राम-कृष्ण
राम का घर छोड़ना एक षड्यंत्रों में घिरे राजकुमार की करुण कथा हैऔर कृष्ण का घर छोड़ना गूढ़ कूटनीति। राम जो आदर्शों को निभाते हुए कष्ट सहते हैं, कृष्ण षड्यंत्रों के हाथ नहीं आते, बल्कि स्थापित आदर्शों को चुनौती देते हुए एक नई परिपाटी को जन्म देते हैं। श्री राम से श्री कृष्ण हो जाना एक सतत प्रक्रिया है.... राम को मारिचि भ्रमित कर सकता है, लेकिन कृष्ण को पूतना की ममता भी नहीं उलझा सकती। राम अपने भाई को मूर्छित देखकर ही बेसुध बिलख पड़ते हैं, लेकिन कृष्ण अभिमन्यु को दांव पर लगाने से भी नहीं हिचकते। राम राजा हैं, कृष्ण राजनीति...राम रण हैं, कृष्ण रणनीति... राम मानवीय मूल्यों के लिए लड़ते हैं, कृष्ण मानवता के लिए... हर मनुष्य की यात्रा राम से ही शुरू होती है और समय उसे कृष्ण बनाता है। व्यक्ति का कृष्ण होना भी उतना ही जरूरी है, जितना राम होना.. लेकिन राम से प्रारंभ हुई यह यात्रा तब तक अधूरी है, जब तक इस यात्रा का समापन कृष्ण पर न हो।
साभार -सोशल मीडिया
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