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राष्ट्रभाषा हिंदी

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जो हिंद से संबंधित हो वहीं हिंदी है। यथा, मध्य एशिया के विद्वान गणित को हिन्दसा कहते थे। हिंदी वास्तव में  कोई एक भाषा नहीं  हैं।   यह भाषायी एकाकार की मिसाल है।   जैसे,  भारतवर्ष में  सभी  पंथ, जाति मिलकर, एक होकर भारतीयता की पहचान  बनाती है। वैसे ही  हिंदी सबकी है।  इसे बनाने में  सभी  भाषाओं, बोलियों  का योगदान है। कृपया इसे केवल उत्तर  भारत का न बनाए।  ऐसे प्रकाशनों  से राजनीति एवं अज्ञानता की बू आती है।    अगर आप इन आँकड़ों के आधार पर देखें तो हिंदी को प्राथमिक , द्वितीयक या तृतीयक पसंद के अनुसार देश की 95 फीसदी आबादी किसी न किसी रूप में इसे समझती है। इसी संपर्क गुण के कारण हिंदी सभी भारतीयों के प्रेम, स्नेह की अधिकारिणी बनी। पर जब हम इसे केवल उत्तर भारत से जोड़कर देखते है तो राजनीति  शुरू होती है।  एक बात और हिंदी को बर्बाद करने की पुरज़ोर कोशिश अंगेजीवादियों ने प्रारंभ से ही की है। बाक़ी हिंदी जो थोड़ी-बहुत दिख रही है वह निम्न से मध्यम वर्ग में आए लोगों के कारण दिख रही है। थोड़े-बह...

हिंदी और हिंदीतर का विभाजन

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  यह सर्वविदित है कि भारत की एकता उसकी भाषिक समरसता में है। इस समरसता का बेहतर प्रतिनिधित्व हिंदी से ही संभव है । हिंदी ने इसे सिद्ध भी किया है । हिंदी व्यवहार, कारोबार और संवाद में निर्विवाद रूप से इस देश की अग्रणी भाषा है । हिंदी किसी एक क्षेत्र की भाषा नहीं है यह तो पूरे देश को जोड़ने वाली भाषा है । फिर इस देश में हिंदी और हिंदीतर का विभाजन क्यों है ? इस मलाईदार विभाजन को बंद किया जाए। भाषा प्रलोभनों से कभी आगे नहीं बढ़ती । इस प्रकार के विभाजनों से हिंदी कमजोर ही हुई है और कुछ हिंदीतर हिंदी के नाम पर अपना भला करते रहे । हिंदी सबकी है अत : इस कृत्रिम विभाजन को बंद किया जाए । जय हिंद! जय हिंदी!! साकेत सहाय #साकेत_विचार  #हिंदीराष्ट्रभाषा #हिंदी  #hindiसंपर्क #हिंदी #हिंदीतर

पी वी सिंधु

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 आज प्रसिद्ध भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी पी.वी. सिंधु - पुसर्ला वेंकट सिंधु (तेलुगु :పూసర్ల వెంకట సింధు) का जन्मदिन है। आपका जन्म 5 जुलाई 1995 को हैदराबाद में हुआ। आप विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय शटलर हैं। आप विश्व वरीयता प्राप्त भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी हैं तथा भारत की ओर से ओलम्पिक खेलों में महिला एकल बैडमिंटन का रजत पदक व कांस्य पदक जीतने वाली आप पहली खिलाड़ी हैं। ओलंपिक में रजत पदक और बीडब्ल्यूएफ विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनने के बाद, पीवी सिंधु ने अपना दूसरा ओलंपिक पदक जीता। उन्होंने टोक्यो 2020 में कांस्य पदक हासिल किया और इसी के साथ वह दो ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गईं।  आपने बहुत कम उम्र में बैडमिंटन में गहरी रुचि दिखाई और भारत की महान बैडमिंटन खिलाड़ी के रूप में विख्यात हुईं, बैडमिंटन के प्रति आपका समर्पण लाखों लोगों को इस खेल के प्रति प्रेरित करता है। पुलेला गोपीचंद आपके मुख्य कोच हैं, जिन्होंने आपको बैडमिंटन में प्रशिक्षित किया है। आपको अर्जुन पुरस्कार और खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। #PVS...

हिंदी का प्रहसन और अंग्रेजी

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 #हिंदीराष्ट्रभाषा  हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए राष्ट्रीय संवाद आवश्यक है। अन्य भारतीय भाषाओं का भी समान आदर और संरक्षण जरूरी है । शिक्षा, तकनीक और न्याय में हिंदी की समान भागीदारी बढ़ाई जाए। कृत्रिम मेधा (एआई ) तथा डिजिटल टूल्स में हिंदी को प्राथमिकता देनी होगी ।  और सबसे जरूरी चरणवार तरीके से अंग्रेजी और अंग्रेजियत को विस्थापित करना होगा ।  अंग्रेजी मात्र एक भाषा है उसे आप कभी भी सीख सकते हैं । यदि नहीं कर सकते तो फिर सारे ड्रामा ख़त्म करें और अंग्रेजी को ही राष्ट्रभाषा घोषित कर दें । इस देश की अघोषित राष्ट्रभाषा अंग्रेजी ही है । जिसके विरोध में कोई नही है । हमारी व्यवस्था बस हिंदी को काग़ज़ी तंत्र और वोट तंत्र में उलझाना चाहती है । अत: अंग्रेजी को ही राष्ट्रभाषा घोषित कर देनी चाहिए। वैसे भी इस देश के हर महत्वाकांक्षी व्यक्ति में अंग्रेजी का मोह व्याप्त है और दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह भी है कि आज वही सफल है जो अपनी आकांक्षाओं को येन-केन प्रकारेण लागू करवा लेता है । #हिंदी #hindi #साकेत_विचार  हिंदी का प्रहसन और राष्ट्रभाषा

स्वामी विवेकानंद

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 उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता। -स्वामी विवेकानंद   आज महान भारतीय संत, दार्शनिक और राष्ट्रवादी स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि है।  स्वामीजी ने भारत के युवाओं में राष्ट्रीय चेतना जगाई और भारतीय संस्कृति को विश्व पटल पर पहुंचाया।  स्वामी विवेकानन्द महज 39 साल जिए, पर इस दौरान हजारों वर्षों का काम कर गए। उन्होंने भारत को आध्यात्मिक रूप से जागृत किया।  स्वामीजी का जीवन समस्याओं एवं संघर्षों के पहाड़ के बीच बीता।  स्वामी विवेकानंद पश्चिमी दर्शन सहित विभिन्न विषयों के ज्ञाता होने के साथ-साथ एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह भारत के पहले हिंदू सन्यासी थे, जिन्होंने हिंदू धर्म और सनातन धर्म का संदेश विश्व भर में फैलाया। उन्होंने विश्व में सनातन मूल्यों, हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति की सर्वोच्चता स्थापित की। स्वामी विवेकानंद को आधुनिक भारत के आध्यात्मिक पुनर्जागरण का प्रणेता माना जाता है। स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाएँ ज्ञान का खजाना हैं। वे आत्मविश्वास, ज्ञान की खोज, आत्म-सुधार, दूसरों की सेवा और सार्वभौमिक भ...

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया: भाषिक संस्कार एवं संस्कृति अब ई-बुक के रूप में उपलब्ध

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 सभी सम्मानित जनों को नमस्कार, वर्ष २०१८ में मेरी पहली पुस्तक ‘इलेक्ट्रॉनिक मीडिया : भाषिक संस्कार एवं संस्कृति’ का विमोचन विश्व हिंदी सम्मेलन, मॉरीशस में किया गया था । तब से हिंदी साहित्य के कथेतर श्रेणी में जितना सम्मान इस पुस्तक को मिला, मैंने कभी उसकी कल्पना भी नही की थी। समीक्षकों के अनुसार, इस विषय पर यह विशेष पठनीय पुस्तक है । मीडिया अध्ययन की शीर्ष पुस्तकों में इसे स्थान मिला । पुस्तक दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी, संस्कृति मंत्रालय,  भारत  सरकार  से  वर्ष  २०२१ में साहित्य श्री कृति सम्मान से सम्मानित हुई । पुस्तक की समीक्षा देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं यथा, इंडिया टुडे, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स आदि में  प्रकाशित हुई । पुस्तक मुंबई विश्वविद्यालय, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय समेत देश के पाँच प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी शामिल है। पुस्तक 'इलेक्ट्रॉनिक मीडियाः भाषिक संस्कार एवं संस्कृति' भाषा, कला, बाजार,आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक परिदृश्य, सोशल मीडिया तथा समाज से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जो न...

हिंदी का प्रहसन

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वोट के लिए बापू , बाबा साहेब का सहारा लेने वालों के देश में अंग्रेजी, अंग्रेजियत से प्रेम और हिंदी से द्रोह । एक विदेशी भाषा के प्रति यह अंतहीन प्रेम एवं हीनता-बोध की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है कि तमाम दुश्वारियों के बीच यदि अधिकारी से लेकर क्लर्क और चपरासी तक, अपना और अपने परिवार का पेट काट कर भी, अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूलों में भेजना चाहते हैं और भेज भी रहे है तो इसका कुछ तो मतलब है? क्योंकि प्रदेश और देश की व्यवस्था भी विदेशी भाषा की गुलाम है । उन्हें न तो अपनी परंपरा से मतलब है और न अपनी संस्कृति से । हिंदी के प्रहसन पर मुझे विद्यानिवास जी की पंक्तियाँ याद आ रही हैं- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने कहा था, ‘मेरी झांसी मुझे वापस चाहिए।‘ मैं भी हिन्दी के लेखक की हैसियत से यही मांगता हूँ कि मेरा तो कोई प्रदेश नहीं, कोई वर्ग नहीं,मजहब नहीं, सिर्फ एक देश है, उसे वापस लाओ। बंद करो यह ढोंग कि हिन्दी संपर्क भाषा है। सारा राज-काज अँग्रेजी में, फारसी में या लैटिन में चलाओ! हिन्दी के विकास के मालिकों, हिन्दी को जीनो दो, छूछे सम्मान का जहर न दो,हिन्दी को, देश को वापस बुलाने का...