राम पधारें अपने घर-आँगन
आज के पावन अवसर पर मैं 🪷 भाव-विह्वल हूँ और अपने कुछ भाव आप सभी से साझा कर रहा हूँ। शीर्षक-
रामलला पधारें अपने घर-आँगन
कितनी आँखें बाट जोहती,
कितने कान सुनने को तड़पें,
कितने मन आस लगाए थे,
कितने मन रहे उदास !
अब जा के भक्तों के मन की पूरी हुई मुराद
जब विराजे दशरथ पुत्र राम
इसी के संग गूंज रही
कौशल्यापुत्र सियावर राम नाम की धुन
गूंज रहा है अखिल विश्व में मर्यादा पुरुषोत्तम का का नाम।
रामलला जो पांच सदी से वंचित थे अपने घर-आँगन से।
आज अधिष्ठित हुए हैं भक्ति-भाव, आदर से।
आइए प्रार्थना करें, संकल्प करें
सब पढ़े, सब आगे बढ़े,
और मिलकर समृद्ध भारत गढ़े।
©️डा. साकेत सहाय
22 जनवरी, 2024, पौष शुक्ल पक्ष, द्वादशी, विक्रम संवत्, 2080
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