शब्द यात्रा

 *आज  "नैहर", "पीहर" और  "मायका" शब्दों  से  मिलिए, आपको गुज़रा ज़माना याद करके अच्छा  लगेगा*  !

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.नैहर 

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'नैहर' का मतलब होता है- ' पिता का घर'  यानी  मायका  ! नैहर शब्द संस्कृत के 'ज्ञातिगृह'  से बना है ! ' ज्ञा'  धातु में  'क्तिन' प्रत्यय लगने से  'ज्ञातिगृह'  बना  जिसका अर्थ होता है -  पितृ-गृह, जान-पहचान वाले, सगे-संबंधी,  नाते-रिश्तेदार आदि आदि ! ‘ज्ञा’  धातु  में  ‘ जानने ‘  का भाव निहित है, मतलब  कि  जिसके बारे में हमें ‘ ज्ञात’ है यानी  जो हमारे लिए  ‘ अज्ञात’  या  ‘अंजान’ नहीं है ! इस  ‘ ज्ञान',  जानकारी, में व्यक्ति, स्थान, वस्तु,  से लेकर ज्ञानेन्द्रियों  से होने  वाले  ‘एहसास’  भी शामिल  होते हैं ! तात्पर्य  यह है कि ‘ज्ञाति ‘  शब्द में वे  सब चीजे  आती है,  जिन्हें हम भलीभाँति जान  चुके है ! जब यह शब्द ‘ गृह’  शब्द का जुड़  कर प्रयोग  में आया तो,  इसका  अर्थ  उन  व्यक्तियों के समूह से माना  गया, जो  हमसे  विशेषरूप से  सम्बन्धित  है, जो हमारे  रिश्तेदार है और  एक  ही ‘ घर’ मे रहते  हैं ! 

यद्यपि ‘हर’ शब्द का प्रयोग अब  नहीं के बराबर  होता है लेकिन पहले  उत्तर भारत में यह शब्द  आम  जनता की जुबान पर हुआ  करता  था ! मैंने  अपन बचपन में नानी,  दादी,  मौसी,  मामी को अक्सर बोलते सुना  - 

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चलो, कमला 'हर'  के चलते है !  आज शीला 'हर'  के दावत है !

. 'हर'  'घर'  के  लिए  प्रयुक्त होता था !

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. प्राचीन  लोक-गीतों में  भी  यह शब्द  बहुत प्रचलित था ! लेकिन बीतते समय के साथ आधुनिक सभ्यता-संस्कृति के  प्रभाव से यह शब्द  लुप्त प्राय:  हो गया ! फिर भी इसके  ‘योग’ (जोड़) से बने शब्द  किस्से-कहानियों में कभी-कभी पढ़ने  और  सुनने मे आ ही जाते हैं !


 ‘ज्ञाति-गृह’ से नैहर  शब्द किस  प्रकार  निकला, अब इसका  व्याकरण  जानिए !

ज्ञ – यह एक  संयुक्त  व्यंजन है जो  ज्  + ञ् के संयोजन से बना है ! ‘ञ् ‘ एक अनुनासिक व्यंजन है जो नासिका  से उच्चरित  होता है ! मतलब इसमें कहीं ‘न’ व्यंजन की ध्वनि समाहित है ! ज्ञातिगृह  शब्द, ‘नैहर’  में क्रमश: इस प्रकार परिवर्तित हुआ –

ज्ञातिगृह – नातीगृह- नातीघर - त  का लोप – ना + इ = नै –

गृह – ग्+र+ह – ग्  का लोप- र+ह – वर्णविपर्यय = ह+र – हर

इस तरह नै +हर = नैहर शब्द अस्तित्व में आया |

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.'पीहर' भी  संस्कृत के  -' पितृ-गृह' से  नि:सृत  है !

पितृ से तद्भव रूप बना 'पी' और  'गृह' से 'हर' शब्द बना, जैसा कि ऊपर मैंने व्युत्पत्ति  बताई |

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 'मायका'  – माँ का घर  !  यह शब्द संस्कृत  के  ‘मातृक’  से निकला है ! ‘मातृक’  शब्द ,  ‘मातृ’  में + 'क' प्रत्यय  लग कर बना  है । संस्कृत में  ‘मातृक’ का अर्थ होता हैं, माता संबंधी,  जिसमें  लालन-पालन व पोषण आदि का भाव भी  समाहित है !  ‘मातृक’  के समान ही  पिता से जुड़ा  शब्द है - ‘पैतृक’ ! आपने सुना  होगा  -  ‘पैतृक सम्पति’ जिसका अर्थ पिता संबंधी  जायदाद आदि!

इस  ‘मातृक’  में धन, समृद्धि, ऐश्वर्य आदि  अर्थ भी ,समाहित  हैं। मातृक - पैतृक स्थान भी कहा  जाता है यानी  जन्म स्थान  । मातृक से ही माता, माई, मायी, मैया, शब्द  अस्तित्व में आए – ‘जन भाषा’  के रूप में ! इस प्रकार  ‘मायका’  के मूल में  ‘मातृक’  है, जो  परिवर्तित होते-होते माहेर, माएरा, मायरा, मायका,अनेक रूपों में जनभाषा में उतरा ! है न रोचक "शब्द-यात्रा"|

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~ *प्रो दीप्ति गुप्ता,पुणे*

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