प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस
प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस
(25 जुलाई 1925 – 22 अक्टूबर, 2025)
प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख शिल्पकार थे, जिन्होंने विक्रम साराभाई के साथ मिलकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो ) की नींव रखी। बीते 22 अक्टूबर को उन्होंने इस नश्वर संसार से विदा ली ।
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की आधारशिला रखने वाले प्रोफ़ेसर चिटणीस ने चिटणी ने इसरो की प्रारंभिक नीतियों, उपग्रह कार्यक्रमों तथा प्रक्षेपण तकनीकों के विकास में सक्रिय सहयोग दिया। उन्होंने INSAT, IRS जैसे उपग्रह कार्यक्रमों की दिशा तय करने में रणनीतिक योगदान दिया और विज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने के लिए विज्ञान संचार को बढ़ावा दिया।
देश के महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस का इसरो के प्रारंभिक दौर में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र में अनेक युवा वैज्ञानिकों को प्रेरित किया और देश की वैज्ञानिक समृद्धि हेतु कार्य किया।
कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में जन्मे प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस ने इसरो के प्रारंभिक दौर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय से भौतिकी में मास्टर डिग्री प्रथम श्रेणी में प्राप्त की। माता-पिता की असामयिक मृत्यु के कारण उनकी परवरिश दादा-दादी ने की।
आरंभ में वे आकाशवाणी (All India Radio) में काम करना चाहते थे, बाद में उन्होंने विज्ञान-अनुसंधान के क्षेत्र में जाने का निर्णय लिया। बाद में चिटनीस जी ने भौतिकीय अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL), अहमदाबाद से अपना वैज्ञानिक करियर शुरू किया। वे Indian National Committee for Space Research (INCOSPAR) के मेंबर-सचिव रहे, जो बाद में ISRO बनी। उन्होंने भारत के पहले दूरसंचार उपग्रह और अन्य उपग्रह अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने “भारत का पहला दूरसंचार उपग्रह” बनाने में योगदान दिया) उनके निर्देशन में और पहल पर, अब्दुल कलाम को प्रशिक्षण के लिए चयनित किया गया था। उन्होंने थुम्बा स्थित रॉकेट लॉन्चिंग के चयन में भी भूमिका निभाई थी । प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस ने वर्ष १९६१ में केरल के थुम्बा को भारत के पहले रॉकेट लॉन्च साइट के रूप में चुना—एक ऐसा स्थान जो एक गिरजाघर(चर्च) के पास था । शुरू में स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया था, लेकिन यह उनकी दूरदर्शिता ही थी कि थुंबा चुंबकीय भूमध्यरेखा के निकट होने के कारण देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए आदर्श साबित हुआ।
वे एपीजे अब्दुल कलाम के मार्गदर्शक थे और उनकी की योग्यता को देखकर उन्होंने कलाम साहब को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में शामिल करने की सिफारिश की। उनका यह निर्णय भी अत्यंत दूरदर्शिता पूर्ण साबित हुआ । 1975-76 के सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (SITE) के जरिए उन्होंने नासा के उपग्रह की मदद से 2400 गांवों तक शिक्षा पहुंचाई, जिसे उन्होंने "आकाश का शिक्षक" कहा ।
अंतरिक्ष क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें वर्ष 1985 में पद्म-भूषण से सम्मानित किया गया। वर्ष 2025 में उनके शताब्दी वर्ष पर, Indian Institute of Science Education and Research, Pune में उनके सम्मान में एक दिवस का संस्मरण कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था ।
अपने छात्रों को प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस कहते थे —“विज्ञान केवल ज्ञान नहीं, बल्कि दृष्टि है — देखने, सोचने और बदलने की।”
प्रोफेसर एकनाथ वसंत चिटणीस एक दूरदर्शी योजनाकार, श्रेष्ठ प्रशासक और प्रेरणादायी शिक्षक के रूप में सदैव स्मरण किए जायेंगे ।

 
 
 
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