नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

जय हिंद! 





सच में इतिहास जनता लिखती है न कि इतिहासकार। नेताजी का भारत की जनता में स्वीकृति और स्मरण इसका स्पष्ट उदाहरण हैं । नेताजी भारत के जीवंत यौद्धा है। भले ही षडयंत्रकारी परिस्थितियों में उनका अवसान करार दिया गया, पर उनकी पूरी जीवनी त्याग, बलिदान, बुद्धिमता और शौर्य से भरपूर रहा। उनके लिए 'देश पहले' सर्वोच्च प्राथमिकता में सदैव शामिल रहा। उनके लिए पद, पैसा, रसूख से पहले देश रहा; पर देश उनके साथ पर्याप्त न्याय करने में असफल रहा।  गुलामी के प्रतीक जॉर्ज पंचम की मूर्ति के स्थान पर इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगाने के निर्णय हेतु सरकार का अभिनन्दन! 

यूं तो भारत 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश पराधीनता से आजाद हुआ लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर, 1943 को ही भारत को आजाद घोषित किया था। उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी को अस्वीकार करते हुए भारत में वैकल्पिक सरकार बनाई । नेताजी ने 1943 में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार स्थापित की थी। नेताजी आजाद हिंद फौज के प्रमुख थे और उन्होंने अंडमान-निकोबार द्वीप में भारत का झंडा लहराया था। भले ही नेताजी निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री रहे ।  

उनकी बनाई आजाद भारत की सरकार को 11 देशों ने मान्यता भी दे दी थी। उन्होंने रिजर्व बैंक की तरह आजाद हिन्द बैंक का भी गठन कर उसकी करेंसी भी चलाई थीं । अंडमान के रॉस आईलैंड में उन्होंने तिरंगा झंडा फहराकर स्वाधीन भारत की घोषणा की। इसलिए रॉस आईलैंड का नया नामकरण भी उन्हीं के नाम पर किया गया था। 

“नेताजी” सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, सन 1897 ई. में उड़ीसा के कटक में हुआ था। वे 6 बहनों और 8 भाइयों के परिवार में नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे। सुभाष बाबू का हृदय बचपन से ही भारतीयों के साथ अंग्रेज़ों द्वारा हो रहे अत्याचार को देखकर व्यथित रहता थाl उन्होंने इस भेदभावपूर्ण व्यवहार को देखकर एक बार अपने भाई से पूछा- “दादा कक्षा में आगे की सीटों पर हमें क्यों बैठने नहीं दिया जाता है?” नेताजी हमेशा जो भी कहा करते थे, पूरे आत्मविश्वास से कहते थे। स्कूल में अंग्रेज़ अध्यापक भी सुभाष के अंक देखकर हैरान रह जाते थे, उनकी मेधाविता  सभी को चकित करती थी।  एक बार जब बाल सुभाष को कक्षा में सबसे अधिक अंक लाने पर भी छात्रवृत्ति अंग्रेज़ बालक को दी गई, तो उन्होंने अपमानित महसूस किया और उन्होंने उस मिशनरी स्कूल को ही त्याग दिया।  उसी समय अरविंद घोष ने बोस बाबू से कहा- “हम में से प्रत्येक भारतीय को डायनेमो बनना चाहिए, जिससे कि हममें से यदि एक भी खड़ा हो जाए तो हमारे आस-पास हज़ारों व्यक्ति प्रकाशवान हो जाएँ।” उस दिन से अरविन्द जी के शब्द बोस बाबू के मस्तिष्क में सदैव गूंजा करते थे l उनके प्रेरणादायी शब्दों का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा और भारत माता को स्वतंत्र करवाना ही उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य बन गया l 

कोहिमा, नागालैंड के आक्रमण की विफलता पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारत माता को ग़ुलामी की हथकड़ी पहने हुए देखते थे l वे देश भक्ति की भावना से प्रेरित होकर अंग्रेज़ी शिक्षा को निषेधात्मक शिक्षा मानते थे। किन्तु बोस जी को उनके पिता ने समझाया- हम भारतीय अंग्रेज़ों से जब तक प्रशासनिक पद नहीं छीनेंगे, तब तक देश का भला कैसे होगा।

अपने पिता से प्रेरणा लेकर नेताजी ने इंग्लैंड में जाकर आई. सी. एस. की परीक्षा उत्तीर्ण की। वे प्रतियोगिता में सिर्फ उत्तीर्ण ही नहीं हुए बल्कि चतुर्थ स्थान पर भी रहे। नेता जी एक बहुत मेधावी व प्रतिभावान छात्र थे। वे चाहते तो उच्च अधिकारी के पद पर सुशोभित हो सकते थे। परन्तु उनकी देश भक्ति की भावना ने उन्हें कुछ अलग करने के लिए हमेशा प्रेरित किया। बोस जी ने नौकरी से त्याग पत्र दे दिया और सारा देश हैरान रह गया l उन्हें अनेक प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा समझाते हुए कहा गया- तुम जानते भी हो कि तुम लाखों भारतीयों के सरताज़ होगे हज़ारों देशवासी तुम्हें नमन करेंगे? तब सुभाष चंद्र बोस ने कहा था – “मैं लोगों पर नहीं उनके दिलों पर राज्य करना चाहता हूँ। उनका हृदय सम्राट बनना चाहता हूँ।”  भारत की सामाजिक दशा पर उनके समकालीन विचार आज भी बड़े मूल्यवान है, उनका मानना था “हमारी सामाजिक स्थिति बदतर है, जाति-पाँति तो है ही, ग़रीब और अमीर की खाई भी समाज को बाँटे हुए है। निरक्षरता देश के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है। इसके लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है।”

देश प्रेम और पराक्रम से सुभाष चंद्र बोस समय के साथ भारतीयता की पहचान बनते जा रहे थे।  युवा पीढ़ी उनसे बहुत प्रभावित थीं। आज भी युवा उनसे सर्वाधिक प्रेरणा लेती हैं।  उनका नारा 'जय हिंद' आज भी सर्व भारतीय समाज की पहचान के रूप में स्थापित है।  उन्होंने कहा था कि- “स्वतंत्रता बलिदान चाहती है। आपने आज़ादी के लिए बहुत त्याग किया है, किन्तु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है। आज़ादी को आज अपने शीश फूल चढ़ा देने वाले पागल पुजारियों की आवश्यकता है। ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है, जो अपना सिर काट कर स्वाधीनता देवी को भेट चढ़ा सकें। “तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा”। इस वाक्य के जवाब में नौजवानों ने कहा- “हम अपना ख़ून देंगे।” उन्होंने आजाद हिंद फौज (आईएनए) को ‘दिल्ली चलो’ का नारा भी दिया था।

नेता जी के जीवन के अनेक पहलू सामाजिक जीवन में हमें एक नई ऊर्जा प्रदान करते हैं। वे एक सफल संगठनकर्ता भी थे। उनकी वक्तव्य शैली में जादू था और उन्होंने देश से बाहर रहकर ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ चलाया। नेता जी मतभेद होने के बावज़ूद भी अपने साथियो का मान सम्मान रखते थे।

उन्होंने 21 अक्टूबर, 1943 को आजाद हिन्द अर्थात स्वतंत्र भारत की एक सरकार का भी गठन किया था। जिसे विश्व के 7 देशों ने मान्यता भी प्रदान की थी। वह सात देश थे-जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, इटली, मानसूकू और आयरलैंड। इस सरकार के पास अपना बैंक, डाक टिकट और झंडा भी था। हमारा तिरंगा जो तब से लेकर अब तक लगातार शान से लहरा रहा है। इस सरकार ने आपने नागरिकों के मध्य आपसी अभिवादन के समय ‘जय हिंद’ कहने का निर्णय भी लिया था।

सुभाष बोस स्वदेश प्रेम, दृढ़ता, त्याग, आत्मबल की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं । नेताजी भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रबल समर्थक रहे। उन्होंने अपना नारा भी जय हिंद के रूप में अपनाया। आजाद हिंद फौज के सेनानियों को वे हिंदी में संबोधित करते थे। देश के इस महान सेनानी की जन्म जयंती 'पराक्रम दिवस' पर शत शत नमन! 

ईश्वर इस पुण्यात्मा को भारत भूमि में बार-बार अवतरित करें । 

जय हिंद ! जय हिंदी !!

🙏 (डाॅ साकेत सहाय)

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