राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त
हिंदी साहित्य में खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि जिन्हें राष्ट्रकवि के रूप में भी जाना जाता है ऐसे महान साहित्यकार “मैथिलीशरण गुप्त” (3 अगस्त 1886 - 12 दिसंबर 1964) जी की आज जयंती है । गुप्त जी ने हिन्दी साहित्य की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतीय समाज की अमूल्य सेवा की, उन्होंने अपने काव्य में भारतीय राष्ट्रवाद, संस्कृति, समाज तथा राजनीति के विषय में नये प्रतिमानों को प्रतिष्ठित किया। ‘साकेत’ इनकी महान रचना है जिसमें नारियों की दुरावस्था के प्रति सहानुभूति झलकती है –
‘अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी ।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी ।’
देश के ऐसे महान कवि को नमन! जिसके काव्य में देश के सभी वर्गों की उपस्थिति की झलक मिलती है...
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को।
उनके विराट व्यक्तित्व को देखते हुए उनकी जयंती को कवि दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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