हिंदी के साथ देश की पहली सरकार का दोयम व्यवहार

स्वतंत्रता  प्राप्ति के बाद अधिकांश सरकारों ने 'अंग्रेजी बसाओ' की नीति के नाम पर भाषाई क्षेत्रवाद का ही पोषण किया। आजादी के बाद की प्रथम सरकार ने माहौल के विपरीत हिंदी के साथ सबसे अधिक धोखा किया। जनता मूढ़मति के रूप में इस भाषाई राजनीति का शिकार होकर न अपनी भाषा की


रही, न अंग्रेजी की और न अपनी संस्कृति और परंपरा की।  सबसे विमुख । हम अंग्रेजी के तो कभी हो भी नहीं सकते। क्योंकि जब आँख यानी मातृभाषा को ही चश्मा मानेंगे और चश्मा यानी विदेशी भाषा को आँख मानेंगे तो क्या होगा?  अब भी वक्त है संभल जाए।  



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