रसोई के बहाने भारतीय भाषाओं की शाब्दिक एकता को समझे

 भारतीय भाषाओं की शाब्दिक एकता 




आज का शब्द - रसोई

हम सभी जानते ही हैं कि रसोई वह स्थान है जहाँ रसपूरित व्यञ्जन बनाए जाते हैं, इसका अर्थ स्वादिष्ट भोजन भी है। रसोई-घर, खाना पकाने की जगह, बावर्चिखाना।  

पका हुआ खाद्यपदार्थ, बना हुआ भोजन, विशेष-सनातनी हिंदुओं में रसोई दो प्रकार की मानी जाती है कच्ची और पक्की, कच्ची रसोई वह कहलाती है जो जल और आग के योग से बनी हो, और जिसमें घी की प्रधानता न हो, जैसे-चावल, दाल, रोटी आदि, ऐसी रसोई चौके में बैठकर खाई जाती है, पक्की रसोई वह कहलाती है जिसके पकने में घी की प्रधानता रही हो। जैसे पराँठा, पूरी, बड़े, समोसे आदि, ऐसी चीजें चौके से बाहर भी खाई जा सकती हैं और इनमें छुआछूत का विशेष विचार नहीं होता, , बना हुआ भोजन, पका हुआ खाद्यपदार्थ

रसोई संस्कृत भाषा के शब्द रसवती का तद्भव रूप है जो शौरसेनी प्राकृत के 𑀭𑀲𑀯𑀤𑀻 (रसवदी) के रूप से हो कर रसवै बनता हुआ हिन्दी भाषा में रसोई हो गया।

आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में इसके स्वरूप हैं:

कुमाऊँनी: रस्या

नेपाली: रसोई

बंगाली: रसुइ, रोसाइ

बिहारी, अवधी, हिन्दी: रसोई

मारवाड़ी: रसोई (भोजन), रसौड़ा (भोजन बनाने का स्थान)

गुजराती: रसवई (भोजन), रसोई (स्थान)

पहाड़ी (पश्चिमी) रेसोइ

गढवाली: रुसइ

पंजाबी: ਰਸੋਈ (रसोई)

मराठी :  स्वयंपाक घर, भोजनगृह। 

संकलन-डॉ साकेत सहाय

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