Friday, June 30, 2023

साहित्यकार नागार्जुन

 प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार बाबा नागार्जुन को नमन! बिहार के मधुबनी जिले में जन्मे बैद्यनाथ मिश्र उर्फ‘बाबा नागार्जुन’ने अपनी मातृभाषा मैथिली में 'यात्री' उपनाम से लिखा। काशी प्रवास में उन्होंने ‘वैदेह’ उपनाम से भी रचनाएँ लिखी। पाली सीखने के लिए वे श्रीलंका के बौद्ध मठ पहुंचे और यहीं  'नागार्जुन' नाम ग्रहण किया। कबीर और निराला की श्रेणी के अक्खड़ लेखक नागार्जुन ने हिन्दी के अतिरिक्त मैथिली, संस्कृत एवं बांग्ला में मौलिक रचनाएँ एवं अनुवाद कार्य किया।आपने अपनी फकीरी व बेबाकी से अपनी अनोखी साहित्यिक पहचान बनाई।    

 नागार्जुन की एक कविता

सुबह-सुबह

 

सुबह-सुबह

तालाब के दो फेरे लगाए

 

सुबह-सुबह

रात्रि शेष की भीगी दूबों पर

नंगे पाँव चहलकदमी की

 

सुबह-सुबह

हाथ-पैर ठिठुरे, सुन्न हुए

माघ की कड़ी, सर्दी के मारे

 

सुबह-सुबह

अधसूखी पत्तियों  का कौड़ा तापा

आम के कच्चे पत्तों का

जलता, कडुआ कसैला सौरभ लिया

 

सुबह-सुबह

गँवई अलाव के निकट

घेरे में बैठने बतियाने का सुख लूटा

 

सुबह-सुबह

आंचलिक बोलियों का मिक्सचर

कानों की इन कटोरियों में भरकर लौटा

सुबह-सुबह

 

स्रोत – नागार्जुन रचना संचयन, प्रकाशन – साहित्य अकादेमी,   

 #नागार्जुन

 🙏🌺 

#साकेत_विचार

डॉ साकेत सहाय

भाषा सेवी

३०.०६.२०२३

पटना

Saturday, June 24, 2023

ओम जय जगदीश हरे के रचयिता- श्रद्धाराम फिल्लौरी को नमन

 विश्व के कोने-कोने में सनातन समाज द्वारा पूर्ण श्रद्धा के साथ गायी जाने वाली आरती "ओम जय जगदीश हरे" के रचनाकार पंडित श्रद्धाराम फिलौरी की आज 133वीं पुण्य तिथि है।  पंजाब के फिलौर नामक ग्राम में 30 सितंबर , 1837 को उनका जन्म हुआ था।  उनके द्वारा लिखित "भाग्यवती" नामक उपन्यास को अनेक विद्वानों द्वारा हिन्दी का पहला उपन्यास माना जाता है।  वे एक ज्योतिर्विद् और आयुर्वेद के भी ज्ञाता थे।  उन्होंने महाभारत के उद्धरणों के माध्यम से अंग्रेजों को भारत से उखाड़ फेंकने का आह्वान किया था।  युवाओं पर उनके बढ़ते प्रभाव को देखकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें उनके गांव से निष्कासित कर दिया था। एक ईसाई पादरी फादर न्यूटन के प्रस्ताव पर सरकार ने उनका निष्कासन रद्द कर दिया था।  44 वर्ष की अल्पायु में 24 जून, 1881 को वे इस संसार से विदा हुए।  1870 में उनकी रचित अमर रचना "ओम जय जगदीश हरे" आज भी जन-जन में लोकप्रिय है।  उनके इस योगदान को मैंने वर्ष 2020 में आप सभी के सामने लाने का प्रयास किया था।  आज पुनः आप सभी से साझा कर रहा हूँ।  “ओम जय जगदीश हरे" के इस अमर रचनाकार और हिंदी के महान सपूत को शत शत नमन!

https://lnkd.in/dUbMrFM

#हिंदी #ओम_जय_जगदीश_हरे

#साकेत_विचार

Thursday, June 15, 2023

देवी प्रसाद चौधरी और पटना का शहीद स्मारक






आज महान चित्रकार स्वर्गीय देवी प्रसाद राय चौधरी जी की जयंती है। आपकी प्रसिद्ध कृति है पटना का शहीद स्मारक । चित्रकार, मूर्तिकार एवं ललित कला अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष देवी प्रसाद चौधरी का जन्म 15 जून, 1899 को अविभाजित भारत के मीरपुर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। आप भारत सरकार से वर्ष 1958 में पद्म भूषण से सम्मानित कला साधक हैं। 

विधान सभा भवन के पास स्थित पटना के शहीद स्मारक से भला आज कौन नहीं परिचित है। इस स्मारक में 7 वीर पुरुषों की कांस्य प्रतिमा लगी है। देवी प्रसाद जी के इस प्रमुख चित्र “शिल्प शहीद स्मारक” की स्थापना 1956 ईस्वी में पटना सचिवालय के बाहर की गई थी। इसमें  7 युवाओं को राष्ट्रीय ध्वज फहराने के प्रयास में अपने प्राणों का बलिदान करते दिखाया गया है।  भारत छोड़ो आंदोलन-1942 के दौरान पटना सचिवालय पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के संकल्प के साथ एक जुलूस आगे बढ़ रहा था तभी अंग्रेजों ने उस पर गोली चला दी और इस घटना में 7 युवक शहीद हो गए । देवी प्रसाद ने इस घटना को मूर्ति शिल्प में जीवित कर दिया । इस शिल्प में प्रथम युवक राष्ट्रीय ध्वज लिए आगे बढ़ रहा है एक युवक घायल अवस्था में गिरते हुए तथा अन्य युवकों को देशभक्ति से ओतप्रोत आगे बढ़ते हुए दिखाया गया है। यह शिल्प आज भी भारत के  स्वाधीनता संघर्ष से हम सभी को जोड़ता है और जाग्रत करता है कि यह आज़ादी हमें असंख्य बलिदानों के बाद मिली है। 

एक कलाकार, साहित्यकार अपनी कृतियों के माध्यम से समाज, देश को जोड़ता है। देवी प्रसाद जी इस अनुकरणीय कृति द्वारा सदैव जीवंत रहेंगे। 

उनकी स्मृति को नमन🙏

डॉ साकेत सहाय

१५.०६.२०२३

#शहीद_स्मारक #पटना #इतिहास

Tuesday, June 13, 2023

भाषिक औपनिवेशिकता




यह स्थापित सत्य है कि इस देश में सबसे ज्यादा बोली एवं समझी जाने वाली भाषा हिंदी है।  अतः देशहित में भाषा के नाम पर सोशल मीडिया या राजनीतिक मंचों के माध्यम से स्वार्थपरक धारणाएं स्थापित की जानी तुरंत बंद की जाए। क्या दही प्रिंट करके व्यवस्था ने कोई गुनाह किया था?  वैसे व्यवहारिकता तो यही है कि इस देश में हर चीज पर राज्य विशेष की भाषा तथा हिंदी में ग्राहक सूचना प्रिंट होनी चाहिये। परंतु यह दुर्भाग्य है कि इस देश में हर चीज में राजनीतिक एजेंडा के तहत भाषा, जाति और पंथ को घसीटा जाता है। कब तक किसी आप संघ की राजभाषा हिंदी का अपमान करेंगे?  कभी भाषा को पंथ से जोड़कर कुतर्क प्रस्तुत करेंगे । भाषाएं राष्ट्रीय संस्कृति से जुड़ी होती हैं। कभी हिंदी-उर्दू का विवाद, कभी हिंदी की बोलियों के नाम राजनीतक रोटी सेंकना तो कभी हिंदी और भारतीय भाषाओं को आपस में लड़ा कर अंग्रेजी को आगे करना। हिंदी-उर्दू को ही लें तो यह है कि उर्दू और हिंदी हमारी अपनी  भाषाएं है।  मात्र लिपि का अंतर है। इतिहास  पढ़ लीजिये जान-बूझकर षड्यंत्र के तहत उर्दू को फारसी लिपि में लिखा जाने लगा।  यदि देश पर तुर्क-मुगल-अंग्रेजों द्वारा दासता नहीं थोपी जाती तो क्या यहाँ अंग्रेजी भाषा या फारसी लिपि वाली उर्दू  चलती? इस देश की सांस्कृतिक एकता के लिये जरूरी है कि इस देश की परंपरा, भाषा, लिपि, संस्कृति का सम्मान हों, उसे बढ़ावा देने का यत्न हो। 

अतः तमिलनाडु सरकार को यह समझना चाहिए यह देश समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का देशहै। इस देश में सदियों से एक भाषा राष्ट्रीय तौर पर अपनाने की परंपरा रही है। भारत एक संघीय गणराज्य है तो सभी राज्यों का यह राष्ट्रीय धर्म है कि वे संघ की राजभाषा हिंदी का सम्मान करें, न कि निहित स्वार्थ में देश का नुक़सान करें। राष्ट्रीय भावना को क्षति पहुँचाए। 

क्या यह देश अभी भी ब्रिटिश, मुगल या अरबों   का उपनिवेश है जो आप उनकी भाषा, संस्कृति, परंपरा का हर जगह प्रयोग करेंगे । आप हर भाषा का सम्मान करें, उसे सीखें,पर अपनी राष्ट्रभाषा, राजभाषा को क्यों अपमानित करते हैं ? यह जरूरी है कि हम सभी अपने-अपने स्तर पर इस विषय को सकारात्मक तरीके से उठायें। जब तक सभी कंपनियां अपने उत्पादों पर राजभाषा और प्रदेश विशेष की भाषा में नहीं लिखती तब तक उसे न खरीदें ।  आजादी के अमृत काल में संविधान के रक्षार्थ हम सभी इतना तो कर ही सकते हैं।  

जरा सोचिये! क्या हमारे महान नेताओं ने स्वभाषा के लिए इसी दिन की खातिर अपना बलिदान दिया था? 

©डॉ. साकेत सहाय

राष्ट्रभाषा हिन्दी और राजनीतिक दोहरापन

  

हिंदी ब्रिटिश गुलामी से आजादी के बाद से ही नेतृत्व के कुबुद्धि की वजह से  ग़ुलामी की प्रतीक भाषा अंग्रेजी से पराजित होकर भारतीय भाषाओं की सौतन बनकर उभरती है या षड्यंत्र के तहत उभारी जाती है। भले ही हिंदी सौतन हो या नहीं । एक समस्या यह भी है हिंदी को लेकर जान-बूझकर काल्पनिक धारणाएं प्रस्तुत की जाती हैं । जिनसे किसी का भला नहीं होने वाला । क्षणिक राजनीति को यदि छोड़ दें तो भी हिंदी का जिन नेताओं ने, लोगों ने, ब्यूरोक्रेसी ने पूर्व में विरोध किया उन्हीं लोगों ने हिंदी की मलाई भी खूब काटी ।  हिंदी को लेकर तमाम लोग इनमें वैसे भी लोग शामिल है जिन्हें वैसे तो हिंदी की क ख ग नहीं आती पर बात जब विरोध की आती है तो ऐसे लोग भाषा विशेषज्ञ बन जाते हैं परंतु वे भी हिंदी पढ़ते है अपनी जरूरत के लिए। 

एक बार फिर तमिलनाडु सरकार ने राजनीतिक लाभ एवं दुराग्रह के तहत भारत सरकार की एक प्रमुख बीमा कम्पनी द्वारा संविधान सम्मत और सरकारी दिशानिर्देश के अनुरूप जारी परिपत्र का विरोध कर संघवाद की नीति के प्रति अवमानना ही प्रदर्शित की है जोकि देशहित में बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। 

केंद्र सरकार के कार्यालयों की भाषा नीति के संबंध में किसी राज्य सरकार का ऐसा हस्तक्षेप एवं विरोध एक राष्ट्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।  आखिर राज्य सरकारें भी तो अपनी राजभाषा से भिन्न भाषाभाषी  कर्मचारियों को राज्य की राजभाषा में प्रशिक्षित करती ही हैं। फिर इस कार्य में केंद्र सरकार का विरोध क्यों किया जा रहा है। इसके राजनीतिक निहितार्थ चाहे जो हो पर इसे देशहित में कोई भी उचित नहीं ठहरा सकता। 

क्या भारत के संविधान की याद राज्यों को केवल अपने स्वार्थ के समय ही आती है। क्या इन्हें संविधान और राजभाषा नीति का पता नहीं ?  दी न्यू इंडिया एश्योरेंस कं भारत सरकार का एक उपक्रम है। किसी राज्य के मुख्यमंत्री को यह हक किसने दिया?  तमिलनाडु सरकार को राजनीतिक लाभ की ख़ातिर अपना उल्लू सीधा  करने से बचना चाहिए। 

बार-बार हिंदी के विरुद्ध ऐसे कृत्य केवल सत्ता के लिए वोट के नाम पर भला कौन-सी राजनीति है। दरअसल हिंदी की समस्या न राजनीतिक है न सामाजिक बल्कि लोगों को भड़का कर  स्वार्थ सिद्धि की है। यह भी सत्य है कि इस देश की ज़्यादातर सरकारों ने हिंदी का दोहन ही किया है। हिंदी के बल पर सरकारें सत्ता में तो आती हैं फिर उसे उसकी हालात पर छोड़ देती हैं । दरअसल हिंदी और इस देश के गरीबों की हालत एक ही है। जो स्वंय के बल पर आगे बढते हैं । यह स्थापित सत्य है कि हिंदी सबकी हैं । यह केवल उत्तर भारत की भाषा नहीं है बल्कि संपूर्ण भारतवर्ष की भाषा हैं । इसीलिए यह ईसा पूर्व से ही कभी पाली, प्राकृत,  अपभ्रंश,  ब्रज,  दक्खिनी , हिंदुस्तानी तथा आधुनिक हिंदी के रूप में व्यापक अभिव्यक्ति का जरिया बनी हुई हैं । आप सब हिंदी एवं भारतीय लोक भाषाओं में अद्भुत शाब्दिक समानता से इसे देख समझ सकते हैं ।  मराठी भाषी केशव  पेठे  जी ने १८९३ ई. में ‘राष्ट्रभाषा किंवा सर्व हिन्दुस्थानची एक भाषा करणे’ नामक पुस्तक में हिंदी को सर्वस्वीकृत राष्ट्रभाषा बनाने पर जोर दिया था।  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी को 'राष्ट्रभाषा' नाम से प्रचारित किया था।  इसलिए हिंदी प्रचार सभाओं के नाम राष्ट्रभाषा सभा पंजीकृत किए गए थे।  जैसे राष्ट्रभाषा प्रचार समिति,वर्धा और महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा पुणे।

पर इस छद्म लोकतांत्रिक समाज में जहां न लोक के लिए जगह है न तंत्र के लिए । सब कुछ सत्ता है।  भले भाषा लोक को पाने का अद्भुत जरिया है पर दुर्भाग्य से इसकी याद केवल चुनाव के वक्त आती हैं । (यहां भाषा से मेरा पर्याय हिंदी से है।) 

आमतौर पर हिंदी को लेकर दो तर्क दिए जाते हैं - 

1. हिंदी उत्तर भारतीयों की भाषा है । मेरे विचार से यह तथ्य गलत है। इस देश में कोई भी व्यक्ति यह दावा नही कर सकता कि हिंदी उसकी मातृभाषा हैं । सबकी अपनी मातृभाषा या बोली है। हिंदी उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से लेकर पश्चिम तक सभी लोकभाषाओं का सम्मिश्र रूप हैं । इसीलिए इसे हर भारतीय जल्दी सीख लेता है। 

2 हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है, यह तर्क भी गलत हैं । संविधान सभा ने सर्वसम्मति से हिंदी को इसीलिए राजभाषा घोषित किया था क्योंकि यह उस काल में भी व्यापक रूप से  स्वीकृत राष्ट्रभाषा थी। किसी देश की राजभाषा किसको घोषित किया जाता हैं?  हिंदी के अपमान पर यह कहा जा सकता है  -“महात्मा गांधी का रोज हम अपमान करते है जब हिंदी को रौंद कर अंग्रेजी को तरजीह देते हैं ।'  दुर्भाग्य से महात्मा गाँधी का माला जपने वाली सरकारें व लोग यहीं कर रही है।  साथ में  ‘हिंदी के विरोध पर सारे अंबेडकरवादी भी चुप हो जाते हैं ? तो क्या हिंदी  का विरोध बाबा साहेब के संविधान का अपमान नहीं हैं। 

इस देश की राष्ट्रीय एकता के लिए यह ज़रूरी है कि हिंदी को लेकर  हम सब बावेला न मचाए।  हिंदी सबकी है।  हम सभी अपनी भाषाओं का सम्मान करें । यह भी विचारणीय है कि हिंदी विरोध के नाम पर हम कहीं न कहीं अंग्रेजी भाषा का ही समर्थन करते हैं । जबकि भारत का विकास भारतीय भाषाओं में ही निहित हैं और हिंदी इसमें अग्रणी भूमिका में हैं। 

#जय हिंद जय हिंदी 

©डॉ. साकेत सहाय

सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस

आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है।  आज 'भारतीय भाषा दिवस'  भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...