फादर कामिल बुल्के को नमन








आज फ़ादर कामिल बुल्के (1 सितंबर 1909 - 17 अगस्त 1982) की पुण्यतिथि है। बेल्जियम के मूल निवासी  बुल्के  भारत मिशनरी के काम से आए थे। परंतु भारत प्रेम ने उन्हें मृत्युपर्यंत हिंदी, तुलसी और वाल्मीकि के भक्त बना दिया।  उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन् 1974 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
अकादमिक लिहाज़ से कामिल बुल्के की सबसे मशहूर कृति अँग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोश (1968) मानी जाती है।  कामिल बुल्के को भारत सरकार ने सन् 1951 में भारत की नागरिकता प्रदान कर दी। 1934 में ये भारत की ओर निकल गए और नवंबर 1936 में मुंबई पहुँचे। दार्जिलिंग में एक संक्षिप्त प्रवास के बाद, उन्होंने गुमला में पाँच साल तक गणित पढ़ाया। वहीं पर हिंदी, ब्रजभाषा और अवधी सीखी। उन्होंने 1938 में सीतागढ़, हज़ारीबाग में पंडित बदरीदत्त शास्त्री से हिंदी और संस्कृत सीखी। उन्होंने कहा था, "1935 में मैं जब भारत पहुँचा, मुझे यह देखकर आश्चर्य और दुख हुआ, मैंने यह जाना कि अनेक शिक्षित लोग अपनी सांस्कृतिक परंपराओं से अनजान थे और इंग्लिश में बोलना गर्व की बात समझते थे। मैंने अपने कर्तव्य पर विचार किया कि मैं इन लोगों की भाषा को सिद्ध करूँगा।"

1940 में हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से विशारद की परीक्षा पास की। भारत की शास्त्रीय भाषा में इनकी रुचि के कारण इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय (1942-44) से संस्कृत में मास्टर डिग्री और आख़िर में इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1945-49) में हिंदी साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। शोध का शीर्षक था - 'राम कथा की उत्पत्ति और विकास।'

उनके सम्मान में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में छात्रावास का नाम 'फ़ादर कामिल बुल्के अंतरराष्ट्रीय छात्रावास' रखा गया है।

17 अगस्त 1982 में गैंगरीन के कारण एम्स, दिल्ली में इलाज के दौरान उनका देहांत हुआ।

यह संयोग है कि आज आधुनिक युग के तुलसीदास कहे जाने वाले फादर कामिल बुल्के की पुण्यतिथि पर मुझे महावीर मंदिर जाने का सौभाग्य मिला। आज बहुत कम लोगों को स्मरण होगा कि कामिल बुल्के ने अपने शोध ‘ राम कथा की उत्पत्ति और विकास’ के सहारे भारतीय संस्कृति को जानने और समझने का अपने जीवन-पथ का एकमात्र ध्येय बना लिया।  हिंदी के इस अनन्य प्रेमी को नमन🙏

#साकेत_विचार
#हिंदी
#बुल्क़े

Comments

Anonymous said…
हिंदी सेवी को नमन करता हूं

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