नालंदा विश्वविद्यालय नये प्रारूप में







इतिहास को हम और आप बदल नहीं सकते पर इतिहास हमारी विरासतों, प्रतीकों का आईना जरूर होता है। इतिहास हमें सशक्त भविष्य हेतु हमारी अटूट विरासतों से रु-ब-रु कराता है। भारत का इतिहास तो जीवंत अतीत के साथ खंडित प्रतीकों का भी दस्तावेज रहा है। बहुधा हम इन खंडित प्रतीकों में जाने से परहेज भी करते हैं, पर इतिहास तो इतिहास है। वह सत्य की अकाट्य तस्वीर है, चाहे आप कितनी भी इससे छेड़छाड़ कर दें वह सत्य की गवाही जरूर देगा। भारत का इतिहास तो इस छेड़छाड़ का सबसे बड़ा शिकार हुआ। पर सत्य तो 'आत्मा' की तरह अटल, अडिग और अमर है। तभी तो कहा गया है - 

सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्याऽभ्यासेन रक्ष्यते। 

मृज्यया रक्ष्यते रुपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते।। 

भावार्थ: धर्म की रक्षा सत्य से, ज्ञान से अभ्यास से, रूप से स्वच्छता से और परिवार की रक्षा आचरण से होती है।

भारत देश की संरचना भी सत्य की नींव पर खड़ी है। इसीलिए तमाम रक्तरंजित आक्रमणों के बावजूद यह देश जीवंत है, इसका इतिहास शाश्वत हैं । हमारा इतिहास बार-बार जीवंतता और भाव-बोध के साथ पुनः उठ खड़ा होता है। हम भारतीय पुनः अपने गौरवमयी इतिहास को देखने के साक्षी बन रहे हैं। वर्ष 1193 में दुर्दांत आक्रमणकारी आधुनिक शब्दों में आतंकवादी बख्तियार खिलजी ने कभी भारत के गौरव के प्रतीक 'नालंदा विश्वविद्यालय' को नेस्तनाबूत कर दिया था। तब से यह अपूर्व विरासत खंडहर के रुप में तब्दील होता रहा। कभी नालन्दा विश्वविद्यालय पूरी दुनिया का ज्ञानपीठ माना जाता था। भारतीय ज्ञान-विज्ञान, धर्मशास्त्र, साहित्य, दर्शन, कला, शिल्प, सभ्यता का प्रमुख ज्ञान केंद्र था। यहाँ के स्नातक प्रकाण्ड पांडित्य से पूरी दुनिया को प्रेरित कर रहे थे। जब सनातन संस्कृति की मूल प्रतीकों के साथ संपूर्ण एशिया में बौद्ध मत की विजय पताका फहरा रही थी, तब भारतीय ज्ञान-विज्ञान का मूल स्रोत नालन्दा ही था। नालंदा की भव्यता के बारे में इतिहास में बहुत कुछ लिखा गया है। सबसे प्रमुख तथ्य यह है कि दूसरी शती के मध्य में यह एक बहुप्रतिष्ठित ज्ञान केंद्र था। महायान के प्रवर्तक नागार्जुन का संबंध यहीं से रहा। नालन्दा को महाज्ञानियों का गढ़ भी माना जाता रहा है। 

वर्तमान नालंदा के एक गाँव में भारतीय पुरातत्व विभाग की देखरेख में यह अपूर्व विरासत केंद्र अपने ध्वंसावशेष, ऊँची दीवारें, अनगिनत टीले, प्राचीन तालाब इत्यादि के साथ अपने गौरव-गाथा को आगंतुक पर्यटकों के दिलों में भारतीय इतिहास की जीवंतता का बखान करता है। पर कभी इस केंद्र में सुदूरवर्ती चीन, जापान, मध्य एशिया, तिब्बत, श्याम, बर्मा, मलय इत्यादि देशों के विद्यार्थी अध्ययन हेतु आते थे। यहाँ अठारह बौद्ध निकाय ग्रन्थों के अतिरिक्त वैद्यक, दर्शन, साहित्य, कला, ब्राह्मण एवं जैन-दर्शन आदि की भी शिक्षा दी जाती थी। खंडहरों की खुदाई से यह ज्ञात होता है कि यहाँ हर प्रकार की शिक्षा का सुव्यवस्थित प्रबन्ध था। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार, नालंदा में दस हजार से अधिक छात्र पढ़ते थे और अध्यापकों की संख्या डेढ़ हजार के करीब थीं । करीब तीन सौ छात्रावास भवन थे। रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक नामक तीन विशाल पुस्तकालय भवन थे। इन पुस्तकालयों में विविध विषयक ग्रंथ मौजूद थे। 

नालन्दा समस्त संसार में ज्ञान-विज्ञान के पथ-प्रदर्शक के रुप में विख्यात था। भारत-दुर्दशा के बुरे दिनों में विदेशी आक्रांता के आक्रमण ने विश्वविख्यात नालन्दा को नेस्तनाबूत कर दिया। कहा जाता है कि कई मास तक यह विश्वविद्यालय जलता रहा। आज भी इसके ध्वंसाशेष में मिली जली ईंटें इसकी गवाही दे रही हैं । 

अब, यह एक सुखद समाचार है कि खंडहर में तब्दील नालंदा विश्वविद्यालय को एक नए कलेवर में पुनः खड़ा किया जा रहा है। नालंदा विश्वविद्यालय का यह नवीन परिसर पूरी तरह से बनकर तैयार है। समय बदला, सोच बदली की नीति के साथ नालंदा विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास को नए संकल्प के साथ स्थापित करने के लिए बिहार सरकार ने केंद्रीय सरकार के वित्तीय सहयोग से नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण कराया है, विश्वविद्यालय का यह ढांचा प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की प्रतिकृति के रुप में निर्मित है। सब कुछ प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का अहसास देगा। 

प्रार्थना है इस पहल के साथ ही इसे भारत के 'ज्ञान केंद्र' के रुप में स्थापित किया जाए । साथ ही, भारत कभी अपनी भाषा, संस्कृति और ज्ञान के बल पर विश्व गुरू बना था, आशा है सरकार इस स्मृति का भान रखते हुये विश्वविद्यालय में संस्कृत, हिंदी एवं सभी भारतीय भाषाओं में संचित ज्ञान को उन्मुख करने की दिशा में कार्य करेगी। तभी यह 'ज्ञान केंद्र' ऐतिहासिक विरासतों के मूल धरोहरों को जीवंत कर सकने में सक्षम हो सकेगा। 

शीघ्र ही माननीय प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री, बिहार के कर-कमलों से विश्वविद्यालय का लोकार्पण किया जाएगा। तब तक इस अपूर्व धरोहर के नए प्रारूप का आनंद लें एवं समेकित संकल्प अपनी भाषा, ज्ञान को सशक्तता प्रदान करने का जरूर लें ।

 जय हिंद! जय हिंदी!! 

 #नालंदा #











साकेत_विचार

Comments

pranita sahay said…
Heritage of Bihar

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