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जापान में भगवान गणेश का रूप: कांगितेन

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 जापान में भगवान गणेश का रूप: कांगितेन  भारतीय संस्कृति में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, बुद्धि और समृद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता है। लेकिन यह कम लोग जानते हैं कि जापान में भी गणेशजी की एक विशेष उपासना परंपरा है, जहाँ उन्हें "कांगितेन" (Kangiten) के नाम से जाना जाता है। यह स्वरूप सीधे तौर पर जापानी बौद्ध धर्म, विशेषकर शिंगोन संप्रदाय और एज़ोटेरिक (गूढ़) बौद्ध परंपरा से जुड़ा हुआ है।   ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 📜 - गणेश पूजा का जापान में प्रवेश मुख्यतः चीन के माध्यम से बौद्ध धर्म के प्रसार के दौरान हुआ।   - संस्कृत में "विनायक" और "गणपति" के रूप में पूजे जाने वाले देवता का परिचय बौद्ध साधकों ने जापानियों को कराया।   - जापान में यह रूप कांगितेन के रूप में विकसित हुआ, जिसमें स्थानीय संस्कृति और बौद्ध तांत्रिक साधनाओं का प्रभाव दिखाई देता है।   कांगितेन का स्वरूप 🕉 - कांगितेन के कई रूप हैं, लेकिन सबसे लोकप्रिय रूप "शोतािकांगितेन" है, जिसमें दो शरीर (पुरुष और स्त्री) गले मिलते हुए दर्शाए जाते हैं।   - यह आलिंगन संपूर्णता, संतुलन, करुणा और आनंद का प्रती...

भारतीय खेलों के युगपुरुष-मेजर ध्यानचंद

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  मेजर ध्यानचंद जी को नमन! अमृत विचार में 29.08.2022 अमृत विचार  दिनांक 30.08.2021 आज खेल दिवस पर हॉकी को जादूगर मेजर ध्यानचन्द को शत-शत नमन !!! कोई समय था, जब भारतीय हॉकी का पूरे विश्व में दबदबा था। उसका श्रेय जिन्हें जाता है, उन मेजर ध्यानचन्द का जन्म प्रयाग, उत्तर प्रदेश में 29 अगस्त, 1905 को हुआ था। उनके पिता सेना में सूबेदार थे। उन्होंने 16 साल की अवस्था में ध्यानचन्द को भी सेना में भर्ती करा दिया। वहाँ वे कुश्ती में बहुत रुचि लेते थे; पर सूबेदार मेजर बाले तिवारी ने उन्हें हॉकी के लिए प्रेरित किया। इसके बाद तो वे और हॉकी एक दूसरे के पर्याय बन गये। वे कुछ दिन बाद ही अपनी रेजिमेण्ट की टीम में चुन लिये गये। उनका मूल नाम ध्यानसिंह था; पर वे प्रायः चाँदनी रात में अकेले घण्टों तक हॉकी का अभ्यास करते रहते थे। इससे उनके साथी तथा सेना के अधिकारी उन्हें ‘चाँद’ कहने लगे। फिर तो यह उनके नाम के साथ ऐसा जुड़ा कि वे ध्यानसिंह से ध्यानचन्द हो गये। आगे चलकर वे ‘दद्दा’ ध्यानचन्द कहलाने लगे। चार साल तक ध्यानचन्द अपनी रेजिमेण्ट की टीम में रहे। 1926 में वे सेना एकादश और फिर राष्ट्रीय टीम में ...

जिला स्कूल, छपरा को विरासत स्मारक का दर्जा दिए जाने के संबंध में

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माननीय भारत गणराज्य के राष्ट्रपति  माननीय प्रधानमंत्री, भारत  माननीय मुख्यमंत्री, बिहार  माननीय मुख्य सचिव, बिहार  माननीय सांसद , सारण संसदीय क्षेत्र  विषय - भारत की शान देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी  के विद्यालय बिहार के छपरा जिला स्कूल को विरासत स्मारक का दर्जा दिये जाने के संबंध में।  उक्त विषय के संबंध में सूचित करना है कि जैसा कि आप अवगत ही है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी ने बिहार के छपरा जिला स्कूल से भी शिक्षा ग्रहण की थी।  भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी के विद्यालय छपरा जिला स्कूल को विरासत स्मारक का दर्जा दिया जाना न केवल सारण संसदीय क्षेत्र बल्कि भारत के राष्ट्रीय गौरव से भी संबंधित है । अत : यह विषय भारत के राष्ट्रीय पहचान से भी जुड़ा हूआ है। इसी विद्यालय में डॉ राजेंद्र प्रसाद की शैक्षणिक नींव मजबूत हुई । यही  पर उनके बारे में लिखा गया “ examinee is better than examiner”  अत : आप सभी निवेदन है कि  इस दिशा में उचित कार्रवाई करें ।  निवेदक,  डॉ साकेत सहाय...

हिंदी और आत्मबल

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  #हिंदी #आत्मबल  आज सुबह ट्विटर पर जब एक ट्वीट पढा कि 'अंग्रेजी मोह से ग्रसित चैनल के पत्रकार महोदय जब अपना सवाल ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता से अंग्रेजी में पूछते है तो इस पर नीरज चोपड़ा कहते हैं, सर! हिंदी में प्रश्न पूछिए। यह खबर बहुत बड़ी है।  क्योंकि यह देश के निवासियों के भाषाई आत्म बल को जगाता है। उनके भाषाई प्रेम को दर्शाता है।  आज नीरज चोपड़ा को कौन नहीं जानता है?   वे खेल क्षेत्र के लिए आशा की नयी किरण हैं ।  उनकी यह पहल बहुत बड़ा संदेश हैं ।  हालांकि आप सभी को यह बात अतिश्योक्ति से भरी लगेगी, पर मेरे  जैसे हिंदी प्रेमी के लिए इस घटना ने इसी बहाने जाने-अनजाने महात्मा गाँधी की याद दिला दी।  'जब आजादी के बाद बीबीसी पत्रकार उनसे अंग्रेजी में प्रश्न पूछता हैं तो वे कहते हैं  जाओ जाकर दुनिया को कह दो गाँधी को अंग्रेजी नहीं आती ।  गांधीजी जैसा जिगरा सबका नहीं । फिर भी नीरज ने दुनिया को बहुत बड़ा संदेश दिया है । भाषा केवल संवाद या रोजगार का जरिया मात्र नहीं बल्कि देश के आत्म बल का प्रतीक भी होता  है।  आज यदि देखें तो हर स्...

विशिष्ट वक्ता-०९.०८.२०२५

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आज केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र द्वारा तेलंगाना राज्य के गुरुकुलम विद्यालय के स्नातकोत्तर (पीजीटी) हिंदी अध्यापकों के लिए आयोजित ऑफलाइन नवीकरण पाठ्यक्रम प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत हिंदी शिक्षण में प्रौद्योगिकी का प्रयोग (कृत्रिम मेधा के विशेष संदर्भ  में ) एवं हिंदी में रोजगार  विषय पर ‘विशिष्ट वक्ता’ के रूप में व्याख्यान देने का अवसर प्राप्त हुआ।  संस्थान एवं शिक्षकों का  विशेष धन्यवाद।  #हिंदी #शिक्षण #teaching #साकेत_विचार

प्रेमचंद जी का जयशंकर प्रसाद जी के नाम

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प्रेमचंद की जयंती पर उनका एक पत्र पढ़िए जो जयशंकर प्रसाद के नाम है। उन दिनों प्रेमचंद मुंबई में थे और फ़िल्मों के लिए लेखन कर रहे थे- ====================== अजंता सिनेटोन लि. बम्बई-12 1-10-1934   प्रिय भाई साहब, वन्दे! मैं कुशल से हूँ और आशा करता हूँ आप भी स्वस्थ हैं और बाल-बच्चे मज़े में हैं। जुलाई के अंत में बनारस गया था, दो दिन घर से चला कि आपसे मिलूँ, पर दोनों ही दिन ऐसा पानी बरसा कि रुकना पड़ा। जिस दिन बम्बई आया हूँ, सारे रास्ते भर भीगता आया और उसका फल यह हुआ कि कई दिन खाँसी आती रही। मैं जब से यहाँ आया हूँ, मेरी केवल एक तस्वीर फ़िल्म हुई है। वह अब तैयार हो गई है और शायद 15 अक्टूबर तक दिखायी जाय। तब दूसरी तस्वीर शुरू होगी। यहाँ की फ़िल्म-दुनिया देखकर चित्त प्रसन्न नहीं हुआ। सब रुपए कमाने की धुन में हैं, चाहे तस्वीर कितनी ही गंदी और भ्रष्ट हो। सब इस काम को सोलहो आना व्यवसाय की दृष्टि से देखते हैं, और जन-रुचि के पीछे दौड़ते हैं। किसी का कोई आदर्श, कोई सिद्धांत नहीं है। मैं तो किसी तरह यह साल पूरा करके भाग आऊँगा। शिक्षित रुचि की कोई परवाह नहीं करता। वही औरतों का उठा ले जाना, बलात्...