Monday, May 29, 2023

हिंदी पत्रकारिता दिवस की बधाई!

 हिंदी पत्रकारिता दिवस। 





भारतीय भाषाई पत्रकारिता के लिए ऐतिहासिक दिन ! जब मध्यदेशीय में बांग्ला भूमि से उदंत मार्तण्ड की शुरूआत हुई। 1827 में बंद | हिंदी व भारतीय पत्रकारिता की ऐतिहासिक नींव । लिपिबद्ध होकर पत्र के रुप में लोगों तक पहुंची #हिंदी_पत्रकारिता में तकनीक का प्रारंभ।

आज ही के दिन आज से 197 वर्ष पूर्व 30 मई, 1826 को ब्रिटिश भारत की राजधानी कोलकाता यानी आज के भारत के भाषायी वर्गीकरण के हिसाब से ग क्षेत्र से राष्ट्रभाषा हिंदी के पहले समाचार पत्र  'उदन्त मार्तंड की शुरुआत पं. युगल किशोर शुक्ल ने की थी. तब से अब तक हिंदी पत्रकारिता ने ऐतिहासिक सफर तय किया है. 

ब्रिटिश पराधीनता काल से ही हिंदी पत्रकारिता देशी संपर्क एवं भाषाओं, बोलियों  की आवाज बनकर उभरी है. हालांकि आज इसमें गिरावट आई है. मैंने अपनी पुस्तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया :भाषिक संस्कार एवं संस्कृति  में इन तथ्यों को उठाने का प्रयास किया है. कैसे हिंदी राष्ट्रभाषा से राजभाषा, स्वतंत्रता, समानता, साहित्य,  संस्कृति, संस्कार की भाषा का सफर तय  करते हुए इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के सहारे ज्ञान-विज्ञान, अर्थ, व्यापार,  संपर्क की भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है.  

तब से अब तक हिंदी पत्रकारिता ने ऐतिहासिक सफर तय किया है।  ब्रिटिश पराधीनता काल से ही हिंदी पत्रकारिता देशी संपर्क एवं भाषाओं, बोलियों  की आवाज बनकर उभरी है। हालांकि आज इसमें गिरावट आई है। मैंने अपनी पुस्तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया :भाषिक संस्कार एवं संस्कृति  में इन तथ्यों को उठाने का प्रयास किया है। जिसे समीक्षको ने सराहा भी। पुस्तक दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी, संस्कृति मंत्रालय द्वारा साहित्य श्री कृति सम्मान से सम्मानित भी हुई।यह पुस्तक यह रेखांकित करता है कि कैसे हिंदी राष्ट्रभाषा से राजभाषा, स्वतंत्रता, समानता, साहित्य,  संस्कृति, संस्कार की भाषा का सफर तय  करते हुए इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के सहारे ज्ञान-विज्ञान, अर्थ, व्यापार,  संपर्क की भाषा के रूप में स्थापित होने का सफ़र तय किया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सहारे हिंदी ने एक नई भाषिक संस्कृति को जन्म दिया है। हालाँकि इसकी सकारात्मकता, नकारात्मकता पर विमर्श हो सकते है। पर यह सही है कि मीडिया ने मजबूत राष्ट्रीय संस्कृति के निर्माण में योगदान दिया है। जिसकी परिकल्पना हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने की थी। इस पत्रकारिता की नींव उद्दंत मार्तंड ने रखी थी।  पुस्तक हेतु आप सभी लेखक से संपर्क कर सकते हैं। 

यह प्रीतिकर है कि गत वर्ष हिंदी को अंतराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार प्राप्त हुआ ।  इस वर्ष भी विनोद कुमार शुक्ल जी की कृति को अंतराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ। इन सभी से से हिंदी विश्व मंच पर सम्मानित हुई, यह उल्लेखनीय है।

वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हर मंच से हिंदी की सशक्त्तता को स्थापित कर रहे है।  वे गर्व से अपनी भाषा में बात करते हैं। प्रधानमंत्री दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्षों से स्वाभिमानपूर्वक हिंदी में बात करते हैं और सब उन्हें आदरपूर्वक सुनते हैं क्योंकि भाषा नहीं बोलने वाले में दम होना चाहिए। नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में हिंदी का बहुमूल्य योगदान हैं । उन्होंने इस तथ्य को व्यापकता प्रदान की है कि हिंदी के सहारे पूरे देश में पताका फहराई जा सकती है। 

यह हिंदी ही है जो सबको सत्ता देती है। पर सत्ता पाने के बाद अधिकांश लोग इसे भूल जाते है। मैं इस दिवस पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से अपील करूँगा कि आप हिंदी की व्यापकता को एक नया फलक दें  तथा हिंदी जो दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में  प्रथम पायदान पर खड़ी है।  यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के निवासियों के लिए गर्व का विषय है, पर हिंदी बतौर राजभाषा अकादमिक या अन्य स्तरों पर इस तथ्य से महरूम है। तो आइए हिंदी पत्रकारिता दिवस पर हम हिंदी तथा इसकी लिपि को देशी भाषाओं के समन्वय रूप में स्थापित करें और संविधान के अनुच्छेद-३५१ की मूल भावना को स्वर देते हुए राष्ट्रभाषा हिंदी को सशक्त करें। 

इस दिवस पर मैं पूर्व में प्रकाशित आलेख साझा कर रहा हूँ। 

#हिंदी_पत्रकारिता_दिवस की सभी हिंदी प्रेमियों को बधाई। 

पढ़े #स्वराज में वर्ष २०२१ में प्रकाशित आलेख, 

https://twitter.com/swarajyahindi/status/1398935710846001156?s=21

#साकेत_विचार


जय हिंद! जय हिंदी!!


©डा साकेत सहाय


Saturday, May 27, 2023

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति का हिंदी ट्वीट

 




इस ट्वीट का बहुत महत्व है। भारत की प्रमुख भाषा हिंदी है ।  इसे विदेशी समझते है। भले हम और आप समझना नहीं चाहते। 

एक विदेशी राष्ट्राध्यक्ष के रूप में फ़्रांसीसी राष्ट्रपति के मन में हिंदी के महत्व और प्रेम हेतु अभिनंदन!  इस ट्वीट में फ़्रांस के राष्ट्रपति भारत की मुख्य भाषा के रूप में हिंदी को तरजीह देते  है। पूर्व में विदेशी राष्ट्राध्यक्षों द्वारा ऐसे नगण्य उदाहरण मिलेंगे। आप सभी को यह प्रसंग ज़रूर याद होगा।  जब सन् 1950 में गणतंत्र बनने के उपरांत भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय संबंध स्थापित करने की दिशा में प्रयास शुरू किए। उस श्रृंखला में श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित को सोवियत रूस में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया। उन्होंने रूस की सरकार को अपने प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किए जो अंग्रेजी में थे, सम्बन्धित अधिकारियों ने प्रमाण-पत्र को स्वीकार करने से मना कर दिया, क्योंकि वे किसी भारतीय भाषा में नहीं थे। राजदूत के रूप में अंग्रेजी में प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने पर विजयलक्ष्मी पंडित से यह प्रश्न किया गया था- क्या आपकी अपनी कोई भाषा नहीं है? क्या भारत एक गूंगा एवं असभ्य देश है कि उसने अपनी कोई भाषा विकसित नहीं कर पाई है? 

फिर भी अंग्रेज़ी का सम्मान बना रहा। प्रयोग तो ठीक है पर हद से ज्यादा अंग्रेज़ी का सम्मान अनुचित। मुझे यह ट्वीट स्वभाषा चेतना को जागृत करने वाला लगा इसलिए साझा किया। इसके निहितार्थ को समझिए। जो ज़रूरी भी है। 

#hindi #हिंदी #france #फ़्रांस #स्वभाषा

विज्ञापन, संस्कृति और बाज़ार

आज के दैनिक हिंदुस्तान में एक विज्ञापन आया है जो विशाल मेगा मार्ट से संबंधित है। विज्ञापन का शीर्षक है ‘ अच्छे दिखें ‘  

अब आप तय करें कि इस विज्ञापन के ज़रिये क्या संदेश देना चाहती है यह कंपनी।

विज्ञापन के संकेत को समझें। यहाँ बात उत्तर आधुनिक कपड़ों के माध्यम से लोगों को अभिजात्य बनाने  को लेकर है। इस विज्ञापन में देशी पोशाक, पहने मेहनती, गैर-अभिजात्य वर्ग के लोगों को पश्चिमी परिधान से प्रेरित होते दिखाया जा रहा है। जो ग़लत है। इस कम्पनी के अनुसार अंग दिखाऊ कपड़े ही आधुनिकता के परिचायक है। बाज़ार किस दिशा में हमें ले जाना चाहता है? क्या हमारी सोच, परिधान सब कुछ कोई और तय करेगा। अब अच्छे दिखने का यही अर्थ है?  क्या कारण हैं कि हम सब हर अंधी नक़ल को समर्थन देते हैं या स्वीकारते है। हर चीज कहीं की भी सही नहीं होती। यह कौन-सी समझ है जो सड़े-गले, फटे, अधनंगे वस्त्रों में भी निजता और नारीवाद ढूँढती हैं?

बाज़ारवाद की यही रणनीति हैं हर चीज को उत्तर-आधुनिकतावाद से जोड़ दो। तभी तो आज शब्द से भी आधुनिकता तय होती है।  ‘वाश-रूम’ जैसे शब्द आधुनिकतावाद के प्रतीक। क्या अंग्रेज़ी के शब्दों से भी कहीं आधुनिकता आती हैं।  शर्म आती है ऐसी सोच पर, जिसे अंग्रेजों ने रोपा और बाज़ारवाद ने पुष्ट किया।  

वास्तव में हमारी  सोच-समझ को ही अंग्रेज़ी चूहों ने कुतर दिया है इसी का परिणाम है यह सांस्कृतिक खोखलापन।  उत्तर-आधुनिकता का सिद्धांत यहीं तो हैं जिसके तहत नंगा व्यक्तिवाद भी फ़ैशन के नाम पर खुला कहलाता है। जैसे चीन, इंग्लैंड, अमेरिका और मध्य पूर्व का विकास। 

दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य हैं कि जिस देश में स्नान जैसी दैनिक क्रिया को भी इसके वैज्ञानिक गुणों को जानकर धर्म से जोड़ा गया है, जहाँ जूठा गिलास भी कोई किसी का नहीं पीता, वस्त्र की भी अपनी महिमा स्थापित है।  ऐसे में अधनंगे वस्त्र आधुनिकता की निशानी कैसे हो सकते हैं? वस्त्रों से तो सभ्यताओं की प्रगति का पता लगाया जाता है। अभी तक तो यहीं माना जाता था कि उन्नत सोच से ही समृद्धि आती हैं।  नक़ली एवं उधार के संस्कारों से सभ्यताएं समृद्ध नहीं होती। बल्कि खोखले लोग पैदा करती है। अत: वस्त्र को निजता से नहीं , संस्कार से जोड़े। भद्रता से जोड़ें न कि बाज़ार से। कभी वस्त्र नाम से एक कविता लिखी थीं, जो आप सभी से साझा कर रहा हूँ- 




वस्त्र

सुना था

वस्त्र मनुज-मानवी के 

होते है आभूषण 

इससे पनपे संस्कार 

और निर्मित हो एक संस्कृति 


पर अब सुना है वस्त्र 

धर्म भी 

आधुनिकता भी, 

पिछड़ापन का प्रतीक भी

न कि संस्कृति की। 

भला  बीच में  कैसे आ  गए

धर्म  व  पंथ

बाज़ार और आधुनिकता

आए और बीच बाज़ार में 

धर्म-परंपरा के नाम पर फेंक दें 

बुर्का, हिजाब सब, 

सब मिल उतार दें भेद सब,


पर लज्जा और सम्मान रखें

रखें मान और संस्कार

और न पालें

बिकिनी गर्ल बन जाने का 

बाज़ार का सबब


वस्त्र संस्कार

संस्कृति

और

सभ्यता के होते है 

सूचक

न होते है दबाव, 

लालच, भोग, 

कुपरंपरा के बोधक। 

#साकेत_विचार

#विज्ञापन #बाज़ार #नंगई #वस्त्र

Wednesday, May 17, 2023

राम और विभीषण

 ‘सुंदरकांड' में एक प्रसंग आता है- लंका पति के भाई विभीषण, प्रभु श्रीराम को प्रणाम करते हैं और आशीर्वाद स्वरूप उनकी भक्ति मांगते हैं।  विभीषण कहते हैं मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस ऐसा करें कि जीवनपर्यंत आपको इष्ट मानूं।  राम बदले में उन्हें देखिए क्या देते हैं-

'जदपि सखा तव इच्छा नाहीं। 

मोर दरसु अमोघ जग माहीं।।

अस कहि राम तिलक तेहि सारा। 

सुमन बृष्टि नभ भई अपारा।।'

राम ने विभीषण को लंका का पूरा राजपाट ही सौंप दिया। वास्तव में राम सत्य के प्रतीक हैं। राम की भक्ति सत्य और मर्यादा को अभिप्रेत करती है।  सोचिए राम की भक्ति में कितनी शक्ति है कि एक निष्काषित व्यक्ति को उसी राज्य का राजा बनाया जाता है। केवल इसलिए कि उसने शक्तिशाली परंतु अनाचारी रावण का विरोध किया। ठीक ही कहा गया है जो राम का है, यह सब उसका है। जो राम का नहीं, यह जग उसका नहीं। फिर भी कलियुग की माया देखिए कि आज समाज में विभीषण के प्रति अपमान, शर्म एवं घृणा का भाव बोध है और रावण के प्रति सहानुभूति, संवेदना का भाव ।

#राम #विभीषण

#साकेत_विचार

Sunday, May 14, 2023

सारण गौरव सम्मान









अपना शहर हर किसी के दिल के क़रीब होता है। क्योंकि आपकी यादें, पहचान उस माटी से अभिव्यक्त होती हैं। आप चाहे कही भी रहें, जाने उसी से जाएँगे। इसी क्रम में यदि अपने छपरा में कुछ भी बेहतर हो और उससे आपको जुड़ने का अवसर मिले, तो बहुत ही ज्यादा ख़ुशी मिलती है। छपरा शहर में एक अलग ही ऊर्जा ही है और इसी ऊर्जा से ऊर्जस्वित छोटे भाई अभिषेक अरुण ने अपने शहर में भी बड़े शहरों की भांति सारण अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह का लगातार तीन सालों से उत्कृष्ट आयोजन करने का बीड़ा उठाया है। अभिषेक अरुण छपरा की धरती पर कला एवं संस्कृति की फ़सल लहलहाती रहें, इस हेतु समर्पित भाव से कार्य करने वाले आदरणीय पशुपति नाथ अरुण के सुपुत्र हैं। श्री पशुपति नाथ अरुण मयूर कला केन्द्र जैसे संस्था के संस्थापक रहे हैं। जो संस्था इस आयोजन में भी सक्रिय है। मुझे ख़ुशी है कि संस्था ने मुझे भाषा एवं साहित्य में योगदान के लिए सारण गौरव सम्मान से सम्मानित किया है।


मुझे ख़ुशी इस बात है कि बड़े भाई अखिलेंद्र मिश्र जी अपनी माटी को तमाम व्यस्ताओं के बीच समय देते हैं यह आपका लगाव है। आप इस आयोजन के निर्माण एवं प्रसार दोनों से जुड़े हुए है। जो इस आयोजन को गति प्रदान करते हैं। मुझे गर्व है आप मुझसे व्यक्तिगत रूप से जुड़े हुए हैं। इस दौरान आपकी उत्कृष्ट काव्य रचना अखिलामृत्म भी लोकार्पित हुई।


इस अवसर पर छपरा शहर में समाचारों की दुनिया को नया रूप देने वाले छपरा टुडे के संस्थापक सुरभित दत्त से मिलने का अवसर मिला। इस आयोजन के वेब मीडिया पार्टनर के रूप में छपरा टुडे की उल्लेखनीय भूमिका रही।  इस दौरान सुरभित दत्त जी ने मेरा साक्षात्कार भी लिया। आपका आभार! एवं भविष्य हेतु शुभकामना!  साक्षात्कार का लिंक- 


https://fb.watch/kwb22lKLjU/?mibextid=Nif5oz


आयोजन  के उद्घाटन सत्र में भाषा एवं साहित्य में योगदान के लिए मुझे बिहार सरकार के कला एवं संस्कृति मंत्री श्री जितेन्द्र कुमार राय के हाथों सम्मानित होने का अवसर मिला। इस दौरान मंच पर प्रख्यात अभिनेता, लेखक और सारण के सपूत अखिलेंद्र मिश्र,  विधायक डा सीएन गुप्ता, विधान पार्षद गुरुवर डा वीरेंद्र नारायण यादव की सम्मानित उपस्थिति रही। 

#saraninternationalfilmfestival


फ़ोटो एवं वीडियो साभार स्रोत- सुरभित जी, छपरा टुडे। 


छोटे भाई अभिषेक अरुण एवं समस्त सहयोगियों को  तहे दिल से शुक्रिया!🌺

#साकेत_विचार #पुरस्कार #सम्मान

Friday, May 5, 2023

बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामना!



बुद्ध पूर्णिमा -वैशाख पूर्णिमा की समस्त सनातन समाज, बौद्ध मतावलंबियों को शुभकामना!  

मान्यता है कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम को वर्तमान बिहार के बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था। इसे संयोग कहें या ईश्वर कृपा भगवान को ज्ञान की प्राप्ति भी मोक्ष नगरी, भगवान विष्णु की प्रिय नगरी गयाजी में हुई।  ५६३ ई.पू. बैसाख मास की पूर्णिमा को भगवान बुद्ध का जन्म वर्तमान नेपाल के लुंबिनी, शाक्य प्रदेश में हुआ था। यह भी संयोग है कि पूर्णिमा के दिन ही ४८३ ई. पू. में ८० वर्ष की आयु में वर्तमान उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ‘कुशनारा' में उनका  महापरिनिर्वाण हुआ था।


आज भगवान बुद्ध की वाणी, मत वैश्विक स्तर पर सशक्तता के साथ स्थापित है।  भगवान बुद्ध ने ज्ञान, ध्यान, चिंतन, अहिंसा के माध्यम से भारतीयता को विश्व भूमि पर जीवंत किया।

मानव को अहिंसा, सह-अस्तित्व का पाठ पढ़ाने वाले महान समाज सुधारक, भगवान विष्णु के नवें अवतार को नमन करने के विशेष अवसर पर आप सभी को आत्मीय मंगलकामना! 

©डॉ. साकेत सहाय

#बुद्ध_जयंती

#साकेत_विचार


https://vishwakeanganmehindi.blogspot.com/2022/05/blog-post_15.html?fbclid=IwAR30fyLvhBxRSX1TqIpAUK4hd9Gdx_0fjYeSiWSaP4d8HjCwESQQ_0Mv4f0&m=1&mibextid=Zxz2cZ

Tuesday, May 2, 2023

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस


आज 3 मई को संपूर्ण विश्व में ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ (World Press Freedom Day) मनाया जाता है। चौथे स्तम्भ के सभी कलमकारों को इस दिवस की बधाई व शुभकामना!

 ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ का मुख्य विषय (Theme) ‘‘सूचना और मौलिक स्वतंत्रता जन जन तक पहुंचे-यह हमारा अधिकार है!’ (Access to Information and Fundamental Freedoms-This is Your Right!) है।

ज्ञातव्य है कि वर्ष 1993 में  यूनेस्को में हुए महासम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 मई को प्रतिवर्ष विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की थी।

इस दिवस को मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन करना, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाह्य तत्वों के हमले से बचाव करना एवं प्रेस की स्वतंत्रता के लिए शहीद हुए संवाददाताओं की यादों को सहेजना है।

आज हर स्तर पर प्रेस स्वतंत्रता में ह्रास चिंतनीय है। दबाव के अंतर्गत उपजी स्वच्छंदता सदैव घातक होती है ।  आज प्रेस को देश व समाज के दीर्घ हित में सकारात्मक चिंतन एवं पहल करने की बहुत बड़ी आवश्यकता है । क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता आज स्वच्छंदता में परिवर्तित होती जा रही है। 

-डॉ साकेत सहाय

#साकेत_विचार

#प्रेस #press #pressday

हिंदवी से हिंदी तक



आइए आप सभी को भारत में कभी प्राकृत, पाली, अपभ्रंश ,  भाखा, हिंदवी, हिन्दुस्तानी, हिंदी आदि उपनामों से प्रचलित राष्ट्रभाषा हिन्दी के विभिन्न नाम या रूप से परिचित  कराते हैं। 


*1. हिन्दवी/हिन्दुई/जबान-ए-हिन्दी/देहलवी:* मध्यकाल में मध्यदेश

के हिन्दुओं की भाषा, जिसमें अरबी-फारसी शब्दों का अभाव

है। [सर्वप्रथम अमीर खुसरो (1253-1325) ने मध्य देश की

भाषा के लिए हिन्दवी, हिन्दी शब्द का प्रयोग किया। उन्होंने

देशी भाषा हिन्दवी, हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए एक

फारसी-हिन्दी कोश 'खालिक बारी' की रचना की, जिसमें

हिन्दवी शब्द 30 बार, हिन्दी शब्द 5 बार देशी भाषा के लिए

प्रयुक्त हुआ है।]

*2. भाषा/भाखा :* विद्यापति, कबीर, तुलसी, केशवदास आदि

ने भाषा शब्द का प्रयोग हिन्दी के लिए किया है। [19वीं

सदी के प्रारंभ तक इस शब्द का प्रयोग होता रहा है। फोर्ट

विलियम कॉलेज में नियुक्त हिन्दी अध्यापकों को 'भाषा

मुंशी' के नाम से अभिहित करना इसी बात का सूचक है।]

*3. रेख्ता :* मध्यकाल मुसलमानों में प्रचलित अरबी-फारसी

शब्दों से मिश्रित कविता की भाषा। (जैसे-मीर, गालिब की

रचनाएं)

*4. दक्खिनी/दक्कनी :* मध्यकाल में दक्कन के मुसलमानों द्वारा

फारसी लिपि में लिखी जानेवाली भाषा। [हिन्दी में गद्य

रचना परंपरा की शुरूआत करने का श्रेय दक्कनी हिन्दी के रचनाकारों को ही है। दक्कनी हिन्दी को उत्तरी भारत

में लाने का श्रेय प्रसिद्ध शायर वली दक्कनी (1667-1707)

को है। वह मुगल शासन काल में दिल्ली पहुँचा और उत्तरी

भारत में दक्कनी हिन्दी को लोकप्रिय बनाया

*5. खड़ी बोली*

खड़ी बोली की 3 शैलियाँ

*★ हिन्दी/शुद्ध हिन्दी /उच्च हिन्दी/नागरी हिन्दी/आर्यभाषा:*

नागरी लिपि में लिखित संस्कृत बहुल खड़ी बोली

(जैसे-जयशंकर प्रसाद की रचनाएं)

*उर्दू/जबान-ए-उर्दू/जबान-ए-उर्दू-मुअल्ला:* फारसी लिपि

में लिखित अरबी-फारसी बहुल खड़ी बोली (जैसे-मण्टो

की रचनाएँ)

*★ हिन्दुस्तानी :* हिन्दी-उर्दू का मिश्रित रूप व आम जन्

द्वारा प्रयुक्त (जैसे-प्रेमचंद की रचनाएं)


अक्सर सुनते है हिंदी फ़ारसी भाषा का शब्द है। पर यह भाषा आर्यभाषा, अपभ्रंश, लौकिक संस्कृत के रूप में उत्तर वैदिक काल से ही अस्तित्व में रही। इस प्रकार से हिंदी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा अवश्य मिलना चाहिए। वैसे भी  फ़ारसी भाषा में हिंदी का अर्थ होता है हिंद देश के निवासी। अर्थात् हिंदी सदियों से इस देश की जनभाषा, लोकभाषा, तीर्थभाषा, संपर्क भाषा आदि उपनामों से अलंकृत होकर ब्रिटिश पराधीनता से मुक्ति की वाहक भाषा बनकर उभरी। फिर स्वाधीनता प्राप्ति के बाद राष्ट्रभाषा से राजभाषा के पद पर आसीन हुईं।  इन सभी के बावजूद कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि हमने हिंदी की सेवा की। कुछ लेखकों/पत्रकारों को तो यह भी लगता है कि हिंदी का वजूद ही उनकी वजह से हैं । मगर वे यह भूल जाते हैं कि हिंदी या मातृभाषाओं की वजह से ही हम सभी का अस्तित्व हैं । हिंदी सदियों से भारत की अखंडता की बुनियाद को  सशक्त करने का कार्य कर रही हैं ।  ऐसे में यह स्वाभाविक है  कि हिंदी का अस्तित्व हमारी वजह से नहीं बल्कि हमारे अस्तित्व की नींव में हिंदी का योगदान है।  भाषाएँ, बोलियाँ हमारी माँ के समान है इनसे किसी का क्या बैर?

भाषाएँ, बोलियाँ प्रकृति  की जीवंतता हेतु  प्राणतत्व होती है और प्राणतत्व की शुद्धता हेतु हम सभी को प्रयासरत अवश्य होना चाहिए। 

#साकेत_विचार

#हिंदी। #शास्त्रीय_भाषा


सादर


डॉ साकेत सहाय

सुब्रह्मण्यम भारती जयंती-भारतीय भाषा दिवस

आज महान कवि सुब्रमण्यम भारती जी की जयंती है।  आज 'भारतीय भाषा दिवस'  भी है। सुब्रमण्यम भारती प्रसिद्ध हिंदी-तमिल कवि थे, जिन्हें महा...