श्यामा प्रसाद मुखर्जी




राष्ट्रहित ही सर्वोपरि हैं। इन पंक्तियों को अपना सर्वोच्च लक्ष्य मानने वाले भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की आज पुण्यतिथि है।  डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए सदैव संघर्षशील रहे।  देश के समक्ष उन्होंने कांग्रेस का राजनीतिक विकल्प जनसंघ के रूप में प्रस्तुत किया ।  जिसकी परिणति आज भारतीय जनता पार्टी के रूप में हम सभी देख रहे हैं । श्याम प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी और प्रांतीय स्तर पर प्रादेशिक भाषा के पैरोकार थे। वे बंगाल में बांग्ला भाषा के पैरोकार थे, वे बांग्ला भाषा में  पाठ्यक्रम चाहते थे जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया। श्यामा बाबू स्वतंत्रता सेनानी, लोकप्रिय नेता और अकादमिक  जगत में भी सक्रिय थे।  वे एक भाषा प्रेमी भी थे।

कश्मीर में उन्होंने एक राष्ट्र दो विधान का विरोध किया तो तत्कालीन कश्मीरी प्रधान शेख अब्दुल्ला ने उन्हें कारावास की सजा दी।  जहाँ संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मौत हुई। बाद में प्रधानमंत्री नेहरू ने इसकी जाँच से भी मना कर दिया था। देश ने एक राष्ट्र एक विधान के संकल्प को पूरा कर उनके सपनों को फलीभूत किया। 

आजाद भारत के इस प्रथम शहीद को उनकी ७१वीं पुण्यतिथि पर मेरा शत शत नमन !  

इस पोस्ट के साथ आप सभी के लिए एक ऐतिहासिक चित्र संलग्न है- चित्र में संसद भवन परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर के साथ विमर्श करते हुए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी

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