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Showing posts from December, 2021

यशपाल हिंदी साहित्यकार

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"मैं जीने की कामना से, जी सकने के प्रयत्न के लिए लिखता हूँ। बहुत चतुर और दक्ष न होने पर भी यह बहुत अच्छी तरह समझता हूँ कि मैं समाज और संसार से पराङ्मुख होकर असांसारिक और अलौकिक शक्ति में विश्वास के सहारे नहीं जी सकूँगा।" -यशपाल  'मैं क्यों लिखता हूँ'   आज यशस्वी कथाकार व निबन्धकार यशपाल जी की पुण्यतिथि हैं ।महान कथाकार यशपाल जी का स्मृति दिवस पर उन्हें शत-शत नमन! झूठा-सच के लेखनीकार क्रांतिकारी यशपाल जी के कृतित्व को नमन! यशपाल जैसे कलमकार राष्ट्रभाषा हिंदी की सशक्तता को स्वर देते हैं, यशपाल की मजबूत लेखनी उन भाषा विमर्शकारों की कल्पित आवाज के लिए एक सबक हैं जिनके लिए हिंदी मात्र उत्तर भारत की भाषा हैं । सादर नमन! यशपाल जी   #हिंदी  #यशपाल  #साकेत_विचार

2022 में चुनाव

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 2022 में चुनाव!  पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं । चुनावी सर्वेक्षणों की शुरूआत हो चली है। इसमें अधिकांश मीडिया संगठनों, पत्रकारों द्वारा भारतीय समाज को विशेष रूप से हिंदू समाज को जातिगत भेदभाव के आधार पर बांटा जाता है। यह गलत है। मीडिया चैनलों द्वारा यह किया जाना किसी षडयंत्र का हिस्सा लगता है। दलित, ओबीसी, अगड़ों के आधार पर चुनावी मतों का निर्धारण किया जाता है। नेताओं के टिकट तय किये जाते हैं । यह सरासर गलत है। भारतीयता का अपमान है।  मीडिया जिसे चौथा खंभा माना जाता है वह इस खेल में सबसे आगे शामिल हैं। आज दलित , अगड़ा कोई नही है सब पैसों का खेल हैं । जो संपन्न है वह अगड़ा है और जो वंचित है वह दलित हैं। हमें इस आधार पर हिंदु या किसी भी संप्रदाय को विभाजित नही करना चाहिए । मैं यह सब अधिकांश चुनावों में देखता हूँ । इसका प्रबल विरोध होना चाहिये । विकसित भारत का चुनाव सर्व भारतीय समाज के आधार पर होना चाहिए । न कि दलित, पिछड़ा, ओबीसी, अगड़ी जाति के आधार पर होना चाहिए । भारतीयता की पहचान है -सभी का समावेश । उसमें धर्म, जाति न हो ।  एक भारतीय नागरिक का विकास पहला उद्देश्य हो। भले

अटल बिहारी वाजपेयी का काव्य व्यक्तित्व

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अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व उनकी कविताओं से झलकता हैं । कृतित्व को नमन! https://www.hindi.awazthevoice.in/lifestyle-news/Atal-Bihari-Vajpayee-s-personality-is-reflected-in-his-poems-11169.html

स्वामी श्रद्धानंद का हिंदी प्रेम

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स्वामी श्रद्धानन्द जी का हिंदी प्रेम सनातन संस्कृति के महान उद्घोषक गाँधी को महात्मा बनाने वाले श्रद्धानन्द महाराज का हिंदी प्रेम जगजाहिर था। आप जीवन भर स्वामी दयानन्द के इस विचार को कि "सम्पूर्ण देश को हिंदी भाषा के माध्यम से एक सूत्र में पिरोया जा सकता हैं।""  सार्थक रूप से इसे क्रियान्वित करने में अग्रसर रहे। सभी जानते हैं कि स्वामी जी ने कैसे एक रात में उर्दू में निकलने वाले सद्धर्म प्रचारक अख़बार को हिंदी में निकालना आरम्भ कर दिया था जबकि सभी ने उन्हें समझाया की हिंदी को लोग भी पढ़ना नहीं जानते और अख़बार को नुकसान होगा। मगर वह नहीं माने। अख़बार को घाटे में चलाया मगर सद्धर्म प्रचारक को पढ़ने के लिए अनेक लोगों ने विशेषकर उत्तर भारत में देवनागरी लिपि को सीखा। यह स्वामी जी के तप और संघर्ष का परिणाम था।  स्वामी जी द्वारा 1913 में भागलपुर में हुए हिंदी सहित्य सम्मेलन में अध्यक्ष पद से जो भाषण दिया गया था उसमें उनका हिंदी प्रेम स्पष्ट झलकता था। स्वामी जी लिखते हैं - मैं सन 1911 में दिल्ली के शाही दरबार में सद्धर्म प्रचारक के संपादक के अधिकार से शामिल हुआ था। मैंने प्रेस कैंप मे

पट्टाभि सीतारमैया -हिंदी सेवी, गाँधी जी के सहयोगी

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पट्टाभि सीतारामैया, महात्मा गाँधी के विश्वस्त सहयोगी आधुनिक भारत में स्वदेशी आर्थिक क्रांति के अगुआ माने जाते है। आपने बीमा कंपनियों की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आप आंध्रा बैंक के जनक थे,जिसका समामेलन यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में इंडिया में किया गया ।   नमक सत्याग्रह (1930), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1932) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में भाग लेने हेतु पट्टाभि सीतारमैय्या को ब्रिटिश सरकार द्वारा कई बार कैद किया गया था। आप भारत की संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुने गए थे । भोगराजू पट्टाभि सीतारमैय्या भी नियम समिति, संघ शक्तियों समिति और प्रांतीय संविधान समिति के सदस्य थे। भोगराजू पट्टाभि सीतारमैय्या ने `राष्ट्रीय शिक्षा` (1912),` भारतीय राष्ट्रवाद` (1913), `भाषाई आधार पर भारतीय प्रांतों के पुनर्वितरण` (1916), `असहयोग` (1921),` भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इतिहास` सहित कई पुस्तकें लिखीं। आप मध्य प्रदेश के पहले राज्यपाल के रूप में 1 नवंबर, 1956 से 13 जून, 1957 तक पद पर रहे।  आपका जन्म 24 नवंबर, 1880 को आंध्र प्रदेश के गुंडुगोलनू गाँव में हुआ था। जब बालक सीतारामैया मात्र चार-पाँच सा

आर्थिक सुधारों के नरसिंहा

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आज पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय पी वी नरसिंह राव (पामुलपर्ति वेंकट नरसिंह राव) जी की पुण्यतिथि है।  आज ही के दिन 23 दिसंबर, 2004 को उनका निधन हुआ था।  भाषा प्रेमी नरसिंहा राव अब तक के एकमात्र प्रधानमंत्री रहे जिन्हें 17 भाषाओं का ज्ञान था।  उनका जन्म 28 जून, 1921 को वर्तमान तेलंगाना राज्य के वारंगल जिले में हुआ था । 1991 से 1996 तक प्रधानमंत्री पद संभालने वाले वे कांग्रेस पार्टी से पहले गैर हिंदी-भाषी शख्स बने । गैर नेहरू-गांधी परिवार से होने के बावजूद वे पांच साल तक सत्ता में रहने वाले  पहले प्रधानमंत्री  रहे । लाइसेंस राज को खत्म करने सहित कई आर्थिक सुधारों का उन्होंने सूत्रपात किया । उनके वित्तमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था के उदारीकरण युग की शुरुआत की । बाद के प्रधानमंत्रियों ने उनकी आर्थिक नीतियों को ही आगे बढ़ाया ।  वर्तमान समय तक कांग्रेस पार्टी से मूल रूप से संबंधित रहे एक प्रकार से वे अंतिम प्रधानमंत्री रहे । नरसिंहा राव जी भारत में उदारीकरण के जनक माने जाते हैं । साथ ही उन्हें मनमोहन सिंह जी को राजनीति में लाने का श्रेय भी दिया जाता है। उन्होंने ऐसे समय में पदभार सं

मानव धर्मं

सब कुछ पाने की होड़ ने मानव होने के धर्म को पीछे छोड़ दिया है । सबसे जरूरी है नैतिकवान होना।

पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र भावपूर्ण श्रद्धांजलि

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जिस किसी ने तालाब बनाया, वह महाराज या महात्मा ही कहलाया। एक कृतज्ञ समाज तालाब बनाने वालों को अमर बनाता था और लोग भी तालाब बनाकर समाज के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते थे।  - अनुपम मिश्र,   'आज भी खरे हैं तालाब'* किताब से लेखक, गाँधीवादी व पर्यावरणविद अनुपम मिश्र की पुण्यतिथि पर सादर नमन!

प्रभाकर श्रोत्रिय : हिंदी साहित्यकार

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हिंदी हर युग में इस देश की आवाज़ रही है। आज उसके सामने एक और नयी पीढ़ी है, जिसके स्वप्न हरे हैं। वह त्वरित विश्व के साथ क़दम मिलाकर, बल्कि उससे भी आगे चलने को उत्सुक है। उसे अपनी भाषा में नवीनतम ज्ञान, प्रौद्योगिकी, सम्मान, आत्म निर्भरता समृद्धि, जीवन-यापन और उत्कर्ष के भरपूर अवसर मिलने चाहिए। - प्रभाकर श्रोत्रिय साहित्यकार प्रभाकर श्रोत्रिय की जयंती पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि

भोजपुरी रत्न भिखारी ठाकुर

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वर्ष 1887 में जन्में  लोक साहित्यकार भिखारी ठाकुर की आज जयंती  है। भोजपुरी हिंदी के महान साहित्यकार कवि,नाटककार, संगीतकार भिखारी ठाकुर ने अपनी पुश्तैनी कार्य नाई कर्म से जीवन-यात्रा की शुरुआत की। उन्होंने अपनी भावप्रवणता और संप्रेषनीयता से लोक साहित्य में जो स्थान प्राप्त किया उसकी जगह कोई और नहीं ले सकता। रोज़ी-रोटी की तलाश मे पलायन करने वालों के परिजनों की व्यथा-कथा का मर्मांतक चित्रण करती उनकी कालजयी नाट्य कृति "बिदेशिया" अमर गान है। भिखारी ठाकुर जी ने अपने प्रदर्शन कला का, जिसे लोकप्रिय शब्द में ‘नाच’ कहा जाता है को अमर किया।  रोज़ी-रोटी के सिलसिले में बंगाल यात्रा में वहाँ की रामलीला देखकर वे काफ़ी प्रभावित हुए। तब उन्होंने गांव लौटकर लिखना-पढ़ना-सीखना शुरू किया। वे इस बात को प्रमाणित करते है कि व्यक्ति अपनी प्रतिभा के बल पर अमर हो सकता है, उसके लिए अंग्रेज़ी एकमात्र जरुरी नहीं। बिदेसिया, गबरघिचोर, बेटी वियोग समेत अलग-अलग फलक पर रची हुई उनकी दो दर्जन कृतियां हैं। उनकी रचनाएं राम, कृष्ण, शिव,रामलीला, हरिकीर्तन आदि को समर्पित है। #जन्मदिन_भिखारी_ठाकुर  #नाच #भोजपुरी सा

काशी विश्वनाथ काॅरिडोर

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कल काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर मोदी राष्ट्र को समर्पित करेंगे । यह राष्ट्र की अध्यात्मिक चेतना का काॅरिडोर हैं । इसी के साथ यह काॅरिडोर आक्रांताओं द्वारा विकृत किए गए इतिहास को विस्मृत कर स्वर्णिम अतीत, राष्ट्रीय चरित्र, पुरा पुरुष को जागृत करने का संकल्प है।   'काशी' भगवान शिव की नगरी हैं , जो सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार इस समस्त जगत के आदि कारक माने जाते हैं। उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं। जगत के प्रारंभिक ग्रंथों में से एक 'वेद' में इनका नाम रुद्र है। वे व्यक्ति की चेतना के अर्न्तयामी हैं । हमारे यहाँ शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है। उसी शिव की नगरी कल परिष्कृत रुप में होगी।   दुर्भाग्य हैं हमारी विकृत इतिहास परंपरा का जो अपने चारित्रिक नायकों से सीख न लेकर उन्हें ग्रंथों में या परंपराओं में सिमटा रही हैं । कल का आयोजन सदियों की आध्यात्मिक विरासत को जमीन पर उतारने का संकल्प दिवस माना जा सकता हैं ।  काशी कॉरिडोर के बहाने इतिहास ने नई करवट ली है। भगवान शंकर की यह नगरी, जो धर्म,संस्कृति और संस्कार का ग

डाॅ राजेंद्र प्रसाद की शख्सियत और जवाहरलाल

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डा.राजेन्द्र प्रसाद की शख्सियत से पंडित नेहरु हमेशा अपने को असुरक्षित महसूस करते रहे। उन्होंने राजेन्द्र बाबू को नीचा दिखाने का कोई भी अवसर हाथ से जाने नहीं दिया। हद तो तब हो गई जब 12 वर्षों तक राष्ट्रपति रहने के बाद राजेन्द्र बाबू देश के राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद पटना जाकर रहने लगे, तो नेहरु जी ने उनके लिए वहाँ पर एक सरकारी आवास तक की व्यवस्था नहीं की। उनकी सेहत का ध्यान नहीं रखा गया। दिल्ली से पटना पहुंचने पर राजेन्द्र बाबू बिहार विद्यापीठ, सदाकत आश्रम के एक सीलनभरे कमरे में रहने लगे।  उनकी तबीयत पहले से ही खराब रहती थी, पटना जाकर ज्यादा खराब रहने लगी, वे दमा के रोगी थे। सीलनभरे कमरे में रहने के बाद उनका दमा ज्यादा बढ़ गया। वहाँ उनसे मिलने के लिए जयप्रकाश नारायण पहुंचे। वे उनकी हालत देखकर हिल गए। उस कमरे को देखकर जिसमें देश के पहले राष्ट्रपति और संविधान सभा के पहले अध्यक्ष डा.राजेन्द्र प्रसाद रहते थे, उनकी आंखें नम हो गईं। उन्होंने उसके बाद उस सीलन भरे कमरे को अपने मित्रों और सहयोगियों से कहकर कामचलाऊ रहने लायक करवाया। लेकिन, उसी कमरे में रहते हुए राजेन्द्र बाबू की 28 फरवरी,

देशरत्न डाॅ राजेन्द्र प्रसाद

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 महान स्वाधीनता सेनानी, त्याग एवं सादगी की प्रतिमूर्ति, संविधान निर्माता देशरत्न डाॅ राजेन्द्र प्रसाद की जयंती पर शत शत नमन! भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू महात्मा गांधी की निष्ठा, समर्पण और साहस से काफी प्रभावित थे। स्वदेशी आंदोलन के अगुआ रहे राजेन्द्र बाबु वर्ष 1928 में कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर का पदत्याग कर दिए। गांधीजी द्वारा जब विदेशी संस्थाओं के बहिष्कार का अपील किया गया तो उन्होंने उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अपने पुत्र मृत्युंजय प्रसाद, जो एक अत्यंत मेधावी छात्र थे, को कोलकाता विश्वविद्यालय से हटाकर बिहार विद्यापीठ में नामांकन करवाया था।   जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। -देशरत्न डाॅ राजेन्द्र प्रसाद