संघवाद के विरुद्ध ब्यान

1935 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में गाँधीजी ने कहा था कि "विभिन्न प्रांतों के पारस्परिक संबंध के लिये हम हिंदी सीखें। ऐसा करने से हिंदी के प्रति हमारा कोई पक्षपात प्रकट नहीं होता। हिंदी को हम राष्ट्रभाषा मानते हैं और वह राष्ट्रीय होने के लायक है।" परंतु आज बड़ा दुख हुआ देश की सबसे पुरानी पार्टी से टूट कर बनी कांग्रेस(आई) के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के नजरिए से कि भारत राष्ट्र नहीं है, शायद इसके संस्कार उन्हें अपनों से मिले होंगे जो भारत राष्ट्र की परंपरा, संस्कृति और सबसे प्रमुख 'हिंदी' से भारी द्वेष रखते थे। हालांकि इन ब्यानों को ज्यादा तूल नहीं दिया चाहिए । क्योकि यह सत्य सदैव जीवंत बना रहेगा कि यह देश एक दिन में नहीं बना यह तो सदियों से तमाम लुटेरों की लूट के बावजूद आज भी शाश्वत है, अमिट है और इसकी जनभाषा हिंदी इस अटूट संस्कृति का पहिया। पर हम सभी को उस मानसिक क्षुद्रता की खोज करनी चाहिये कि आखिर क्यों? इस देश को जोड़ने वाली हर चीज पर क्षुद्र मानसिकता वाले प्रहार करते हैं । कभी मर्यादा पुरुषोत्तम पर, कभी माता सीता, कभी श्रीकृष्ण व कभी अन्य महापुरुषों, कभी हमारी परंपराओं पर, कभी हमें खंडित दिखाकर, कभी हमारी भाषा को हीन बनाकर, कभी आपस में लड़ाकर। अब यह सब थमना चाहिए। राष्ट्र आज अपने महान सेनानियों के कठोर बलिदान, आत्मोत्सर्ग के बाद तुर्क-मुगल-ब्रिटिश पराधीनता से अपनी स्वाधीनता का 75वां वर्ष मना रहा है। ऐसे में हम सभी को इन कुत्सित प्रयासों से सचेत रहना होगा। "इंडिया इज नॉट ए कंट्री इट्स यूनियन ऑफ स्टेट्स"…. राहुल गांधी का यह भाषण उन बलिदानियों का मजाक है। यह शर्म का भाषण है। देश केवल चुनाव या सत्ता के लिए नहीं होता। शायद इसी प्रकार की सोच के कारण काँग्रेस इतिहास में सिमटती जा रही है। श्रीमन् राहुल गांधी जी भारत को "राज्यों के संघ" के रूप में संदर्भित करके क्या संदेश देना चाहते हैं? राहुल गाँधी चुनाव आयोग, न्यायपालिका पर भी आरोप लगाते हैं । इस प्रकार के ब्यानों से उनकी कुंठा का संकेत मिलता है। क्या सत्ता के लिये उनकी पार्टी देश के अखंडतावाद को कमजोर करेगी? सत्ता के लिये कभी जातिवाद, दलितवाद, अल्पसंख्यकवाद का हौवा देश को ही कमजोर करेगा और इस प्रकार के ब्यानों से आसुरी शक्तियों को ही बल मिलता है। भारत को क्षेत्रवाद के जरिए तोड़ने की साजिश भारत के सबसे बड़े दुश्मन चीन के हित में ही काम करेगा। अब चीन का हित सोचने वाले कौन लोग हो सकते हैं ? सत्ता छोड़ते समय अंग्रेज इस देश की व्यवस्था में कई गुत्थियाँ छोड़ गए, जिनको अभी तक सुलझाया नहीं जा सका है। अब क्या देश की कथित सबसे पुरानी पार्टी के नेता इन गुत्थियों को और उलझाने का कार्य करेंगे । विचार कीजिए, आप सब। मेरी प्रार्थना है ईश्वर उन्हें सुबुद्धि दें । 

 #साकेत_विचार

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