साहित्य की सार्थकता और बाज़ार
हर जगह साहित्य-सिर्फ़ होर्डिंग, बैनर तक। सिस्टम और बाजार का घालमेल। किसी को साहित्य से कहाँ मतलब, सब कुछ पद, पैसा, रसूख़ के लिए। कहीं कोई दृष्टि बोध नहीं। जो जितना दिखा, वो उतना बिका। जिन्हें साहित्य और भाषा का अर्थ तक नहीं पता, वे भी आज बड़े लेखक है। सब कुछ इवेंट होता जा रहा है। सब कुछ तात्कालिक ।
साहित्य वहीं सफल होता है जो समाज को प्रतिबिंबित करता हैं । कहा भी गया है जिस प्रकार जड़ के बिना पौधा सूख जाता है, उसी प्रकार मूल के अभाव में लिखा हुआ साहित्य भी निरर्थक होता है। दुर्भाग्यवश, अब लोग बिना मूल जाने ही केवल अपनी उद्भभावना को ही स्वार्गं सत्य मानने लगे है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि भारत के आधुनिक साहित्यकार, लेखक, पत्रकार ज्ञान एवं सार्थक समझ के साथ अपनी मूल परंपरा, विरासत को जाने-समझे। अंत में जिस प्रकार जड़ का अस्तित्व पौधे से पहले होता है उसी प्रकार साहित्य का स्थायित्व भी उसके मूल पर टिका हुआ है। तभी वह भावी पीढ़ी को मार्गदर्शित करने में सक्षम हो सकेगा। नकारात्मकता राष्ट्र, समाज की गति को बाधित करता है। आइए साहित्य की सशक्त भूमिका को समझे।
इन्हीं संदर्भों पर मुझे अपनी एक कविता 'इतिहास' का स्मरण हुआ। जो साहित्य पर भी लागू होता है।
इतिहास ..........
इतिहास
भारत की जहालत का
बदनामी का
संपन्नता का
विपन्नता का
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कौन-सा?
कुभाषा का
कुविचारों का
या अपने को हीन मानने का
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सौहार्दता की आड़ में
अपने को खोने का
विश्व नागरिक बनने की चाह में
भारतीयता को खोने का
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समरसता की आड़ में
अपने अस्तित्व को कमज़ोर मानने का
इतिहास है क्या
सिकंदर को महान बनाने का
या
समुद्रगुप्त से ज्यादा नेपोलियन को
या
फिर स्वंय को खोकर
दूसरों को पाने का
या
दूसरों को रौंदकर अपनी पताका फहराने का
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आधुनिकता की आड़ में
पुरातनता थोपने का ।
समाज सुधार आंदोलनों को
धर्म सुधार आंदोलन का नाम देने का
या
कौमियत को धर्म का नाम देने का
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क्या धर्म को विचार का नाम देना ही आंदोलन है
या फिर
अंग्रेजी दासता को श्रेष्ठता का नाम देना
या फिर सूफीवाद की आड़ में
भक्तिवाद को खोने का
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या फिर
इतिहास है अतीत के पन्नों पर
खुद की इबारत जबरदस्ती लिखने का
या
शक्तिशाली के वर्चस्व को स्थापित करने का
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कहते है भारत सदियों से एक है
तो फिर जाति-धर्म के नाम पर
रोटी सेंकना कौन-सा इतिहास है?
क्या देश की सांस्कृतिक पहचान नष्ट करना
इतिहास है?
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यदि यह इतिहास है ?
तो जरूरत है इसे जानने-समझने की
इतिहास है तटस्थता का नाम
तो फिर यह एकरूपता क्यूँ
क्या इतिहास दूसरों के रंगों में रंगने का नाम है
या दूसरों की सत्ता स्थापित करने का ।
©डॉ. साकेत सहाय
17 मार्च, 2023
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