
हिंदी विश्व में भारतीय अस्मिता की पहचान है। हिंदी भारत की राजभाषा,राष्ट्रभाषा से आगे विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है।
Friday, August 23, 2024
भारतीय अंतरिक्ष दिवस और चंद्रयान-३

Thursday, August 22, 2024
गिनती भारत की देन
यह भी भ्रांति है कि गिनती अंग्रेज़ी की है, अंग्रेज़ी की गिनती तो रोमन है। कितनी बड़ी मूढ़ता है आप अपनी गिनती जिसे संविधान में भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप (1,2,3….) कहा गया है उसे अंग्रेजियत या अज्ञानतावश पता नहीं अंग्रेज़ी का गिनती कहते है इस भूल को परिमार्जित करने की आवश्यकता है। इससे बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति और क्या होगी। मैं प्रत्येक मंच से यह बात कहता हूँ कि यह भारतीय गिनती है, पूरी दुनिया को गिनती हमने सिखाई। ‘उपकार’ फ़िल्म का गीत आप सब याद करें ‘ जब जीरो मेरे भारत ने दुनिया को तब गिनती आई।’
यह तो वही बात हुई पिता ने ऋण लेकर घर बनाया और बेटा बोले ससुराल वालों ने बनाया। हिन्दी भाषा का प्रश्न केवल भावनाओं का नहीं राष्ट्रीय संस्कार और संस्कृति का है। हम सब सत्य का अन्वेषण करें, अपनी भाषा और ज्ञान पर गर्व करें, सीखें हर किसी से पर स्वयं को गिराकर नहीं, भारतीय भाषाएँ सहोदरा हैं। सब मिलकर रहें। कबिगुरु ने कहा था, ‘हिंदी भारत की महानदी है।’ हमारा उपक्रम सबको साथ लेकर चलना है न कि अंग्रेज़ी को बढ़ाने की आड़ में हिंदी और उसकी लिपि देवनागरी को कमजोर करना।
सादर,
डा. साकेत सहाय
Wednesday, August 21, 2024
भाषा और विकृत राजनीति
भाषा और विकृत राजनीति।
पहले उर्दू को हिन्दी से अलग कर दिया। यह कौन-सी नीति है जो तमिलनाडु, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, बंगाल और बिहार के मुसलमान भी उर्दू को अपनी मातृभाषा बता रहे है। अब आंध्र प्रदेश का स्थानीय जो भले धर्मांतरित हो या मूल परंतु उसकी मातृभाषा उर्दू कैसे होगी ? संस्कृत को भी पंडितों से जोड़ दिया गया। भाषा को पंथ से जोड़ने का कुचक्र । पंडित और ब्राह्मण जैसे शब्दों के अर्थ सीमित कर दिये गए और केवल जाति से जोड़ दिया। राजनीतिक और कथित अकादमिक विद्वानों ने तो जाति के अर्थ को ही विकृत कर दिया। याद रखिये भाषा और पंथ की सत्तानीति देश, समाज का कभी भला नहीं करती बल्कि देश का बेड़ा गर्क करती है। पाकिस्तान का उदाहरण सामने है पहले पंथ के नाम बाँटा, ज़हर बोया और शैतानी ताक़तों ने देश को बाँट दिया। भाषा के ज़हर ने राज्यवार विभाजन तय किए। पाकिस्तान में जबरदस्ती उर्दू थोप दी गई। नतीजा सामने है।
आज राष्ट्रीय एकता और संपर्क की भाषा हिंदी की अकादमिक स्थिति को हिन्दीतर के विमर्श ने काफ़ी नुक़सान पहुँचाया है। जिन राज्यों में राजभाषा, राष्ट्रभाषा, संपर्क भाषा चाहे जो भी नाम लें हिन्दी दूसरी या तीसरी भाषा के रूप में स्वीकार्य थीं वहाँ भी राजभाषा हिन्दी की स्थिति कमज़ोर हो रही है, अंग्रेज़ी आतंकवाद और राजनीतिक प्रांतीय क्षेत्रवाद ने दक्षिण के राज्यों के साथ ही पंजाब में भी ऐसी स्थिति उत्पन्न की गयी है। पंजाब सरकार द्वारा राष्ट्रीय चैनलों पर चल रहे विज्ञापनों को ही देख लीजिये। ये अपना ढोल तो हिन्दी में पिटवाती हैं पर राज्य के विद्यालयों में ग़ुलामों की भाषा अंग्रेज़ी को आगे बढ़ाती हैं और स्वाधीनता आंदोलन की भाषा हिन्दी को पीछे करती है। जबकि संविधानिक धाराओं के तहत संघीय व्यवस्था में शामिल इस देश की हर सरकार का यह दायित्व है कि वह राजभाषा हिन्दी को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी लें।
यह हर सरकार का कर्त्तव्य है । हिंदी ने देश के हर नागरिक का संपर्क भाषा के रूप में कल्याण ही किया है। यह कर्त्तव्य केवल राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश का ही नहीं है । हम सभी को अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर या बिहार से सीखना चाहिये जिसने राष्ट्रहित में हिंदी को अपनाया है। पर अब पंजाब या अन्य राज्यों को क्यों दिक़्क़त है? इस पर हिंदी प्रेमी जन विचार करें। अन्यथा हिंदी का पाखण्ड वाम, कांग्रेस और दक्षिण के बीच झूलता रहेगा, क्योंकि हिन्दी प्रेमी ही पद, पैसा और भ्रमण के व्यामोह में उलझे पड़ें है और जो जागा हुआ है उसे ये लोग बियाबान में खदेड़ना चाहते हैं।
भारत में हिन्दी हज़ारों सालों से इस देश की संपर्क भाषा, राजभाषा, जोड़ और जुड़ाव की भाषा है। पर सबसे ज्यादा हिंदी के नाम पर विषवमन किया जाता है। कृपया नोट करें राष्ट्रीय एकता में हिंदी सबसे बड़ी शक्ति है। आइए संकल्प लें जब देश आगामी 14 सितंबर, 2024 को संविधान सभा द्वारा हिंदी को संघ की राजभाषा स्वीकार करने के 75 वर्ष पूर्ण करने जा रहा है तो हम सब राष्ट्रहित में हिंदी की संवैधानिक स्वीकृति को व्यवहारिक मुक़ाम देने में यथेष्ट योगदान देंगे।
धन्यवाद!
-डॉ साकेत सहाय
भाषा-संचार विशेषज्ञ
Sunday, August 18, 2024
सत्य का साथ
बंगाल या देश के अन्य प्रदेशों में महिलाओं व अन्य निरीह के साथ घटित जघन्य एवं नृशंस हत्याकांड के बाद हमारे धर्मग्रंथों में विद्यमान इस कथा से सीख लेने की आवश्यकता है। सत्य का साथ देना ही मूल धर्म है। अनैतिकता और अधर्म का नाश होगा ही।
कथा-
रावण के प्रहार से अपनी अंतिम सांसें गिन रहे गिद्धराज जटायु ने कहा- मुझे पता था कि मैं दशानन से नहीं जीत सकता पर तब भी मैं लड़ा, यदि मैं नही लड़ता तो आने वाली पीढियां मुझे कायर कहती।
जब राक्षसराज रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले, तो काल देवता यमराज आये। गिद्धराज जटायु ने मौत को ललकारते कहा -
'खबरदार ! ऐ मृत्यु !! आगे बढ़ने की कोशिश मत कर! मैं मृत्यु को स्वीकार तो करूँगा, लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकता जब तक कि इस आपदा की सुधि मैं अपने प्रभु श्रीराम को नहीं दे देता'।
मौत गिद्धराज जटायु को छू भी नहीं पा रही है। वह तब तक प्रतीक्षा करती रहीं, जब तक जटायु महाराज अपने कर्तव्य पालन से बंधे थे। काल देवता भी इस कर्तव्यपराणता के समक्ष नतमस्तक थे, जटायु राज को इच्छा मृत्यु का वरदान जो मिला था।
स्मरण रहें भीष्म पितामह को भी इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। पर छह महीने तक वे बाणों की शय्या पर लेटे हुए मृत्यु की प्रतीक्षा करते रहे। उनकी आँखों में आँसू हैं, पश्चाताप के आंसू हैं। पर ईश्वर तो सब जानते है।
विचित्र दृश्य । एक तरफ रामायण में जटायु भगवान की गोद रूपी शय्या में लेटे हुए हैं। प्रभु "श्रीराम" विलाप कर रहे हैं और भक्त जटायु मुदित हैं। वहीं महाभारत में भीष्म पितामह विलाप कर रहे हैं और प्रभु "श्रीकृष्ण" मुदित हैं।
दोनों में कितनी भिन्नता?
अंत समय में जटायु को प्रभु "श्रीराम" की गोद की शय्या मिली.. लेकिन भीष्म पितामह को मरते समय बाणों की शय्या मिली।
जटायु अपने कर्मों के बल पर अंतिम समय में भगवान की गोद रूपी शय्या में प्राण त्याग रहे है,
प्रभु "श्रीराम" की शरण में।
वहीं भीष्म पितामह अंतिम समय में बाणों पर लेटे रो रहे हैं। यह अंतर क्यों?
अंतर इसलिए कि कौरव दरबार में भीष्म पितामह द्रौपदी के चीरहरण का विरोध नहीं कर पाये थे,
द्रौपदी चींखती रही, चिल्लाती रही। लेकिन भीष्म पितामह ने कोई प्रतिवाद नहीं किया। वे एक नारी की रक्षा तक नहीं कर पाये।
परिणाम यह निकला कि इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त होने पर भी उन्हें बाणों की शय्या मिली।
पर
जटायु ने नारी का सम्मान किया। नारी रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति दी। तो मरते समय भगवान "श्रीराम" की गोद मे शरण मिली।
जो दूसरों के साथ गलत होते देखकर भी आंखें मूंद लेते हैं ... उनकी गति भीष्म जैसी होती है...
जो अपना परिणाम जानते हुए भी.. औरों के लिए संघर्ष करते है, उसका माहात्म्य जटायु जैसा कीर्तिवान होता है।
अतः असत्य का साथ कभी न दें ।
#साकेत_विचार
डा. साकेत सहाय
भाषा-संचार विशेषज्ञ
#बंगाल
Thursday, August 15, 2024
७८वां स्वाधीनता दिवस
शहीदों के बलिदान, त्याग, समर्पण व प्रतिबद्धता को समर्पित भारत के ७८ वें स्वाधीनता दिवस की आपको सपरिवार बहुत बहुत बधाई!
भारत के लिए स्वतंत्रता नाम है
एक राष्ट्र भाव का
राष्ट्र राग का
राष्ट्र भाषा का
एक राष्ट्र अनुराग का
एक भावना का
एक विचार का
राष्ट्र धर्म का
राष्ट्रीय कर्तव्यों के पोषण का
अपनी संस्कृति पर अभिमान का
राष्ट्रीय संस्कार का
भारतीय सभ्यता के जागरण का
अपनी सशक्त परंपराओं पर अभिमान का
अपनी गौरवमयी पहचान का
अपनी उर्वरा माटी का
माटी के लिए
सर्वस्व न्योछावर!
जय हिंद ! जय भारत !!
जय हिंदी!!
जुग-जुग जिए भारत और भारतीयता!
भारत भाव बना रहें
हम सब के भीतर!
✍©डॉ. साकेत सहाय
#साकेत_विचार
Wednesday, August 14, 2024
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस
#विभाजन_विभीषिका_स्मृति_दिवस
आज ही के दिन भारत के दो टुकड़े कर दिए गए । इस काले दिवस को हमें इस बात हेतु भी याद करना चाहिए कि हमारी अंग्रेजों के प्रति अंधभक्ति और सत्ता का लालच किस प्रकार से एक देश के सपनों को विभाजित कर सकती हैं । क्या शहीदों ने इसी विभाजन के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया था? स्वतंत्रता के बाद इस देश को विभाजन की विभीषिका पर गहराई से मंथन करना जरूरी था। स्वाधीनता प्राप्ति के पूर्व यह दिवस आधी खुशी के साथ देशवासियों को जीवन भर का टीस दे गया । जब एक ही माटी की साझी परंपरा और विरासत को किसी और एजेण्डे के तहत बांट दिए गए । इसका दोहराव न हो इस हेतु हम सभी को सचेत रहना होगा, क्योंकि पाकिस्तान एक दिन में नहीं बना था । सदियों से साथ रहे लोगों को नियोजित विषवमन के साथ बांटने का दुष्परिणाम अविभाजित भारत अपने विभाजन के बाद से ही भुगत रहा है। ब्रिटिशों और यहाँ के गद्दारों ने मिलकर देश बांटा, जिसका खामियाजा किस हद तक यह देश, समाज भुगत रहा है, इसके तटस्थ मूल्यांकन की भी आवश्यकता है। पाकिस्तान धर्म से अधिक अंधी पहचान, सत्ता की भूख का परिणाम था। इसी भूख का दुष्परिणाम है कि पाकिस्तान से भारतीय संस्कृति के सभी प्रतीकों को मिटा दिया गया । आज बांग्लादेश में जो हो रहा है यह भी विश्षवमन का ही कुफल है। भला यह कौन-सी सोच है जो अपने जन्म के समय से ही अपनी मूल संस्कृति और सभ्यता पर कुप्रहार कर रही है। आइए कुत्सित भावनाओं के जन्म को रोकें। हम सब मिलकर रहें और किसी और पाकिस्तान’ का जन्म न हों इसे युगों-युगों तक सुनिश्चित करें। इस दिवस पर पिछले वर्ष प्रतिष्ठित पत्रिका ‘युगवार्ता' के अगस्त, २३ अंक में प्रकाशित अपना आलेख ‘ विभाजन की विभीषिका’ आप सभी से साझा कर रहा हूँ। विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर उन लाखों लोगों को विनम्र श्रद्धांजलि, जिन्होंने इतिहास के सबसे क्रूर अध्याय के दौरान अमानवीय पीड़ाओं का सामना किया, अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, जीवन अपनी माटी से बेघर हो गए। हम सब अपने इतिहास को स्मृति में बसा कर, उससे सबक लेकर ही सशक्त भारत का निर्माण कर सकते है और इसे विश्व पटल पर एक मर्यादित एवं शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरने में अपना योगदान दे सकते हैं।
#भारत_विभाजन
#साकेत_विचार
©डाॅ. साकेत सहाय
जय हिंद! जय हिंदी!!
Tuesday, August 6, 2024
हिरोशिमा दिवस
आज हिरोशिमा दिवस है। आज से 79 वर्ष पहले इसी दिन अमरीका द्वारा जापान पर ‘लिटिल बॉय’ यूरेनियम निर्मित अणु बम गिराया गया था। इस अमेरिकी हत्याकांड से हिरोशिमा की 3.5 लाख की आबादी में से 1 लाख चालीस हजार जापानी लोग एक ही झटके में मारे गए थे। इसके बाद अनेक वर्षों तक अनगिनत लोग विकिरण के प्रभाव से मरते रहे। उस समय हिरोशिमा जापान का एक प्रमुख औद्योगिक नगर था । इस दिवस को हम सब इस तथ्य के साथ भी स्मरण कर सकते हैं कि वर्तमान विकृत दर्शन वामपंथ या पूंजीवाद दोनों ही विनाशकारी आधार पर खड़े हैं। दोनों ही मानव कल्याण व सुख का स्वप्न बेचते व दिखाते हैं लेकिन अंत में मिलता है नरसंहार व विनाश । आप वर्तमान में चल रहे इसरायल-फिलीस्तीन, ईरान एवं यूक्रेन के उदाहरणों से इसे बखूबी समझ सकते हैं।
#हिरोशिमा
#साकेत_विचार
Saturday, August 3, 2024
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त
Friday, August 2, 2024
सामाजिक निवेश-लघु विचार
अपनी निजी समस्याओं को सुलझाने के लिए सदैव करीबी मित्रों, परिजनों से ही सहायता लीजिए। आपसे नाराज़, परेशान हुए आपके भाई/मित्र/रिश्तेदार, पति-पत्नी सोशल मीडिया के तमाम मित्र/मित्राणी से अधिक विश्वासी हो सकते हैं। यह ज़रूरी है कि परस्पर सामाजिक रिश्तों को अवश्य निभाए। अंजान लोगों से इनबॉक्स में चैट करने से बचें। रिश्तों को बनाए रखने या मज़बूती के लिए एक-दूसरे से घर आया-जाया करें। परस्पर संबंधों को बनाए रखने के लिए हाल-चाल लेते रहा करिए और कभी-कभी तारीफ में कुछ लिखा भी कीजिये। यहीं सामाजिकता है। हमारे पुरखों ने इसे प्रेम, रिश्ता, नातेदारी का नाम दिया और हम पूँजीवादी युग में सामाजिक निवेश का नाम दे सकते हैं।
#साकेत_विचार
#सामाजिक_निवेश
सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस
आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है। आज 'भारतीय भाषा दिवस' भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...
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आज महान देशभक्त, भारतरत्न, भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की १२२ वीं जयंती है। भारत-पाक युद्ध में जय जवान! जय किसान! का उद्...
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प्रयागराज कुंभ हादसा-एक अनहोनी थी, जो घट गई। प्रयागराज में जो हुआ दुखद है, अत्यंत दुखद। प्रयागराज कुंभ में भगदड़ मचने की वजह से असमय ही कुछ...
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आज़ भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस), हैदराबाद में भाषा मंथन परिचर्चा के तहत विशिष्ट अतिथि के रूप में मुझे जाने का सुअवसर मिला। इस अवसर पर मैंने ...








