Monday, July 28, 2025

हिंदी का अर्थ

 


अक्सर सुनते है हिंदी फ़ारसी भाषा का शब्द है। हिन्द शब्द फारसी भाषा का ही है। फारसवालेआज के दक्षिणी पंजाब से दिल्ली तक के प्रदेश को हिन्द और सरहिन्द कहते थे,वहाँ की एक नदी को  भी हिन्द (आज का हिन्दन) कहते थे।और वहाँ की भाषा को हिन्दुई,हिन्दवी और हिन्दी कहा करते थे। फारसी में शेष पंजाब को मद्र न कहकर पंजाब कहते थे। बाद में भारतीयों ने भी,सतरहवीं ई० शताब्दी से ,मद्र नाम का त्याग कर मद्र को पंजाब लिखना पढ़ना आरम्भ कर दिया।

पर हिंदी भाषा आर्यभाषा, अपभ्रंश, लौकिक संस्कृत के रूप में उत्तर वैदिक काल से ही अस्तित्व में रही। ईरानी और फारसी में " ह “ का उच्चारण नहीं होता है । इसके स्थान पर " स “ का उच्चारण होता है । सिन्धु नदी के पार के क्षेत्र को “ हिन्दूकुश “ कहा जाता है । मुग़ल बादशाहों के आने के बाद यहाँ बोली जाने वाली भाषा को हिन्दी, हिन्दवी कहा गया । उनके आने के पूर्व यहाँ बोली जाने वाली भाषा को " भाखा “ कहा जाता था ।

संस्कृत हैं कूप जल 

भाखा बहता नीर -कबीर दास


अत: हिंदी शब्दमात्र फारसी है, भाषा हमारी संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रन्श से यहाँ तक पहुँची है इस बात को सभी को जानना अनिवार्य है ।  इस प्रकार से हिंदी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा अवश्य मिलना चाहिए। वैसे भी  फ़ारसी भाषा में हिंदी का अर्थ होता है हिंद देश के निवासी। अर्थात् हिंदी सदियों से इस देश की जनभाषा, लोकभाषा, तीर्थभाषा, संपर्क भाषा आदि उपनामों से अलंकृत होकर ब्रिटिश पराधीनता से मुक्ति की वाहक भाषा बनकर उभरी। फिर स्वाधीनता प्राप्ति के बाद राष्ट्रभाषा से राजभाषा के पद पर आसीन हुईं।  इन सभी के बावजूद कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि हमने हिंदी की सेवा की। कुछ लेखकों/पत्रकारों को तो यह भी लगता है कि हिंदी का वजूद ही उनकी वजह से हैं । मगर वे यह भूल जाते हैं कि हिंदी या मातृभाषाओं की वजह से ही हम सभी का अस्तित्व हैं । 

हिंदी सदियों से भारत की अखंडता की बुनियाद को  सशक्त करने का कार्य कर रही हैं ।  ऐसे में यह स्वाभाविक है  कि हिंदी का अस्तित्व हमारी वजह से नहीं बल्कि हमारे अस्तित्व की नींव में हिंदी का योगदान है।  भाषाएँ, बोलियाँ हमारी माँ के समान है इनसे किसी का क्या बैर? भाषाएँ, बोलियाँ प्रकृति  की जीवंतता हेतु  प्राणतत्व होती है और प्राणतत्व की शुद्धता हेतु हम सभी को प्रयासरत अवश्य होना चाहिए। 

#साकेत_विचार

#हिंदी। #शास्त्रीय_भाषा

Saturday, July 26, 2025

तर्क और प्रज्ञा का संबंध

आज एक समूह में तर्क पर बहस हो रहा था । मेरे मन में तर्क से आगे ‘प्रज्ञा’ के संबंध में कुछ भाव उपजें, जिसे आप सभी से साझा कर रहा हूँ।

तर्क और प्रज्ञा का संबंध -

तर्क जिसे हम अंग्रेजी में लॉजिक या रीजनिंग के नाम से जानते हैं । पश्चिमी परंपरा तर्क में विश्वास करती है । इसीलिए आज की शिक्षा पद्धति तर्कवादी बनाने में अधिक विश्वास करती है । यहीं कारण है कि हम सब हर चीज में अंतहीन तर्क ढूंढते हैं और निष्कर्ष भी अपने संज्ञान में विद्यमान तथ्यों और नियमों के आधार पर  निकालते हैं । विद्वान तर्क को बौद्धिक प्रक्रिया मानते हैं जिसमें भावनाओं, नैतिकता या अनुभव का स्थान कम होता है।इसीलिए आज चार किताबें पढ़कर लोग विद्वान हो जाते हैं। भारतीय ज्ञान पद्धति शिक्षित व्यक्ति को ही ज्ञानी नहीं मानती। कबीरदास जी ने कहा भी है “पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। “

तर्क में केवल तथ्यों पर आधारित हम निष्कर्ष निकालते हैं। तर्क से आगे की प्रक्रिया है -प्रज्ञा जिसे हम अंग्रेजी में विजडम कहते हैं । 

प्रज्ञा या विजडम में व्यक्ति अनुभव, ज्ञान, तर्क, नैतिकता और करुणा को मिलाकर सही निर्णय लेता है। प्रज्ञा जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण का विस्तार करती है। प्रज्ञा केवल सोचने की नहीं, सही करने की क्षमता है।

उदाहरण के लिए, यदि कोई बच्चा झूठ बोल रहा है, तो हमारा तर्क कहता है – उसे दंड दो।

लेकिन हमारी प्रज्ञा पहले कारण, परिस्थितियों को समझने और फिर निर्णय लेने की क्षमता का विस्तार करती है। आजकल पैरेंटिंग में भी हम  विजडम या प्रज्ञा का प्रयोग कम ही करते हैं । 

सादर 

डॉ साकेत सहाय

#साकेत_विचार #तर्क #प्रज्ञा 

Wednesday, July 23, 2025

चंद्रशेखर आजाद

 



आज महान स्वाधीनता सेनानी, क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती है।  उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भावरा या भाबरा गाँव में हुआ था। चन्द्रशेखर तिवारी उनका असली नाम था। उन्होंने काशी विद्यापीठ, बनारस में  शिक्षा प्राप्त की। वे क्रांतिकारी स्वतंत्रता आंदोलन के हिस्सा रहें और विरोध के लिए हिंसक तरीकों का सहारा लेने के लिए जाने जाते थे।  उनका प्रसिद्ध नारा था -  “मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा” ।  उनका एक और प्रसिद्ध संदेश था- मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वाधीनता है और मेरा घर जेलखाना है। - मैं जीवन की अंतिम सांस तक देश के लिए लड़ता रहूंगा। - मेरा यह छोटा- सा संघर्ष ही कल के लिए महान बन जाएगा। - सच्चा धर्म वही है जो स्वतंत्रता को परम मूल्य की तरह स्थापित करे।‘’

राष्ट्रीय प्रसारण दिवस-२३ जुलाई

 



आज राष्ट्रीय प्रसारण दिवस है। भारत की प्रसारण यात्रा जून 1923 में बॉम्बे रेडियो क्लब के पहले प्रसारण के साथ शुरू हुई। 23 जुलाई, 1927 को इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी (IBC) की स्थापना हुई, जिसने देश में संगठित रेडियो प्रसारण की शुरुआत की। इस दिन को अब राष्ट्रीय प्रसारण दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऑल इंडिया रेडियो (AIR) की शुरुआत 1936 में भारतीय राज्य प्रसारण सेवा से हुई थी। आज़ादी के बाद, आकाशवाणी का तेज़ी से विस्तार हुआ और 1956 में इसे "आकाशवाणी " नाम दिया गया। आज, यह 591 स्टेशनों का संचालन करता है, जो भारत की 98% आबादी तक पहुँचता है और 23 भाषाओं और 146 बोलियों में प्रसारण करता है। भारत के विकास में प्रसारण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, रेडियो सूचना के प्रसार और एकता को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम था। स्वतंत्रता के बाद, यह साक्षरता, स्वास्थ्य जागरूकता और कृषि ज्ञान को बढ़ावा देने में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

#आकाशवाणी #साकेत_विचार


विशेष संदर्भ के लिए देखें 

https://notnul.com/Pages/Book-Details.aspx?ShortCode=q7vGktoR

पाठकों के लिए Notnul के उपर्युक्त लिंक पर यह पुस्तक उपलब्ध है।

लोकमान्य तिलक




 ‘’ आपके विचार सही, लक्ष्य ईमानदार और प्रयास संवैधानिक हों तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपकी सफलता निश्चित है ।” - लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक





आज स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा देने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (23 जुलाई 1856 - 1 अगस्त 1920) की जयंती है।    लोकमान्य तिलक, जिन्हें गांधीजी ने "आधुनिक भारत का निर्माता" और नेहरू जी ने "भारतीय क्रांति का जनक" कहा। लेकिन देश की जनता ने उन्हें दिल से अपनाया और "लोकमान्य" कहा।‘’ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखने में मुख्य भूमिका निभाने वाले उनके सबसे लोकप्रिय नारे के बिना अकल्पनीय है: 'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।' ने दिया था।  तिलक की विरासत स्वशासन के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता से चिह्नित है, जिसने महात्मा गांधी जैसे भविष्य के नेताओं को प्रेरित किया। 1 अगस्त, 1920 को उनका निधन हो गया, उसी दिन गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, जो भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में उनके स्थायी प्रभाव का प्रमाण है। लोकमान्य तिलक ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने के लिए देश भर में चार सिद्धांतों : स्वराज्य, स्वदेशी, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा को जोशपूर्वक बढ़ावा देने का संकल्प लिया ।

#लोकमान्य #तिलक 

Sunday, July 20, 2025

एक कविता-सच

 जो अपनी 

सोच से, ताक़त से 

पद से, पैसा से, झूठ से, 

जुगाड़ से 

संसार 🌍 चलाना चाहते थे 

वे सब हो गये खाक 

क्योंकि दुनियां में

नाम उन्ही का अमर है 

जो हैं मर्यादा, अनुशासन नैतिकता, निष्ठा, ज्ञान, सहजता-सरलता की प्रतिमूर्ति 

प्रभु श्रीराम 🙏

Saturday, July 19, 2025

बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस -19 जुलाई

‘बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस’ पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामना ! बैंकर राष्ट्र के आर्थिक समुन्नति की महती जिम्मेवारी निभाता है। 19 जुलाई 1969 ही वह दिन था, जो भारतीय वित्त, बैंकिंग व वाणिज्यिक इतिहास में एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ।  जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने वंचितों के आर्थिक हितों की सुरक्षा एवं आर्थिक सशक्तिकरण के लिए एक ही झटके में 14 निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण का कदम उठाया। उस समय यह कदम पूँजीपतियों की शक्तियों के संकेंद्रण को रोकने, विभिन्न क्षेत्रों में बैंक निधियों के उपयोग में विविधता लाने और उत्पादक उद्देश्यों के लिए राष्ट्रीय बचत को जुटाने के उद्देश्य से किया गया था।  बाद में 1980 में छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, जिससे यह 20 राष्ट्रीयकृत बैंकों में बदल गया। जिसका व्यापक असर राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक प्रगति के रूप में दिखा। बाद में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने सशक्त अर्थव्यवस्था हेतु कई वित्तीय सुधार किए, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण रहा वंचितों के लिए जन-धन योजना, मुद्रा योजना और पेंशन और बीमा योजना। इन योजनाओं को लागू करने में बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। विमुद्रीकरण में बैंक कर्मियों ने आर्थिक सिपाही की भाँति देश के आर्थिक मोर्चे पर अपनी ज़ोरदार भूमिका निभाई। वर्ष 2020 में बैंकों का समामेलन वृद्धिशील अर्थव्यवस्था को देखते हुए किया गया।  इस दीर्घ सफ़र में बैंकों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को समाज के वंचित व मध्यमवर्गीय लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार की गई ऋण व अग्रिम योजनाओं के साथ संचालित किया, साथ ही साथ औद्योगिक क्षेत्रों को बड़े पैमाने पर दीर्घकालिक ऋण दिया।  वृहत सामाजिक उद्देश्यों के लिए किसानों, लघु उद्योगों, कारीगरों और ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचने के लिए बैंकिंग प्रणाली में ऋण की आपूर्ति सामाजिक रूप से वांछनीय वर्गों पर केंद्रित थी।  बैंकों के राष्ट्रीयकरण ने देश के सभी क्षेत्रों में बैंकों का विस्तार सुनिश्चित किया। विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में।  वित्तीय समावेशन ने समाज में वंचितों एवं निम्न मध्यमवर्गीय लोगों के आर्थिक समुन्नति के द्वार खोले। मोदी सरकार ने बैंकिंग को ख़ास से आम बनाया। 

समय के साथ भारतीय बैंकिंग उद्योग ने प्रतिस्पर्धा, दक्षता, उत्पादकता के नए क्षितिज में प्रवेश किया है।  उदारीकरण ने बैंकों के समक्ष चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ दोनों के राह खोले। जैसे, जन धन ने सामान्य लोगों तक बैंकिंग तो विमुद्रीकरण ने डिजिटल बैंकिंग की दिशा में महत्वपूर्ण दिशा दिखाई। वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था की चुनौतियों ने बैंकों के देशी स्वरूप को बदलने को बदलने में योगदान दिया है। अब बैंकिंग ऋण-जमा व ग्राहक सेवा व सम्बंध से अधिक - अनुपालन, तीव्र लाभ, उत्पाद बिक्री व मानक पर ज़ोर आधारित होती जा रही है।  जिससे सरकारी बैंक  दोहरी चुनौतियों का सामना कर रहे है। इससे बैंकों की मूल पहचान खतरे में है जिसे समझना आवश्यक है। बैंकिंग में सबसे महत्वपूर्ण बदलाव कोर बैंकिंग के बाद  भी नित नए प्रौद्योगिकी नवाचार जारी रहे। अब बैंक,  इंटरनेट बैंकिंग, डिजिटल बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग के साथ इस सहस्राब्दी वाली डिजिटल पीढ़ी के साथ कदम मिला रहे है। आज पारंपरिक बैंकिंग के समक्ष नए युग की फिन टेक कंपनियों द्वारा लाई गई सेवाओं के वितरण में उच्च गति वाली मोबाइल सेवाओं और प्रौद्योगिकी नवाचार के आगमन के साथ बैंकिंग को बेहद प्रतिस्पर्धी और "अस्तित्व के साथ संघर्ष " वाली स्थिति में ला खड़ा किया है। 

अब नीति आयोग एवं अन्य अर्थव्यवस्था के जानकारों द्वारा बैंकों के राष्ट्रीयकरण के 5 दशकों से अधिक समय बीत जाने के बाद, यह विचार अपनाने पर जोर दिया जा रहा है कि बैंकों का सरकारी स्वामित्व वर्तमान परिदृश्य में उपयुक्त नहीं हो सकता है।  "सरकार को बैंकिंग व्यवसाय  में नहीं होना चाहिए"  आदि-आदि। ऐसी सोच उदारीकरण के बाद सभी सरकारों का रहा है। चाहे वह वामपन्थ समर्थित ही क्यों न रहा हो। आए दिन मीडिया में बैंकों के निजीकरण से जुड़ी खबरें आती रहती हैं। यह कर्मचारियों के मनोबल को कमजोर करता है। सरकार सुधार करें पर निजीकरण अंतिम विकल्प न हो।  प्रतिस्पर्धा का विकल्प या अंतिम विकल्प भी निजीकरण कदापि हो भी नहीं सकता । भारतीय बैंकिंग प्रणाली में सरकार और भारतीय रिज़र्व  बैंक द्वारा शुरू किए गए आगामी परिवर्तन चाहे जो भी हों, इस बात में कोई दो राय नहीं है कि 1969, 1980 तथा 2014 से 2025 तक  बैंकों के राष्ट्रीयकरण के परिणामस्वरूप ग्रामीण आबादी के जीवन स्तर में विभिन्न स्तरों पर व्यापक सुधार परिलक्षित हुआ है। आइये हम सभी बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस के अवसर पर शपथ लें कि बैंकों के राष्ट्रीयकृत स्वरूप की रक्षा करेंगे और आम जनमानस को बेहतर सेवा प्रदान करने के साथ भी यह भी प्रेरित करेंगे कि वे भी राष्ट्रीयकृत बैंकों को राष्ट्रीय गौरव और राष्ट्रीय अस्मिता का  मान देंगे।  इस अवसर पर चंद लाइनें बैंकर्स एवं समर्पित ग्राहकों के लिए-

 

'लाख बाधाएँ आएं 

मगर

हम नित कर्म पथ पर अग्रसर रहेंगे,

‘कर्म ही जीवन’ है

इस जीवन उद्देश्य को हमने अपनाया है

अर्थ क्षेत्र के योद्धा है हम

राष्ट्र के सामाजिक पथ पर हमने अर्थ-क्रांति की ठानी है,

लाख बाधाएँ आएं मगर

हम देशहित में आगे बढ़ते रहेंगे!

©डॉ. साकेत सहाय

#bank #Nationalisation

#साकेत_विचार

Thursday, July 17, 2025

आजकल

 आजकल शब्दों में 

जो बड़ी-बड़ी बातें लिखते हैं 

अंदर से बड़े खोखले होते हैं ।

#साकेत_विचार

Wednesday, July 9, 2025

राष्ट्रभाषा हिंदी



जो हिंद से संबंधित हो वहीं हिंदी है। यथा, मध्य एशिया के विद्वान गणित को हिन्दसा कहते थे।

हिंदी वास्तव में  कोई एक भाषा नहीं  हैं।   यह भाषायी एकाकार की मिसाल है।   जैसे,  भारतवर्ष में  सभी  पंथ, जाति मिलकर, एक होकर भारतीयता की पहचान  बनाती है। वैसे ही  हिंदी सबकी है।  इसे बनाने में  सभी  भाषाओं, बोलियों  का योगदान है। कृपया इसे केवल उत्तर  भारत का न बनाए।  ऐसे प्रकाशनों  से राजनीति एवं अज्ञानता की बू आती है।   



अगर आप इन आँकड़ों के आधार पर देखें तो हिंदी को प्राथमिक , द्वितीयक या तृतीयक पसंद के अनुसार देश की 95 फीसदी आबादी किसी न किसी रूप में इसे समझती है। इसी संपर्क गुण के कारण हिंदी सभी भारतीयों के प्रेम, स्नेह की अधिकारिणी बनी। पर जब हम इसे केवल उत्तर भारत से जोड़कर देखते है तो राजनीति  शुरू होती है। 

एक बात और

हिंदी को बर्बाद करने की पुरज़ोर कोशिश अंगेजीवादियों ने प्रारंभ से ही की है। बाक़ी हिंदी जो थोड़ी-बहुत दिख रही है वह निम्न से मध्यम वर्ग में आए लोगों के कारण दिख रही है। थोड़े-बहुत अंगरेजीवादियों ने हिंदी का समर्थन केवल सत्ता और मलाई काटने के लिए किया। जहाँ हिंदी दिख रही है यथा शिक्षण, मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र में वहाँ भी हिंदी के रथ पर सवार होकर पहुँचने वाले ऐसे लोग है जिन्हें हिंदी की खाकर इसे ही कोसने की आदत है।आइए, हम सभी मिल-जुलकर हिंदी की इस ताकत का प्रयोग कर इसे तकनीक, ज्ञान की भाषा बनाने हेतु कार्य  करें और युवा पीढ़ी को इसके गुणों से  अवगत  कराए। वर्ना बहुत देर हो जाएगी।

#षड्यंत्र #हिंदी

#साकेत_विचार

Monday, July 7, 2025

हिंदी और हिंदीतर का विभाजन

 




यह सर्वविदित है कि भारत की एकता उसकी भाषिक समरसता में है। इस समरसता का बेहतर प्रतिनिधित्व हिंदी से ही संभव है । हिंदी ने इसे सिद्ध भी किया है । हिंदी व्यवहार, कारोबार और संवाद में निर्विवाद रूप से इस देश की अग्रणी भाषा है । हिंदी किसी एक क्षेत्र की भाषा नहीं है यह तो पूरे देश को जोड़ने वाली भाषा है ।

फिर इस देश में हिंदी और हिंदीतर का विभाजन क्यों है ? इस मलाईदार विभाजन को बंद किया जाए। भाषा प्रलोभनों से कभी आगे नहीं बढ़ती । इस प्रकार के विभाजनों से हिंदी कमजोर ही हुई है और कुछ हिंदीतर हिंदी के नाम पर अपना भला करते रहे । हिंदी सबकी है अत : इस कृत्रिम विभाजन को बंद किया जाए ।

जय हिंद! जय हिंदी!!

साकेत सहाय

#साकेत_विचार 

#हिंदीराष्ट्रभाषा #हिंदी 

#hindiसंपर्क

#हिंदी #हिंदीतर

Sunday, July 6, 2025

पी वी सिंधु

 आज प्रसिद्ध भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी पी.वी. सिंधु - पुसर्ला वेंकट सिंधु (तेलुगु :పూసర్ల వెంకట సింధు) का जन्मदिन है। आपका जन्म 5 जुलाई 1995 को हैदराबाद में हुआ। आप विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय शटलर हैं। आप विश्व वरीयता प्राप्त भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी हैं तथा भारत की ओर से ओलम्पिक खेलों में महिला एकल बैडमिंटन का रजत पदक व कांस्य पदक जीतने वाली आप पहली खिलाड़ी हैं। ओलंपिक में रजत पदक और बीडब्ल्यूएफ विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनने के बाद, पीवी सिंधु ने अपना दूसरा ओलंपिक पदक जीता। उन्होंने टोक्यो 2020 में कांस्य पदक हासिल किया और इसी के साथ वह दो ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गईं।  आपने बहुत कम उम्र में बैडमिंटन में गहरी रुचि दिखाई और भारत की महान बैडमिंटन खिलाड़ी के रूप में विख्यात हुईं, बैडमिंटन के प्रति आपका समर्पण लाखों लोगों को इस खेल के प्रति प्रेरित करता है। पुलेला गोपीचंद आपके मुख्य कोच हैं, जिन्होंने आपको बैडमिंटन में प्रशिक्षित किया है। आपको अर्जुन पुरस्कार और खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

#PVSindhu

#badminton 

#साकेत_विचार

Saturday, July 5, 2025

हिंदी का प्रहसन और अंग्रेजी

 #हिंदीराष्ट्रभाषा 






हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए राष्ट्रीय संवाद आवश्यक है।

अन्य भारतीय भाषाओं का भी समान आदर और संरक्षण जरूरी है ।

शिक्षा, तकनीक और न्याय में हिंदी की समान भागीदारी बढ़ाई जाए।

कृत्रिम मेधा (एआई ) तथा डिजिटल टूल्स में हिंदी को प्राथमिकता देनी होगी । 

और सबसे जरूरी चरणवार तरीके से अंग्रेजी और अंग्रेजियत को विस्थापित करना होगा । 

अंग्रेजी मात्र एक भाषा है उसे आप कभी भी सीख सकते हैं ।

यदि नहीं कर सकते तो फिर सारे ड्रामा ख़त्म करें और अंग्रेजी को ही राष्ट्रभाषा घोषित कर दें । इस देश की अघोषित राष्ट्रभाषा अंग्रेजी ही है । जिसके विरोध में कोई नही है । हमारी व्यवस्था बस हिंदी को काग़ज़ी तंत्र और वोट तंत्र में उलझाना चाहती है । अत: अंग्रेजी को ही राष्ट्रभाषा घोषित कर देनी चाहिए। वैसे भी इस देश के हर महत्वाकांक्षी व्यक्ति में अंग्रेजी का मोह व्याप्त है और दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह भी है कि आज वही सफल है जो अपनी आकांक्षाओं को येन-केन प्रकारेण लागू करवा लेता है ।

#हिंदी #hindi

#साकेत_विचार 

हिंदी का प्रहसन और राष्ट्रभाषा

Friday, July 4, 2025

स्वामी विवेकानंद




 उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता। -स्वामी विवेकानंद  


आज महान भारतीय संत, दार्शनिक और राष्ट्रवादी स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि है।  स्वामीजी ने भारत के युवाओं में राष्ट्रीय चेतना जगाई और भारतीय संस्कृति को विश्व पटल पर पहुंचाया।  स्वामी विवेकानन्द महज 39 साल जिए, पर इस दौरान हजारों वर्षों का काम कर गए। उन्होंने भारत को आध्यात्मिक रूप से जागृत किया।  स्वामीजी का जीवन समस्याओं एवं संघर्षों के पहाड़ के बीच बीता।  स्वामी विवेकानंद पश्चिमी दर्शन सहित विभिन्न विषयों के ज्ञाता होने के साथ-साथ एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह भारत के पहले हिंदू सन्यासी थे, जिन्होंने हिंदू धर्म और सनातन धर्म का संदेश विश्व भर में फैलाया। उन्होंने विश्व में सनातन मूल्यों, हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति की सर्वोच्चता स्थापित की। स्वामी विवेकानंद को आधुनिक भारत के आध्यात्मिक पुनर्जागरण का प्रणेता माना जाता है। स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाएँ ज्ञान का खजाना हैं। वे आत्मविश्वास, ज्ञान की खोज, आत्म-सुधार, दूसरों की सेवा और सार्वभौमिक भाईचारे के महत्व पर जोर देते हैं। उनका आदर्श वाक्य, "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए," आज भी दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करता है।

#साकेत_विचार

#विवेकानंद  #स्वामीजी

Thursday, July 3, 2025

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया: भाषिक संस्कार एवं संस्कृति अब ई-बुक के रूप में उपलब्ध

 सभी सम्मानित जनों को नमस्कार,





वर्ष २०१८ में मेरी पहली पुस्तक ‘इलेक्ट्रॉनिक मीडिया : भाषिक संस्कार एवं संस्कृति’ का विमोचन विश्व हिंदी सम्मेलन, मॉरीशस में किया गया था । तब से हिंदी साहित्य के कथेतर श्रेणी में जितना सम्मान इस पुस्तक को मिला, मैंने कभी उसकी कल्पना भी नही की थी। समीक्षकों के अनुसार, इस विषय पर यह विशेष पठनीय पुस्तक है । मीडिया अध्ययन की शीर्ष पुस्तकों में इसे स्थान मिला । पुस्तक दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी, संस्कृति मंत्रालय,  भारत  सरकार  से  वर्ष  २०२१ में साहित्य श्री कृति सम्मान से सम्मानित हुई । पुस्तक की समीक्षा देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं यथा, इंडिया टुडे, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स आदि में  प्रकाशित हुई । पुस्तक मुंबई विश्वविद्यालय, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय समेत देश के पाँच प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी शामिल है।

पुस्तक 'इलेक्ट्रॉनिक मीडियाः भाषिक संस्कार एवं संस्कृति' भाषा, कला, बाजार,आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक परिदृश्य, सोशल मीडिया तथा समाज से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जो नाभिनाल का संबंध है, इसे बखूबी रेखांकित करती है तथा इसकी दशा-दिशा, भाषा, संस्कार की वजह से विकसित हो रही एक नई संस्कृति का सूक्ष्म एवं बारीक विश्लेषण प्रस्तुत करती है।

पुस्तक प्रयोजनमूलक हिंदी, भाषा एवं जनसंचार के विधार्थियों के लिए बेहद उपयोगी है। पुस्तक में रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, सोशल मीडिया, समाचार चैनल इत्यादि विभिन्न माध्यमों से संबंधित विस्तार से  जानकारी पाठकों के लिए उपलब्ध है।  पुस्तक अब पाठकों के  लिए e-book के रूप में NotNul पर उपलब्ध है । आप सब इसे NotNul पर पढ़ सकते हैं । जब मन पढ़ने को हो तो इस link को click करें -

https://notnul.com/Pages/Book-Details.aspx?ShortCode=q7vGktoR


आप सभी से अनुरोध है कि पुस्तक को पढकर अपना बहुमूल्य मत


Tuesday, July 1, 2025

हिंदी का प्रहसन


वोट के लिए बापू , बाबा साहेब का सहारा लेने वालों के देश में अंग्रेजी, अंग्रेजियत से प्रेम और हिंदी से द्रोह । एक विदेशी भाषा के प्रति यह अंतहीन प्रेम एवं हीनता-बोध की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है कि तमाम दुश्वारियों के बीच यदि अधिकारी से लेकर क्लर्क और चपरासी तक, अपना और अपने परिवार का पेट काट कर भी, अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूलों में भेजना चाहते हैं और भेज भी रहे है तो इसका कुछ तो मतलब है? क्योंकि प्रदेश और देश की व्यवस्था भी विदेशी भाषा की गुलाम है । उन्हें न तो अपनी परंपरा से मतलब है और न अपनी संस्कृति से । हिंदी के प्रहसन पर मुझे विद्यानिवास जी की पंक्तियाँ याद आ रही हैं-

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने कहा था, ‘मेरी झांसी मुझे वापस चाहिए।‘ मैं भी हिन्दी के लेखक की हैसियत से यही मांगता हूँ कि मेरा तो कोई प्रदेश नहीं, कोई वर्ग नहीं,मजहब नहीं, सिर्फ एक देश है, उसे वापस लाओ। बंद करो यह ढोंग कि हिन्दी संपर्क भाषा है। सारा राज-काज अँग्रेजी में, फारसी में या लैटिन में चलाओ! हिन्दी के विकास के मालिकों, हिन्दी को जीनो दो, छूछे सम्मान का जहर न दो,हिन्दी को, देश को वापस बुलाने का अवसर दो।

- डा. साकेत सहाय 

हिंदी सेवी 

#hindi #साकेत_विचार #महाराष्ट्

सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस

आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है।  आज 'भारतीय भाषा दिवस'  भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...