द हिंदू के कुछ अंश हिंदी में
प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘द हिंदू’ के कुछ भाग अब हिंदी में….
हिंदी की शक्ति इसके बोलने, समझने वालों की संख्या में निहित है। बाज़ार इसका लाभ अपने कारोबार प्रसार के लिए उठाता रहता है। आज का समाज अपनी ज़रूरतों के लिए हिंदी से लाभ उठाता है। राजनीति, कला, फ़िल्म, संगीत भी हिंदी का प्रयोग अपने असीम लाभ के लिए ही करती है। आज़ादी के बाद स्वार्थ की यह प्रवृत्ति हावी रही। यही कारण रहा कि हिंदी में एक राष्ट्रीय समाचार पत्र का अभाव अखिल भारतीय स्तर पर खटकता रहा। हिंदी संपर्क, संवाद संबंधी ज़रूरतों की वजह से पूरे देश में व्यवहार्य रही, पर पठन-पाठन में सिमटती रही। एक दशक पूर्व तक बंगाल, उड़ीसा, असम, कर्नाटक, आंध्र, तेलंगाना आदि तक में हिंदी की पत्रिकाओं की बिक्री होती थीं, पर समय, राजनीति और गुणवत्ता के अभाव में इनकी बिक्री कम होती रही। सोशल मीडिया, मोबाइल ने भी इसे कमजोर किया। हिंदी में एक राष्ट्रीय अख़बार का अभाव बना रहा। अब कल की ही बात लें जब मैंने १५ अगस्त की खबरें देखने के लिए चैनल खोला तो दक्षिण के राज्यों का कवरेज नाममात्र का था, आज़ादी के बाद राष्ट्रभाषा हिंदी के समाचार पात्रों में इस राष्ट्रीय दृष्टि का अभाव रहा। चैनलों ने प्रयास किया, परंतु उसमें गुणवत्ता का अभाव रहा। मैंने अपनी पुस्तक इले. मीडिया: भाषिक संस्कार एवं संस्कृति में इस पर दृष्टि डालने का प्रयास किया है।
अब एक स्वागत योग्य कदम चेन्नई, दिल्ली से प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित समाचार पत्र द हिन्दू की ओर से आया है। द हिंदू ने हिंदी में आने का प्रारम्भिक प्रयास किया है। शुरुआती कदम के रूप में समाचार पत्र के संपादकीय एवं अन्य लेख हिंदी में भी प्रकाशित किए जाएँगे। द हिंदू के ट्वीट से यह पता लगा है।
परीक्षाओं की तैयारी करने वालों की नज़र में आज भी द हिंदू की अलग अहमियत है। अब हिंदू की ज़िम्मेदारी है कि वह हिंदी में पूर्ण संस्करण उसी गुणवत्ता के साथ निकालें, ताकि अंगेजीवादियों की दृष्टि बदलें। साथ ही इसकी पैठ अखिल भारतीय स्तर पर हों।
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