चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव में काव्य संध्या और विशिष्ट अतिथि
चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव में काव्य संध्या और विशिष्ट अतिथि
चन्द्रगुप्त साहित्य महोत्सव, पटना में रचनाधर्मिता का हुआ सम्मान । इस अवसर पर आयोजन समिति ने मुझे विशिष्ट अतिथि के रूप में जुड़ने का अवसर दिया।इस हेतु आयोजन समिति का आभार।
उत्कृष्ट आयोजन एवं मुझे जोड़ने के लिए के लिए अग्रज प्रो. अरुण कुमार भगत जी, Arun Kumar Bhagat अनुज DrGaurav Ranjan का आभार।
कवियों के मंच पर विशिष्ट अतिथि के रूप में जुड़ना मेरे लिए अलग सा अनुभव था। इस मंच से प्रख्यात सामाजिक उद्दमी व पूर्व राज्यसभा सांसद श्री आर. के. सिन्हा, डॉ. साकेत सहाय ( मुख्य प्रबंधक राजभाषा ), प्रख्यात कवि गजेन्द्र सोलंकी, शंभू शिखर, रुचि चतुर्वेदी एवं आराधना प्रसाद के हाथों नई पौध का सम्मानित होना गौरवपूर्ण क्षण था। आराधना प्रसाद जी की उत्कृष्ट काव्य रचनाएँ मन को छू गयी। सधी हुई भाषा, काव्य संस्कार से पूर्ण रचना पाठ के लिए आपका आभार। ख्याति प्राप्त कवि भाई गौरव सोलंकी जी ने उत्कृष्ट मंच संचालन के साथ भाषा और राष्ट्र प्रेम को समर्पित अपनी रचनाओं से अलग ही समाँ बांधा।
प्रस्तुत है मेरे उद्बोधन का अंश जो कवियों के मंच पर पूरा पढ़ न सका। परंतु आज के मंचीय कवियों को इस उद्बोधन को समझने की ज़रूरत है। साहित्य को बाज़ार से अलग देखने की आवश्यकता है। अन्यथा😔
कला, संस्कृति और साहित्य को समर्पित चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव में उपस्थित गुणीजन आज की सांस्कृतिक संध्या के काव्य आस्वादन सत्र में आप सभी को साकेत सहाय का सादर प्रणाम!
अभिव्यक्ति एवं कला का बेहद सशक्त माध्यम है कविता। हमारे देश में ऋषि-मुनियों ने काव्य व छंदों के माध्यम से कितनी ही गूढ़ बातें कहीं हैं, साथ ही चौपाई एवं दोहे में भी समृद्ध साहित्य संजोया गया है। आज के आयोजन के गणमान्य कवि श्री गजेन्द्र सोलंकी जी, श्री शंभू शिखर जी, श्रीमती रुचि चतुर्वेदी जी, श्रीमती पूनम वर्मा जी, श्रीमती आराधना प्रसाद जी।
आज के आयोजन की अध्यक्षता कर रहे परम आदरणीय श्री आर के सिन्हा, पूर्व सांसद एवं निदेशक, एसआईएस आप सभी को मेरा सादर प्रणाम, वंदन, अभिनंदन!
गुणीजनों साहित्य जीवन है, उत्साह है, रंग है, उमंग है। मानव को मानव बनाने में साहित्य सबसे बड़ा पक्ष है। हम सभी को जिंदगी रोज ही नए रंग देती है। यह रंग हमें जीवन के विविध यात्राओं के माध्यम से जीवन यात्रा को देखने, महसूस करने का अवसर देती है। वास्तव में हम सभी एक यात्री के रूप में इस सफर को महसूस करते है और साहित्य इस यात्रा को जीवंत बनाता है।
औपनिवेशिक प्रभाव से ग्रसित होकर अक्सर हम लोग भाषा एवं साहित्य के अर्थ, इसकी उपयोगिता एवं सम्बन्धों को सीमित कर बैठते हैं। जबकि साहित्य वही सफल होता है जो समाज को प्रतिबिंबित करता हैं । कहा भी गया है जिस प्रकार जड़ के बिना पौधा सूख जाता है, उसी प्रकार मूल के अभाव में लिखा हुआ साहित्य भी निरर्थक होता है। दुर्भाग्यवश, अब लोग बिना मूल को जाने ही केवल अपनी उद्भभावना को ही सर्वांग सत्य मानने लगे है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि भारत के आधुनिक साहित्यकार, लेखक, पत्रकार, वैज्ञानिक ज्ञान एवं सार्थक समझ के साथ अपनी मूल परंपरा, विरासत को जाने-समझे। जिस प्रकार जड़ का अस्तित्व पौधे से पहले होता है उसी प्रकार साहित्य का स्थायित्व भी उसके मूल पर टिका हुआ है। तभी वह भावी पीढ़ी को मार्गदर्शित करने में सक्षम हो सकेगा। नकारात्मकता राष्ट्र, समाज की गति को बाधित करती है। आइए साहित्य की सशक्त भूमिका को समझे। यह आयोजन साहित्य एवं भाषा का महत्व, इसकी व्यापकता को समझने का अवसर देता है । कामना है यह आयोजन ‘भारतीय दृष्टि, सम्यक सृष्टि’ के भाव बोध को सशक्तता प्रदान करने में सफल हो। यही इस आयोजन का उद्देश्य भी है और संकल्प भी।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी अपने निबंध ‘साहित्य की महत्ता’ में कहते है –‘ज्ञान-राशि के संचित कोष का ही नाम साहित्य है। ‘ इन्हीं गुण-तत्त्वों के कारण भारतीय परंपरा एवं इतिहास में साहित्य को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। हमारा इतिहास, ज्ञान-विज्ञान, कला, तर्क आदि सभी कुछ साहित्य का ही नाम है।
साहित्य वहीं सफल होता है जिसकी पृष्ठभूमि में मनुष्यता है, संवेदना है, सच्चाई है। एक साहित्यकार कालजयी होता है। तुलसीदास जी ने मर्यादा और कर्तव्य बोध को सबसे ऊपर रखा। यहीं तुलसीदासजी के साहित्य के स्थायी अमरता का तत्त्व बोध है। साहित्य हमें व्यापक दृष्टि देता हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि हम ऐसे साहित्य का सृजन करें जो सार्वकालिक हो, समदृष्टि रखें। हमारी संस्कृति को व्यापक दृष्टि प्रदान करता हो। भावी पीढ़ी को दिशा देने हेतु इस साहित्य का अनुसरण किया जाना बेहद जरूरी है।
इस मंच से यह कहना जरूरी है कि आज साहित्यकारों, इतिहासकारों को यह जानने-समझने की आवश्यकता है कि साहित्य देश एवं संस्कृति को जानने-समझने का सशक्त माध्यम है। जिसमें संतुलन हो, समग्रता हो, सशक्तता हो, भावी पीढी के जानने-समझने की सोच हो। भारत अपनी समृद्ध परंपरा, संस्कृति के बल पर ही सदियों से दुनिया को राह दिखाता रहा है अब इसे मजबूत रखने की ज़िम्मेदारी हम सभी की है।
मैं, आयोजकों के प्रति आभार प्रकट करता हूँ कि आपने इस आयोजन से मुझे जोड़ा। मैं कोई कवि नहीं हूँ और फिर भी आप सभी प्रतिष्ठित कवियों के समक्ष मैं अपनी कविता पढ़ने के लोभ से अपने को रोक नहीं पा रहा हूँ जिसे मैंने विश्व कविता दिवस के अवसर पर लिखा था।
मेरी कविता जिसका शीर्षक है -“साहित्य की आत्मा है कविता”
(मेरी यह कविता जीवन के रंगमंच पर समर्पित सभी कवियों को समर्पित है।
साहित्य की आत्मा है कविता
साहित्य की आत्मा है कविता
मन और आत्मा का मिलन है कविता
जीवन का भाव-बोध है कविता
कविता चेतना है
कविता जीवन है
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कविता पशुता में मानवता का रंग है
समाज की संवेदना है कविता
दिलों की अरमान है कविता
जीवन के पंख की उड़ान है कविता
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रिश्तों की उड़ान है कविता
माँ के लिए उसके बच्चों की उड़ान का नाम है कविता
देश के लिए उसके निवासियों की पहचान है कविता
पिता के लिए अपने परिवार की समृद्धि का नाम है कविता
भाई के लिए बहन की खुशी का नाम है कविता
बहन के लिए भाई की समृद्धि का नाम है कविता
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पति के लिए पत्नी का प्यार
पत्नी के लिए पति की खुशी
कविता जीवन है
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पत्थर से पत्थर रगड़ कर हुई आग
के आविष्कार का नाम है कविता
कृषक के पसीने से
सिंचित फसल का नाम है कविता
चिकित्सक के शोध का
भाव बोध है कविता
……………
प्रभु द्वारा शबरी के जूठे बेर का
प्रेम बोध है कविता
श्रीकृष्ण और सुदामा की
मित्रता का नाम है कविता
विक्रम और वैताल के
धैर्य और चातुर्य का मेल है कविता
अकबर के प्रश्न
बीरबल के समाधान का नाम
है कविता
……………
कविता रंग है
कविता भाव है
कविता जीवन बोध है।
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©डॉ साकेत सहाय
धन्यवाद, प्रणाम , नमस्कार ।
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