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Showing posts from September, 2024

भाषा और बोली

 #भाषा या बोली में बड़ा तकनीकी अंतर है।लिपिबद्ध हो गई तो भाषा। अन्यथा बोली। हम भारतीय तो सदैव अपनी संस्कृति को मौखिक बोलियों के द्वारा ही संरक्षित करते आए हैं। बोलियाँ ही भाषा को  समृद्ध करती है। आज मजबूरी वश हम अंग्रेजी को समृद्ध कर रहे हैं।  उदाहरण के लिए हम रिश्ते-नाते से जुड़े शब्दों को लें।  क्या जो भाव सम्मान, अपनापन चाचा-चाची  बोलने में है क्या वो भाव अंकल-आंटी बोलने में है।  भाषाएं केवल हमें नहीं बदलती वो हमारी जीवन शैली को बदल देती है।   अंग्रेजी अपनाए मगर संतुलन के साथ।   साथ ही इस पर हम विचार करें कि यह भाषा हमारी संस्कृति से हमें कितना दूर ले जा रही है।  जरूरत है इस दिशा में सोचा जाए। मैं सभी बोलियों का समर्थक हूँ क्योंकि  हमारी देशी भाषाएँ एंव बोलियाँ हमारी सांस्कृतिक -सामाजिक पहचान है। #साकेत_विचार

हिन्दी की बात

 #आजकल एक चलन बन गया है कि भारत के राजनीति भक्त हिंदी के थके विरोध के नाम पर हिंदी की बोलियों को आठवीं अनुसूची में लाने की मांग  कर रहे है।  करें अच्छी बात है। परंतु हिंदी का विरोध न करें। साथ ही यह भी शोध करें  कि आठवीं अनुसूची में आने के नाम पर भाषाओं का कितना फायदा हुआ, भाषायी दुकानदारों का कितना हुआ।  उदाहरण के लिए उर्दू को हमने धर्म विशेष से बांध कर उर्दू का कितना अहित किया।  तो भाषाओं को धर्मं, राजनीति या क्षेत्र के नाम पर न  बांटे। पिछले 1500 सालों से हिंदी भारत की सभी बोलियों, भाषाओं का समन्वय है।  पहले प्राकृत, पाली, अपभ्रंश से चलकर हिंदी कई रूपों में इस देश की राष्ट्रभाषा बनी। हिंदी राजभाषा तभी बनी क्योंकि वो राष्ट्रभाषा उस समय भी थी।   आज तो विश्व भाषा है। माॅरीशस या अन्य गिरमिटिया देशों की जनता ने भी विपरीत परिस्थितियों में भोजपुरी, मराठी, तेलुगु आदि  के साथ हिंदी को स्थापित किया।  इसी से इन छोटे देशों की विशिष्ट पहचान बनी।  यहां के लोगों ने अपने संघर्षों के द्वारा अपनी पहचान स्थापित की। इसमें हिंदी महत्वपूर्ण थीं। ...

मातृभाषा हिंदी

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o हिंदी भाषा भारतवर्ष रूपी सामाजिक संस्था की प्रतीक  है।  हिंदी और संस्कृत इस देश के सब निवासियों की भाषा है। कभी दिनकर जी ने कहा था, इस देश का कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि हिंदी और संस्कृत मेरी मातृभाषा है। वास्तव में इस देश में नीति-निर्मताओं ने मातृभाषा की परिभाषा ही ग़लत निर्मित कर दी है। बच्चा उस माटी की भाषा सीखता है जिस माटी में वह पलता-बढ़ता है। भारतीय माटी से देश के निवासियों को सबको जोड़नेवाली प्रमुख भाषा हिंदी है और ज्ञान, परंपरा, संस्कार और संस्कृति की भाषा संस्कृत है। अब कोई  बंगाली, तमिल  परिवार बिहार  या देश के अन्य प्रांतों में दो सौ साल से निवास कर रहा है तो उसकी माटी की भाषा तो समय के साथ बदल ही जाएगी, कम से कम प्रशासनिक कारणों से ही सही। प्रसिद्ध भाषाविद डॉ रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव जी के इस पक्ष पर स्पष्ट विचार है। यह भी सच है कि हिंदुस्तान में मातृभाषा के प्रश्न को राजनीतिक कुचक्र के तहत जान-बूझकर बांधा गया। इस  विशाल देश में भाषा, मातृभाषा के रूप में सामाजिक अस्मिता की भी भाषा है। जिससे व्यक्ति, भाव , विचार, संस्कार और अपने जाती...

शेख़ अबू अल फ़ैज़

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आज प्रसिद्ध फारसी विद्वान शेख अबु अल फैज की जयंती है।  आप प्रमुख फारसी विद्वान और कवि के रूप में प्रख्यात रहे।  आप संस्कृत भाषा के भी विद्वान थे।   अकब्रर के नवरत्नों में शामिल रहे फैजी का मुगल साम्राज्य में बहुत मान-सम्मान था।  आपने भास्कराचार्य  की गणित की पुस्तक का लीलावती का फारसी में अनुवाद किया थ। आपने नल दमयंती कथा का भी फारसी में अनुवाद किया था। आपके कुछ प्रमुख अशआर (रचना) जुल्म करता हूँ जुल्म सहता हूँ मैं कभी चैन से रहा ही नहीं। मैं सुबह ख्वाब से जागा तो ये ख्याल आया जो रात मेरे बराबर था क्या हुआ उस का  जाने मैं कौन था लोगों से भरी दुनिया में मेरी तन्हाई ने शीशे में उतारा है मुझे !  #साकेत_विचार #फ़ैज़

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

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  आज पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की जयंती है।  आप आधुनिक भारत के प्रखर आध्यात्मिक गुरु के रुप में जाने जाते हैं।  आपके द्वारा रचित साहित्य और आपका जीवन विचारों को प्रज्ज्वलित करने और स्वंय को बदलने की प्रेरणा देता है। उनके द्वारा रचित साहित्य और सूत्र वाक्यों को पढ़ना हमें चेतना से भरता है।   आपकी स्मृति को नमन ! आपके  अनमोल वचन  कभी निराश न होने वाला ,  सच्चा साहसी होता है।  दूसरों को पीड़ा नहीं देना ही मानव धर्म है।  सारी दुनिया का ज्ञान प्राप्त करके भी खुद को ना पहचान पाए तो सारा ज्ञान निरर्थक है।  जिस भी व्यक्ति ने अपने जीवन में स्नेह और सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया है ,  वह सचमुच ही सबसे बड़ा कलाकार है।    

कुँवर नारायण कवि, लेखक

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  सत्य, जिसे हम सब इतनी आसानी से अपनी-अपनी तरफ मान लेते हैं, सदैव विद्रोही सा रहा है।  -कुँवर नारायण     आज प्रसिद्ध कवि, लेखक पद्यभूषण स्वर्गीय कुंवर नारायण जी की जयंती है। आपकी प्रमुख रचनाएँ हैं-चक्रव्यूह, तीसरा सप्तक, परिवेश, हम-तुम, आत्मजयी, आकारों के आसपास, वाजश्रवा के बहाने, इन दिनों आदि । आप ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य आकदमी पुरस्कार, व्यास सम्मान आदि से सम्मानित रहे हैं। कुंवर नारायण अपने लेखन मे जिजीविषा की तलाश करते हैं।  वे कहते हैं ‘मनुष्य की जो जिजीविषा है, जो जीवन है, वह बहुत बड़ा यथार्थ है।’ उनकी स्मृति को नमन करते हुए उनकी एक कविता  ‘घर पहुँचना’ हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर अपने अपने घर पहुँचना चाहते हम सब ट्रेनें बदलने की झंझटों से बचना चाहते हम सब चाहते एक चरम यात्रा और एक परम धाम हम सोच लेते कि यात्राएँ दुखद हैं और घर उनसे मुक्ति सचाई यूँ भी हो सकती है कि यात्रा एक अवसर हो और घर एक संभावना ट्रेनें बदलना विचार बदलने की तरह हो और हम सब जब जहाँ जिनके बीच हों वही हो घर पहुँचना आपकी स्मृति को नमन🙏

अमृत काल में हिन्दी

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 मित्रो आज के दैनिक अमृत विचार के संपादकीय अग्रलेख के रूप में  ' अमृत काल में हिन्दी  ' शीर्षक से मेरा आलेख प्रकाशित हुआ है जो आप सभी के अवलोकनार्थ प्रस्तुत है।  जय हिंद!  जय हिंदी!! #साकेत_विचार #हिन्दी #हिन्दी_दिवस

विश्व पत्र लेखन दिवस

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आप सभी को विश्व पत्र लेखन दिवस की हार्दिक शुभकामना! समय के साथ हर विधा में परिवर्तन होता आया है और होता भी रहेगा। समय के साथ हम अपनी आदतों में बदलाव भी तो लाते हैं। पत्र लेखन जुड़ाव, संपर्क का बेहतरीन ज़रिया था, अब संचार की गति ने इसके तरीकों को बदल कर रख दिया है। अब तो ईमेल, मैसेंज़र भी कम हो रहे है। समय की माँग है और इन सब का प्रयोग भी हम अपनी ज़रूरतों के अनुरूप ही तो करते हैं। एक समय वह भी था जब हम अपनों को पत्र लिखते और उससे जवाब आने की उम्मीद का हर एक क्षण हमें एक युग की भांति लगता था। मैंने स्वयं भारतीय वायु सेना में सेवा के दौरान इसे अनुभूत किया है। एक समय वह भी था जब कोई समाचार प्रेषक से प्राप्तकर्ता तक पहुंचाने के लिए पत्र ही एकमात्र माध्यम था जिसमें कई दिन लग जाते थे। कबूतरों से चला यह सफर तार से मोबाइल तक जा पहुंचा है।   कभी शीघ्र संदेश पहुंचाने के लिए तार ही एक माध्यम था जिसका हर एक शब्द बहुत कीमती होता था और अब तो मोबाइल फोन के जरिये पलक झपकते ही समाचार हम सभी तक पहुंच जाते हैं।  फिर भी पत्र लिखने और पाने का मजा ही कुछ और होता था और यह सदैव यादों में हम सभी के बसा...