मेरी कविता-पेड़


 #चिपको_आंदोलन की ५०वीं वर्षगाँठ 

विकास के नाम पर हज़ारों पेड़ की बलि, #जोशीमठ धँसान पर उपजे विचार 


पेड़


नीम

बरगद

और

पीपल

के 


पूरी

सभ्यताओं को 

पनपते

बनते

और समृद्ध 

होते 

देखते हैं। 


बनाते भी हैं

चमकाते भी हैं

इन्हीं 

सभ्यताओं से 

हरी-भरी संस्कृतियाँ 

निर्मित होती है


जहाँ 

सैंधव

मौर्य

गुप्त


अशोक

चंद्रगुप्त

चोल

चालुक्य

हर्ष

शेरशाह

अकबर

पनपे

और शासक

बने। 


माता सीता

को शरण

अशोक 

को 

शांति

बुद्ध 

को ज्ञान

और 

दुनिया को

कल्याण का संदेश


पर 

यही पेड़ जब कटकर गिरते हैं 

तो पूरी सभ्यताएँ मृत

और संस्कृतियाँ 

नंगी नज़र आती हैं।

सब कुछ देकर

भी 

निस्तेज, निःसहाय। 

~

©️डा. साकेत सहाय

    २७ मार्च, २०२३

#कविता  #पेड़

#साकेत_विचार

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