Wednesday, March 26, 2025

महादेवी वर्मा

आज हिंदी साहित्य की महान साहित्यकार महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०६ - ११ सितम्बर १९८७) की जयंती है ।  आप महान कवियित्री, निबंधकार, रेखाचित्रकार और हिन्दी साहित्य की प्रख्यात हस्ती थीं। आपको हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है। महादेवी का जन्म 26 मार्च 1907 को प्रातः 8 बजे फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था। अतः बाबा बाबू बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी — महादेवी मानते हुए पुत्री का नाम महादेवी रखा। कायस्थ पुत्री महादेवी वर्मा ने अपने बचपन में सबसे पहली पुस्तक पंचतंत्र पढ़ी। महादेवी वर्मा के परिवार में बाबा फ़ारसी और उर्दू जानते थे। पिता ने अंग्रेज़ी पढ़ी थी। परिवार में हिंदी का कोई वातावरण नही था। प्रसिद्ध कवियित्री महादेवी वर्मा को अपने निजी जीवन में कई तरह के दुखों का सामना करना पड़ा था।  विरह, वेदना, और करुणा उनकी कविता का अहम हिस्सा है।  महादेवी वर्मा रहस्यवाद और छायावाद की कवयित्री थीं, अतः उनके काव्य में आत्मा-परमात्मा के मिलन विरह तथा प्रकृति के व्यापारों की छाया स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। वेदना और पीड़ा महादेवी जी की कविता के प्राण रहे। उनका समस्त काव्य वेदनामय है। उन्हें निराशावाद अथवा पीड़ावाद की कवयित्री कहा गया है।उन्होंने प्रकृति के माध्यम से जीवन की गहराइयों को उजागर किया। महादेवी वर्मा न केवल कवयित्री थीं, बल्कि संगीत और चित्रकला में भी निपुण थीं। उनके गीतों में संगीत का नाद-सौंदर्य स्पष्ट झलकता है। उनके लेखन ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया और उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। 

महादेवी वर्मा की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं - नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, यामा और दीपशिखा । कविता के अतिरिक्त उन्होंने सशक्त गद्य भी रचा है, जिसमें रेखाचित्र तथा संस्मरण प्रमुख हैं। पथ के साथी, अतीत के चलचित्र तथा स्मृति की रेखाएँ उनकी कलात्मक गद्य रचनाएँ हैं । 

महादेवी यों ही उनका नाम नहीं था।  हिंदी साहित्य के महान कवि निराला महादेवी को 'सरस्वती' नाम से पुकारते थे. उन्हें आधुनिक युग की 'मीरा' भी कहा जाता है।  

उनका प्रसिद्ध उद्धरण -कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं, जो साहस के साथ उनका सम्मान करते हैं। - महादेवी वर्मा


इस अवसर पर उनकी प्रसिद्ध रचना-


बया हमारी चिड़िया रानी


बया हमारी चिड़िया रानी

तिनके लाकर महल बनाती,


ऊँची डाली पर लटकाती,

खेतों से फिर दाना लाती,


नदियों से भर लाती पानी।

तुझको दूर न जानें देंगे,


दानों से आँगन भर देंगे,

और हौज में भर देंगे हम,


मीठा-मीठा ठंडा पानी।

फिर अंडे सेयेगी तू जब,


निकलेंगे नन्हें बच्चे तब,

हम लेंगे उनकी निगरानी।


फिर जब उनके पर निकलेंगे,

उड़ जाएँगे बया बनेंगे,


हम तब तेरे पास रहेंगे

तू मत रोना चिड़िया रानी।

स्रोत :पुस्तक : वीणा (पृष्ठ 25) रचनाकार : महादेवी वर्मा प्रकाशन : एनसीईआरटी  संस्करण  : 2022


-संकलनकर्ता-डा. साकेत सहाय 

#साकेत_विचार

Saturday, March 22, 2025

बिहार दिवस




बिहार से जुड़ाव भारत के विशिष्ट इतिहास से जुड़ने का सुखद संयोग है । जय बिहार! जय भारत! 

कभी डा. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था- ‘यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि सदियों तक भारत का इतिहास वस्तुत: बिहार का इतिहास था।‘‘ 

बिहार के बारे में कहा जा सकता है देश बना है जिस मिट्टी से उसकी हिस्सेदारी हूँ..!

बुद्ध, महावीर, चंद्रगुप्त के गौरव का अधिकारी हूँ..!! हाँ, मैं बिहारी हूँ..!!! पर उससे अधिक भारतीय हूँ। 

सभी भारतवासियों को बिहार दिवस की हार्दिक बधाई!

#साकेत_विचार

#बिहार

#बिहार_दिवस

Friday, March 14, 2025

लाल बहादुर शास्त्री-सादगी की प्रतिमूर्ति

 प्रेरक प्रसंग 



स्टेशन की आखिरी ट्रेन प्लेटफार्म से रवाना हो चुकी थी । एक वृद्ध महिला ट्रेन के इंतजार में बैठी हुई हैं। अगली ट्रेन कल सुबह आएगी... एक कुली ने यह देखा और मां से पूछा - माताजी, आप कहां जा रही हैं? मैं दिल्ली अपने बेटे के पास जाऊंगी । आज कोई ट्रेन नहीं है माताजी । महिला असहाय दिख रही थी। कुली ने दयालुता दिखाते हुए महिला को प्रतीक्षालय में आश्रय देने की पेशकश की। वह सहमत हो गई। कुली ने उनसे उसके बेटे के बारे में पूछा.. मां ने जवाब दिया कि उसका बेटा रेलवे में काम करता है। नाम बताओ। देखें संपर्क हो सकता है या नहीं... वृद्ध महिला ने कुली से कहा - वह मेरा लाल है, सब उसे लाल बहादुर शास्त्री कहते हैं! (वृद्ध महिला ने कहा) भारत माँ का  महान सपूत तब भारत का रेल मंत्री था। एक पल में, पूरे स्टेशन में हलचल मच गई। जल्द ही, सैलून कार आ गई। वृद्ध महिला हैरान थी। लाल बहादुर शास्त्री को कुछ भी पता नहीं था ।  ऐसे भी लोग होते थे , समाज में अब भी ऐसे लोग हैं बस उन्हें प्रोत्साहन और हौसले की जरूरत है । 🙏

#शास्त्री #लाल_बहादुर 

#साकेत_विचार

Friday, March 7, 2025

अज्ञेय

 



“स्नेह अनेकों चोटें सहता है, कुचला जाकर भी पुन: उठ खड़ा होता है; किंतु प्रेम में अभिमान बहुत अधिक होता है, वह एक बार तिरस्कृत होकर सदा के लिए विमुख हो जाता है। ‘’- अज्ञेय

आज हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की जयंती है। आप हिंदी साहित्य में नई कविता, प्रयोगवाद से जुड़े रहें।  आप एक प्रतिभासंपन्न कवि, शैलीकार, कथा-सहित्य को एक महत्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबंधकार, संपादक और सफल अध्यापक के रूप में जाना जाता है।  वर्ष 1921 में अज्ञेय का परिवार ऊटी पहुंचा, ऊटी में अज्ञेय के पिता ने अज्ञेय का यज्ञोपवीत कराया और अज्ञेय का वात्स्यायन कुलनाम दिया।  आपकी शिक्षा-दीक्षा मद्रास और लाहौर में हुई।  आप भगत सिंह के साथी बने और वर्ष 1930 में गिरफ्तार हुए। आपने छह वर्ष कारावास और नजरबंदी भोगा।  आपने विशाल भारत, प्रतीक का संपादन किया।  प्रतीक ने साहित्यिक पत्रकारिता का नया इतिहास रचा। आप साप्ताहिक दिनमान और नवभारत टाइम्स के संपादन से भी जुड़े। आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए। आपकी प्रसिद्ध कविता ‘मुझे तीन शब्द दो’

मुझे तीन दो शब्द कि मैं कविता कह पाऊँ।

एक शब्द वह जो न कभी जिह्वा पर लाऊँ,

और दूसरा : जिसे कह सकूँ

किंतु दर्द मेरे से जो ओछा पड़ता हो।

और तीसरा : खरा धातु, पर जिसको पाकर पूछूँ

क्या न बिना इसके भी काम चलेगा? 

और मौन रह जाऊँ।

मुझे तीन शब्द दो कि मैं कविता कह पाऊँ।

स्रोत :पुस्तक : सन्नाटे का छंद (पृष्ठ 70) संपादक : अशोक वाजपेयी रचनाकार : अज्ञेय  प्रकाशन : वाग्देवी प्रकाशन  संस्करण  : 1997

विनम्र श्रद्धार्पण !

-डॉ साकेत सहाय 

#अज्ञेय 

#साकेत_विचार

Monday, March 3, 2025

 4 अक्‍टूबर 1977 को पहली बार यूनाइटेड नेशंस में हिंदी गूंजी थी जब उस समय बतौर विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेई यूएन में मौजूद थे। वाजपेई से पहले और उनके बाद किसी ने भी हिंदी में इतने बड़े अंतराष्‍ट्रीय मंच पर भाषण नहीं दिया था।

इसके बाद जब अटल बिहारी वाजपेई वर्ष 2000 में बतौर प्रधानमंत्री यूनाइटेड नेशंस के सहस्‍त्राब्‍दी वर्ष समारोह में शामिल होने के लिए गए तो फिर उन्‍होंने हिंदी में भाषण दिया।

वाजपेयी के संबोधन के बाद पूरे देश में एक उम्मीद बंधी कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा मिलने की मंजिल अब दूर नहीं है।

हालांकि वर्ष 1977 की उस अहम घटना के बाद एक लंबा वक्त बीत गया और वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वह सपना अधूरा ही है।

हां, अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिन्दी को जिस तरह से विदेशों में भी सम्मान दिलवा रहे हैं,उससे एक उम्मीद जरूर बंधी है। वे विदेशी राष्ट्राध्यक्षों से भी हिन्दी में ही वार्तालाप कर रहे हैं।

तो क्या माना जाए कि उनके संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में संबोधन के बाद वहां हिन्दी को आधिकारिक भाषा का दर्जा मिलने का रास्ता साफ होगा ?

अगर बात अटल जीके संबोधन से हो कहने वाले कहते हैं कि उनके कद के ओजस्वी वक्ता के लिहाज से वह उनका कोई बेहतर भाषण तो नहीं था।


हिंदी को किया जाता है अनुवादित


संयुक्त राष्ट्र में चीनी, अंग्रेजी, अरबी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनी को ही मान्यता मिली हुई। 1945 में संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाएँ केवल चार थीं। अँग्रेज़ी, रूसी, फ्रेंच और चाइनीज। उनमें 1973 में दो भाषाएं और जुड़ीं। हिस्पानी

और अरबी बाकी भाषाएं बाद में जुड़ीं। इन भाषाओं में वहां पर दिए जाने वालों भाषणों का अनुवाद होता है। बैंकर डा. जयंती प्रसाद नौटियाल एक सतत हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं हिन्दी को सुरक्षाराष्ट्र की भाषा बनाने को लेकर।

वह कहते हैं कि फिजी,सूरीनाम,मारीशस,नेपाल,त्रिनिडाड,ग्याना में भी हिन्दी को भावनात्मक रूप से स्थान मिला हुआ है।

हिन्दी को बोलने वाले चीनी भाषा के बाद सबसे ज्यादा हैं,इसके बावजूद हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र जैसे मंच में जगह न मिलना साफ करता है कि हमारा अपनी मातृभाषा को लेकर सम्मान का भाव नहीं है।

हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने को लेकर जोहानिसबर्ग में हुए विश्व हिंदी सम्मेलन में फिर से यह प्रस्ताव पारित हुआ। इससे पहले भी विश्व हिन्दी सम्मेलन में हिन्दी के पक्ष में इस तरह के प्रस्ताव पारित होते रहे हैं।

पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन हुआ था जिसमें हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया था।

उसके बाद तीन अन्य सम्मेलनों में भी ऐसे प्रस्ताव पारित हुए, लेकिन बात कोई खास आगे नहीं बढ़ पाई।

कई सम्‍मेलनों में हुआ यूएन में हिंदी का जिक्र

पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन 1975 में नागपुर में हुआ था, जिसमें पारित प्रस्ताव में कहा गया, ‘‘संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप स्थान दिलाया जाए।''

इसके बाद 1976 में मारिशस, 1999 में लंदन और 2003 में सूरीनाम में हुए सम्मेलनों में भी इस आशय के प्रस्ताव को दोहराया गया।

बहरहाल,‘जिस भाषा की अपने देश में ही दुर्गति होती रही, वह संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा कैसे बन जाएगी। और तो और,हिन्दी पट्टी के एलिट ने भी हिन्दी बोलने में हेय भाव दिखाया।

जब तक अपने देश और अपने ही लोगों के बीच इसे सम्मान और प्राथमिकता नहीं दी जाती, दूसरे इसे बढ़ावा क्यों देंगे।

विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दावा किया कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयास में कमी नहीं की जा रही है लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया है।

उन्होंने कहा कि आठवां विश्व हिन्दी सम्मेलन न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में ही आयोजित करके इस मुहिम को विश्व संस्था की दहलीज़ तक ले जाने का प्रयास ही किया गया था।

मोदी पर बड़ी जिम्‍मेदारी

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून भी उस सम्मेलन में आए थे और हिन्दी में कहा था, ‘‘नमस्ते, मैं हिन्दी थोड़ी बहुत बोलता हूं। मुझे खुशी हो रही है समय देते हुए। मैं आप सबकोशुभकामनाएं देता हूं।''

बहरहाल, अरबी को 1986 में इस तर्क पर आधिकारिक भाषा की मान्यता दी गई कि इसे 22 देशों में लगभग 20 करोड़ लोग बोलते हैं। संख्या को अगर आधार मानें तो भारत में 100 करोड़ से अधिक लोगजिम्‍मेदारी हिन्दी संवाद करते हैं। यह उनकी भाषा है।

हिन्दी को उन भाषाओं में जगह नहीं मिल रही है, जिनका संयुक्त राष्ट्र में खास स्थान है।अटल बिहारी वाजपेयी के बाद मोदी का संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करना अहम है।

अब सारा दारोमदार नरेन्द्र मोदी पर है कि वे हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलवाएं।


उद्योगपति जमशेदजी नौशेरवान टाटा


 

भारतीय औद्योगिक क्षेत्र को असाधारण योगदान देने वाले महान उद्योगपति जमशेदजी  नुसीरवानजी टाटा  की जयंती है।  आप भारत के विश्व प्रसिद्ध औद्योगिक घराने ‘टाटा समूह’ के संस्थापक थे।  आपने वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा के लिए बेहतरीन सुविधाएँ उपलब्ध करायीं और देश को महाशक्ति बनने के मार्ग पर अग्रसर किया। इस अवसर पर उनके अद्भुत देश प्रेम की दो घटनाएँ - 

१. 

सम्पूर्ण भारत में ख्यातिप्राप्त ‘ताजमहल होटल' के निर्माण के पीछे एक रोचक कहानी छुपी हुई है। सिनेमा के जनक लूमियर भाईयों ने अपनी खोज के छ: महीनों बाद अपनी पहली फ़िल्म का शो मुम्बई में प्रदर्शित किया था। वैसे तो वे ऑस्ट्रेलिया जा रहे थे, लेकिन बीच रास्ते में उन्होंने मुम्बई में भी शो रखने की बात सोची। 7 जुलाई, 1896 को उन्होंने मुम्बई के तत्कालीन आलीशान वाटसन होटल में अपनी छ: अलग-अलग फ़िल्मों के शो आयोजित किए। इन शो को देखने के लिए मात्र ब्रिटिश लोगों को ही आमंत्रित किया गया था, क्योंकि होटल के बाहर एक तख्ती लगी रहती थी, जिस पर लिखा होता था कि "भारतीय और कुत्ते होटल में नहीं आ सकते हैं"। 'टाटा समूह' के जमशेदजी टाटा भी लूमियर भाईयों की फ़िल्में देखना चाहते थे, लेकिन उन्हें वाटसन होटल में प्रवेश नहीं मिला। रंगभेद की इस घृणित नीति के ख़िलाफ़ उन्होंने आवाज भी उठाई। इस घटना के दो साल बाद ही वाटसन होटल की सारी शोभा धूमिल कर, भव्य 'ताजमहल होटल' का निर्माण जमशेदजी ने शुरू करवा दिया। 1903 ई. में यह अति सुंदर होटल बनकर तैयार हो गया। कुछ समय तक इस होटल के दरवाज़े पर एक तख्ती भी लटकती थी, जिस पर लिखा होता था कि- "ब्रिटिश और बिल्लियाँ अंदर नहीं आ सकतीं।” तत्कालीन मुम्बई में ताज होटल की इमारत बिजली की रोशनी वाली पहली इमारत थी, इसीलिए इसकी चकाचौंध हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती थी। इसकी गणना संसार के सर्वश्रेष्ठ होटलों में की जाने लगी थी। 

जमशेदजी का यह उद्यम उनके अन्य उद्यमों की तुलना में बिल्कुल अलग था। सच तो यह था कि वे इसे उद्योग की तरह चलाना भी नहीं चाहते थे। इसीलिए उन्होंने खर्च का कभी हिसाब भी नहीं लगाया।

२. जमशेदजी टाटा ने युवावस्था में ही चीन, सुदूर पूर्व देशों, यूरोप, मध्य पूर्व और उत्तरी अमेरिका तक की यात्रा की थी। उन्होंने अपनी इन यात्राओं का लाभ विदेशों में इस्पात कारखानों, कोयला खानों और अन्य किस्म के कारखानों का अध्ययन करने की दृष्टि से उठाया। जब वे फ़्राँस में थे तो उन्होंने रेशम के कीड़े पालने की विधि का अध्ययन किया। जब वे 1893 में जापान गये तो जापानियों को रेशम की खेती के बारे में प्रयोग करने के लिए आमंत्रित किया। जलवायु के ख्याल से उन्होंने मैसूर को चुना और रेशम उद्योग को फिर से जीवित किया।


कृतज्ञ राष्ट्र का नमन!

#tata 

#bharat #swadesh 

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सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस

आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है।  आज 'भारतीय भाषा दिवस'  भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...