Sunday, September 26, 2021

हिंदी के साथ देश की पहली सरकार का दोयम व्यवहार

स्वतंत्रता  प्राप्ति के बाद अधिकांश सरकारों ने 'अंग्रेजी बसाओ' की नीति के नाम पर भाषाई क्षेत्रवाद का ही पोषण किया। आजादी के बाद की प्रथम सरकार ने माहौल के विपरीत हिंदी के साथ सबसे अधिक धोखा किया। जनता मूढ़मति के रूप में इस भाषाई राजनीति का शिकार होकर न अपनी भाषा की


रही, न अंग्रेजी की और न अपनी संस्कृति और परंपरा की।  सबसे विमुख । हम अंग्रेजी के तो कभी हो भी नहीं सकते। क्योंकि जब आँख यानी मातृभाषा को ही चश्मा मानेंगे और चश्मा यानी विदेशी भाषा को आँख मानेंगे तो क्या होगा?  अब भी वक्त है संभल जाए।  



Friday, September 24, 2021

दिनकर जी और राष्ट्रभाषा

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अधिकांश सरकारों ने 'अंग्रेजी बसाओ' की नीति के नाम पर भाषाई क्षेत्रवाद का ही पोषण किया। हम भी मूढ़मति इस भाषाई राजनीति के शिकार होकर न अपनी भाषा के रहे, न अंग्रेजी के और न अपनी संस्कृति और परंपरा के।  सबसे विमुख । हम अंग्रेजी के तो कभी हो भी नहीं सकते। क्योंकि जब आँख यानी मातृभाषा को ही चश्मा मानेंगे और चश्मा यानी विदेशी भाषा को आँख मानेंगे तो क्या होगा?  अब भी वक्त है संभल जाए। 

मॉरीशस में हिंदी प्रचारिणी सभा का संदेश वाक्य है - 'भाषा गई,  संस्कृति गई।'

कल राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की जयंती थी।  वे भी राष्ट्रभाषा  हिंदी  की पीड़ा और सत्ता के षड्यंत्र को समझते थे। तभी तो 20 जून, 1962 को राज्यसभा में हिंदी के अपमान को लेकर उन्होंने अपनी पीड़ा को इस प्रकार अभिव्यक्त किया-

'देश में जब भी हिंदी को लेकर कोई बात होती है, तो देश के नेतागण ही नहीं बल्कि कथित बुद्धिजीवी भी हिंदी प्रेमियों को अपशब्द कहे बिना आगे नहीं बढ़ते। पता नहीं इस परिपाटी का आरम्भ किसने किया है, लेकिन मेरा ख्याल है कि इस परिपाटी को प्रेरणा जरूर प्रधानमंत्री से मिली है। पता नहीं, तेरह भाषाओं की क्या किस्मत है कि प्रधानमंत्री ने उनके बारे में कभी कुछ नहीं कहा, किन्तु हिंदी के बारे में उन्होंने आज तक कोई अच्छी बात नहीं कही। मैं और मेरा देश पूछना चाहते हैं कि क्या आपने हिंदी को राष्ट्रभाषा इसलिए बनाया था ताकि सोलह करोड़ हिंदीभाषियों को रोज अपशब्द सुनाएं? क्या आपको पता भी है कि इसका दुष्परिणाम कितना भयावह होगा?

यह सुनकर पूरी राज्यसभा सन्न रह गई। दिनकर जी ने फिर कहा- ‘मैं इस सभा और खासकर प्रधानमंत्री नेहरू से कहना चाहता हूं कि हिंदी की निंदा करना बंद किया जाए। हिंदी की निंदा से इस देश की आत्मा को गहरी चोट पहंचती है।'


#दिनकर 


#साकेत_विचार


रिश्ते और भाषा


 रिश्ते और भाषा 

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अधिकांश सरकारों ने 'अंग्रेजी बसाओ' की नीति के नाम पर भाषाई क्षेत्रवाद का ही पोषण किया। हम भी मूढ़मति इस भाषाई राजनीति के शिकार होकर न अपनी भाषा के रहे, न अंग्रेजी के और न अपनी संस्कृति और परंपरा के।  सबसे विमुख । हम अंग्रेजी के तो कभी हो भी नहीं सकते। क्योंकि जब आँख यानी मातृभाषा को ही चश्मा मानेंगे और चश्मा यानी विदेशी भाषा को आँख मानेंगे तो क्या होगा?  अब भी वक्त है संभल जाए।
मॉरीशस में हिंदी प्रचारिणी सभा का संदेश वाक्य है - 'भाषा गई,  संस्कृति गई।'

साड़ी का विरोध करने से क्या देश को समृद्धि मिलेगी? क्या सब को अंकल बोलकर रिश्तों का भारतीय अहसास मिलेगा?  पीसी माँ, चाचा, ताऊ, अन्ना, बुआ जैसे शब्दों को विस्थापित करके क्या आनंद की प्राप्ति होगी? या परिहास के पात्र बनेंगे।   क्या कभी वो भाव अंकल.....में आ पाएगा? रिश्तों में भाव तो शाब्दिक संस्कारों से आते हैं ।  शायद यही कारण है कि अब रिश्ते भी शब्दों की तरह आंग्ल होते जा रहे हैं । वैसे भी कहा जाता है 'भाषा से हमारे संस्कार, संस्कृति और विरासत भी जुड़े होते है। आमीन!

#साकेत_विचार

Thursday, September 23, 2021

भारत की प्राचीनता पर राष्ट्रकवि दिनकर जी के विचार

भारत कोई नया देश नहीं है। जिस भाषा में उसकी संस्कृति का विकास हुआ, वह #संसार की सबसे #प्राचीन भाषा है।  जो ग्रंथ भारतीय सभ्यता का आदि-ग्रंथ समझा जाता है, वही समग्र मानवता का भी प्राचीनतम ग्रंथ है। विदेशियों के द्वारा बार-बार पद-दलित होने पर भी भारत अपनी संस्कृति से मुँह मोड़ने को तैयार नहीं हुआ । अब जो वैज्ञानिक और औद्योगिक सभ्यता आ रही है, वह भी भारत से उसके अतीत का प्रेम नहीं छीन सकेगी। सत्य केवल वही नही है, जो पिछले दो सौ वर्षों में विकसित हुआ है। उस ज्ञान का भी बहुत-सा अंश सत्य है, जिसका विकास पिछले छह हजार वर्षों में हुआ है। भारत को वह नवीन सत्य भी चाहिए, जो शारीरिक समृद्धि को संभव बनाता है, और प्राचीन काल का वह सत्य भी जो शारीरिक समृद्धि को संभव बनाता है, और  प्राचीन काल का वह सत्य भी जो शारीरिक समृद्धि के लिए आत्मा के हनन को पाप समझता है।

- रामधारी सिंह दिनकर 



शत -शत नमन


आइए दिनकर जी की जन्म जयंती पर इन पंक्तियों को स्मरण करें । 

तुम कौन थे और क्या हो गए.....

Tuesday, September 14, 2021

हिंदी दिवस पर कुछ भाव

आज पता नहीं क्यूँ 'हिंदी दिवस' के अवसर पर कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'बूढी काकी' की याद आ गई ।  

इस अवसर पर एक विनम्र  अपील-

हिंदी को चाहिए हिंदी के लिए बोलने वाला, हिंदी के लिए कुछ सोचने, करने वाला, हिंदी का प्रहसन न करने वाला, हिंदी पर गर्व करने वाला, हिंदी को चाहिए ऐसा हिंदी वाला जो इसे अग्रगामी भाषा बनाने में सहयोग करे। 

फिर भी भारतीय संविधान के सभी प्रेमियों को हिंदी दिवस की मंगलकामना!

जय हिंद! जय हिंदी!!

#साकेत_विचार


हिंदी अपमान नहीं सम्मान की भाषा

 सोशल मीडिया में दो चुटकुले अक्सर दिखते हैं - 


1. भारत के भाषिक गुलाम और अंग्रेजी के अंध अनुचर हिंदी शब्दावली को कठिन कहकर इसे हास्य-व्यंग्य का हिस्सा बनाकर खुद को  ही मसखरा सिद्ध करते  है। उन्हें स्वयं को पता होना चाहिए कि वे अपनी ही भाषा की अपमान कर रहे है । जो उनके देश की, राष्ट्र की, बाबा साहब के संविधान की भाषा है। जिसे जन व नीति निर्माताओं ने राष्ट्रभाषा से राजभाषा बनाया। तो क्या हिंदी का अपमान  भारतीय संविधान, स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और बाबा साहब और राष्ट्रपिता का अपमान नहीं है। 

अक्सर हिंदी द्रोही  ट्रेन के लिए लौहपथगामिनी जैसे निरर्थक शब्दों  का प्रयोग करते है। पता नहीं ऐसे मूर्ख कौन-से विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करके आए हैं? यह हिंदी का शाब्दिक अपमान तो हैं ही, उस भाव का भी अपमान है जिस भाव के तहत हिंदी ने सबको एक सूत्र में पिरोया। क्या यह पिरोना बिना हिंदी की सहजता और सरलता के संभव था?  आज भी गांव में लोग ट्रेन को पटरी गाड़ी कहते हैं । फिर किस षड्यंत्र के तहत इस प्रकार की शब्दावली गढ़ी गयी।  

तथ्य यह है कि लौह पथ गामिनी जैसे शब्द हिंदी के किसी भी शब्दकोष में तशामिल  नहीं हैं । यह मात्र भाषिक मजाक का हिस्सा भर है । सच तो यह है कि हिंदी में दूसरी भाषाओं को पचाने की अद्भुत क्षमता हैं और उसके पास संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं का अपूर्व शब्द भंडार है । वास्तव में रेलगाड़ी संकर शब्द हैं ।  हिंदी में ऐसे बहुत से शब्द हैं जो शब्द के चार रूप के अंतर्गत नहीं आते। इन्हें संकर या द्विज शब्द कहा जा सकता है ।  रेलगाड़ी (अंग्रेजी +हिंदी) मालगाड़ी (अरबी +हिंदी) राजमहल (हिंदी +अरबी)। आदि । 

दूसरा इसी प्रकार हिंदी के साहित्य की बिक्री को किलो में लोग दिखाते है  क्या ऐसा अंग्रेजी में नहीं होता ? आप दिल्ली के किसी भी मैट्रो में चले जाए आपको अंग्रेजी का साहित्य कुड़े के भाव मिल जाएगा। क्या यह साहित्य का अपमान नहीं है । सच यह है कि साहित्य कोई भी हो सभी का सम्मान होना चाहिए । पर देश की भाषा सबसे ऊपर है और हिंदी तो भारत का सिरमौर है। 

आइए हिंदी पर गर्व करें । संविधान का सम्मान करें । कभी सोचिएगा ।आज सोशल मीडिया पर यह संदेश दिखा 

हिंदी*

हमारी *हिंदी*

राष्ट्र भाषा है *हिंदी*

हिन्द देश की आन है *हिंदी*

संस्कृत की लाडली बेटी है *हिंदी*

हिंदुस्तान की तो मातृभाषा है *हिंदी*

हमारा मान,सम्मान,अभिमान है *हिंदी*

हिंदुस्तान के माथे की तो बिंदी है यह *हिंदी*

सुंदर, मीठी, सरल और सहज भाषा है *हिंदी*

हम सबकी एकता की अनुपम परंपरा है *हिंदी*

सब जन को एकसूत्र में पिरोने वाली डोर है *हिंदी*

काल को जीत लिया वो कालजयी भाषा है *हिंदी*

स्वतंत्रता की अलख जगाने वाली भाषा है *हिंदी*

जिसके बिना हिंद थम जाए वो भाषा है *हिंदी*

गुलामी की जंजीर तोड़ने वाली थी *हिंदी*

हिंदुस्तान की तो जीवन रेखा है *हिंदी*

वीर सपूतों की लाडली थी *हिंदी*

स्वतंत्रता की कहानी है *हिंदी*

पराई नहीं अपनी है *हिंदी*

आपकी भी है *हिंदी*

मेरी भी है *हिंदी*

सबकी *हिंदी*

हिंदी *हिंदी*

*हिंदी*

आज १४ सितंबर *विश्व हिंदी दिवस* की शुभकामना 🙏


#साकेत_विचार

Thursday, September 9, 2021

एक आम करदाता की पीड़ा ....

 एक आम करदाता की पीड़ा ....

आज सोशल मीडिया पर एक अच्छा संदेश दिखा। इस पर मन में कुछ विचार आए। यह कि क्या कथित विश्व गुरु  का सपना दिखाने वाले,  सभी को छ: छजार रूपए देने का सपना दिखाने वाले, बिजली-पानी निःशुल्क, लैपटॉप और तीर्थयात्रियों को निःशुल्क  तीर्थाटन का सपना दिखाने वाले नेताओं के लिए यह संदेश ध्यान देने योग्य नहीं हैं । क्या लालच से,आरक्षण से नैतिक बल से किसी समृद्ध  राष्ट्र का निर्माण हो सकता हैं?  जो देश कभी अपने समृद्ध संस्कार और संस्कृति के लिए जाना जाता था, वहां का चुनावी तंत्र किस प्रकार की भावी व्यवस्था के निर्माण की नींव रख रहा है? सब कुछ नैतिकता विहीन। लोभ-लालच पर आधारित । 


संदेश देखें (आवश्यक संंशोधन के साथ)

तुम हमें वोट दो

हम तुम्हें-

... लैपटॉप देंगे ..

... स्कूटी देंगे ..

...  बिजली देंगे ..

... कर्जा डकार जाना, हम माफ कर देंगे 

... ये देंगे .. वो देंगे .. 

ये क्या खुल्लम- खुल्ला रिश्वत नहीं ?

इस देश में क्या कोई तंत्र भी है ? सरकार, न्यायपालिका को इस पर रोकथाम के लिए  विशेष रूप से चुनाव आयोग को तुरंत सुनवाई करनी चाहिए।  इस संबंध में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए जाने बेहद जरूरी हैं ।   क्या यह एक प्रकार से मतदान के अधिकार को खरीदने को षड्यंत्र नहीं है?  किसी के मत को पाने के लिए इस प्रकार का प्रलोभन बेहद अनैतिक है। 

वैसे भी सरकारी खजाने का पैसा जनता की गाढ़ी कमाई से जुटाई  जाती है।  इसके उपयोग की सुरक्षित जिम्मेदारी सरकार की सांविधानिक और नैतिक जवाबदेही होनी चाहिये।  देशहित में इसे रोकना बेहद जरूरी भी है ।  अन्यथा मतदान की व्यवस्था एक प्रकार से  मजाक बनकर रह जाएगी । जो लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध होगा । 

अनुरोध है करदाताओं का दोहन बंद किया जाए ।  कभी कर्जमाफी .. कभी  स्कूटी .. कभी दहेज, फ्री  की बिजली .. फ्री  का घर ..  दो रुपये किलो गेंहू .. तीन रुपये किलो चावल...चार - छह रुपये किलो दाल ..  अब और करदाताओं का कितना दोहन करेंगे आप ? 

क्या इसे वोट खरीदना नहीं माना जाए?  यह तो एक प्रकार से  घूस देना ही है,  गरीबी के नाम पर फ्री पैसे बांटना कौन-से स्वालंबन का मार्ग प्रशस्त करेगा?   होना तो यह चाहिये कि हमारे आयकर से  सर्वजन हिताय कार्य हों,देश के विकास का काम हों, पर .....

यह भी सत्य है कि इस प्रकार के लोक-लुभावन उपायों से गरीबी भी बहुधा आकर्षित करेगी।  सरकार का उद्देश्य तो यह होना चाहिए कि रोजगार सृजन की अनूकूल परिस्थिति के निर्माण में वह सहयोग करें।   नैतिकता का तकाजा यहीं है कि चुनाव आयोग तुरंत इस पर कार्रवाई करें। 

चुनाव आयोग एवं सर्वोच्च न्यायालय से यह भी निवेदन हैं कर्मशील देश के निवासियों को तुरंत कानून बनाकर कुछ भी फ्री देने पर रोक  लगाई जाए  ताकि देश की जनता मुफ्तखोर न बनें । 

क्या यह जरूरी नहीं है कि करदाताओं का पैसा  (tax payers) उसकी सहमति से ही खर्च हो। फ्री में कुछ भी न बांटे जाए। 


🙏 जय हिंद 🙏🇮🇳


#साकेत_विचार

आधुनिक हिंदी के पितामह- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र


कहते हैं पुण्यात्माओं को ईश्वर अपने पास जल्दी बुला लेता हैं  या इसे यूं भी कह सकते हैं  महानता कभी आयु की प्रतीक्षा नहीं करती।  नचिकेता और ध्रुव जैसे बालक, आदि शंकराचार्य (32), स्वामी विवेकानंद,(39) जैसे आध्यात्मिक पुरूष, शेरशाह सूरी  जैसे शासक, भगत सिंह, खुदीराम बोस, अशफ़ाक उल्ला खां, चंद्रशेखर आज़ाद, जतीन भगत जैसे देशभक्त योद्धा और  साहित्यकार "भारतेन्दु" हरिश्चन्द्र जैसे नाम इस कड़ी  में आते हैं। 

आधुनिक हिंदी के पितामह कहे जाने वाले गद्यकार, कवि, नाटककार, व्यंग्यकार,उपन्यासकार, पत्रकार और चिंतक के रूप में विख्यात भारतेंदु हरिश्चन्द्र अपनी ज़िन्दगी बहुत लंबी तो नहीं जिए, पर उनका यही अल्प जीवन साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अवदान की दृष्टि से उन्हें इतिहास पुरुष के रूप में स्थापित कर गया।  वंचितों और शोषितों  के समर्थन में अपनी  सशक्त लेखनी बुलंद करने वाले इस महान साहित्यकार ने 6 जनवरी, 1885 को असमय इस दुनिया से विदाई ली।  

उनके योगदान हेतु हिंदी एवं भारतीय साहित्य सदैव उनका ऋणी रहेगा। स्वतंत्र सोच रखने वाले भारतेन्दु कई भारतीय भाषाओं के जानकार थे। उन्होंने अपने स्वयं के प्रयासों से संस्कृत, पंजाबी, मराठी, उर्दू, बांग्ला, गुजराती आदि भाषाएँ सीखीं।  अंग्रेज़ी उन्होंने वाराणसी के  प्रसिद्ध लेखक राजा शिवप्रसाद सितारे 'हिन्द' से सीखी।  उनकी लोकप्रियता से प्रभावित होकर काशी के विद्वानों ने उन्हें वर्ष 1880 में 'भारतेंदु` की उपाधि दी थीं । भारतेन्दु के अद्भुत साहित्यिक योगदान के कारण 1857 से 1900 तक के काल को आधुनिक हिंदी साहित्य में ' भारतेन्दु युग' के नाम से जाना जाता है।   हिंदी माह के अवसर पर स्वभाषा अभिमान को समर्पित उनकी प्रसिद्ध रचना प्रस्तुत है-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।

उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।

निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय।

इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।

और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।

तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।

विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।

भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।

सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।

आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक बाबू भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने अपनी लेखनी से विदेशी हुकूमत की नीतियों का पर्दाफाश किया। आपका व्यक्तित्व परम उदार था।  आपने विशाल वैभव एवं धनराशि विविध संस्थाओं को दिया है।  आपकी विद्वता से प्रभावित होकर ही विद्वतजनों ने आपको ‘भारतेंदु’ की उपाधि प्रदान की।  

आप कवि, लेखक और नाटककार के रूप में बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे। आपने 35 वर्ष की अल्पायु में ही 72 ग्रंथों की रचना की।  हिंदी के प्रचार-प्रसार में आपका अतुलनीय योगदान रहा।  आपके बारे में सुमित्रानंदन पंत जी ने ठीक ही कहा है-

भारतेन्दु कर गये,

भारती की वीणा निर्माण

किया अमर स्पर्शों में,

जिसका बहु विधि स्वर संधान ।
आपको शत-शत नमन🙏

#साकेत_विचार

#हिंदी #भारतेन्दु #नवजागरण #साहित्य 

#साकेत_विचार


Sunday, September 5, 2021

शिक्षक दिवस और हम

शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि  वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें । 

-डा. सर्वपल्ली 



राधाकृष्णन, भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति

भारत जैसे देश में जहां गुरु का स्थान सर्वोपरि है।  यह दिन हम विद्यार्थियों के लिए भी बेहद खास है। भारत में यह दिवस डा. राधाकृष्णन के व्यक्तित्व के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित करने के लिए मनाया जाता है।  भले ही आज शिक्षक की परिभाषा में व्यापक बदलाव आया है। पर हमारे सामाजिक बोध में आज भी शिक्षक, गुरु की भूमिका में ही बसे हुए हैं ।  हालांकि शिक्षक की भूमिका में आए बदलाव हेतु दोषी आधुनिक शिक्षा पद्धति भी हैं । जहां शिक्षा का पर्याय ज्ञान से अधिक रोजगार हो चला हैं।  शिक्षा का बोध मात्र डिग्री तक सीमित हो चुका है। यह उस भारतीय ज्ञान  परंपरा के लिए बेहद घातक है जहां गुरु की महिमा का पता सहज ही इस श्लोक से लगाया जा सकता है- 

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥


आज व्यक्ति अपनी  इच्छाओं एवं आकांक्षाओं के बोझ तले कराह रहा है।  उसके लिए शिक्षा या ज्ञान का महत्व बदल चुका है। आज हम गुरू या शिक्षा मंदिर में ज्ञान से अधिक अपनी  इच्छा एवं आकांक्षा की प्रतिपूर्ति  हेतु जाते हैं । आज के शिक्षकों पर समाज की महती जिम्मेदारी हैं । उदाहरण के लिए
'एक ही हथेली की पांचों अंगुलियों में कोई समानता नहीं है।  कोई  छोटी है तो कोई मध्यम है तो कोई बड़ी। इतना ही नहीं, छोटी अंगुली इस छोर पर है तो अंगूठा उससे बिल्कुल विपरीत छोर पर है। पर इन सबके बावजूद पांचों अंगुलियों में एक-दूसरे के प्रति सहयोग की भावना है। पांचों अंगुलियां समूह में कार्यशील हैं। क्योंकि पांचों अंगुलियों में एक-दूसरे के प्रति प्रतिरोध की भावना नहीं । संदेश है- विषमता या विपरीतता बाधक नहीं है।'
यह उद्धरण हम सभी के लिए संदेश हैं । इसमें शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हैं ।  शिक्षा ही वह मार्ग हैं जो युवा पीढ़ी में ज्ञान, बुद्धि और तर्क का पथ प्रशस्त करती है । जो समाज को समरस बनाती है।  इस शिक्षक दिवस पर सभी  गुरुदेवों को नमन! जिन्होंने हमारे  जीवन को  दिशा  देने का  कार्य  किया , सहयोग  किया । हमारे जीवन की नींव रखने में शिक्षक का महत्वपूर्ण योगदान है।
#शिक्षक दिवस
#साकेत_विचार

Wednesday, September 1, 2021

राही मासूम रज़ा और हिंदी

 राही मासूम रज़ा और हिंदी 



यह सुखद संयोग है कि हिंदी  के महान कवि,संवाद लेखक, उपन्यासकार एवं महाकाव्य ‘महाभारत’ पर आधारित ऐतिहासिक टेलीविजन धारावाहिक ‘महाभारत’ की पटकथा लिखकर अपनी लेखनी को अमर करने वाले डॉ. राही मासूम रजा के जन्मदिन से हिंदी माह की शुरूआत हो रही है।  हम सभी ने जगजीत सिंह की आवाज में अमर गीत ‘हम तो है परदेश में, देश में निकला होगा चांद‘ को जरूर सुना होगा।इस मधुर गीत को कलमबद्ध करने वाले डॉ.राही मासूम रजा जी ही थे।   इस प्रसिद्ध गीत का भाव बोध हमारी मिट्टी, भाषा, संस्कृति से प्रेम पर आधारित है।  हम सभी अपनी मिट्टी, भाषा, संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़े हुए है। बिना इसके मानव का अस्तित्व नहीं है।  हिंदी केवल एक भाषा-मात्र नहीं है वरन् यह सभी भारतीय भाषाओं, बोलियों का क्रियोलाइजेशन है।  इससे सभी भारतीय प्रेम करते है।  यह राजनीति, संस्कृति, समाज,लोक की भाषा है।इसीलिए यह लोकभाषा, संस्कृति की भाषा, संपर्क की भाषा, राष्ट्रभाषा से होते हुए राजभाषा के पद पर आसीन हुई और अब संचार की भाषा से तकनीक की भाषा के रूप में परिवर्तित होकर विश्व भाषा के रूप में उपस्थित है। आज विश्व धरातल पर हिंदी भारतीयता की पहचान बन चुकी है। क्योंकि हम भारतीयों की पहचान विश्व धरातल पर हिंदू, हिंदी एवं इंसानियत से होती है।  वास्तव में हिंदी आमजन की भाषा है और लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती देने के लिए यह आवश्यक है कि हम सभी जन से जुडे ।  तंत्र  की सफलता तभी है जब आम जन की राह आसान हो।  योजनाओं की सफलता तभी है जब आम आदमी से जुड़ी हो। राही मासूम रज़ा ने जमीन से जुडकर लेखन किया ।  जमीन से जुड़ने के लिए हिंदी और देशी भाषाएं आवश्यक हैं । 


आइए इसी भाव बोध को समर्थन को देते हुए हिंदी को एक नया आयाम दें।      


राही मासूम रज़ा के कृतित्व को शत-शत नमन!

सादर, 


डॉ साकेत सहाय


#साकेत_विचार


सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस

आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है।  आज 'भारतीय भाषा दिवस'  भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...