शहीद बुधु भगत

 


आज प्रसिद्ध क्रांतिकारी शहीद बुधु(बुदु) भगत जी की जयंती है ।  आप अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हुए । आपका जन्म वर्तमान राँची, झारखण्ड में हुआ था।  आमतौर पर 1857 को ही स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम आंदोलन माना जाता है। लेकिन इससे पहले  ही वीर बुधु भगत ने न सिर्फ़ क्रान्ति का शंखनाद किया, बल्कि अपने अदम्य साहस व नेतृत्व क्षमता से 1832 ई. में "लरका विद्रोह" नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र भी किया।छोटानागपुर में अंग्रेज़ हुकूमत के दौरान बर्बरता चरम पर थी। बुधु भगत बचपन से ही जमींदारों और अंग्रेज़ी सेना की क्रूरता को देखते आये थे। किस प्रकार से उनके तैयार फ़सल ज़मींदार जबरदस्ती उठा ले जाते थे। ग़रीब गांव वालों के घर में कई-कई दिनों तक चूल्हा नहीं जल पाता था। बालक बुधु भगत सिलागाई की कोयल नदी के किनारे घंटों बैठकर अंग्रेज़ों और जमींदारों को भगाने के बारे में सोचते रहते थे। बुधु भगत ने अपने दस्ते को गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था। उन्हें पकड़ने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने एक हज़ार रुपये इनाम की घोषणा की थी। 13 फ़रवरी, सन 1832 ई. को बुधु और उनके साथियों को कैप्टन इंपे ने सिलागांई गांव में घेर लिया। बुधु आत्म समर्पण करना चाहते थे, जिससे अंग्रेज़ों की ओर से हो रही अंधाधुंध गोलीबारी में निर्दोष ग्रामीण न मारे जाएँ। लेकिन बुधु के भक्तों ने वृताकर घेरा बनाकर उन्हें घेर लिया। चेतावनी के बाद कैप्टन ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। अंधाधुंध गोलियाँ चलने लगीं। बूढ़े, बच्चों, महिलाओं और युवाओं के भीषण चीत्कार से पूरा इलाका कांप उठा। उस खूनी तांडव में करीब 300 ग्रामीण मारे गए। अन्याय के विरुद्ध जन विद्रोह को हथियार के बल पर जबरन खामोश कर दिया गया। बुधु भगत तथा उनके बेटे 'हलधर' और 'गिरधर' भी अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए।

शहीद बुधु भगत जी के देश के प्रति त्याग व समर्पण को शत शत नमन🙏

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