भारत मूल्य



इस्लाम के अभ्युदय के समय तथा उसके जन्म से पूर्व, अरब एवं ईरान के लोग भारत की सभ्यता औऱ संस्कृति से बखूबी परिचित थे। 

" जेरूसलम के हमीदिया पुस्तकालय में हारुन राशीद के महामंत्री फजल-बिन-याहिया का मुहर लगा हुआ एक ताम्र पत्र मिला है, जिस पर 128 छंद लिखे हुए हैं, जिनमें भारतवर्ष, वेद तथा आर्य ज्ञान-विज्ञान की बड़ी प्रशंसा की गयी है। .........हज़रत मुहम्मद से 500 वर्ष पूर्व के कवि जरहम-बिन-ताई की कविता में गीता के "परित्राणाय साधूनांविनाशाय च दुष्कृताम् "  इत्यादि श्लोकों के आधार पर श्री कृष्णावतार की चर्चा औऱ प्रशंसा है। इसमें महादेव की आराधना इष्टफलदायिनी बतायी गयी है।" 

स्रोत-

संस्कृति के चार अध्याय- राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’

अब दुर्भाग्यवश उसी अरब-तुर्क उपनिवेशवाद के नाम पर अपने ही पुरखों के देव, अपनी ही माटी के लोगों की कट्टरता से, जघन्यता से भारत को कलंकित किया जा रहा है। इस महान भूमि का सम्मान करें, जो आपको शरण देती है। जो अपनी मातृभूमि, अपनी संस्कृति का नहीं उसे दोज़ख़ में भी जगह नहीं मिलती। 

भारत की मौलिकता को बना कर रखें। भारत हजार सालों से खड़ा है, अपनी भव्य एवं दिव्य आत्माओं के बल पर। 

यूनानों, मिस्रों, रोमां, मिट गए जहाँ से, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी…

यह शक्ति थीं भाषा, संस्कृति, धर्म, चरित्र, नैतिकता की। 

आइए शिव, राम-कृष्ण की भूमि को नमन करते हुए कट्टरता का समूल नाश करें। 

जय हिंद! जय भारत!!

वन्दे मातरम्!

#साकेत_विचार #दिनकर #संस्कृति

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