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मन के भाव

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  मन के भाव  बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर। कबीर दास जी द्वारा रचित इस दोहे का भावार्थ आज के संदर्भ में समझना बेहद जरूरी है । आप कितने भी महान हो, कितने भी बड़े खानदान या पार्टी से संबंध रखते हों लेकिन आपकी उपयोगिता यदि राष्ट्रहित में संदिग्ध है तो सब बेकार है ।  अर्थात् व्यक्ति ऊँचे पद, धन या हैसियत में तो बड़ा हो गया है, लेकिन अच्छे गुण के अभाव में समाज के लिए उसकी उपयोगिता शून्य है।केवल ऊँचा (बड़ा) होने से कोई महान नहीं हो जाता। असली महानता बाहरी ऊँचाई या दिखावे में नहीं, बल्कि दूसरों की सहायता करने और समाज के काम आने में है। जैसे, खजूर का पेड़ बहुत ऊँचा होता है, पर वह किसी को छाया नहीं देता, उसके फल भी ऊपर होते हैं, जिन्हें पाना कठिन है।  उसी प्रकार व्यक्ति ऊँचे पद पर हो या धन-वैभव वाला हो, पर अगर उसका लाभ किसी को न मिले, समाज को लाभ न दे तो उसकी महानता निरर्थक है। दूसरे शब्दों में वास्तविक महत्व उसी का होता है जो दूसरों के काम आए, सिर्फ़ बड़ा होना कोई मायने नहीं रखता। #साकेत_विचार

प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस

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प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस  (25 जुलाई 1925 – 22 अक्टूबर, 2025) प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस  भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख शिल्पकार थे, जिन्होंने विक्रम साराभाई के साथ मिलकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो ) की नींव रखी।  बीते 22  अक्टूबर को उन्होंने इस नश्वर संसार से विदा ली ।  भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की आधारशिला रखने वाले प्रोफ़ेसर चिटणीस ने चिटणी ने इसरो की  प्रारंभिक नीतियों, उपग्रह कार्यक्रमों तथा प्रक्षेपण तकनीकों के विकास में सक्रिय सहयोग दिया। उन्होंने INSAT, IRS जैसे उपग्रह कार्यक्रमों की दिशा तय करने में रणनीतिक योगदान दिया और विज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने के लिए विज्ञान संचार को बढ़ावा दिया। देश के महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस  का इसरो के प्रारंभिक दौर में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा।  उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र में अनेक युवा वैज्ञानिकों को प्रेरित किया और देश की वैज्ञानिक समृद्धि हेतु कार्य किया। प्रोफेसर चिटणीस भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी जे. भाभा के भी घनिष्ठ सहयोगी रहे। भाभ...

अंडमान और हनुमान

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 “अंडमान और हनुमान”  अंडमान द्वीपसमूह  (Andaman Islands) का नाम ‘हनुमान’ से जुड़ा हुआ माना जाता है!  इसका भाषिक-ऐतिहासिक स्रोत संस्कृत और प्राचीन मलय परंपरा में मिलता है। भाषावैज्ञानिक क्रम: • संस्कृत शब्द “हनुमान” प्राचीन मलय रूप “Handuman” या “Anduman” → अंग्रेज़ी उच्चारण में “Andaman”। • अर्थात् “Andaman” वास्तव में “Hanuman” का ही रूपांतरण है।  प्राचीन मलय नाविक हनुमान को ‘हैंडुमन’ (Handuman) कहते थे, और यही शब्द समय के साथ ‘अंडमान’ (Andaman) बन गया। ऐतिहासिक उल्लेख: • 13वीं शताब्दी के मार्को पोलो और अन्य यात्रियों के लेखों में “Andaman” द्वीपों का उल्लेख “Land of Hanuman” के रूप में मिलता है। • दक्षिण-पूर्व एशियाई (खासकर मलय और इंडोनेशियाई) परंपराओं में भी यह मान्यता थी कि हनुमान इसी दिशा में समुद्र पार करके लंका पहुँचे थे। 2. पौराणिक संदर्भ – रामायण से संबंध रामायण के अनुसार: • जब हनुमान जी लंका की ओर गए थे, तब उन्होंने दक्षिण दिशा में समुद्र पार किया था।  परंपरागत रूप से यह दिशा तमिलनाडु (रामेश्वरम्) से दक्षिण-पूर्व की मानी जाती ह...

महात्मा गाँधी की प्रिय पुस्तकें

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  महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की वेबसाईट ‘हिंदी समय’ पर   तेजी ईशा   ने उन पुस्तकों की सूची प्रस्तुत की है जो महात्मा गाँधी पढ़ा करते थे. हमने सोचा अपने पाठकों से भी साझा कर लें- मॉडरेटर. =============== Abott, Lyman: What Christianity Means To Me: A Spiritual Autobiography Advice To A Mother Joseph Addison: Essays Rev. T.: James: Aesop’s Fables AIi, Amir: History of The Saracens Ali, Amir Syed: Spirit of Islam: A History of The Evolution and Ideals of Islam Allison, Dr, T. R.: Hygienic Medicine Allison, Dr: T. R.: Writings on Health and Hygiene Andrew, Charles Freer: What I Owe To Christ Andrews, Charles Freer: Zaka Ullah of Delhi Annual Report of The Inspector of Education in Basutoland, 1909-19 Arab Wisdom: Wisdom of the East series Arnold, Edwin: Indian Idylls Arm of God Arnold, Edwin: Japan via Land and Sea Arnold, Edwin: Life Beyond Death Arnold, Edwin: Light of Asia; Or The Great Renunciation Arnold, Edwin: Seas and Lands Arnold, Edwin: The Son...