राही मासूम रज़ा और हिंदी

 राही मासूम रज़ा और हिंदी 



यह सुखद संयोग है कि हिंदी  के महान कवि,संवाद लेखक, उपन्यासकार एवं महाकाव्य ‘महाभारत’ पर आधारित ऐतिहासिक टेलीविजन धारावाहिक ‘महाभारत’ की पटकथा लिखकर अपनी लेखनी को अमर करने वाले डॉ. राही मासूम रजा के जन्मदिन से हिंदी माह की शुरूआत हो रही है।  हम सभी ने जगजीत सिंह की आवाज में अमर गीत ‘हम तो है परदेश में, देश में निकला होगा चांद‘ को जरूर सुना होगा।इस मधुर गीत को कलमबद्ध करने वाले डॉ.राही मासूम रजा जी ही थे।   इस प्रसिद्ध गीत का भाव बोध हमारी मिट्टी, भाषा, संस्कृति से प्रेम पर आधारित है।  हम सभी अपनी मिट्टी, भाषा, संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़े हुए है। बिना इसके मानव का अस्तित्व नहीं है।  हिंदी केवल एक भाषा-मात्र नहीं है वरन् यह सभी भारतीय भाषाओं, बोलियों का क्रियोलाइजेशन है।  इससे सभी भारतीय प्रेम करते है।  यह राजनीति, संस्कृति, समाज,लोक की भाषा है।इसीलिए यह लोकभाषा, संस्कृति की भाषा, संपर्क की भाषा, राष्ट्रभाषा से होते हुए राजभाषा के पद पर आसीन हुई और अब संचार की भाषा से तकनीक की भाषा के रूप में परिवर्तित होकर विश्व भाषा के रूप में उपस्थित है। आज विश्व धरातल पर हिंदी भारतीयता की पहचान बन चुकी है। क्योंकि हम भारतीयों की पहचान विश्व धरातल पर हिंदू, हिंदी एवं इंसानियत से होती है।  वास्तव में हिंदी आमजन की भाषा है और लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती देने के लिए यह आवश्यक है कि हम सभी जन से जुडे ।  तंत्र  की सफलता तभी है जब आम जन की राह आसान हो।  योजनाओं की सफलता तभी है जब आम आदमी से जुड़ी हो। राही मासूम रज़ा ने जमीन से जुडकर लेखन किया ।  जमीन से जुड़ने के लिए हिंदी और देशी भाषाएं आवश्यक हैं । 


आइए इसी भाव बोध को समर्थन को देते हुए हिंदी को एक नया आयाम दें।      


राही मासूम रज़ा के कृतित्व को शत-शत नमन!

सादर, 


डॉ साकेत सहाय


#साकेत_विचार


Comments

SHANTI SWAROOP said…
भारत माता के माथे की बिन्दी
राष्ट्रभाषा कब बनेगी ये हिन्दी

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