मन के भाव
मन के भाव बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर। कबीर दास जी द्वारा रचित इस दोहे का भावार्थ आज के संदर्भ में समझना बेहद जरूरी है । आप कितने भी महान हो, कितने भी बड़े खानदान या पार्टी से संबंध रखते हों लेकिन आपकी उपयोगिता यदि राष्ट्रहित में संदिग्ध है तो सब बेकार है । अर्थात् व्यक्ति ऊँचे पद, धन या हैसियत में तो बड़ा हो गया है, लेकिन अच्छे गुण के अभाव में समाज के लिए उसकी उपयोगिता शून्य है।केवल ऊँचा (बड़ा) होने से कोई महान नहीं हो जाता। असली महानता बाहरी ऊँचाई या दिखावे में नहीं, बल्कि दूसरों की सहायता करने और समाज के काम आने में है। जैसे, खजूर का पेड़ बहुत ऊँचा होता है, पर वह किसी को छाया नहीं देता, उसके फल भी ऊपर होते हैं, जिन्हें पाना कठिन है। उसी प्रकार व्यक्ति ऊँचे पद पर हो या धन-वैभव वाला हो, पर अगर उसका लाभ किसी को न मिले, समाज को लाभ न दे तो उसकी महानता निरर्थक है। दूसरे शब्दों में वास्तविक महत्व उसी का होता है जो दूसरों के काम आए, सिर्फ़ बड़ा होना कोई मायने नहीं रखता। #साकेत_विचार