Sunday, June 30, 2024

भारत मूल्य



इस्लाम के अभ्युदय के समय तथा उसके जन्म से पूर्व, अरब एवं ईरान के लोग भारत की सभ्यता औऱ संस्कृति से बखूबी परिचित थे। 

" जेरूसलम के हमीदिया पुस्तकालय में हारुन राशीद के महामंत्री फजल-बिन-याहिया का मुहर लगा हुआ एक ताम्र पत्र मिला है, जिस पर 128 छंद लिखे हुए हैं, जिनमें भारतवर्ष, वेद तथा आर्य ज्ञान-विज्ञान की बड़ी प्रशंसा की गयी है। .........हज़रत मुहम्मद से 500 वर्ष पूर्व के कवि जरहम-बिन-ताई की कविता में गीता के "परित्राणाय साधूनांविनाशाय च दुष्कृताम् "  इत्यादि श्लोकों के आधार पर श्री कृष्णावतार की चर्चा औऱ प्रशंसा है। इसमें महादेव की आराधना इष्टफलदायिनी बतायी गयी है।" 

स्रोत-

संस्कृति के चार अध्याय- राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’

अब दुर्भाग्यवश उसी अरब-तुर्क उपनिवेशवाद के नाम पर अपने ही पुरखों के देव, अपनी ही माटी के लोगों की कट्टरता से, जघन्यता से भारत को कलंकित किया जा रहा है। इस महान भूमि का सम्मान करें, जो आपको शरण देती है। जो अपनी मातृभूमि, अपनी संस्कृति का नहीं उसे दोज़ख़ में भी जगह नहीं मिलती। 

भारत की मौलिकता को बना कर रखें। भारत हजार सालों से खड़ा है, अपनी भव्य एवं दिव्य आत्माओं के बल पर। 

यूनानों, मिस्रों, रोमां, मिट गए जहाँ से, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी…

यह शक्ति थीं भाषा, संस्कृति, धर्म, चरित्र, नैतिकता की। 

आइए शिव, राम-कृष्ण की भूमि को नमन करते हुए कट्टरता का समूल नाश करें। 

जय हिंद! जय भारत!!

वन्दे मातरम्!

#साकेत_विचार #दिनकर #संस्कृति

बाबा नागार्जुन


अपने प्रगतिशील विचारधारा के विख्यात, हिंदी एवं मैथिली में उत्कृष्ट लेखन एवं प्रयोगधर्मिता के लिए प्रसिद्ध कवि एवं साहित्यकार बैद्यनाथ मिश्र "यात्री" उर्फ ‘बाबा नागार्जुन’ जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन। बिहार के मधुबनी जिले में जन्मे बैद्यनाथ मिश्र उर्फ‘बाबा नागार्जुन’ने अपनी मातृभाषा मैथिली में 'यात्री' उपनाम से लिखा। काशी प्रवास में उन्होंने ‘वैदेह’ उपनाम से भी रचनाएँ लिखी। पाली सीखने के लिए वे श्रीलंका के बौद्ध मठ पहुंचे और यहीं  'नागार्जुन' नाम ग्रहण किया। कबीर और निराला की श्रेणी के अक्खड़ लेखक नागार्जुन ने हिन्दी के अतिरिक्त मैथिली, संस्कृत एवं बांग्ला में मौलिक रचनाएँ एवं अनुवाद कार्य किया।आपने अपनी फकीरी व बेबाकी से अपनी अनोखी साहित्यिक पहचान बनाई।    

 नागार्जुन की एक कविता

सुबह-सुबह

सुबह-सुबह

तालाब के दो फेरे लगाए

सुबह-सुबह

रात्रि शेष की भीगी दूबों पर

नंगे पाँव चहलकदमी की 

सुबह-सुबह

हाथ-पैर ठिठुरे, सुन्न हुए

माघ की कड़ी, सर्दी के मारे

 

सुबह-सुबह

अधसूखी पत्तियों  का कौड़ा तापा

आम के कच्चे पत्तों का

जलता, कडुआ कसैला सौरभ लिया

 सुबह-सुबह

गँवई अलाव के निकट

घेरे में बैठने बतियाने का सुख लूटा

 सुबह-सुबह

आंचलिक बोलियों का मिक्सचर

कानों की इन कटोरियों में भरकर लौटा

सुबह-सुबह

स्रोत – नागार्जुन रचना संचयन, प्रकाशन – साहित्य अकादेमी,   

 #नागार्जुन

 🙏🌺 

#साकेत_विचार

डॉ साकेत सहाय

भाषा सेवी

३०.०६.२०२४

हैदराबाद

Sunday, June 23, 2024

श्यामा प्रसाद मुखर्जी




राष्ट्रहित ही सर्वोपरि हैं। इन पंक्तियों को अपना सर्वोच्च लक्ष्य मानने वाले भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की आज पुण्यतिथि है।  डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए सदैव संघर्षशील रहे।  देश के समक्ष उन्होंने कांग्रेस का राजनीतिक विकल्प जनसंघ के रूप में प्रस्तुत किया ।  जिसकी परिणति आज भारतीय जनता पार्टी के रूप में हम सभी देख रहे हैं । श्याम प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी और प्रांतीय स्तर पर प्रादेशिक भाषा के पैरोकार थे। वे बंगाल में बांग्ला भाषा के पैरोकार थे, वे बांग्ला भाषा में  पाठ्यक्रम चाहते थे जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया। श्यामा बाबू स्वतंत्रता सेनानी, लोकप्रिय नेता और अकादमिक  जगत में भी सक्रिय थे।  वे एक भाषा प्रेमी भी थे।

कश्मीर में उन्होंने एक राष्ट्र दो विधान का विरोध किया तो तत्कालीन कश्मीरी प्रधान शेख अब्दुल्ला ने उन्हें कारावास की सजा दी।  जहाँ संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मौत हुई। बाद में प्रधानमंत्री नेहरू ने इसकी जाँच से भी मना कर दिया था। देश ने एक राष्ट्र एक विधान के संकल्प को पूरा कर उनके सपनों को फलीभूत किया। 

आजाद भारत के इस प्रथम शहीद को उनकी ७१वीं पुण्यतिथि पर मेरा शत शत नमन !  

इस पोस्ट के साथ आप सभी के लिए एक ऐतिहासिक चित्र संलग्न है- चित्र में संसद भवन परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर के साथ विमर्श करते हुए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी

#श्यामाप्रसाद_मुखर्जी

#साकेत_विचार

Sunday, June 2, 2024

लेखक निर्धारण की कसौटी

 लेखक निर्धारण की कसौटी


मेरे विचार से लेखक, साहित्यकार की लेखनी देश, समाज के हित में समर्पित हो।  देश, काल में विद्यमान जाति, पंथ, मत से परे संस्कार, सार्थक परंपराओं, लोक संस्कृतियों, बोलियों, ऐतिहासिक भाव-बोध के साथ सबसे महत्वपूर्ण जीवन मूल्यों को प्रोत्साहित  करने वाली हो यह प्राथमिक लेखकीय दायित्व हो। तभी वह वास्तव में साहित्यकार है अन्यथा सब जुगाड़ू हैं। वरिष्ठ लिखना अनुभव और उम्र का सम्मान है पर दुर्भाग्य से योग्यता के ऊपर पद, पैसा, रसूख़, संपर्क, संबंध, व्यवहार अधिक हावी होते चले जा रहे है। जिससे मूल लेखकत्व कमजोर पड़ता जा रहा है। 

डॉ साकेत सहाय

#साकेत_विचार #लेखक

रसोई के बहाने भारतीय भाषाओं की शाब्दिक एकता को समझे

 भारतीय भाषाओं की शाब्दिक एकता 




आज का शब्द - रसोई

हम सभी जानते ही हैं कि रसोई वह स्थान है जहाँ रसपूरित व्यञ्जन बनाए जाते हैं, इसका अर्थ स्वादिष्ट भोजन भी है। रसोई-घर, खाना पकाने की जगह, बावर्चिखाना।  

पका हुआ खाद्यपदार्थ, बना हुआ भोजन, विशेष-सनातनी हिंदुओं में रसोई दो प्रकार की मानी जाती है कच्ची और पक्की, कच्ची रसोई वह कहलाती है जो जल और आग के योग से बनी हो, और जिसमें घी की प्रधानता न हो, जैसे-चावल, दाल, रोटी आदि, ऐसी रसोई चौके में बैठकर खाई जाती है, पक्की रसोई वह कहलाती है जिसके पकने में घी की प्रधानता रही हो। जैसे पराँठा, पूरी, बड़े, समोसे आदि, ऐसी चीजें चौके से बाहर भी खाई जा सकती हैं और इनमें छुआछूत का विशेष विचार नहीं होता, , बना हुआ भोजन, पका हुआ खाद्यपदार्थ

रसोई संस्कृत भाषा के शब्द रसवती का तद्भव रूप है जो शौरसेनी प्राकृत के 𑀭𑀲𑀯𑀤𑀻 (रसवदी) के रूप से हो कर रसवै बनता हुआ हिन्दी भाषा में रसोई हो गया।

आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में इसके स्वरूप हैं:

कुमाऊँनी: रस्या

नेपाली: रसोई

बंगाली: रसुइ, रोसाइ

बिहारी, अवधी, हिन्दी: रसोई

मारवाड़ी: रसोई (भोजन), रसौड़ा (भोजन बनाने का स्थान)

गुजराती: रसवई (भोजन), रसोई (स्थान)

पहाड़ी (पश्चिमी) रेसोइ

गढवाली: रुसइ

पंजाबी: ਰਸੋਈ (रसोई)

मराठी :  स्वयंपाक घर, भोजनगृह। 

संकलन-डॉ साकेत सहाय

सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस

आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है।  आज 'भारतीय भाषा दिवस'  भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...