एक आम करदाता की पीड़ा ....
एक आम करदाता की पीड़ा ....
आज सोशल मीडिया पर एक अच्छा संदेश दिखा। इस पर मन में कुछ विचार आए। यह कि क्या कथित विश्व गुरु का सपना दिखाने वाले, सभी को छ: छजार रूपए देने का सपना दिखाने वाले, बिजली-पानी निःशुल्क, लैपटॉप और तीर्थयात्रियों को निःशुल्क तीर्थाटन का सपना दिखाने वाले नेताओं के लिए यह संदेश ध्यान देने योग्य नहीं हैं । क्या लालच से,आरक्षण से नैतिक बल से किसी समृद्ध राष्ट्र का निर्माण हो सकता हैं? जो देश कभी अपने समृद्ध संस्कार और संस्कृति के लिए जाना जाता था, वहां का चुनावी तंत्र किस प्रकार की भावी व्यवस्था के निर्माण की नींव रख रहा है? सब कुछ नैतिकता विहीन। लोभ-लालच पर आधारित ।
संदेश देखें (आवश्यक संंशोधन के साथ)
तुम हमें वोट दो
हम तुम्हें-
... लैपटॉप देंगे ..
... स्कूटी देंगे ..
... बिजली देंगे ..
... कर्जा डकार जाना, हम माफ कर देंगे
... ये देंगे .. वो देंगे ..
ये क्या खुल्लम- खुल्ला रिश्वत नहीं ?
इस देश में क्या कोई तंत्र भी है ? सरकार, न्यायपालिका को इस पर रोकथाम के लिए विशेष रूप से चुनाव आयोग को तुरंत सुनवाई करनी चाहिए। इस संबंध में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए जाने बेहद जरूरी हैं । क्या यह एक प्रकार से मतदान के अधिकार को खरीदने को षड्यंत्र नहीं है? किसी के मत को पाने के लिए इस प्रकार का प्रलोभन बेहद अनैतिक है।
वैसे भी सरकारी खजाने का पैसा जनता की गाढ़ी कमाई से जुटाई जाती है। इसके उपयोग की सुरक्षित जिम्मेदारी सरकार की सांविधानिक और नैतिक जवाबदेही होनी चाहिये। देशहित में इसे रोकना बेहद जरूरी भी है । अन्यथा मतदान की व्यवस्था एक प्रकार से मजाक बनकर रह जाएगी । जो लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध होगा ।
अनुरोध है करदाताओं का दोहन बंद किया जाए । कभी कर्जमाफी .. कभी स्कूटी .. कभी दहेज, फ्री की बिजली .. फ्री का घर .. दो रुपये किलो गेंहू .. तीन रुपये किलो चावल...चार - छह रुपये किलो दाल .. अब और करदाताओं का कितना दोहन करेंगे आप ?
क्या इसे वोट खरीदना नहीं माना जाए? यह तो एक प्रकार से घूस देना ही है, गरीबी के नाम पर फ्री पैसे बांटना कौन-से स्वालंबन का मार्ग प्रशस्त करेगा? होना तो यह चाहिये कि हमारे आयकर से सर्वजन हिताय कार्य हों,देश के विकास का काम हों, पर .....
यह भी सत्य है कि इस प्रकार के लोक-लुभावन उपायों से गरीबी भी बहुधा आकर्षित करेगी। सरकार का उद्देश्य तो यह होना चाहिए कि रोजगार सृजन की अनूकूल परिस्थिति के निर्माण में वह सहयोग करें। नैतिकता का तकाजा यहीं है कि चुनाव आयोग तुरंत इस पर कार्रवाई करें।
चुनाव आयोग एवं सर्वोच्च न्यायालय से यह भी निवेदन हैं कर्मशील देश के निवासियों को तुरंत कानून बनाकर कुछ भी फ्री देने पर रोक लगाई जाए ताकि देश की जनता मुफ्तखोर न बनें ।
क्या यह जरूरी नहीं है कि करदाताओं का पैसा (tax payers) उसकी सहमति से ही खर्च हो। फ्री में कुछ भी न बांटे जाए।
🙏 जय हिंद 🙏🇮🇳
#साकेत_विचार
Comments