Posts

शब्द विचार-दावानल

Image
  शब्द विचार  दावानल के अर्थ से हम और आप परिचित हैं।   संस्कृत/प्राकृत से आए शब्द रूप में “दाव” का अर्थ जंगल की सूखी लकड़ी, पत्ते या ज्वलनशील पदार्थ भी होता है — यही अर्थ “दावानल” (दाव + अनल = जंगल का अग्नि-पदार्थ + आग) शब्द बनाता है। यानी दाव = जंगल का ईंधन / सूखी वन-सामग्री। इस प्रकार,  ‘दावानल’ अर्थात् वन की आग जो बाँसों या और पेड़ों की दहनियों के एक दूसरे से रगड़ खाने से उत्पन्न होती है और दूर तक फैलती चली जाती है , दनाग्नि -जंगल /वन की  आग ।  सरल शब्दों में, ‘दाव’ का अर्थ है जंगल और  ‘अनल’ का अर्थ है -आग ।  ‘दाव’ का अर्थ है जंगल और  ‘अनल’ का अर्थ है -आग ।  #शब्द_विचार  -✍️ डॉ• साकेत सहाय #साकेत_विचार

शब्द विचार -विजन और विज़न

Image
  दो शब्द हैं -एक है-विजन और दूसरा शब्द है विज़न(vision) पहले का स्रोत भाषा -संस्कृत और दूसरे का स्रोत भाषा -अंग्रेज़ी ।  पहले संस्कृत-हिंदी के शब्द विजन को समझते हैं - विजन का हिंदी अर्थ है जिसमें अथवा जहाँ आदमी न हो, जनरहित, एकांत, अकेला निर्जन या एकांत स्थान । हवा करने का पंखा आदि ।  वहीं अंग्रेजी के विज़न शब्द के अर्थ से तो आप सब परिचित ही होंगे ।विज़न(Vision) -दृष्टि / दूरदृष्टि / भावी लक्ष्य / कल्पना आदि ।  #शब्द_विचार  -✍️ डॉ• साकेत सहाय #साकेत_विचार

वंदे मातरम् की 150 वीं वर्षगांठ

Image
 आज 7 नवंबर 2025 को भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम - जिसका अर्थ है “माँ, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ”- की 150वीं वर्षगाँठ है। यह रचना, अमर राष्‍ट्रगीत के रूप में स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्र निर्माताओं की अनगिनत पीढ़ियों को प्रेरित करती रही है और आज यह भारत की राष्ट्रीय पहचान और सामूहिक भावना का चिरस्थायी प्रतीक है। वंदे मातरम' पहली बार साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में 7 नवंबर 1875 को प्रकाशित हुई थी ।  बाद में, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने इसे अपने अमर उपन्यास 'आनंदमठ' में इसे शामिल किया, जो वर्ष 1882 में प्रकाशित हुई।  इसे पहली बार 1896 में कोलकाता के कांग्रेस अधिवेशन में रवींद्रनाथ ठाकुर ने संगीतबद्ध किया था। स्वाधीनता आंदोलन में बतौर नारे के रूप में पहली बार ‘वंदे मातरम् का प्रयोग 07 अगस्त 1905 को किया गया था।  वर्ष 1950 में संविधान सभा ने इसे भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया। यह देश की सभ्यतागत, राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना का अभिन्न अंग बन चुका है। इस महत्वपूर्ण अवसर को मनाना सभी भारतीयों के लिए एकता, बलिदान और भक्ति के उस शाश्वत संदेश को फिर से दोहरान...

सम्राट यहाँ मरने आयेगा क्या

Image
 सम्राट यहाँ मरने आयेगा क्या ?  भगवती प्रसाद वाजपेयी अपनी किताब 'प्रेमपथ' की भूमिका लिखवाने मुंशी प्रेमचंद जी के पास जा पहुँचे । दोपहर का समय था और भयानक लू चल रही थी । प्रेस से बाहर जहाँ प्रेमचंद बैठे हुए थे, वहाँ पंखे का कोई प्रबंध नहीं थी । प्रेमचंद उस समय प्रूफ़ पढ़ रहे थे । इतने में जाने कहाँ से एक महाशय आ पहुँचे और पूछने लगे - ''मैं उपन्यास सम्राट प्रेमचंद जी से मिलना चाहता हूँ ।''  प्रेमंचद पहले तो मुस्कराये, फिर गंभीर होकर बोले : ''इस समय उनसे मिलना नहीं हो सकता । ऐसी लू-लपट में कोई सम्राट यहाँ मरने के लिए क्यों आने लगा । जाइये, उनसे सवेरे भेंट होगी, सो भी अपने घर पर ।'' - उद्भ्रांत ( किताब 'कथाकार भगवती प्रसाद वाजपेयी' से) संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता-डॉ साकेत कुमार सहाय 

मन के भाव

Image
  मन के भाव  बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर। कबीर दास जी द्वारा रचित इस दोहे का भावार्थ आज के संदर्भ में समझना बेहद जरूरी है । आप कितने भी महान हो, कितने भी बड़े खानदान या पार्टी से संबंध रखते हों लेकिन आपकी उपयोगिता यदि राष्ट्रहित में संदिग्ध है तो सब बेकार है ।  अर्थात् व्यक्ति ऊँचे पद, धन या हैसियत में तो बड़ा हो गया है, लेकिन अच्छे गुण के अभाव में समाज के लिए उसकी उपयोगिता शून्य है।केवल ऊँचा (बड़ा) होने से कोई महान नहीं हो जाता। असली महानता बाहरी ऊँचाई या दिखावे में नहीं, बल्कि दूसरों की सहायता करने और समाज के काम आने में है। जैसे, खजूर का पेड़ बहुत ऊँचा होता है, पर वह किसी को छाया नहीं देता, उसके फल भी ऊपर होते हैं, जिन्हें पाना कठिन है।  उसी प्रकार व्यक्ति ऊँचे पद पर हो या धन-वैभव वाला हो, पर अगर उसका लाभ किसी को न मिले, समाज को लाभ न दे तो उसकी महानता निरर्थक है। दूसरे शब्दों में वास्तविक महत्व उसी का होता है जो दूसरों के काम आए, सिर्फ़ बड़ा होना कोई मायने नहीं रखता। #साकेत_विचार

प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस

Image
प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस  (25 जुलाई 1925 – 22 अक्टूबर, 2025) प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस  भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख शिल्पकार थे, जिन्होंने विक्रम साराभाई के साथ मिलकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो ) की नींव रखी।  बीते 22  अक्टूबर को उन्होंने इस नश्वर संसार से विदा ली ।  भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की आधारशिला रखने वाले प्रोफ़ेसर चिटणीस ने चिटणी ने इसरो की  प्रारंभिक नीतियों, उपग्रह कार्यक्रमों तथा प्रक्षेपण तकनीकों के विकास में सक्रिय सहयोग दिया। उन्होंने INSAT, IRS जैसे उपग्रह कार्यक्रमों की दिशा तय करने में रणनीतिक योगदान दिया और विज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने के लिए विज्ञान संचार को बढ़ावा दिया। देश के महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस  का इसरो के प्रारंभिक दौर में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा।  उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र में अनेक युवा वैज्ञानिकों को प्रेरित किया और देश की वैज्ञानिक समृद्धि हेतु कार्य किया। प्रोफेसर चिटणीस भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी जे. भाभा के भी घनिष्ठ सहयोगी रहे। भाभ...

अंडमान और हनुमान

Image
 “अंडमान और हनुमान”  अंडमान द्वीपसमूह  (Andaman Islands) का नाम ‘हनुमान’ से जुड़ा हुआ माना जाता है!  इसका भाषिक-ऐतिहासिक स्रोत संस्कृत और प्राचीन मलय परंपरा में मिलता है। भाषावैज्ञानिक क्रम: • संस्कृत शब्द “हनुमान” प्राचीन मलय रूप “Handuman” या “Anduman” → अंग्रेज़ी उच्चारण में “Andaman”। • अर्थात् “Andaman” वास्तव में “Hanuman” का ही रूपांतरण है।  प्राचीन मलय नाविक हनुमान को ‘हैंडुमन’ (Handuman) कहते थे, और यही शब्द समय के साथ ‘अंडमान’ (Andaman) बन गया। ऐतिहासिक उल्लेख: • 13वीं शताब्दी के मार्को पोलो और अन्य यात्रियों के लेखों में “Andaman” द्वीपों का उल्लेख “Land of Hanuman” के रूप में मिलता है। • दक्षिण-पूर्व एशियाई (खासकर मलय और इंडोनेशियाई) परंपराओं में भी यह मान्यता थी कि हनुमान इसी दिशा में समुद्र पार करके लंका पहुँचे थे। 2. पौराणिक संदर्भ – रामायण से संबंध रामायण के अनुसार: • जब हनुमान जी लंका की ओर गए थे, तब उन्होंने दक्षिण दिशा में समुद्र पार किया था।  परंपरागत रूप से यह दिशा तमिलनाडु (रामेश्वरम्) से दक्षिण-पूर्व की मानी जाती ह...