्रद्धांजलि दे पायेंगे। 🙏🌷
©डॉ. साकेत सहाय
#साकेत_विचार
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