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Showing posts from August, 2024

भारतीय अंतरिक्ष दिवस और चंद्रयान-३

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आज ‘भारत अंतरिक्ष दिवस’ है।  आज ही के दिन 23 अगस्त, 23 देश ने अपना चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारा था; इस प्रकार भारत पहला राष्ट्र बना था।  चंद्रयान 3 का चंद्रमा की  सतह पर सफलतापूर्वक अवतरण से हम सभी भारतीय गौरवान्वित हुए थे।  देश की इस सफलता हेतु इसरो को पुन: बधाई! इस उपलक्ष्य में सरकार ने ‘भारत अंतरिक्ष दिवस’ घोषित किया है। चंद्रयान-३ के अवतरण पर कुछ पंक्तियाँ लिखी थी, आज फिर से साझा कर रहा हूँ-  भारत का चन्द्रयान संस्कृति की पालना  भारतमाता से आज मिल ही गई राखी, चन्दामामा को  भेजी थी भारत माँ ने जो बड़े प्रेम से, अपने उज्ज्वल सुपुत्र विक्रम के हाथों विक्रम! जब उतरा  ज्ञान, धैर्य व आत्मविश्वास  के साथ वर्षों से प्रतीक्षित  अपने मामा के आंगन  तब था उसके पास १४० करोड़ भारतीयों के रक्षा सूत्र अपने गुणी वैज्ञानिकों का ज्ञान  सच में विक्रम  अपने मामा से यही कह रहा होगा, भारत का हर बच्चा चांद को  मामा के रूप में अब तक जानता था,  दूर गगन  से उसकी शीतलता को  अनुभूत भी करता था पर वह सब सपना था पर आज  सपना साकार हुआ जय हो वसुन्धरा की जय हो चन्दामामा की  जय हो माँ भारत

गिनती भारत की देन

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यह भी भ्रांति है कि गिनती अंग्रेज़ी की है, अंग्रेज़ी की गिनती तो रोमन है। कितनी बड़ी मूढ़ता है आप अपनी गिनती जिसे संविधान में भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप (1,2,3….) कहा गया है उसे अंग्रेजियत या अज्ञानतावश पता नहीं अंग्रेज़ी का गिनती कहते है इस भूल को परिमार्जित करने की आवश्यकता है। इससे बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति और क्या होगी। मैं प्रत्येक मंच से यह बात कहता हूँ कि यह भारतीय गिनती है, पूरी दुनिया को गिनती हमने सिखाई। ‘उपकार’ फ़िल्म का गीत आप सब याद करें ‘ जब जीरो मेरे भारत ने दुनिया को तब गिनती आई।’  यह तो वही बात हुई पिता ने ऋण लेकर घर बनाया और बेटा बोले ससुराल वालों ने बनाया। हिन्दी भाषा का प्रश्न केवल भावनाओं का नहीं राष्ट्रीय संस्कार और संस्कृति का है। हम सब सत्य का अन्वेषण करें, अपनी भाषा और ज्ञान पर गर्व करें, सीखें हर किसी से पर स्वयं को गिराकर नहीं, भारतीय भाषाएँ सहोदरा हैं। सब मिलकर रहें। कबिगुरु ने कहा था, ‘हिंदी भारत की महानदी है।’ हमारा उपक्रम सबको साथ लेकर चलना है न कि अंग्रेज़ी को बढ़ाने की आड़ में हिंदी और उसकी लिपि देवनागरी को कमजोर करना।  सादर,  डा. साकेत सहा

भाषा और विकृत राजनीति

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भाषा और विकृत राजनीति।  पहले उर्दू को हिन्दी से अलग कर दिया। यह कौन-सी नीति है जो तमिलनाडु, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, बंगाल और बिहार के मुसलमान भी उर्दू को अपनी मातृभाषा बता रहे है। अब आंध्र प्रदेश का स्थानीय जो भले धर्मांतरित हो या मूल परंतु उसकी मातृभाषा उर्दू कैसे होगी ? संस्कृत को भी पंडितों से जोड़ दिया गया। भाषा को पंथ से जोड़ने का कुचक्र । पंडित और ब्राह्मण जैसे शब्दों के अर्थ सीमित कर दिये गए और केवल जाति से जोड़ दिया। राजनीतिक और कथित अकादमिक विद्वानों ने तो जाति के अर्थ को ही विकृत कर दिया। याद रखिये भाषा और पंथ की सत्तानीति देश, समाज का कभी भला नहीं करती बल्कि देश का बेड़ा गर्क करती है।  पाकिस्तान का उदाहरण सामने है पहले पंथ के नाम बाँटा, ज़हर बोया और शैतानी ताक़तों ने देश को बाँट दिया। भाषा के ज़हर ने राज्यवार विभाजन तय किए। पाकिस्तान में जबरदस्ती उर्दू थोप दी गई। नतीजा सामने है।  आज राष्ट्रीय एकता और संपर्क की भाषा हिंदी की अकादमिक स्थिति को हिन्दीतर के विमर्श ने काफ़ी नुक़सान पहुँचाया है।  जिन राज्यों में राजभाषा, राष्ट्रभाषा, संपर्क भाषा चाहे जो भी नाम लें

सत्य का साथ

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  बंगाल या देश के अन्य प्रदेशों में महिलाओं व अन्य निरीह के साथ घटित जघन्य एवं नृशंस हत्याकांड के बाद हमारे धर्मग्रंथों में विद्यमान इस कथा से सीख लेने की आवश्यकता है। सत्य का साथ देना ही मूल धर्म है। अनैतिकता और अधर्म का नाश होगा ही।  कथा-  रावण के प्रहार से अपनी अंतिम सांसें गिन रहे गिद्धराज जटायु ने कहा- मुझे पता था कि मैं दशानन से नहीं जीत सकता पर तब भी मैं लड़ा, यदि मैं नही लड़ता तो आने वाली पीढियां मुझे कायर कहती।  जब राक्षसराज रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले, तो काल देवता यमराज आये।  गिद्धराज जटायु ने मौत को ललकारते कहा - 'खबरदार ! ऐ मृत्यु !! आगे बढ़ने की कोशिश मत कर! मैं मृत्यु को स्वीकार तो करूँगा, लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकता जब तक कि इस आपदा की सुधि मैं अपने प्रभु श्रीराम को नहीं दे देता'।  मौत गिद्धराज जटायु को छू भी नहीं पा रही है। वह तब तक प्रतीक्षा करती रहीं, जब तक जटायु महाराज अपने कर्तव्य पालन से बंधे थे। काल  देवता भी इस कर्तव्यपराणता के समक्ष नतमस्तक थे, जटायु राज को इच्छा मृत्यु का वरदान जो मिला था। स्मरण रहें भीष्म पितामह को भी इच्छा मृत्यु का वरदा

७८वां स्वाधीनता दिवस

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शहीदों के बलिदान, त्याग, समर्पण व प्रतिबद्धता को समर्पित भारत के ७८ वें स्वाधीनता दिवस की आपको सपरिवार बहुत बहुत बधाई! भारत के लिए स्वतंत्रता नाम है एक राष्ट्र भाव का राष्ट्र राग का राष्ट्र भाषा का  एक राष्ट्र अनुराग का एक भावना का  एक विचार का राष्ट्र धर्म का राष्ट्रीय कर्तव्यों के पोषण का अपनी संस्कृति पर अभिमान का  राष्ट्रीय संस्कार का  भारतीय  सभ्यता के जागरण का अपनी सशक्त परंपराओं पर अभिमान का  अपनी गौरवमयी पहचान का अपनी उर्वरा माटी का माटी के लिए  सर्वस्व न्योछावर! जय हिंद !  जय भारत !! जय हिंदी!! जुग-जुग जिए भारत और भारतीयता!  भारत भाव बना रहें  हम सब के भीतर!  ✍©डॉ. साकेत सहाय #साकेत_विचार

विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस

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#विभाजन_विभीषिका_स्मृति_दिवस आज ही के दिन भारत के दो टुकड़े कर दिए गए । इस काले  दिवस को हमें इस बात हेतु भी याद करना चाहिए कि हमारी अंग्रेजों के प्रति  अंधभक्ति और सत्ता का लालच किस प्रकार से एक देश के सपनों को विभाजित कर सकती हैं ।  क्या शहीदों ने इसी विभाजन के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया था?  स्वतंत्रता के बाद इस देश को विभाजन की विभीषिका पर गहराई से मंथन करना जरूरी था।  स्वाधीनता प्राप्ति के पूर्व यह दिवस आधी खुशी के साथ देशवासियों को जीवन भर का टीस दे गया । जब एक ही माटी की साझी परंपरा और विरासत को किसी और एजेण्डे के  तहत बांट दिए गए ।  इसका दोहराव न हो इस हेतु हम सभी को सचेत रहना होगा, क्योंकि पाकिस्तान एक दिन में नहीं बना था ।  सदियों से साथ रहे लोगों को नियोजित विषवमन के साथ बांटने का दुष्परिणाम अविभाजित भारत अपने विभाजन के बाद से ही भुगत रहा है। ब्रिटिशों और यहाँ के गद्दारों ने मिलकर देश बांटा, जिसका खामियाजा किस हद तक यह देश, समाज  भुगत रहा है, इसके तटस्थ मूल्यांकन की भी आवश्यकता है।  पाकिस्तान धर्म से अधिक अंधी पहचान, सत्ता की भूख का परिणाम था।  इसी भूख का दुष्परिणाम है क

हिरोशिमा दिवस

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आज हिरोशिमा दिवस है। आज से 79 वर्ष पहले इसी दिन अमरीका द्वारा जापान पर ‘लिटिल बॉय’ यूरेनियम निर्मित अणु बम गिराया गया था।  इस अमेरिकी हत्याकांड से हिरोशिमा की 3.5 लाख की आबादी में से 1 लाख चालीस हजार जापानी लोग एक ही झटके में मारे गए थे।  इसके बाद अनेक वर्षों तक अनगिनत लोग विकिरण के प्रभाव से मरते रहे।  उस समय हिरोशिमा जापान का एक प्रमुख औद्योगिक नगर था ।  इस दिवस को हम सब इस तथ्य के साथ भी स्मरण कर सकते हैं कि वर्तमान विकृत दर्शन वामपंथ या पूंजीवाद दोनों ही विनाशकारी आधार पर खड़े हैं।  दोनों ही मानव कल्याण व सुख का स्वप्न बेचते व दिखाते हैं लेकिन अंत में मिलता है नरसंहार व विनाश ।  आप वर्तमान में चल रहे इसरायल-फिलीस्तीन, ईरान एवं यूक्रेन के उदाहरणों से इसे बखूबी समझ सकते हैं। #हिरोशिमा #साकेत_विचार

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त

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🙏सादर नमन🙏 हिंदी साहित्य में खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि जिन्हें राष्ट्रकवि के रूप में भी जाना जाता है ऐसे महान साहित्यकार “मैथिलीशरण गुप्त” (3 अगस्त 1886 - 12 दिसंबर 1964) जी की आज जयंती है ।  गुप्त जी ने हिन्दी साहित्य की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतीय समाज की अमूल्य सेवा की, उन्होंने अपने काव्य में भारतीय राष्ट्रवाद, संस्कृति, समाज तथा राजनीति के विषय में नये प्रतिमानों को प्रतिष्ठित किया।  ‘साकेत’ इनकी महान रचना है जिसमें नारियों की दुरावस्था  के प्रति सहानुभूति झलकती है – ‘अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी ।  आँचल में है दूध और आँखों में पानी ।’ देश के ऐसे महान कवि को नमन! जिसके काव्य में देश के सभी वर्गों की उपस्थिति की झलक मिलती है...  नर हो, न निराश करो मन को कुछ काम करो, कुछ काम करो जग में रह कर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो कुछ तो उपयुक्त करो तन को नर हो, न निराश करो मन को। उनके विराट व्यक्तित्व को देखते हुए उनकी जयंती को कवि दिवस के रूप में मनाया जाता है।  https://vishwakeanganmehindi.blogspot.com

सामाजिक निवेश-लघु विचार

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अपनी निजी समस्याओं को सुलझाने के लिए सदैव करीबी मित्रों, परिजनों से ही सहायता लीजिए। आपसे नाराज़, परेशान हुए आपके भाई/मित्र/रिश्तेदार, पति-पत्नी सोशल मीडिया के  तमाम मित्र/मित्राणी से अधिक विश्वासी हो सकते हैं।  यह ज़रूरी है कि परस्पर सामाजिक रिश्तों को अवश्य निभाए।  अंजान लोगों से इनबॉक्स में चैट करने से बचें।  रिश्तों को बनाए रखने या मज़बूती के लिए एक-दूसरे से घर आया-जाया करें।  परस्पर संबंधों को बनाए रखने के लिए हाल-चाल लेते रहा करिए और कभी-कभी तारीफ में कुछ लिखा भी कीजिये। यहीं सामाजिकता है। हमारे पुरखों ने इसे प्रेम, रिश्ता, नातेदारी का नाम दिया और हम पूँजीवादी युग में सामाजिक निवेश का नाम दे सकते हैं। #साकेत_विचार #सामाजिक_निवेश