Posts

अहमदाबाद विमान हादसे में जीवित बचा व्यक्ति-चमत्कार

Image
  हम सभी अक्सर जिंदगी और मौत को लेकर इन उद्धरणों को सुनते हैं।  ‘आनंद’ फ़िल्म का वह संवाद जिसे राजेश खन्ना ने अपने अभिनय से अमर कर दिया ।  “जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है जहांपनाह, जिसे ना आप बदल सकते हैं, ना मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ बंधी है। कब, कौन, कैसे उठेगा, ये कोई नहीं जानता..!” आज गुजरात के अहमदाबाद में हुए विमान हादसा में  एयर इंडिया का जहाज अहमदाबाद हवाई अड्डे से लंदन के लिए उड़ान भरने के तुरंत बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसमें कुल 242 लोग सवार थे। इसमें सवार गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का भी निधन हो गया। पर ईश्वर की लीला देखिये कि इसी अहमदाबाद विमान हादसे में एक व्यक्ति अपनी जान बचाने में सफल रहा । जीवित बचा यह व्यक्ति ब्रिटिश नागरिक है जिनका नाम रमेश विश्वास है। जो विमान दुर्घटना के बाद खुद अपने पैरों पर चलते हुए गए। रमेश कुमार ने बताया कि "टेक ऑफ होने के 30 सेकेंड के बाद प्लेन क्रैश हो गया था"।  इसी घटना पर किसी अखबार में बहुत साल पहले पढ़ी एक घटना याद आ गई ।  घटना यह थी कि एक बस में सांप...

सटीक डिजिटल पता प्रणाली है डिजिपिन

Image
भारतीय डाक पत्तो प्रमुख आकर्षण रहे पिन कोड का युग अब नये रूप में आकार लेने को है ।  जी, हाँ अब आपके छ: अंकों के पिन कोड या डाक सूचकांक संख्या को भारतीय डाक विभाग ने डिजिटल युग के साथ कदम ताल करते हुए  इसके विकल्प के तौर पर 'डिजीपिन' नाम से डिजिटल पता पेश किया है। अब से देश में डिजीपिन नई पता प्रणाली होगी। पारंपरिक पिन कोड जहां बड़े क्षेत्र को कवर करते हैं, वहीं 10 अंकों वाला डिजीपिन सिस्टम आपके घर या व्यवसाय के सटीक स्थान को दर्शाता है। आइए जानते हैं कि पिन कोड और डिजीपिन में क्या अंतर है। किसी क्षेत्र या स्थान की पहचान के लिए भारतीय डाक विभाग द्वारा अब तक छह अंकों वाला पिन कोड  प्रयोग में लाया जा रहा था। पता प्रणाली में सटीकता लाने के लिए अब 10 अक्षरों का डिजिपिन जारी किया गया है। इसे आईआईटी हैदराबाद और इसरो ने विकसित किया है। डिजिपिन के माध्यम से देश के किसी भी स्थान  की सटीक डिजिटल पहचान और यूनिक आईडी सुनिश्चित की गई है। इसके आधार पर सुदूर गांव की छोटी-छोटी गलियों तक सटीकता से पहुंचा जा सकेगा। यानी इस डिजीपिन के जरिए आपके घर या व्यवसाय का सटीक स्थान पता किया जा सक...

हिंदी और भारतीय भाषाओं का अंतर संबंध-सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर

Image
  आज प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त जी की जयंती है। उनके कृतित्व को शत-शत नमन!  कभी अमिताभ बच्चन के पिता, हिंदी के प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन ने सुमित्रानंदन पंत के सुझाव पर ही अपने पुत्र का नाम  'अमिताभ' रखा, जिसका अर्थ है कभी न मिटने वाली आभा। आज हम सभी इस आभा से परिचित हैं।  हिंदी एवं भारतीय भाषा प्रेमियों को भी अपने भाषा चिंतकों, साहित्यकारों के आभा एवं कार्य को सम्मान देना होगा। उसका प्रसार करना होगा। यह आभा है - भारतीय भाषाओं की शाब्दिक एकरूपता की। वास्तव में सभी भारतीय भाषाएं आपस में घुली-मिली हुई है। क्योंकि संस्कृत भाषा सभी की मूल स्रोत है।  साथ ही इससे भी महत्वपूर्ण  है - देश की भाषाई एवं सांस्कृतिक अभिन्नता की।  जिसके कारण शब्द और भाव लगभग एक समान होते है। यही कारण है कि ब्रिटिश पराधीनता के समय इस महत्वपूर्ण एवं आवश्यक तत्व को देश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक एकता के लिए महात्मा गांधी से लेकर सभी राष्ट्रनायकों ने हिंदी के प्रयोग व इसे अपनाने पर जोर दिया था। इस शाब्दिक एकरूपता रूपी आभा के प्रसार के लिए देवनागरी लिपि के प्रसार की मह...

गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर

Image
  साहित्य के माध्यम से भारतीयता को विश्व भूमि पर जीवंत करने वाले गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की जयंती पर शत शत नमन!  भारतीय साहित्य जगत के लिए 7 मई का दिन सुनहरे शब्दों में लिखा गया है। 1861 में आज ही के दिन गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर का जन्म हुआ, जिन्हें एक कवि, लघु कथा लेखक, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंध लेखक और चित्रकार के तौर पर इतिहास में एक युग पुरुष का दर्जा हासिल है। कविगुरु बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा माने जाते हैं। आप अपनी कृति ‘गीतांजलि’ के लिए एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति हैं। भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' गुरुदेव की ही रचना हैं।  रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदत्त ‘सर’ की उपाधि जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में वापस कर दी थी।  गुरुदेव ने 13 अप्रैल 1919 को हुए इस हत्याकांड की निंदा करते हुए 31 मई 1919 को यह उपाधि लौटा दी थी। आप गीतांजलि की "गहन संवेदनशील, ताजा और सुंदर" कविता के लेखक थे। वर्ष 1913 में, रवींद्रनाथ ठाकुर किसी भी श्रेणी में नोबेल पुरस्कार जीत...

भारतीय रेल दिवस

Image
  आज का दिन भारतीय परिवहन के लिए विशेष है।  आज ही के दिन भारतीय रेल की शुरुआत हुई थी।  16 अप्रैल, 1853 को पड़ी बुलंद नींव की यह देन है कि आज भारतीय रेल  के यात्री वंदे भारत, राजधानी एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस और संपर्क क्रांति एक्सप्रेस जैसी तेज और सुविधाजनक रेलगाड़ियों से यात्रा करते हैं। इस विशिष्ट यात्रा को तय करने में रेलवे को 172 साल लग गए हैं। रेलवे ने अखण्ड भारत को देखा है और विभाजित भारत को भी देखा है। रेलवे ने बँटवारे की त्रासदी को भी भोगा है।  भारत में रेलवे की शुरुआत लॉर्ड डलहौज़ी द्वारा की गई थी।  16 अप्रैल 1853 के दिन ही भारत में पहली बार रेल ने रफ्तार पकड़ी थी। देश में मुंबई के बोरीबंदर से ठाणे के बीच पहली यात्री (पैसेंजर) गाड़ी चलाई गई थी।  इस ट्रेन को साहिब, सुल्तान, और सिंध नाम के तीन इंजनों ने खींचा था। इस ट्रेन में 13 डिब्बे थे और इसमें 400 यात्री सफ़र करने आए थे।  रेल के निर्माण का श्रेय सर आर्थर कॉटन को दिया गया था।  भारतीय रेल के इस छोटे से सफर ने देश में परिवहन की संपूर्ण तस्वीर ही बदल दी थी। आप सभी को राष्ट्र की जीवन...

पी एन बी-एक ऐतिहासिक धरोहर

Image
 पंजाब नैशनल बैंक के १३१ वें स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर आप सभी से एक ऐतिहासिक चित्र साझा कर रहा हूँ, जो बैंक की ऐतिहासिक यात्रा का जीवंत दस्तावेज है । एक ऐसा दस्तावेज जो आपको इस संगठन के सुनहरे सफ़र से जोड़ता है । यह तस्वीर एक शिलापट्ट रूपी दस्तावेज है जो आज भी अविभाजित भारत के महत्वपूर्ण शहर लाहौर वर्तमान के पाकिस्तान के सर गंगा राम अस्पताल में सुरक्षित है । तब इस अस्पताल में बैंक ने एक हॉल का निर्माण तब के ₹६५०० की लागत से पंजाब नेशनल बैंक लिमिटिड लाहौर की ओर से उपहार स्वरूप कराया था। तब ऐतिहासिक तारीख़ थी-2-9-43. और लिखा गया-6500/-रुपये की लागत से निर्मित यह हॉल पंजाब नेशनल बैंक लिमिटेड, लाहौर का उपहार है। जिंदाबाद पीएनबी! यह सफ़र जारी रहें ।  आप सभी को स्थापना दिवस की बहुत बहुत बधाई! यह पोस्ट देशवासियों को भाषा, पंथ और समाज की कुत्सित नीति को समझने का संकेत भी है । जब आज हिंदी को उर्दू, पंजाबी और अन्य भाषाओं से लड़ाने का खेल जारी है परंतु उस समय हिंदी और हिंदीतर का कोई भेद नही था । तभी तो  यह पट्ट हिंदी में है । सादर, डॉ साकेत सहाय

महादेवी वर्मा

Image
आज हिंदी साहित्य की महान साहित्यकार महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०६ - ११ सितम्बर १९८७) की जयंती है ।  आप महान कवियित्री, निबंधकार, रेखाचित्रकार और हिन्दी साहित्य की प्रख्यात हस्ती थीं। आपको हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है। महादेवी का जन्म 26 मार्च 1907 को प्रातः 8 बजे फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था। अतः बाबा बाबू बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी — महादेवी मानते हुए पुत्री का नाम महादेवी रखा। कायस्थ पुत्री महादेवी वर्मा ने अपने बचपन में सबसे पहली पुस्तक पंचतंत्र पढ़ी। महादेवी वर्मा के परिवार में बाबा फ़ारसी और उर्दू जानते थे। पिता ने अंग्रेज़ी पढ़ी थी। परिवार में हिंदी का कोई वातावरण नही था। प्रसिद्ध कवियित्री महादेवी वर्मा को अपने निजी जीवन में कई तरह के दुखों का सामना करना पड़ा था।  विरह, वेदना, और करुणा उनकी कविता का अहम हिस्सा है।  महादेवी वर्मा रहस्यवाद और छायावाद की कवयित्री थीं, अतः उनके काव्य में आत्मा-परमात्म...